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    Home»विशेष»विपक्षी एकता का खेल बिगाड़ गयी कांग्रेस की ‘न्योता राजनीति’
    विशेष

    विपक्षी एकता का खेल बिगाड़ गयी कांग्रेस की ‘न्योता राजनीति’

    adminBy adminMay 22, 2023No Comments6 Mins Read
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    विशेष
    -कांग्रेस के बुलावे पर न ममता आयीं, न मायावती और न अखिलेश
    -शपथ ग्रहण समारोह में कई अन्य नेताओं को नहीं बुलाना पड़ेगा भारी
    -केजरीवाल, नवीन पटनायक, केसीआर, जगनमोहन रेड्डी और पी विजयन जैसे नेताओं की उपेक्षा से पूरी मुहिम को लग सकता है झटका

    कर्नाटक में कांग्रेस की नयी सरकार ने शपथ ले ली है। शपथ ग्रहण समारोह को विपक्षी एकता के लिए एक ताकतवर मंच बनाने की पूरी कोशिश की गयी और इसके लिए कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने समान विचारधारा वाले कई दलों के नेताओं को न्योता भेजा था। 2024 के लोकसभा चुनावों में भाजपा से मुकाबले के लिए विपक्षी एकता की कोशिशें हो रही हैं, तो ऐसे आयोजन को विपक्षी दलों के लिए शक्ति प्रदर्शन का मौका माना जा रहा था। मंच से विपक्ष के कई बड़े नाम गायब रहे, तो कई बड़े नेताओं को न्योता भेजा ही नहीं गयी। तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी खुद नहीं आयीं, प्रतिनिधि को भेजा। ममता ने पिछले दिनों कांग्रेस को ‘जैसे को तैसा’ समर्थन की शर्त रखी थी। 80 लोकसभा सीटों वाले यूपी के प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव भी नहीं गये। बसपा प्रमुख मायावती भी नहीं पहुंचीं। शिवसेना उद्धव गुट के मुखिया उद्धव ठाकरे भी नहीं दिखे। कुल मिला कर विपक्षी एकता की दिशा में कांग्रेस का पहला बड़ा प्रयोग सफल नहीं रहा। जिन नेताओं को बुलाया ही नहीं गया, उनमें बीजद के नवीन पटनायक, बीआरएस के के चंद्रशेखर राव, वाइएसआर कांग्रेस के जगनमोहन रेड्डी, आप के अरविंद केजरीवाल, माकपा के पी विजयन और अन्य शामिल हैं। कहा जा सकता है कि कांग्रेस ने उन नेताओं को दूर रखा है, जिन्होंने राहुल गांधी या कांग्रेस को विपक्षी एकता की धुरी मानने में हिचक दिखायी है। अब राजनीतिक हलकों में कर्नाटक के शपथ ग्रहण समारोह को विपक्षी एकता के खेल को बिगाड़ने के कांग्रेस की खुंटचाल के रूप में देखा जा रहा है। कांग्रेस की इसी ‘न्योता राजनीति’ के संभावित असर का विश्लेषण कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार के मुखिया के रूप में सिद्धारमैया की ताजपोशी हो गयी है। शपथ ग्रहण समारोह में आशा के अनुरूप कांग्रेस के तमाम आला नेताओं और मुख्यमंत्रियों ने अपनी मौजूदगी दर्ज करायी, लेकिन ताजपोशी के इस समारोह को विपक्षी एकता का मंच बनाने की कांग्रेस की कोशिशों को करारा झटका लगा, क्योंकि उम्मीद थी कि समारोह में तमाम विपक्ष मौजूद होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। न्योता भेजे जाने के बावजूद पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी और समाजवादी पार्टी सुप्रीमो अखिलेश यादव समारोह में नहीं दिखे। बसपा प्रमुख मायावती भी नहीं आयीं। ममता ने अपना प्रतिनिधि जरूर भेजा। समारोह में ममता-अखिलेश की मौजूदगी को विपक्षी दलों की एकता के लिए अहम माना जा रहा था। ममता ने हाल में कहा था कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी कांग्रेस को उन जगहों पर समर्थन देगी, जहां वह मजबूत स्थिति में है, लेकिन कांग्रेस को भी अन्य राजनीतिक दलों को समर्थन देना होगा। अखिलेश यादव के समारोह में शामिल नहीं होने को कांग्रेस से परहेज बनाये रखने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि, सपा के राष्ट्रीय सचिव राजेंद्र चौधरी का कहना है कि अखिलेश को न्योता आया था, लेकिन उनके पहले से कार्यक्रम तय थे।
    लेकिन चर्चा विपक्ष के इन बड़े चेहरों की अनुपस्थिति के साथ इस बात की हो रही है कि आखिर कांग्रेस ने कई विपक्षी दलों को न्योता क्यों नहीं भेजा। 2018 में एचडी कुमारस्वामी का शपथ ग्रहण समारोह भी विपक्षी एकता का मंच बना था। मंच पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी, अजित सिंह, शरद पवार, तेजस्वी यादव, सीताराम येचुरी, मायावती, अखिलेश यादव, एन चंद्रबाबू नायडू, ममता बनर्जी जैसे दिग्गज विपक्षी नेता मौजूद थे। 2019 चुनाव से पहले आयी उस तस्वीर ने नरेंद्र मोदी और भाजपा सरकार के खिलाफ विपक्ष की एकता पर मुहर लगा दी थी। लेकिन इस बार वैसा कुछ नहीं हुआ और यहीं से कांग्रेस की नीयत पर सवाल उठने शुरू हो गये।

