Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Sunday, May 11
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»Breaking News»बुजुर्गों की कांग्रेस कैसे संभालेगी युवा झारखंड को
    Breaking News

    बुजुर्गों की कांग्रेस कैसे संभालेगी युवा झारखंड को

    azad sipahiBy azad sipahiNovember 17, 2018No Comments5 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    रांची। झारखंड में चुनाव की तैयारी में सभी दल जुट गये हैं। सत्तारूढ़ भाजपा, मुख्य विपक्षी दल झामुमो, झाविमो और आजसू के साथ कांग्रेस भी सत्ता हासिल करने की जद्दोजहद में है। 18 साल के युवा झारखंड को राजनीतिक नेतृत्व देने का अवसर राज्य की सवा तीन करोड़ जनता किसे देगी, यह तो समय ही बतायेगा, लेकिन इन सभी राजनीतिक दलों के नेताओं की उम्र भी चुनाव में महत्वपूर्ण कारक होगा। नेताओं की उम्र के हिसाब से झारखंड कांग्रेस पूरी तरह बुजुर्गों के हाथों में है, जबकि दूसरे दलों के नेता अपेक्षाकृत युवा हैं। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर ये बुजुर्ग कांग्रेसी युवा झारखंड को कैसा नेतृत्व दे सकेंगे। कांग्रेस के खेमे में भी यह सवाल उठाया जा रहा है कि 65-70 साल के नेता 50-55 साल के विरोधियों के जोश के आगे कैसे खड़े हो सकेंगे और खड़े होंगे भी, तो कितनी देर तक टिकेंगे।

    मन्नान 73 के, तो डॉ अजय 56 के
    झारखंड कांग्रेस के अधिकांश नेता 60 साल की उम्र को पार कर चुके हैं, यानी सरकारी सेवा से उनके रिटायरमेंट का समय बीत चुका है। आज की तारीख में पार्टी के केवल दो बड़े नेता ही 60 से कम के हैं। इनमें प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सह लोहरदगा के विधायक सुखदेव भगत शामिल हैं। डॉ अजय कुमार की उम्र 56 साल हो गयी है, जबकि सुखदेव भगत उनसे दो साल बड़े, अर्थात 58 साल के हैं। बाकी सभी बड़े नेता 60 साल से अधिक के हैं। इनमें पूर्व विधायक और श्रमिक नेता मन्नान मलिक सबसे बुजुर्ग हैं। उनकी उम्र 73 साल है। उनके बाद राजेंद्र प्रसाद सिंह हैं, जो 72 साल के हैं। पूर्व सांसद डॉ रामेश्वर उरांव 71 साल के हैं। फिर फुरकान अंसारी हैं, जिनकी उम्र 70 है, तो आलमगीर आलम 68 साल के, सुबोधकांत सहाय 67 के और प्रदीप कुमार बलमुचू 61 के हो गये हैं। ददई दुबे भी काफी बुजुर्ग हो गये हैं। झारखंड कांग्रेस के बड़े नेताओं की फेहरिस्त इन बुजुर्ग नेताओं के बाद खत्म हो जाती है, यानी इनके बाद पार्टी का कोई ऐसा नेता नहीं है, जो पूरे झारखंड में अपना प्रभाव रखता है।

    अन्य दलों के बड़े नेताओं की उम्र कांग्रेसियों से काफी कम
    कांग्रेस को झारखंड में जिन नेताओं से मुकाबला करना है, उनमें मुख्यमंत्री रघुवर दास 63 साल के हैं, जबकि भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ 53 के हैं। झाविमो अध्यक्ष बाबूलाल मरांडी 60 साल के हैं, तो आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो महज 44 के और झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन 43 साल के हैं। इनमें भाजपा के रघुवर दास और लक्ष्मण गिलुआ को छोड़ दिया जाये, तो बाकी सभी नेताओं के साथ कांग्रेस महागठबंधन बनाने की कोशिश में जुटी हुई है। ऐसे में इन युवा नेताओं के जोश और जज्बे के सामने कांग्रेस के बुजुर्ग नेता कितने प्रभावी होंगे, यह देखनेवाली बात होगी। कांग्रेस के बुजुर्ग नेता इन युवा सहयोगियों के साथ कितनी दूर तक चल पायेंगे, यह भी बड़ा सवाल है।

    कांग्रेसियों की औसत आयु 66 साल, तो अन्य दलों की 52.5
    यदि औसत की बात करें, तो कांग्रेस नेताओं की औसत आयु जहां 66 साल है, वहीं बाकी दलों के नेता महज 52.5 साल के हैं। ऐसे में स्वाभाविक है कि कांग्रेस के नेता लंबी रेस के खिलाड़ी कतई नहीं हो सकते हैं। ऐसा नहीं है कि कांग्रेस के इन नेताओं के पास राजनीतिक समझ और अनुभव नहीं है या इनके पास सांगठनिक क्षमता नहीं है। ये सभी राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी हैं। इन सभी के पास राजनीति का लंबा अनुभव भी रहा है। लेकिन युवा झारखंड के लिए निश्चित तौर पर युवा नेतृत्व की जरूरत है।

