आजाद सिपाही खास
-अव्यवस्था ने बिरसा जैविक उद्यान को बना दिया है वन्य प्राणियों की कब्रगाह
-भ्रष्टाचार और विभागीय लापरवाही के कारण खतरे में आ गया है इसका भविष्य
अनुज
ओरमांझी (आजाद सिपाही)।
झारखंड की राजधानी से करीब 20 किलोमीटर दूर ओरमाझी में बेहद खूबसूरत भगवान बिरसा मुंडा जैविक उद्यान है। इस जू में जानवरों का दीदार करने भारी संख्या में लोग आते हैं। यहां बहुत सारे जानवर हैं। जो जू को आकर्षक बनाते हैं। इसकी खूबसरती के पीछे बेजुबान जानवरों का दर्द भी छिपा है। जिसके लिए उद्यान प्रशासन पूरी तरह से जिम्मेदार है। इस जैविक उद्यान में एकमात्र मादा जिराफ थी। जिसका नाम ‘मिष्टी’ था। जिसकी 3 सिंतबर को मौत हो गयी। इससे झारखंडवासियों में दुख के साथ रोष भी था। ‘मिष्टी’ की मौत की रिपोर्ट में पैर में जख्म होने की पुष्टि की गयी। इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि जख्म की वजह से ही वह बाड़े में गिर गयी और गंभीर चोट लगने से उसकी मौत हो गयी। यह वजह दलील के लिए भले ही सही हो, लेकिन ‘मिष्टी’ की मौत ने कई सवालों को जन्म दे दिया है। इन सवालों के दायरे में जैविक उद्यान का प्रशासन आता है। जिसकी लापरवाही भी सामने आती है। पिछले कुछ वर्षों से उद्यान की जो स्थिति हो रही, वह गंभीर है। अगर हालात नहीं सुधरे तो ‘मिष्टी’ की असमायिक मौत कोई आखिरी घटना नहीं रह जायेगी।
कोलकाता से लाया गया था मादा जिराफ:
मादा जिराफ मिष्टी को 8 अगस्त 2025 को जैविक उद्यान ओरमांझी लाया गया था। कोलकाता के वन्य प्राणी उद्यान अलीपुर से जीव आदान-प्रदान कार्यक्रम के तहत रांची को मादा जिराफ मिली थी। उसकी उम्र करीब 6 वर्ष थी। किसी जू में जिराफ की औसत आयु 19 से 20 वर्ष होती है। अगर वह जंगल में रहे, तो उसकी उम्र अमूमन 17 से 18 साल तक होती है। मिष्टी ने 3 सितम्बर 2025 को मात्र 6 वर्ष (रांची लाने के एक महीने के भीतर) में ही दम तोड़ दिया। यानी बचपन में ही उसकी मौत हो गयी।
बच्चों की तरह लालन-पालन और प्रेम करते दैनिक कर्मी:
भगवान बिरसा जैविक उद्यान की देखरेख की जिम्मेदारी पहले दैनिक वेतनभोगी कर्मियों के जिम्मे थी। दैनिक वेतनभोगी मजदूर उद्यान और वन्य प्राणियों के रख-रखाव और उनके खान-पान का ख्याल रखते। उनके लिए उद्यान के जीव-जंतु अपने बच्चों की तरह थे। अपने बच्चों के लिए प्रेम भाव से काम करते थे। इसका कारण था कि इनमें से अधिकांश दैनिककर्मी स्थानीय थे। क्षेत्र में पर्यटकों के आने और नाम होने के कारण उन्हें भवनात्मक लगाव और जिम्मेदारी का अहसास था।
जैविक उद्यान अपने बुरे दिन से गुजर रहा:
जैविक उद्यान में 2016-17 तक सब कुछ ठीक-ठाक चल रहा था। हालात ऐसे बने कि हाल के वर्षों में अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। सुधार के नाम पर यहां के दैनिक मजदूरों को हटा दिया गया। वन विभाग ने स्थायी कर्मियों की तैनाती शुरू कर दी। इसके बाद से शुरू हुआ बदहाली का दौर। वन्य प्राणियों को संरक्षित करने के उद्देश्य से बनाया गया यह जैविक उद्यान अव्यवस्था, भ्रष्टाचार और विभागीय लापरवाही का शिकार बनता चला जा रहा है। हाल के दिनों में यह उद्यान अधिकारियों का चरागाह बन गया है। केज की मरम्मत हो, वन्य प्राणियों का खाना हो या भवन निर्माण, सभी में गड़बड़ी होने लगी। भवन निर्माण के नाम पर जंगल की कटाई हो रही है। स्थायी कर्मियों ने मनमानी शुरू कर दी है। उद्यान में सबसे अधिक गड़बड़ी श्रमिकों की हाजिरी में होती है। प्राप्त जानकारी के अनुसार यह आरोप लग रहे कि यदि 10 श्रमिक काम कर रहे होते हैं, तो हाजिरी उससे अधिक संख्या की बना दी जाती है। इसके बाद पारिश्रमिक की बंदरबांट होती है। हाजिरी से लेकर दूसरे सभी कार्यों में कमीशन मांगा जाने लगा है।
