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    Home»विशेष»गोड्डा में जातीय गोलबंदी पर भारी दिख रहा है ‘विकास’
    विशेष

    गोड्डा में जातीय गोलबंदी पर भारी दिख रहा है ‘विकास’

    adminBy adminMay 28, 2024No Comments8 Mins Read
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    विशेष
    निशिकांत दुबे को अपने कामों पर भरोसा, तो प्रदीप यादव जाति में उलझे
    कांग्रेस के लिए परेशानी पैदा कर रहे हैं निर्दलीय अभिषक झा

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    संथाल परगना का एकमात्र अनारक्षित संसदीय क्षेत्र गोड्डा के लोगों को प्रचंड गर्मी से कुछ हद तक सोमवार को छुटकारा मिला। साइक्लोन के कारण गोड्डा का मौसम सुहाना हो गया है। फिर भी यहां चुनावी बुखार की तपिश जरूर महसूस हो रही है। झारखंड के ‘मिथिलांचल’ के रूप में चर्चित इस सीट पर मुकाबले की पूरी तैयारी हो चुकी है। यहां भाजपा की तरफ से डॉ निशिकांत दुबे लगातार चौथी बार लोकसभा में पहुंचने के लिए कांग्रेस के प्रदीप यादव से मुकाबला कर रहे हैं। इन दोनों के बीच यह पहला मुकाबला नहीं है। पिछली बार भी प्रदीप यादव ने झाविमो के टिकट पर डॉ दुबे को चुनौती दी थी और हार गये थे। बिहार के साथ सटा होने के कारण गोड्डा संसदीय क्षेत्र की राजनीतिक संवेदनशीलता थोड़ी अधिक है। इसलिए यहां जातीय समीकरण अक्सर हावी रहता है। इस बार भी जब कांग्रेस ने दीपिका पांडेय सिंह को उतारा था, तो गोड्डा को ‘बैटल आॅफ ब्राह्मण’ का गवाह बनने की भविष्यवाणी की गयी थी, लेकिन बाद में कांग्रेस ने प्रदीप यादव को उतारा, तो अब जातीय समीकरण पर ही फोकस है। इस सीधे मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में निर्दलीय अभिषेक आनंद झा जरूर जुटे हैं, लेकिन उनका बहुत असर दिखाई नहीं पड़ रहा है। मुख्य मुकाबला अब भी भाजपा और कांग्रेस के बीच ही नजर आ रहा है। डॉ दुबे को पिछले 15 वर्षों के दौरान किये गये कार्यों पर भरोसा है, तो प्रदीप यादव जातीय समीकरण के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की जुगत में हैं। केंद्रीय योजनाओं के कारण इस इलाके में निशिकांत दुबे के नामों की ज्यादा चर्चा हो रही है। लोगों के दिमाग में एम्स और रेलवे रच-बस गया है। निशिकांत दुबे का आक्रामक चेहरा भी लोगों को पसंद है। क्या है गोड्डा का चुनावी परिदृश्य और कैसा चल रहा है प्रचार अभियान, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    संथाल परगना की तीन संसदीय सीटों में से एकमात्र अनारक्षित सीट गोड्डा में 1 जून को मतदान होना है। इसलिए यहां चुनाव प्रचार अभियान चरम पर है। प्रचंड गर्मी में भी उम्मीदवार और कार्यकर्ता लगातार पसीना बहा रहे हैं। चौक-चौराहों पर सुबह-शाम जुटनेवाले लोगों की चर्चा का विषय भी चुनाव ही है। झारखंड की आध्यात्मिक राजधानी देवघर इसी संससीय सीट के अंतर्गत आता है। यहां के मशहूर टावर चौक पर जुटनेवाले लोग कहते हैं कि इस बार मुकाबला एकतरफा तो नहीं है। मतदाताओं को टटोलने पर पता चलता है कि यहां की राजनीति में आज भी जातीय समीकरण प्रमुख मुद्दा है, लेकिन युवाओं में विकास और महिलाओं में केंद्रीय योजनाओं से मिल रहे लाभ ही मतदान का आधार बनने की संभावना है। इन दो मुद्दों के अलावा एक और चुनावी मुद्दा तेजी से आगे आ रहा है और वह है उम्मीदवारों की इमेज। जहां तक निजी इमेज का सवाल है, तो डॉ निशिकांत दुबे अपने प्रतिद्वंद्वी प्रदीप यादव पर बहुत भारी नजर आ रहे हैं।

