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    Home»Top Story»झारखंड की राजनीति के धुरी बन गये हैं रघुवर
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    झारखंड की राजनीति के धुरी बन गये हैं रघुवर

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskSeptember 21, 2019No Comments7 Mins Read
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    मिथक टूटने के लिए ही गढ़े जाते हैं। और झारखंड की राजनीति में आदिवासी मुख्यमंत्री होने का मिथक तो शिव धनुष की तरह अपने तोड़े जाने के लिए रघुवर दास का ही इंतजार कर रहा था। जनजातीय समुदाय के लोग झारखंड की आबादी का करीब 27 फीसदी हैं। यही कारण है कि झारखंड की राजनीति में आदिवासी मुख्यमंत्री होने का मिथक बाबूलाल मरांडी के राज्य के पहले मुख्यमंत्री बनने के बाद से गढ़ा गया पर रघुवर दास ने इसे तोड़ दिखाया। 28 दिसंबर 2014 को झारखंड के पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री बननेवाले रघुवर अपने काम से अब झारखंड की राजनीति की धुरी बन गये हैं। झारखंड में हालत यह है कि या तो उनका विरोध किया जा सकता है या उनके पक्ष में खड़ा हुआ जा सकता है, पर उनकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। चाहे वह झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन हों या झाविमो सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी, सब रघुवर विरोध की राजनीति कर रहे हैं। कांग्रेस भी रघुवर विरोध की राजनीति करने से पीछे नहीं हट रही। वहीं, पार्टी में रहकर सरयू राय भी रघुवर विरोध का झंडा बुलंद किये हुए हैं। पार्टी के भीतर रघुवर से असंतुष्ट लोग अब चाहे उनसे जितने भी असहमत हों, पर खुलकर रघुवर दास का विरोध करने की हिम्मत सरयू राय को छोड़कर अन्य किसी में नहीं है। दरअसल, भाजपा में रघुवर दास का कद धीरे-धीरे इतना बड़ा होता गया है कि किसी दूसरे राजनेता के लिए यह रुतबा हासिल करना असंभव नहीं, तो कठिन जरूर हो गया है। भाजपा समेत विभिन्न दलों के कई नेताओं ने अपने काम और राजनीतिक शैली से अपना जो कद बनाया, लगभग वही कद झारखंड भाजपा में रघुवर दास का हो गया है। अपने कार्यों से पीएम नरेंद्र मोदी और अमित शाह के प्रिय बननेवाले रघुवर दास की राजनीति को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।

    किस्मत किसी की हो एक न एक दिन वह बदल अवश्य जाती है। टाटा कंपनी में मजदूर से राजनेता बने रघुवर दास के साथ भी यही हुआ। भाजपा के थिंक टैंक माने जानेवाले गोविंदाचार्य ने जब जमशेदपुर पूर्वी के टिकट से सीटिंग विधायक दीनानाथ पांडेय को वंचित कर रघुवर को दिया, तो जैसे उनकी किस्मत ही खुल गयी। 1995 में पहली बार जमशेदपुर पूर्वी सीट से विधायक बने और फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। इसके बाद लगातार पांच बार वह इस क्षेत्र से जीते और विधायक बने। अर्जुन मुंडा के नेतृत्व वाली एनडीए की सरकार में वह नगर विकास मंत्री रहे। 30 दिसंबर 2009 से 29 मई 2010 तक शिबू सोरेन के नेतृत्व में चल रही सरकार में वह डिप्टी सीएम रहे। उनके राजनीतिक जीवन में क्लाइमैक्स तब आया, जब 28 दिसंबर 2014 को उन्होंने झारखंड के दसवें और पहले गैर-आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।
