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    Home»विशेष»बिहार के सियासी रण में इस बार भी दिखेगा बाहुबल का रंग
    विशेष

    बिहार के सियासी रण में इस बार भी दिखेगा बाहुबल का रंग

    shivam kumarBy shivam kumarJuly 1, 2025Updated:July 3, 2025No Comments7 Mins Read
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    विशेष
    राज्य के चर्चित बाहुबली इस बार किस्मत आजमाने की कर रहे तैयारी
    हर दल के खेमे में चुनाव लड़ने को तैयार बैठे हैं बाहुबली और समर्थक

    नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
    बिहार की सियासत में बाहुबल के तड़के का रिश्ता पुराना है। अनंत सिंह से लेकर सूरजभान, रामा सिंह, शहाबुद्दीन, राजू तिवारी से लेकर सुनील पांडेय तक, बाहुबली नेताओं की एक लंबी लिस्ट है। प्रदेश में इस साल के अंत तक विधानसभा चुनाव होने हैं और चुनावी साल में चर्चा बाहुबलियों की भी होने लगी है। कुछ बाहुबली खुद भी सियासत में सक्रिय हैं, तो कुछ अपने परिजनों के जरिये सियासी वजूद बनाये हुए हैं। कुछ बाहुबलियों की विरासत पर उनके परिवार के सदस्य खुद को मौजूं बनाये रखने और सियासत में खुद को स्थापित करने की जद्दोजहद में हैं। सबसे खास बात यह है कि बिहार में कोई भी दल ऐसा नहीं है, जिसके पास बाहुबली या उनके परिजन नहीं हों। बिहार की सियासत में चर्चित बाहुबलियों की सूची पर नजर डालने से एक तथ्य यह भी उभरता है कि इन बाहुबलियों का अपना दौर था और उस दौर में बिहार की सियासत भी अलग किस्म की थी। लेकिन अब गंगा में बहुत पानी बह चुका है। बाहुबलियों का दबदबा भी कम हुआ है, तो कुछ नये चेहरे भी तेजी से उभरे हैं। यहां नजर डालते हैं बिहार में कुछ ऐसे ही बाहुबलियों की राजनीति पर कि वे खुद या उनके परिजन इस बार के चुनाव से पहले किस दल की ओर नजर आ रहे हैं। कौन-कौन से बाहुबली खुद को या अपने परिजनों को चुनाव मैदान में उतारने की तैयारी कर रहे हैं और किस दल में कितने बाहुबली हैं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

    बिहार का आगामी विधानसभा चुनाव कितना अहम होगा, इसका संकेत इसी बात से मिल रहा है कि हर दल चुनाव जीतने के लिए ‘साम-दाम-दंड-भेद’ के इस्तेमाल से परहेज नहीं कर रहा है। बिहार की यह सियासत इस बात के भी पुख्ता संकेत दे रही है कि इस बार के चुनाव में केवल लोकतंत्र को ही कसौटी पर नहीं कसा जायेगा, बल्कि बाहुबलियों को भी सियासी जमीन पर परखा जायेगा। राज्य के बाहुबली इसकी तैयारी कर भी रहे हैं। इसका साफ मतलब यह है कि बिहार की राजनीति एक बार फिर 1990 के दौर में लौटने को बेताब है। प्रदेश में सक्रिय दोनों मजबूत सियासी गठबंधन- एनडीए और महागठबंधन की चुनावी तैयारियों से यही संकेत मिल रहे हैं। जहां तक बाहुबलियों का सवाल है, तो एनडीए में जदयू के पास दो बाहुबली- आनंद मोहन और अनंत सिंह हैं, जो खुद या अपने परिजनों के लिए विधानसभा चुनाव में ताल ठोंकने की तैयारी कर रहे हैं। एनडीए का दूसरा घटक भाजपा भी सुनील पांडेय को बेटे को फिर उम्मीदवार बनायेगी, यह तय है। इसलिए कि उन्होंने उपचुनाव में राजद उम्मीदवार को शिकस्त दी थी।

    महागठबंधन में भी बाहुबलियों का बोलबाला
    महागठबंधन में भी ऐसी ही तैयारी दिखती है। लोजपा-आर ने भी सिवान में रइस खां और उनके भाई को अपने साथ लिया है, तो यकीनन उनका इस्तेमाल विधानसभा चुनाव में करेगी। अपने समय में कुख्यात रहे दिवंगत सांसद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा शहाब भी राजद के साथ इसलिए आये हैं कि उन्हें पार्टी विधानसभा का टिकट देगी। ऐसे में इतना तो स्पष्ट है कि इस बार विधानसभा चुनाव में बिहार बाहुबलियों की पदचाप जरूर सुनेगा। या तो वे खुद अपने लिए मैदान सजाते नजर आयेंगे या अपने परिजनों के लिए ताल ठोकते नजर आयेंगे।

    अनंत सिंह की ताकत सबको पता है
    मोकामा के पूर्व विधायक अनंत सिंह और सोनू सिंह के बीच हाल में गोलीबारी की घटना यह बताती है कि चुनावी जंग इस बार कैसी रहेगी। अनंत सिंह हों या उनकी पत्नी नीलम देवी हों, दोनों की जीत जितनी उनकी लोकप्रियता के कारण होती रही है, उससे कम भूमिका उनकी दबंगई की नहीं होती। मोकामा-बाढ़ में ‘छोटे सरकार’ के नाम से मशहूर अनंत सिंह के दबदबे का असर लोकसभा चुनाव में भी दिखा था, जब राजीव रंजन उर्फ ललन सिंह के लिए अनंत सिंह का पैरोल पर बाहर आना ही वरदान बन गया। अनंत सिंह ने खुद ललन सिंह के लिए चुनाव प्रचार नहीं किया, लेकिन उनका संदेश सभी तक पहुंच गया कि ललन सिंह भारी मतों से जीत रहे हैं। घोषित अपराधी अशोक महतो ने राजद की प्रत्याशी बनी अपनी पत्नी के लिए कम कोशिश नहीं की, लेकिन अनंत सिंह का दबदबा भारी पड़ गया।

