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    Home»Top Story»चाईबासा: क्या गीता के चक्रव्यूह को तोड़ सकेंगे लक्ष्मण!
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    चाईबासा: क्या गीता के चक्रव्यूह को तोड़ सकेंगे लक्ष्मण!

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskApril 6, 2019No Comments5 Mins Read
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    Ranchi: बुधवार को चाईबासा का माहौल अलग था। सिंहभूम (चाईबासा) संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस की उम्मीदवार गीता कोड़ा अपने शहर लौटी थीं। देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी का टिकट लेकर लौटीं जगन्नाथपुर की विधायक के स्वागत के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था। अपने स्वागत के लिए इकट्ठा लोगों से गीता कोड़ा ने केवल इतना कहा कि वह लोकसभा में कोल्हान की आवाज बनेंगी। गीता कोड़ा के चेहरे का भाव बता रहा था कि उनमें आत्मविश्वास की कोई कमी नहीं है और न ही उन्हें भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ से मुकाबला करने में कोई झिझक है।
    गीता कोड़ा को चाईबासा के रण में उतार कर कांग्रेस ने लक्ष्मण गिलुआ की जबरदस्त घेरेबंदी कर दी है। लोकसभा के पिछले चुनाव में उनकी जीत के रास्ते का सबसे बड़ा रोड़ा गीता कोड़ा ही बनी थीं। तमाम विरोधों और विपरीत परिस्थितियों के बावजूद गीता कोड़ा करीब दो लाख 15 हजार वोट लेकर दूसरे स्थान पर आयी थीं। इस बार कांग्रेस ने उन्हें अपना उम्मीदवार बनाया है और उन्हें झामुमो और झाविमो का समर्थन हासिल है। इसलिए लक्ष्मण गिलुआ की परेशानी बढ़ सकती है।
    चाईबासा में गीता कोड़ा की अलग छवि है। वह साफ-साफ बात करती हैं और लोगों से उनका जीवंत संपर्क है। अपने पति मधु कोड़ा के खिलाफ लगे आरोपों का एक भी छींटा उन पर नहीं पड़ा है। इसलिए वह लक्ष्मण गिलुआ जैसे कद्दावर प्रतिद्वंद्वी के सामने भी पूरी ताकत से खड़ी हैं। गीता कोड़ा कहती हैं, लक्ष्मण गिलुवा दो बार सांसद रहे। उन्हें दो बार विधानसभा में भी जाने का अवसर मिला। बावजूद आज भी पश्चिम सिंहभूम की महिलाएं असुरक्षित हैं। गिलुआ जी ने महिलाओं के रोजगार के लिए कुछ नहीं किया। हर दिन यहां से युवतियों का पलायन हो रहा है। मानव तस्करी का गोरखधंधा जारी है।
    अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित सिंहभूम संसदीय सीट में छह विधानसभा क्षेत्र हंै। ये सभी अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हंै। लाल मिट्टी और लाल सलाम इस इलाके की पहचान है। कोल्हान का सारंडा वन क्षेत्र नक्सली गतिविधियों के साथ लौह अयस्क के लिए पूरी दुनिया में चर्चित है। आज भी सारंडा को नक्सलियों का सुरक्षित पनाहगाह माना जाता है। कोल्हान इलाके ने देश और बिहार-झारखंड को कई बड़े नेता दिये हैं। बागुन सुंब्रुई और देवेंद्रनाथ चांपिया इनमें सबसे चर्चित नाम हैं। कांग्रेस नेता बागुन सुंब्रुई इस इलाके के सबसे बड़े राजनीतिक शख्सियत रहे।
    यदि पिछले चुनाव की बात करें, तो चाईबासा के छह विधानसभा क्षेत्रों में से तीन पर गीता कोड़ा ने काफी बढ़त बनायी थी। लक्ष्मण गिलुआ को लोकसभा तक चाईबासा, चक्रधरपुर और सरायकेला ने पहुंचाया था। अभी चाईबासा की छह विधानसभा सीटों में से किसी पर भी भाजपा का कब्जा नहीं है। लक्ष्मण गिलुआ के लिए सबसे बड़ी परेशानी का कारण यही है कि जगन्नाथपुर, मझगांव और मनोहरपुर विधानसभा क्षेत्रों में वह गीता कोड़ा को टक्कर देने की प्रभावी रणनीति उनके पास अब तक नहीं है।
    जहां तक पिछले चुनाव की बात है, तो जय भारत समानता पार्टी की प्रत्याशी गीता कोड़ा ने अपने राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों के साथ-साथ प्रशासनिक प्रतिद्वंद्वी का भी बखूबी सामना किया था। उनके प्रचार अभियान और चुनावी सभाओं पर जांच एजेंसियों की पैनी नजर थी। यहां तक कि उनके प्रचार में शामिल गाड़ियों की सघनता से जांच की जाती थी। इस सख्ती ने गीता कोड़ा को लोगों की सहानुभूति भी मुहैया करा दी। इस सहानुभूति का ही नतीजा था कि एक तरफ जहां उन्होंने भाजपा के पसीने छुड़ा दिये, वहीं कांग्रेस को तीसरे स्थान पर धकेल दिया। इस बार का चुनावी परिदृश्य पूरी तरह बदला हुआ है। पिछली बार मोदी लहर थी और उसने लक्ष्मण गिलुआ की राह को आसान बनाया था। इसके अलावा विपक्ष भी बंटा हुआ था। इस बार उनके लिए राह आसान नहीं है। एकजुट विपक्ष और गीता कोड़ा की अलग छवि चुनाव पर कितना असर डालती है, यह देखना दिलचस्प होगा।
    लक्ष्मण गिलुआ की एक परेशानी और है। इस इलाके की जनजातियां प्रदेश के दूसरे भागों में रह रही जनजातियों से पूरी तरह अलग हैं। कोल्हान के आदिवासी आज भी आधुनिक जीवन शैली से दूर हैं। इसलिए भाजपा और उसके सहयोगी संगठनों द्वारा जनजातियों के लिए चलाये जा रहे कार्यक्रम कोल्हान में प्रभावी नहीं रहे। यही कारण है कि यहां कांग्रेस शुरू से ही प्रभाव बनाने में सफल रही थी। बागुन सुंब्रुई जैसा कद्दावर शख्स पार्टी में था, तो उसे किसी और की जरूरत नहीं थी। उनके निधन के बाद कांग्रेस ने मधु कोड़ा और गीता कोड़ा के रूप में आदिवासी चेहरा खोज निकाला, जबकि मधु कोड़ा ने अपना राजनीतिक कैरियर भाजपा से ही शुरू किया था। भाजपा के लिए उनका अलग होना काफी साबित हो रहा है। बहरहाल गीता कोड़ा चाईबासा के रण में लक्ष्मण गिलुआ की घेरेबंदी करने में कितनी सफल होती हैं, यह तो 23 मई को ही पता चलेगा, लेकिन इतना तय है कि भाजपा के लिए चाईबासा से लोकसभा तक का रास्ता इस बार पिछली बार से मुश्किल साबित होगा।
    हां, गीता कोड़ा की परेशानी और लक्ष्मण गिलुआ के लिए राहत की बात यह है कि अब भी कोल्हान के झामुमो कार्यकर्ता और दो-दो विधायक गीता का साथ नहीं दे रहे हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि गीता कोड़ा मिलने गयी थीं, तो एक विधायक अपना दरवाजा बंद कर लिया।

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