    क्या है दोनों प्रत्याशियों की इमेज
    डॉ दुबे लगातार चौथी बार सांसद बनने के लिए मुकाबले में उतरे हैं। प्रदीप यादव एक बार यहां से सांसद रह चुके हैं और फिलहाल पोड़ैयाहाट से विधायक हैं। डॉ दुबे ने अपने तीसरे टर्म (2019-2024) में लोकसभा में अपने प्रदर्शन से भाजपा और अपने इलाके में एक सक्रिय और साहसी सांसद के रूप में खुद को स्थापित कर लिया है। पिछले पांच साल के दौरान उन्होंने लगातार झारखंड में भ्रष्टाचार से लेकर दूसरे मुद्दों पर मुखरता से आवाज उठायी और तमाम आरोप लगने के बावजूद कभी पीछे नहीं हटे। इतना ही नहीं, उन्होंने सदन में ‘कैश फॉर क्वेरी’ का मुद्दा उठा कर टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा की सदस्यता खत्म करने में भी अहम भूमिका निभायी। इससे डॉ दुबे की इमेज ‘लड़ाकू’ की बनी। दूसरी तरफ प्रदीप यादव की इमेज आज भी बहुत साफ-सुथरी नहीं है। उनके व्यवहार और आचरण पर लोग टीका-टिप्पणी भी कर रहे हैं। इसके अलावा इलाके में चल रही कई निजी प्रोजेक्ट के खिलाफ पहले आक्रामक रुख अपनाने, आंदोलन की राह पर चल निकलने और फिर उससे पैर पीछे खींच लेने के कारण भी उनकी इमेज को धक्का लगा है। लोग उदाहरण देकर अडाणी और पैनम कोल इंडिया का उदाहरण भी दे रहे हैं। लोगों का कहना है कि पहले प्रदीप यादव अडाणी पावर प्लांट के खिलाफ खूब मुखर थे। आज चुप्पी साधे हुए हैं।

    विकास को मुद्दा बनाने में जुटे डॉ निशिकांत
    डॉ निशिकांत दुबे इस बार विकास को मुद्दा बनाने में जुटे हैं। पिछले 15 साल में उन्होंने गोड्डा का बहुत विकास किया है। चाहे वह देवघर एम्स हो या एयरपोर्ट, गोड्डा में रेल लाइन हो या फिर इलाके में सड़कों का जाल, अडाणी का बिजली घर हो या फिर प्लास्टिक पार्क, डॉ दुबे ने 15 सालों के दौरान गोड्डा के लिए बहुत कुछ किया है। बायो डायवर्सिटी पार्क पर्यटकों, शिक्षकों और विद्यार्थियों के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसके अलावा कई योजनाएं हैं, जो धरातल पर उतर चुकी हैं। उन्होंने राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक को देवघर बुला कर अपनी राजनीतिक पहुंच का भी उदाहरण दिया है। इन तमाम विकास कार्यों के बावजूद कुछ लोग उनके बारे में नकारात्मक टिप्पणी भी करते हैं, उन्हें ‘अहंकारी’ करार देते हैं।

    प्रदीप यादव को भाजपा के साथ-साथ कांग्रेस के ही कुछ लोगों से परेशानी आनेवाली है। वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव में झारखंड विकास मोर्चा के टिकट पर चुनाव जीतने के बाद पोड़ैयाहाट विधायक प्रदीप यादव अपने एक अन्य विधायक साथी बंधु तिर्की के साथ कांग्रेस में शामिल हो गये। कांग्रेस ने इस बार उन्हें उतारा है, जबकि जामताड़ा के विधायक इरफान अंसारी के पिता और पूर्व सांसद फुरकान अंसारी यहां से टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। कांग्रेस की ओर से शुरू में महगामा की विधायक दीपिका पांडेय सिंह को चुनाव मैदान में उतारा गया, लेकिन तीन दिन बाद ही उनकी जगह प्रदीप यादव को उतार दिया गया। ऐसे में प्रदीप यादव को कांग्रेस पार्टी के इरफान और दीपिका के समर्थकों से भी निपटना पड़ रहा है। कहने को ये लोग प्रदीप यादव के साथ होने की बात कह रहे हैं, लेकिन उनके समर्थकों को प्रदीप यादव पच नहीं रहे हैं।

