-10 पूर्व सांसदों की भूमिका तय करने की चुनौती भी है केंद्रीय नेतृत्व के सामने
-संगठन का काम संभालने के साथ सौंपी जा सकती है दूसरे राज्यों की जिम्मेवारी
पांच राज्यों, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में मुख्यमंत्रियों के शपथ ग्रहण के साथ ही सत्ता से सेमीफाइनल का दौर समाप्त हो गया है। इसके साथ ही अब फाइनल मुकाबले की तैयारी शुरू हो गयी है। इस सेमीफाइनल मुकाबले में भाजपा ने अपने प्रतिद्वंद्वियों पर बढ़त बनाने के साथ हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में मुख्यमंत्री के रूप में नये चेहरों को चुन कर सभी को चौंका दिया। मध्यप्रदेश में भाजपा ने चार बार के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को हटा कर मोहन यादव को कमान दी, वहीं राजस्थान में दो बार की सीएम वसुंधरा राजे की बजाय भजनलाल शर्मा को जिम्मेदारी दी गयी। छत्तीसगढ़ में डॉ रमन सिंह के स्थान पर विष्णुदेव साय को सीएम बनाया गया। इन तीन प्रादेशिक दिग्गजों के पास अब कोई काम नहीं रह गया है। इनके अलावा इन तीन राज्यों में कई सांसदों को भी पार्टी ने विधानसभा चुनाव में उतारा था, जिनमें से 10 ने जीत भी हासिल की। इन पूर्व सांसदों की अब क्या भूमिका होगी, यह पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व को तय करना है। साथ ही तीन प्रादेशिक दिग्गजों का पार्टी क्या इस्तेमाल करेगी, यह देखना भी दिलचस्प होगा। भाजपा की कार्यशैली को देख कर ऐसा तो नहीं लगता है कि पार्टी इन नेताओं को बिना किसी जिम्मेदारी के रखेगी। तो क्या इन नेताओं को संगठन की जिम्मेदारी सौंपी जायेगी या फिर दूसरे प्रदेशों के प्रभार में भेजा जायेगा, यह सवाल अभी से हवा में तैरने लगा है। क्या हो सकता है इन दिग्गजों का इस्तेमाल और भाजपा के पास क्या हैं विकल्प, आकलन कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
हाल ही में संपन्न पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में भाजपा को हिंदी पट्टी के तीन राज्यों में जीत मिली। जहां मध्यप्रदेश में भाजपा ने सत्ता को बरकरार रखते हुए अपनी स्थिति को और मजबूत किया, तो राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस से सत्ता छीन ली। 3 दिसंबर को नतीजे सामने आने के बाद हफ्ते भर से ज्यादा समय तक भाजपा ने मुख्यमंत्रियों ने नाम पर सस्पेंस बनाये रखा। हालांकि 12 दिसंबर आते-आते भाजपा ने तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री के चेहरे घोषित किये, जिसने सभी को चौंकाया। मध्यप्रदेश में भाजपा ने चार बार के मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान को हटा कर उनकी ही कैबिनेट में शिक्षा मंत्री रहे डॉ मोहन यादव को कमान दे दी। दूसरी ओर राजस्थान में तीन बार के प्रदेश महामंत्री रहे और पहली बार के विधायक भजनलाल शर्मा के सिर ताज सजा दिया। छत्तीसगढ़ में भी डॉ रमन सिंह की बजाय विष्णुदेव साय को सीएम बनाया गया। इस बीच सियासी गलियारों में सबसे ज्यादा चर्चा उन नेताओं की होने लगी है, जिन्हें भाजपा ने इस बार मौका नहीं दिया। इसके साथ ही चर्चा उन दिग्गज चेहरों की भी है, जो अपना चुनाव हार गये हैं। ऐसे में यह जानना दिलचस्प है कि इन दिग्गजों का इस्तेमाल भाजपा किस रूप में करेगी, क्योंकि यदि इन्हें राज्यों में छोड़ दिया गया, तो हो सकता है कि वे समानांतर सत्ता केंद्र बनाने में सफल हो जायें।
संगठन में रहेंगे शिवराज सिंह चौहान
शिवराज सिंह चौहान ने चार बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद बड़ी जिम्मेदारी संभाली। 29 नवंबर 2005 से शुरू हुआ उनका सफर 12 दिसंबर 2018 तक अनवरत जारी रहा। 2018 के विधानसभा में कम अंतर वाली हार ने उन्हें 15 महीने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री बना दिया। हालांकि, सिंधिया गुट की बगावत के कारण 23 मार्च 2020 को शिवराज को एक बार फिर प्रदेश की कमान मिली, जो 11 दिसंबर 2023 तक जारी रही। इस बार राज्य में भाजपा को प्रचंड बहुमत दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले शिवराज मुख्यमंत्री नहीं बनाये गये। इसके बाद सियासी गलियारों में 64 वर्षीय शिवराज के भविष्य को लेकर कई तरह के सवाल चलने लगे हैं। इस बीच भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने एक निजी चैनल के कार्यक्रम में कहा कि उन्हें (शिवराज सिंह चौहान समेत पार्टी नेताओं को) नयी जिम्मेदारी दी जायेगी। वे हमारे बड़े नेता हैं। उन्हें उनके कद के मुताबिक जिम्मेदारी दी जायेगी। सियासी विश्लेषकों का कहना है कि भाजपा अब उन्हें केंद्र में बड़ी जिम्मेदारी दे सकती है। या तो केंद्रीय मंत्रिमंडल में उन्हें जगह मिल सकती है या फिर संगठन में कोई बड़ा पद दिया जा सकता है। इससे पहले 2018 में विधानसभा चुनाव की हार के बाद उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष का पद मिला था।