    कौन-कौन हुआ शामिल
    पहले चर्चा उन नेताओं की, जो इस शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। इनमें कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, पार्टी शासित राज्यों के मुख्यमंत्री, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यों में विधायक दल के नेता तो थे ही, तमिलनाडु के सीएम एमके स्टालिन (द्रमुक), बिहार के सीएम नीतीश कुमार (जदयू), बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव (राजद), पुडुचेरी के सीएम एन रंगास्वामी और झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन पहुंचे। इनके अलावा एनसीपी प्रमुख शरद पवार, फारूक अब्दुल्ला, महबूबा मुफ्ती, सीताराम येचुरी, कमल हासन, जयंत चौधरी आदि भी समारोह में आये।

    कांग्रेस को ‘बिग ब्रदर’ मानने को तैयार नहीं हैं ममता-अखिलेश
    अब बात कांग्रेस के ‘न्योता पॉलिटिक्स’ की। भाजपा के खिलाफ एकजुट विपक्ष की राग छेड़नेवाले नेताओं में ममता बनर्जी और अखिलेश यादव शीर्ष में हैं। साल 2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर जमीन तलाश कर रहीं ममता बनर्जी और अखिलेश यादव ने एकजुट विपक्ष को लेकर तमाम क्षत्रपों को एकजुट करना शुरू कर दिया है। कांग्रेस रहित विपक्ष की वकालत कर चुके इन नेताओं की कर्नाटक में सिद्धारमैया सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में मौजूद नहीं होने के पीछे स्थिति साफ है कि दोनों नेता किसी तरह से कांग्रेस को ‘बिग ब्रदर’ मानने को तैयार नहीं हैं। हालांकि कर्नाटक में भाजपा की हार के बाद खुशी जाहिर कर चुकीं ममता ने साफ कर दिया था कि उनकी लड़ाई हमेशा भाजपा के खिलाफ रहेगी। इस दौरान उन्हें किसी का साथ मिलता है, तो इससे उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी।

    आप, टीडीपी समेत इनको न्योता ही नहीं
    अब बात न्योता नहीं पानेवाले नेताओं की। शपथ ग्रहण समारोह के लिए कांग्रेस ने केरल के सीएम पिनराई विजयन के अलावा दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, तेलंगाना के सीएम के चंद्रशेखर राव, आंध्रप्रदेश के सीएम जगनमोहन रेड्डी, ओड़िशा के सीएम नवीन पटनायक, टीडीपी नेता एन चंद्रबाबू नायडू और एआइएमआइएम नेता असदुद्दीन ओवैसी को न्योता नहीं भेजा गया।
    यहां यह सवाल पैदा होता है कि आखिर दूसरी पार्टियों के नेताओं से कांग्रेस ने दूरी क्यों बनायी। इसके मायने भी 2024 के लोकसभा चुनाव से जोड़ कर देखे जा सकते हैं। इसका जवाब बहुत आसान है। कांग्रेस ने उन नेताओं को न्योता नहीं भेजा, जो विपक्षी एकता के अभियान में साथ तो हैं, लेकिन किसी न किसी कारण से राहुल गांधी का नेतृत्व स्वीकार करने से परहेज करते रहे हैं। इन दलों को कांग्रेस से भी परहेज है। ऐसे में कांग्रेस ने कर्नाटक के शपथ ग्रहण समारोह को विपक्षी एकता की कोशिशों में खुद की चौधराहट स्थापित करने की कवायद जरूर की थी, लेकिन अब उसकी यही कवायद उसके लिए महंगी पड़ने लगी है। बेंगलुरु से लौटते हुए नीतीश कुमार ने अरविंद केजरीवाल से मुलाकात की है। उधर ममता और नवीन पटनायक के बीच अलग खिचड़ी पकने की खबर है। ऐसे में यह चर्चा भी होने लगी है कि कांग्रेस की ‘न्योता पॉलिटिक्स’ की खुंटचाल विपक्षी एकता के पूरे अभियान पर कहीं पानी ही न फेर दे।

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