नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने स्पष्ट किया कि संघ सरकार के निर्णय नहीं करता। डॉ. भागवत ने जोर देकर कहा कि संघ और सरकार दोनों की भूमिकाएं अलग हैं और निर्णय प्रक्रिया सरकार की जिम्मेदारी है।
डॉ. भागवत विज्ञान भवन में गुरुवार को तीन दिवसीय व्याख्यान शृंखला ‘100 वर्ष की संघ यात्रा : नए क्षितिज’ के तीसरे दिन जिज्ञासा समाधान सत्र में प्रश्नों के उत्तर दे रहे थे। संघ एवं भाजपा के संबंधों और संघ के विभिन्न संगठनों से संबंधों पर तथा संघ के विरोधी राजनीतिक दलों से जुड़े सवाल पर भागवत ने कहा कि संघ और उससे जुड़े संगठनों के बीच विचारों में मतभेद हो सकते हैं, लेकिन मनभेद कभी नहीं होते। उन्होंने कहा कि संघ किसी संगठन पर अधीनता नहीं थोपता और न ही उनके कामकाज में हस्तक्षेप करता है। सभी संगठन स्वतंत्र और आत्मनिर्भर हैं तथा अपने-अपने स्तर पर निर्णय लेते हैं। उन्होंने कहा, “हमारे यहां मतभेद हो सकते हैं पर मनभेद नहीं हैं। क्या संघ सबकुछ तय करता है? यह बिल्कुल गलत है। ऐसा हो ही नहीं सकता। मैं कई वर्षों से संघ चला रहा हूं और वे सरकार चला रहे हैं। हम केवल सलाह दे सकते हैं, निर्णय नहीं। अगर हम ही तय करते तो इतना समय क्यों लगता?”
संघ और भाजपा के रिश्तों को लेकर उठने वाले सवालों पर उन्होंने कहा कि दोनों के बीच कोई टकराव नहीं है। उन्होंने कहा, “हम हर सरकार के साथ अच्छा तालमेल रखते हैं, चाहे वह राज्य की हो या केंद्र की। कभी-कभी प्रणालीगत कारणों से कुछ कठिनाइयां आती हैं। यह वही प्रणाली है जो अंग्रेजों ने शासन के लिए बनाई थी, उसमें अंतर्विरोध रहते हैं। ऐसे में सभी मुद्दों पर एकमत होना संभव नहीं है, लेकिन लक्ष्य एक ही है- देश का कल्याण।”
डॉ. भागवत ने स्पष्ट किया कि भाजपा और संघ दोनों की भूमिकाएं अलग हैं। उन्होंने कहा, “मैं शाखाएं चलाने में विशेषज्ञ हूं और भाजपा सरकार चलाने में। हम एक-दूसरे को सुझाव दे सकते हैं, लेकिन निर्णय सरकार का ही होता है।”
उन्होंने कहा कि संगठनों और दलों के बीच कभी-कभी विचारों में भिन्नता दिखाई देती है, लेकिन यह संघर्ष नहीं है। उन्होंने कहा, “ऐसे मामलों में यह प्रतीत होता है कि कोई झगड़ा है, जबकि असल में यह प्रक्रिया का हिस्सा है। मतभेद स्वाभाविक हैं, किंतु मनभेद नहीं। हम एक-दूसरे पर विश्वास करते हैं कि सब ईमानदारी से और निःस्वार्थ भाव से कार्य कर रहे हैं।”
संघ और अन्य संगठनों के संबंधों पर उन्होंने उदाहरण दिया कि समय के साथ कई नेताओं ने संघ के प्रति अपनी धारणा बदली है। उन्होंने कहा, “मौलाना आजाद से लेकर प्रणब मुखर्जी तक ने संघ के बारे में अपनी राय बदली। अच्छे कार्यों के लिए सहयोग मांगने वालों की हम मदद करते हैं और यदि कोई हमारे सहयोग को स्वीकार नहीं करता तो उनकी इच्छा का सम्मान करते हैं।”
डॉ. भागवत ने दोहराया कि संघ का लक्ष्य संगठन विस्तार नहीं, बल्कि समाज में सकारात्मक मूल्यों का प्रसार और राष्ट्रहित में कार्य करना है।