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    आजाद सिपाहीBy आजाद सिपाहीNovember 9, 2017No Comments3 Mins Read
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    अयोध्या में बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद ने देश के राजनीतिक माहौल में कैसी जटिलता पैदा कर दी है, छिपा नहीं है। हालांकि कानूनी प्रक्रिया से इतर लंबे समय से इस समस्या के हल के अलग-अलग प्रस्तावों पर बातचीत होती रही है, लेकिन संबंधित पक्षों के बीच आज तक कोई सहमति नहीं बन पाई है, जहां से आगे का रास्ता तैयार हो सके। ऐसी स्थिति में हाल के दिनों में शिया वक्फ बोर्ड की ओर से हुई पहलकदमी कुछ उम्मीद जगाती है। मंगलवार को बोर्ड ने कहा कि वह इस मामले में छह दिसंबर तक एक शांति प्रस्ताव तैयार करेगा, ताकि आपसी सहमति से यह विवाद हल हो सके। दरअसल, शिया वक्फ बोर्ड की ओर से बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद के समाधान के लिए की जा रही कोशिशों का यह अगला कदम है। तीन महीने पहले बोर्ड ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामे में कहा था कि विवादित जमीन पर राम मंदिर बनना चाहिए और उससे थोड़ी दूरी पर मुसलिम इलाके में मस्जिद बनाई जानी चाहिए।

    इस समस्या से जुड़े विभिन्न पक्षों का अब तक जो रुख रहा है, उसके मद्देनजर शिया वक्फ बोर्ड की पहल को हल की ओर बढ़े अहम कदम के तौर पर देखा जा सकता है। लेकिन इस मसले पर बाबरी मस्जिद कार्य समिति का अलग रुख रहा है। अगस्त में वक्फ बोर्ड ने जब सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दिया था, तब समिति की ओर से कहा गया कि कानून की नजर में उस हलफनामे की कोई अहमियत नहीं है। साफ है कि शिया वक्फ बोर्ड की ताजा कवायद पर सभी पक्षों के बीच सहमति बनना आसान नहीं होगा। इसके बावजूद बोर्ड की ओर से की जा रही कोशिशों से यह कहा जा सकता है कि बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद जो तनाव की जड़ता कायम थी, उसके टूटने के आसार पैदा हुए हैं। गौरतलब है कि कुछ समय पहले उत्तर प्रदेश शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने बाबरी मस्जिद-राम जन्मभूमि विवाद से जुड़े मामलों में पक्ष बनने का फैसला किया। इसका आधार बाबरी मस्जिद के निर्माण और वहां इबादत की परंपरा में शिया और सुन्नी समुदाय की भूमिका मानी गई। बाद में 1945 में शुरू हुई अदालती प्रक्रिया के बाद मस्जिद पर सुन्नी बोर्ड का स्वामित्व कायम हो गया था। मगर अब शिया बोर्ड ने फिर से मस्जिद पर दावा पेश करने का फैसला किया है। जाहिर है, जटिल कानूनी स्थितियों में शिया बोर्ड के हलफनामे का महत्त्व इस बात पर निर्भर करेगा कि इस विवाद में पहले से पक्षकार रही बाबरी मस्जिद कार्य समिति का क्या रुख रहता है।

    सभी कानूनी तकाजों को ताक पर रख कर बाबरी मस्जिद को जिस तरह ढाह दिया गया था, वह निश्चित रूप से इतिहास की एक बेहद अप्रिय घटना थी, जिसे किसी भी तर्क से सही नहीं ठहराया जा सकता। पर सवाल है कि उसके बाद उस विवाद के बिंदु पर ठहरे रह कर सभी पक्ष देश या समाज के लिए क्या हासिल कर लेंगे! बेशक अदालत का अंतिम फैसला सबके लिए स्वीकार्य होगा। मगर मौजूदा हालात में अगर विवाद से जुड़ा कोई पक्ष आपसी सहमति से मसले के हल के लिए पहलकदमी कर रहा है, तो यह शांति और सद्भाव के लिहाज से महत्त्वपूर्ण है। यह इसलिए भी जरूरी है कि धार्मिक मामलों से जुड़े विवाद में प्रभावित पक्षों के बीच अगर सौहार्दपूर्ण माहौल में समाधान के बिंदु पर सहमति बनती है तो उसकी सांस्कृतिक अहमियत ज्यादा होगी।

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