    कई बाहुबली उतरेंगे विधानसभा चुनाव में
    राजद ने रालोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पशुपति कुमार पारस से नजदीकी बढ़ायी है। पारस के दही-चूड़ा भोज में लालू प्रसाद यादव ने भी शिरकत की। उसके पहले और बाद में पारस की हाजिरी लालू यादव के दरबार में लगती रही है। एनडीए ने जिस तरह पारस के भतीजे चिराग पासवान की पार्टी लोजपा-आर को तवज्जो दी है और उन्हें हाशिये पर धकेल दिया है, उससे उनका राजनीतिक भविष्य तलाशना अनुचित भी नहीं है। पारस के साथ बाहुबली सूरजभान शिद्दत से खड़े रहे हैं। इस बार पारस उन्हें भी उम्मीदवार बनायें, तो आश्चर्य की बात नहीं होगी। मरहूम सांसद शहाबुद्दीन के बेटे ओसामा तो अपने राजनीतिक पुनर्वास के लिए पहले ही अपनी मां हिना शहाब के साथ राजद की सदस्यता ले चुके हैं।

    चिराग के पास हुलास और खान ब्रदर्स
    एनडीए की घटक लोजपा-आर के राष्ट्रीय अध्यक्ष चिराग पासवान के करीबी बाहुबली नेताओं की संख्या फिलवक्त सबसे अधिक दिख रही है। सिवान में आपराधिक छवि के रइस खान और उनके भाई की हाल ही लोजपा-आर में एंट्री हुई है। हुलास पांडेय पहले से ही चिराग के साथ हैं। चिराग इनका भी इस्तेमाल इस बार विधानसभा चुनाव में करेंगे ही। भाजपा और जदयू की तरह लोजपा-आर भी इस बार बाहुबलियों पर दांव लगाने से पीछे नहीं रहना चाहती है।

    भाजपा भी किसी से पीछे नहीं रहेगी
    भाजपा भले अलग अंदाज की पार्टी होने का दावा करे, पर बिहार में उसकी छवि भी दूसरे दलों से अलग नहीं। बाहुबली सुनील पांडेय अपने बेटे विशाल प्रशांत के लिए फिर जोर लगायेंगे ही। उपचुनाव में विशाल प्रशांत तरारी सीट से भाजपा के टिकट पर विधायक बने हैं। बाहुबली रहे स्वर्गीय बृजबिहारी प्रसाद की पत्नी रमा देवी भाजपा की पूर्व सांसद हैं। इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें टिकट नहीं दिया था। यह तय माना जा रहा है कि भाजपा उन्हें भी असेंबली चुनाव में उम्मीदवार बनायेगी।

    जदयू दिख रहा है सब पर भारी
    बिहार के सीएम नीतीश कुमार बाहुबलियों के खिलाफ रहे हैं। बाहुबलियों पर नकेल कसने के कारण ही 2005-2010 के कार्यकाल में नीतीश कुमार की छवि ‘सुशासन बाबू’ की बनी थी। अब नीतीश को भी बाहुबलियों से परहेज नहीं है। अनंत सिंह की रिहाई के बाद नीतीश उनके घर भी गये थे। अनंत सिंह की पत्नी नीलम देवी ने संकट में पाला बदल कर नीतीश का साथ दिया था। आनंद मोहन की रिहाई का रास्ता भी नीतीश कुमार ने ही प्रशस्त किया था। उनके बेटे चेतन आनंद ने भी आड़े वक्त नीलम देवी की तरह ही राजद से अलग होकर नीतीश का साथ दिया था। इस बार तो जदयू में राजन तिवारी को भी टिकट देने की तैयारी है।

    राजद में ओसामा और अशोक
    सीएम का ख्वाब देख रहे तेजस्वी यादव भी बाहुबलियों पर दांव लगाने की तैयारी में किसी से कमतर नहीं रहना चाहते। राजद के स्तंभों में रहे भूतपूर्व सांसद शहाबुद्दीन के रूठे परिवार को तेजस्वी ने अब मना लिया है। शहाबुद्दीन की पत्नी हिना शहाब और बेटे ओसामा शहाब ने राजद की फिर से सदस्यता ले ली है। मुंगेर से राजद के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ चुकीं कुख्यात अपराधी अशोक महतो की पत्नी भी विधानसभा चुनाव में ताल ठोंकने को तैयार हैं। पशुपति पारस के जरिये सूरजभान से राजद इस बार भाजपा नेता और डिप्टी सीएम विजय कुमार सिन्हा को सबक सिखाने की तैयारी में है। बाहुबलियों में शुमार रहे पूर्णिया के निर्दलीय सांसद पप्पू यादव भी अपने बेटे के लिए ताल ठोंक सकते हैं। हालांकि वे इसके लिए कभी कांग्रेस के करीब होने की कोशिश करते दिख रहे हैं, तो हाल में नीतीश कुमार से उनकी मुलाकात भी यह संकेत दे रही है कि विधानसभा चुनाव में वे भी अपनी भूमिका निभायेंगे।

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