रांची। आम चुनाव 2019 के पहले कांग्रेस ने बड़ा दांव खेला है। राहुल गांधी ने अपनी बहन प्रियंका गांधी को पार्टी का महासचिव बनाया है। उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश का जिम्मा दिया गया है। इसके पहले भी प्रियंका गांधी चुनावों में पार्टी के लिए प्रचार करती रही हैं, लेकिन पहली बार पार्टी में उन्होंने कोई पद लिया है। इस तरह से उनकी राजनीति में आधिकारिक एंट्री हो गयी है। माना जा रहा है कि वह इस बार लोकसभा चुनावों में भी प्रत्याशी के तौर पर खड़ी हो सकती हैं। बता दें कि पिछले कई साल से प्रियंका को सक्रिय राजनीति में लाने की कांग्रेस के नेता मांग करते रहे हैं। प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश का जिम्मा दिया जाना भी बड़ा मायने रखता है। असल में पूर्वी उत्तर प्रदेश की अहम सीट वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सांसद हैं। वहीं, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोरखपुर से आते हैं और पूर्वी उत्तर प्रदेश में उनका भी बड़ा प्रभाव माना जाता है।
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को पार्टी महासचिव एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी बनाये जाने के बाद बुधवार को कहा कि उनके आने से उत्तर प्रदेश में एक नये तरीके की सोच आयेगी और राजनीति में सकारात्मक बदलाव आयेगा।
राहुल गांधी ने कहा कि हम कहीं भी बैकफुट पर नहीं खेलेंगे। हम राजनीति जनता के लिए, विकास के लिए करते हैं। उन्होंने कहा कि वह बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा मुखिया अखिलेश यादव का पूरा आदर करते हैं। कांग्रेस और सपा—बसपा की विचारधारा में काफी समानताएं हैं। हमारी लड़ाई भाजपा के खिलाफ है। पूर्वी यूपी में लोकसभा की 26 और विधानसभा की 130 सीटें हैं। जिस तरह साल 2014 के लोकसभा चुनाव में पीएम मोदी ने वर्तमान पार्टी अध्यक्ष अमित शाह को यूपी का प्रभारी बनाया था, उसी तरह राहुल गांधी ने आने वाले लोकसभा चुनावों के लिए प्रियंका और ज्योतिरादित्य सिंधिया को मैदान में उतार दिया है।
प्रभारी बनाये जाने के बाद प्रियंका सीधे पूर्वी यूपी में प्रचार-प्रसार की कमान संभालेंगी, जबकि 2014 में कांग्रेस ने यहां पिंडरा विधायक अजय राय को प्रचार का जिम्मा दिया था। 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरफ से नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार थे। तब उन्होंने एक रैली में कहा था कांग्रेस अब बूढ़ी हो चली है। इसके जवाब में प्रियंका ने एक रैली में जनता से पूछा था, क्या मैं आपको बूढ़ी दिखाई देती हूं? इस पर जनता ने जम कर तालियां बजायीं और प्रियंका मुस्कुराती रही थीं।
गांधी परिवार का गढ़ माने जाने वाले अमेठी और रायबरेली, ये दोनों क्षेत्र प्रियंका गांधी के अंडर में आएंगे। ऐसे में अटकलें हैं कि प्रियंका अपनी मां सोनिया गांधी की सीट रायबरेली से चुनाव में उतर सकती हैं। यदि ऐसा होता है तो क्षेत्र में दो सीटों पर गांधी परिवार के चुनाव लड़ने से आसपास की सीटों पर भी असर पड़ सकता है। इनमें प्रतापगढ़ और प्रियंका के चचेरे भाई वरुण गांधी की सुल्तानपुर सीट शामिल हैं। बता दें कि वरुण फिलहाल भाजपा में भले हाशिये पर हैं, पर उनके और राहुल गांधी के बीच एक भाई के तौर पर अच्छी बांडिंग है। यूपी में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने हाल ही में गठबंधन किया है। उनके साथ राष्ट्रीय लोक दल भी शामिल हो गया है। ऐसे में चुनाव में मुख्य रूप से मुकाबला महागठबंधन और बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन एनडीए में होगा।
हालांकि यूपी में एक रोचक मुकाबला यह भी होगा कि सपा-बसपा की ओर से बुआ-भतीजा यानि मायावती और अखिलेश यादव की जोड़ी होगी। वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस की ओर से भाई-बहन यानि राहुल गांधी और प्रियंका गांधी की जोड़ी पार्टी के लिए प्रचार करेगी। पार्टी का भी मानना है कि प्रियंका एक अच्छी वक्ता हैं और जब वे महिलाओं और युवाओं से बात करती हैं, तो ऐसे वोटर उनसे जुड़ाव महसूस करते हैं। ऐसे में कांग्रेस को लगता है कि शहरी इलाके में उसे इस बात का फायदा मिल सकता है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव से लेकर अब तक हुए विधानसभा चुनाव में पीएम नरेंद मोदी को मिले मीडिया कवरेज ने नतीजों पर काफी असर डाला है। ऐसे में प्रियंका के सामने यह भी एक चुनौती होगी कि वह किस तरह से कांग्रेस पार्टी को मीडिया कवरेज में बनाये रखती हैं।
