झारखंड में भले ही अधिकारियों और कर्मचारियों की बल्ले-बल्ले हो. लेकिन बात जब दैनिक वेतनभोगी कर्मियों की आती है, तो स्थिति चिंताजनक दिखती है. सूबे में न्यूनतम मजदूरी 222 रुपये प्रतिदिन तय है. लेकिन कई ऐसे वेतनभोगीकर्मी हैं, जिन्हें काम के बदले इतना भी नहीं मिलता.
रांची स्थित सचिवालय में करीब साढ़े चार सौ महिलाएं दैनिक वेतनभोगीकर्मी के रूप में काम करती हैं. इनके जिम्मे साफ-सफाई ,बागवानी, साहब के लिए चाय ,पानी और नाश्ते का प्रबंधन, सब है. वर्षों से ये इन कामों को अंजाम देती आ रही हैं. लेकिन वेतन के रूप में इन्हें मात्र पांच हजार रुपया मिलता है. विडंबना ये भी है कि इन्हें अलग-अलग एजेंसियों के माध्यम से रखा गया है. इन महिलाओं ने मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी बात रखी, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा.उधर, कई विभागों में अफसरों की गाड़ी चलाने वाले चालकों की नियुक्ति नहीं हो पाई है . इस कारण निजी चालक ही उन्हें चला रहे हैं. यह काम वर्षों से हो रहा है. विभाग अपने हिसाब से उनको पारिश्रमिक देता है. किसी को 8 हजार, तो किसी को 9 हजार रुपये मिलता है. चालक सातों दिन, सुबह से शाम तक काम करते हैं. राज्य में जितने सरकारी वाहन हैं, उनमें से 60 प्रतिशत को निजी चालक चलाते हैं. सरकार ने चालकों की नियमित नियुक्ति की ही नहीं. लिहाजा इन्हें भी सरकार से शिकायत हैराज्य में लगभग 11 हजार से अधिक दैनिक वेतन भोगी कर्मी हैं. इनसे चतुर्थ श्रेणी के कर्मियों का काम लिया जाता है. लेकिन वेतन और सुविधा देने के नाम पर चुप्पी साध ली जाती है. सरकार के मंत्री सी पी सिंह का कहना है कि उनके पास ऐसा कोई मामला कभी नहीं आया, आता तो वे जरूर संज्ञान लेते.