    अभिषेक आनंद झा भी ठोक रहे ताल
    इस बीच बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री विनोदानंद झा के पोते अभिषेक आनंद झा ने भी आखिरी दिन मंगलवार को गोड्डा लोकसभा सीट से नामांकन का पर्चा भर कर मुकाबले में उतरने का एलान कर दिया। अभिषेक झा और उनके परिवार का गोड्डा लोकसभा क्षेत्र की राजनीति में दखल रहा है। खुद निशिकांत दुबे भी यह दावा करते रहे हैं कि उन्हें विनोदानंद झा के परिवार का आशीर्वाद प्राप्त है। अभिषेक झा खुद भाजपा के नेता रह चुके हैं और 2009 में मधुपुर विधानसभा सीट से भाजपा के टिकट पर चुनाव भी लड़ चुके हैं। अभिषेक झा भी निशिकांत दुबे के करीबी रहे, लेकिन अब अभिषेक झा यह बता रहे हैं कि निशिकांत दुबे से उनका राजनीतिक संबंध नहीं है। लेकिन वह यह भी कहते हैं कि भाजपा और नरेंद्र मोदी से वह नाराज नहीं है। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अभिषेक झा से आखिर किसको नुकसान होगा। वैसे आज की तारीख तक वह कोई बड़ी चुनौती पेश नहीं कर सके हैं। हां, हर दिन वह सात-आठ गाड़ियों के काफिले में जरूर घूमते नजर आ रहे हैं। लेकिन उनकी गाड़ियां भी शहरी क्षेत्र और खासकर पक्की सड़क के इर्द-गिर्द ही दिख रही है।

    गोड्डा का जातीय आंकड़ा
    गोड्डा संसदीय क्षेत्र के मतदाताओं के जातिगत आंकड़ों पर गौर करने से स्थिति काफी कुछ साफ होती दिखती है। गोड्डा लोकसभा क्षेत्र में वोटरों की कुल संख्या 19 लाख 95 हजार 192 है। यहां सर्वाधिक चार लाख की आबादी ब्राह्मणों की है, जबकि मुस्लिम साढ़े तीन लाख लाख के आसपास हैं। यादवों की आबादी ढाई लाख है। इसके अलावा वैश्य कीआबादी ढाई से तीन लाख है और आदिवासियों की आबादी डेढ़ से दो लाख और राजपूत, भूमिहार और कायस्थ की संख्या एक लाख के करीब है। शेष पंचगनिया दलित हैं। इस आंकड़े से यह साफ हो जाता है कि ब्राह्मणों की इतनी बड़ी आबादी यदि एकमुश्त किसी को वोट दे दे, तो फिर उसकी जीत को कोई रोक नहीं सकता है। डॉ दुबे इसी जाति से आते हैं। भाजपा के पास ब्राह्मणों के अलावा दूसरी सवर्ण जातियों और भाजपा के कोर वोटर रहे वैश्य समुदाय का समर्थन भी है। ब्राह्मण वोटर पहले कांग्रेस के साथ जुड़े रहे, लेकिन मोदी काल के बाद ये पूरी तरह से भाजपा के लिए वोट करते हैं। इतना जरूर है कि प्रदीप यादव यहां मुसलिम और आदिवासी वोटरों को अपने पक्ष में करके यादवों की मदद से चुनाव में निशिकांत दुबे को शिकस्त देने की योजना पर काम कर रहे हैं, लेकिन यह योजना इतनी फुलप्रूफ नहीं है कि वह निशिकांत दुबे के विजय रथ को रोक सके। हां 30 मई को राहुल गांधी यहां आनेवाले हैं। देखना है कि राहुल गांधी प्रदीप यादव की राह को कितना आसान बना सकते हैं। उनके आने से निशिकांत को चुनौती मिलती है या नहीं, यह 4 जून को ही साफ होगा, लेकिन फिलहाल गोड्डा में कमल मुसकुरा रहा है।

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