भाजपा नेता नरोत्तम मिश्रा भी संगठन का काम देखेंगे
मध्यप्रदेश के चुनावी समर में जहां कइयों ने जीत का स्वाद चखा, तो कई ऐसे भी रहे, जिन्हें प्रचंड लहर में भी हार का कड़वा घूंट पीना पड़ा। शिवराज सरकार में गृह मंत्री की जिम्मेदारी निभाने वाले नरोत्तम मिश्रा अपनी परंपरागत सीट दतिया से चुनाव हार गये। हार के बाद पूर्व गृह मंत्री डॉ नरोत्तम मिश्रा का शायराना अंदाज में पहला बयान सामने आया। उन्होंने कवि शिवमंगल सिंह सुमन की रचना की पंक्तियों को याद किया। मिश्रा ने कहा, ‘क्या हार में क्या जीत में, किंचित नहीं भयभीत मैं। कर्म पथ पर जो भी मिला, यह भी सही वह भी सही।’ इसके बाद पढ़ा, ‘समुद्र का पानी उतरता देख कर किनारे पर घर मत बना लेना। मैं लौट कर आऊंगा, ये वादा है। मैं ज्यादा देर तक शांत रहनेवाला जीव नहीं हूं। लेकिन उनको अवसर जरूर देना चाहिए। मैं लौट कर आऊंगा, ये वादा है।’ ऐसे में कयास लगाये जा रहे हैं कि नरोत्तम मिश्रा पांच साल अपनी सीट पर फोकस करेंगे और अगले चुनाव में वापसी की कोशिश करेंगे। पार्टी 63 वर्षीय इस दिग्गज नेता को संगठन में भी जिम्मेदारी दे सकती है। मिश्रा मध्यप्रदेश की अलग-अलग सरकारों में चार बार अलग-अलग अहम मंत्रालयों की जिम्मेदारी संभाल चुके हैं।
प्रदेश संगठन में रहेंगे कैलाश विजयवर्गीय
संगठन में लंबे समय से काम कर रहे कैलाश विजयवर्गीय को भाजपा ने इस बार विधानसभा चुनाव लड़ाया। कैलाश ने इंदौर-1 सीट से चुनाव लड़ा और बड़ी जीत हासिल की। कुछ वक्त तक वह भी मुख्यमंत्री पद की रेस में गिने गये। अब जब कैलाश मुख्यमंत्री नहीं बन पाये, तो वे प्रदेश संगठन में महत्वपूर्ण पद के लिए भी प्रयास कर सकते हैं। कयास लगाये जा रहे हैं कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा 67 वर्षीय इस नेता को प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दे सकती है। 2015 से कैलाश विजयवर्गीय भारतीय जनता पार्टी के महासचिव के पद पर हैं। इसके पहले उन्हें पश्चिम बंगाल के राज्य प्रभारी के रूप में नियुक्त किया गया था, जिनके कार्यकाल में भाजपा ने तुलनात्मक रूप से 2019 के लोकसभा और 2021 के विधानसभा चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया था।
केंद्रीय संगठन में जायेंगे प्रहलाद पटेल
शिवराज सिंह के मुख्यमंत्री नहीं बनने की स्थिति में 63 साल के प्रहलाद पटेल को भी एक बड़ा दावेदार माना जा रहा था। इन अटकलों को तब और हवा मिली, जब उन्हें लोकसभा की सदस्यता को छोड़ कर विधानसभा चुनाव लड़ाया गया और जीतने के बाद सांसद पद से इस्तीफा ले लिया गया। पहले अटल सरकार और बाद में मोदी सरकार में कुल तीन बार केंद्रीय मंत्री की जिम्मेदारी निभाने वाले पटेल अब विधायक हैं। इस वक्त पर प्रहलाद के सियासी भविष्य की ओर देखें तो, उन्हें पार्टी नयी जिम्मेदारी दे सकती है। जानकारों की मानें तो उन्हें पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में महत्वपूर्ण पद मिल सकता है।
वसुंधरा राजे को मिलेगी प्रदेश संगठन की कमान
राजस्थान में मुख्यमंत्री पद की दौड़ के लिए नौ दिन तक सियासी अटकलों का दौर चलता रहा। नतीजों के बाद सबसे बड़ा सवाल यही था कि वसुंधरा राजे तीसरी बार मुख्यमंत्री बनेगीं या नहीं? हालांकि 12 दिसंबर को मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा और दो उप मुख्यमंत्रियों, दीया कुमारी और प्रेमचंद बैरवा के नामों की घोषणा के साथ ही सारे कयास खत्म हो गये। इसके बाद सवाल उठने लगे कि अब वसुंधरा के भविष्य का क्या होगा? सियासी गलियारों में यह भी चर्चा रही कि विधायकों के साथ बाड़ेबंदी कहीं उनके अच्छे भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव न डाल दे। इस बीच राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कहा कि उन्हें (वसुंधरा) उनके कद के मुताबिक जिम्मेदारी सौंपी जायेगी। इसमें कयास लगा जा रहे हैं कि केंद्र में मंत्री या संगठन में कोई बड़ी जिम्मेदारी मिल सकती है। इससे पहले भी 2018 में विधानसभा चुनाव की हार के बाद शिवराज सिंह और रमन सिंह के साथ पार्टी के राष्टÑीय उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गयी थी।