वन्य प्राणियों के खाने में गड़बड़ी:
उद्यान में रखे गये वन्य प्राणियों के खाने में लापरवाही का आरोप भी लग रहे हैं। यहां न तो वधशाला है और न भोजन की जांच के लिए प्रयोगशाला। मांसाहारी वन्य प्राणियों जैसे शेर, बाघ, चीता, तेंदुआ आदि को बाहर से लाया गया बीफ उबाल कर दिया जाता है। प्रयोगशाला के अभाव में न तो भोजन की गुणवत्ता की जांच होती है और न ही इसकी मात्रा तय रहती है।
निदेशक पर लगते रहे हैं आरोप
इस उद्यान के निदेशक जब्बार सिंह हैं। उद्यान की अव्यवस्था का आरोप उन पर लग रहा है। उद्यान में हाल के दिनों में कई वन्य प्राणियों की मौत हुई है। जिराफ मिष्टी की मौत से पहले ‘शशांक’ नामक शेर की हुई थी। ‘शशांक’ को इसी साल जुलाई में लाया गया था। निदेशक जब्बार सिंह ने उसे युवा बताया था। ‘शशांक’की उम्र 14 साल बतायी गयी थी। शेर की कुछ दिनों बाद मौत हो गयी। शेर की औसत आयु 18 से 20 साल होती है। यानी वह शेर वृद्ध था। जब शेर मर गया, तो यह सच सामने आया। जबार सिंह पांच साल से निदेशक के पद पर हैं। बिरसा उद्यान की गिरती स्थिति को लेकर उन पर कई तरह के आरोप लग रहे हैं।
‘मिष्टी’ की मौत पर सवाल उठ रहे
जानकारों का कहना है कि किसी भी वन्य प्राणी को एक चिड़ियाघर से दूसरे चिड़ियाघर लाये जाने पर 30 दिनों तक क्वारेंटाइन (अलग और अकेले) रखने का नियम है। जिससे वह नयी जगह के वातावरण के अनुरूप खुद को ढाल सके। ‘मिष्टी’ को 8 अगस्त को भगवान बिरसा जैविक उद्यान लाया गया था। केवल एक सप्ताह बाद 15 अगस्त से उसका सार्वजनिक प्रदर्शन किया जाने लगा। यानी उद्यान प्रबंधन ने निर्धारित नियमों का पालन नहीं किया। जानकार कहते हैं, संभव है कि कम समय मिलने के कारण मिष्टी खुद को नये वातावरण में नहीं ढाल पायी होगी। इससे पैदा हुए तनाव में रहने की वजह से उसको समस्या उत्पन्न हुई होगी। दूसरा सवाल जिराफ को रखने के लिए उद्यान में पहले से बने बाड़े पर लगभग 60 लाख रुपये खर्च कर उसे बेहतर बनाने का दावा किया गया। यह स्पष्ट नहीं हुआ कि इतनी राशि खर्च कर बाड़े में कौन सी सुविधाएं बहाल की गयी थीं। अगर सुविधाएं बहाल की गयीं थीं, तो मिष्टी को चोट कैसे लग गयी? तीसरा सवाल चोट लगने के बाद संक्रण नहीं फैले, इसके लिए क्या उचित व्यवस्था की गयी थी?
कहानी बनाना हो तो बनाइए, लेकिन आरोप निराधार हैं: जब्बार सिंह
उद्यान की अव्यवस्था संबंधी आरोपों पर निदेशक जब्बार सिंह ने कहा कि जिराफ की मौत से उद्यान कर्मियों के बीच मातम है। यहां के वन्य प्राणियों के रख-रखाव और खान-पान की व्यवस्था में कोई गड़बड़ी नहीं है। जमशेदपुर और बोकारो के जैविक उद्यानों के मुकाबले यहां अच्छी व्यवस्था है। कहानी बनानी है तो बनाइये। हम आपको कहानी देते हैं। मुझ पर लगे सारे आरोप निराधार हैं।