    परिवारवाद और भाई-भतीजावाद भी बड़ी समस्या
    झारखंड कांग्रेस की दूसरी बड़ी समस्या इसमें परिवारवाद और भाई-भतीजावाद है। पार्टी के अधिकांश बड़े नेताओं के नजदीकी रिश्तेदार राजनीति में सक्रिय हैं। चाहे राजेंद्र सिंह हों या फुरकान अंसारी, प्रदीप बलमुचू हों या सुखदेव भगत, सभी के रिश्तेदार अगले चुनाव में किस्मत आजमाने की तैयारी कर रहे हैं। राजेंद्र सिंह के पुत्र अनुप सिंह और बलमुचू और सुखदेव भगत की पत्नी तो टिकट के दावेदारों में हैं। फुरकान अंसारी के पुत्र डॉ इरफान अंसारी तो विधायक भी हैं। सुबोधकांत सहाय के भाई सुधीर सहाय भी पहले चुनाव लड़ चुके हैं। ददई दूबे के पुत्र अजय दूबे भी चुनाव लड़ चुके हैं। पार्टी के सामने दुविधा यह है कि यह न तो अपने इन कद्दावर नेताओं की उपेक्षा कर सकती है और न ही इनके रिश्तेदारों की आकांक्षाओं को पूरा कर सकती है।

    पार्टी के अंदर उपेक्षा से झलकती है युवाओं में नाराजगी
    झारखंड कांग्रेस एक और बड़ी चुनौती से जूझ रही है। हालांकि यह चुनौती पुरानी है, लेकिन आनेवाले चुनाव में इसका खामियाजा पार्टी को उठाना पड़ सकता है। यह चुनौती है पार्टी के भीतर युवाओं की उपेक्षा। चाहे युवा कांग्रेस हो या एनएसयूआइ जैसा छात्र संगठन, प्रदेश नेतृत्व ने कभी इन्हें अहमियत नहीं दी। इससे भी युवाओं में नाराजगी स्पष्ट झलकती है।
    आलोक दुबे, सुरेंद्र सिंह, कुमार राजा, रविंद्र सिंह, शमशेर आलम, दिनेश लाल, राजेश गुप्ता, राजेश ठाकुर, गुंजन सिंह, शाहबाज अहमद, राजीव रंजन, विनय सिन्हा दीपू जैसे युवा नेता या तो बाउंड्री लाइन पर रखे जाते हैं या फिर टीम के बारहवें खिलाड़ी के रूप में शामिल किये जाते हैं। इन्हें कभी खेलने का मौका ही नहीं दिया गया।

    ऐसे में इन युवा नेताओं के बीच भी निराशाजनक माहौल बन रहा है। राजनीति के जानकार कहते हैं कि झारखंड में कांग्रेस को पुनर्जीवित करने के लिए आलाकमान को युवाओं की भागीदारी बढ़ाने पर विचार करना ही होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो फिर पार्टी के लिए युवा विरोधियों का सामना करना बेहद मुश्किल भरा काम होगा। अब वक्त आ गया है कि बुजुर्ग नेता युवाओं के लिए रास्ता खाली करें, ताकि पार्टी नये जोश और उमंग के साथ चुनावी मैदान में उतर सके। युवा नेता निश्चित तौर पर अच्छा प्रदर्शन कर सकेंगे।

    तो डॉ अजय 56 के मन्नान 73 के
    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleधनबादः रेलवे पुल से कूद युवक ने दी जान
    Next Article उल्टा चोर कोतवाल को डांटे: भाजपा
    azad sipahi

      Related Posts

      नापाक हरकतों से बाज नहीं आएगा पाकिस्तान, सीजफायर के कुछ घंटो बाद ही कर रहा ड्रोन अटैक, भारत दे रहा करारा जवाब

      May 10, 2025

      देश के लिए मर मिटने वाले जवानों को अपमानित किया जा रहा : बाबूलाल

      May 10, 2025

      मंत्री सुदिव्य का बिरसा समाधि स्थल दौरा, विकास का दिया भरोसा

      May 10, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • नापाक हरकतों से बाज नहीं आएगा पाकिस्तान, सीजफायर के कुछ घंटो बाद ही कर रहा ड्रोन अटैक, भारत दे रहा करारा जवाब
      • संघर्ष विराम हुआ लेकिन आतंकवाद के खिलाफ कठोर रवैया जारी रहेगाः जयशंकर
      • संघर्ष विराम: कांग्रेस ने प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में सर्वदलीय बैठक और संसद के विशेष सत्र की मांग की
      • देश के लिए मर मिटने वाले जवानों को अपमानित किया जा रहा : बाबूलाल
      • मंत्री सुदिव्य का बिरसा समाधि स्थल दौरा, विकास का दिया भरोसा
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version