प्रियंका गांधी के सक्रिय राजनीति में आने से पहले बीजेपी से लेकर तमाम विरोधी दल रॉबर्ट वाड्रा के मामले को लेकर राहुल गांधी पर निशाना साधते आये हैं। पर अब माना जा रहा है वाड्रा पर दिया गया बयान सीधा प्रियंका गांधी पर हमला माना जायेगा। ऐसे में विरोधी दलों को नुकसान हो सकता है, क्योंकि प्रियंका भले राजनीति में न रही हों, लेकिन जनता के बीच उनकी एक अलग छवि है। ऐसे में बीजेपी और अन्य विरोधी दल हर कदम फूंक-फूंककर रखेंगे। वहीं अब सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाला राज्य यूपी का रण त्रिकोणीय मुकाबले की तरह होगा, जिसमें तीनों तरफ से तीन-तीन योद्धा मैदान में होंगे। मसलन बीजेपी से पीएम नरेंद्र मोदी, अमित शाह और सीएम योगी आदित्यनाथ।
दूसरी तरफ मायावती, अखिलेश यादव और अजीत सिंह। वहीं तीसरी तरफ राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और ज्योतिरादित्य सिंधिया। कांग्रेस पार्टी में प्रियंका गांधी को पहली बार कोई पद दिया गया है। पिछले कई वर्षों से प्रियंका को सक्रिय राजनीति में लाने की कांग्रेस के नेता मांग करते रहे हैं। कुछ मीडिया रिपोर्ट में कहा जा रहा है प्रियंका रायबरेली सीट से लोकसभा चुनाव में उतारा जा सकता है। अभी यहां से उनकी मां और यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी चार बार से सांसद हैं। अस्वस्थता के चलते उन्होंने 2017 के यूपी विधानसभा चुनाव में प्रचार नहीं किया थां।
बहुत दिनों से यह कहा जा रहा था कि प्रियंका गांधी अपनी मां और भाई के संसदीय क्षेत्र में सक्रिय रहती तो हैं, लेकिन बाकी क्षेत्रों में वह नहीं जाती हैं। जबकि, दूसरे राज्यों के नेता हमेशा मांग करते रहे हैं कि प्रियंका गांधी को उनके यहां प्रचार के लिए भेजा जाये। अब जबकि यह निर्णय ले लिया गया है, यह देखना होगा कि कांग्रेस पार्टी प्रियंका का किस तरह से इस्तेमाल करती है। यह भी देखना बहुत ही दिलचस्प होगा कि पीएम मोदी प्रियंका गांधी पर किस तरह से प्रतिक्रिया देते हैं। अब तक देखा गया है कि पीएम मोदी प्रियंका गांधी पर कोई प्रतिक्रिया देने से बचते रहे हैं।
इसकी वजह यह थी वह सक्रिय राजनीति में नहीं थीं। लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है। यूपी में सपा और बसपा पहले ही गठबंधन का ऐलान कर चुकी हैं। दोनों पार्टियों ने कांग्रेस को तवज्जो नहीं दिया। इसके बाद कांग्रेस ने घोषणा की थी कि पार्टी सभी 80 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है। कांग्रेस चाहती है कि इसी बहाने उसका कैडर फिर से यूपी में खड़ा हो। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के दाहिने हाथ और जदयू के उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश के लिए कांग्रेस महासचिव के तौर पर नियुक्ति को भारतीय राजनीति में बहुप्रतीक्षित पदार्पणों में से एक बताया है।
इस बात के लिए उन्होंने प्रियंका को बधाई और शुभकामनाएं दी। इस संबंध में किशोर ने ट्वीट किया, भारतीय राजनीति में बहुप्रतीक्षित पदार्पणों में से एक आखिरकार अब आया है। भले ही लोग इसके समय, उनकी ठीक-ठीक भूमिका और स्थिति पर बहस करें लेकिन मेरे लिए असल खबर यह है कि उन्होंने आखिरकर राजनीति में उतरने का फैसला किया।
प्रियंका गांधी को बधाई और शुभकामनाएं। प्रियंका गांधी की इस नियुक्ति को मास्टरस्ट्रोक के तौर पर देखा जा रहा है, जिससे उत्तर प्रदेश में पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल ऊंचा होगा। गौरतलब है कि किशोर ने जदयू में शामिल होने से पहले उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के चुनावी रणनीतिकार के तौर पर काम किया था।