नयी दिल्ली। हाई पावर्ड सिलेक्शन कमेटी द्वारा सीबीआइ डायरेक्टर पद से हटाये जाने और तबादला किये जाने के एक दिन बाद आलोक वर्मा ने सरकार को इस्तीफा भेज दिया है। वर्मा का तबादला करते हुए उन्हें फायर सर्विसेज का डायरेक्टर बनाया गया था, लेकिन पहले तो उन्होंने चार्ज लेने से इनकार किया और बाद में इस्तीफा ही दे दिया। अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश काडर से 1979 बैच के आइपीएस आॅफिसर आलोक वर्मा सीबीआइ के 27वें डायरेक्टर थे। वह दिल्ली पुलिस के कमिश्नर भी रह चुके थे। 31 जनवरी को वह रिटायर होने वाले थे। वर्मा एक फरवरी 2017 को सीबीआइ डायरेक्टर बने थे। उनका कार्यकाल काफी विवादित रहा और आखिरकार भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर उन्हें दो साल के तय कार्यकाल से पहले ही हटा दिया गया।
वर्मा और सीबीआइ के स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना दोनों ने एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे। बाद में अस्थाना के खिलाफ एफआइआर भी दर्ज हुई। यह विवाद इतना बढ़ा कि सरकार ने दोनों अफसरों को जबरन छुट्टी पर भेज दिया। इसके खिलाफ वर्मा सुप्रीम कोर्ट पहुंचे और 8 जनवरी को कोर्ट ने उन्हें डायरेक्टर पद पर बहाल तो कर दिया लेकिन सिलेक्शन कमिटी को को हफ्ते के भीतर उन पर लगे आरोपों पर फैसले का भी निर्देश दिया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई और कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खड़गे एवं सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस सीकरी की सदस्यता वाले पैनल ने वर्मा को डायरेक्टर पद से हटा दिया। पैनल ने उनका तबादला कर उन्हें फायर सर्विसेज का डायरेक्टर जनरल बनाये जाने का आदेश दिया। बता दे कि सीबीआइ डायरेक्टर की नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोस में विपक्ष के नेता और सीजेआइ की हाई-पावर्ड कमेटी करती है।
राकेश अस्थाना को झटका, दिल्ली हाइकोर्ट ने जांच जारी रखने का दिया आदेश
नयी दिल्ली। दिल्ली हाइकोर्ट से सीबीआइ के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना को तगड़ा झटका लगा है। हाइकोर्ट ने अस्थाना के खिलाफ जांच जारी रखने का आदेश दिया है। बता दें कि अस्थाना के खिलाफ पूर्व सीबीआइ चीफ आलोक वर्मा ने भ्रष्टाचार के मामले में प्राथमिकी दर्ज करने का आदेश दिया था। हाइकोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अस्थाना के खिलाफ जांच जारी रहेगी। कोर्ट ने अस्थाना और डीएसपी देवेंद्र कुमार की एफआइआर रद्द करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया।
कोर्ट ने सीबीआई को अस्थाना और देवेंद्र कुमार के खिलाफ 10 हफ्ते में जांच पूरी करने का आदेश दिया। कोर्ट ने कहा कि इसमें कोई शक नहीं कि एक लोक सेवक के खिलाफ एफआइआर दर्ज किया जाना चिंता और तनाव का कारण होगा। एफआइआर में जिस तरह के आरोप हैं, उसकी जांच जरूरी है। अस्थाना ने गिरफ्तारी से बचन के लिए दो हफ्ते की रोक की मांग की है। गौरतलब है कि हैदराबाद के बिजनेसमैन सतीश बाबू सना की शिकायत के आधार पर अस्थाना के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गयी थी। एफआइआर में दावा किया गया है कि उन्होंने सीबीआइ स्पेशल डायरेक्टर को पिछले वर्ष लगभग तीन करोड़ रुपये दिये थे। बता दें कि अस्थाना पर आरोप है कि वह जिस मांस कारोबारी मोइन कुरैशी के खिलाफ एक मामले की जांच कर रहे थे, उससे उन्होंने रिश्वत ली।