    इसके बाद झारखंड में सबसे लंबी अवधि तक सबसे मजबूत सरकार चलाने का रिकॉर्ड भी उनके नेतृत्व में चल रही सरकार ने कायम किया। झारखंड में जिस तरह की राजनीतिक परिस्थितियां बन रही हैं, उनमें 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद यदि भाजपा की सरकार बनती है, तो निश्चित रूप से अगले मुख्यमंत्री रघुवर दास ही होंगे। इसकी संभावना इसलिए भी हैं, क्योंकि अपने काम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी के राष्टÑीय अध्यक्ष अमित शाह का जो भरोसा रघुवर दास ने जीता है, उसका प्रतिफल तो यही होना है।
    काम से कमाया नाम
    राज्य के पहले गैर आदिवासी मुख्यमंत्री के रूप में रघुवर दास ने अपने काम से नाम कमाया। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद राज्य में न सिर्फ स्थानीय नीति लागू की गयी, बल्कि झारखंड को नया विधानसभा भवन भी मिला। उनके पहले के मुख्यमंत्रियों के काल में हालत यह थी कि लोग उद्घाटन के बाद योजना का शिलापट्ट भी लेकर भाग जाते थे। रघुवर दास के मुख्यमंत्री बनने के बाद जैसे योजनाएं शिलान्यास से उद्घाटन तक के अपने निर्धारित लक्ष्य पर बिना किसी विघ्न-बाधा के पहुंचने लगीं। विधानसभा के नये भवन के शिलान्यास के बाद कुछ लोगों ने उस जमीन पर हल-बैल लेकर खेती करने का स्टंट किया था, पर रघुवर दास के कड़े ऐतराज के बाद फिर ऐसी हिम्मत कोई दूसरा न कर सका। यह रघुवर सरकार का ही इकबाल था कि झारखंड में नक्सली लगभग समाप्त हो गये और राज्य नक्सलवाद से मुक्ति का सपना संजोने लगा। केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार की उज्ज्वला योजना हो या जन आरोग्य योजना, उन्हें राज्य में शत-प्रतिशत लागू कराने का काम रघुवर दास ने किया। झारखंड में पहली बार कृषि के लिए सिंगल विंडो सिस्टम रघुवर ने ही लागू किया और उनके इस काम की नरेंद्र मोदी ने तारीफ भी की। 12 सितंबर को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रांची के प्रभात तारा मैदान में झारखंड को कई योजनाओं की सौगात देने आये, तो उन्होंने न सिर्फ रघुवर दास के कार्यों की तारीफ की बल्कि उन्हें अपना परम मित्र भी बताया। इसके पांच दिन बाद जब अमित शाह जामताड़ा पहुंचे, तो उन्होंने भी अपना वरदहस्त रघुवर पर रख दिया और जन आशीर्वाद यात्रा का शुभारंभ किया। संथाल और कोल्हान में भाजपा की चुनावी रणनीति कामयाब हो, इसके लिए भी रघुवर दास ने खुद को झोंक दिया है। और रघुवर की इसी काम करनेवाले सीएम की छवि ने भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को रघुवर का मुरीद बना दिया है।
    सरकार नारे से नहीं नीतियों से चलती है
    चुनौतियों को अवसर के रूप में लेनेवाले रघुवर दास का प्लस प्वाइंट यह है कि उनका विजन बेहद क्लीयर है और एक बार कुछ तय करने के बाद वह पूरी शिद्दत से उस काम को पूर्णाहुति देने में जुट जाते हैं। अपने भाषणोें में अक्सर वह कहते हैं कि सरकार नारे से नहीं, नीतियों से चलती है और यह रघुवर सरकार की नीतियों का ही कमाल था कि इज आॅफ डूइंग बिजनेस में झारखंड 33वें स्थान से लंबी छलांग लगाकर चौथे स्थान पर पहुंच गया। ज्यूडिशियल एकेडेमी में आयोजित झारखंड बीपीओ समिट में रघुवर दास ने कहा कि वर्ष 2014 से पहले झारखंड में केवल एक पॉलिसी थी। हमारी सरकार ने 18 नीतियां बनायी और आज हर सेक्टर के लिए नीति है। बीते चौदह सालों में झारखंड की छवि स्कैम्ड झारखंड की थी, हमने इसे सुधार कर स्किल्ड झारखंड बनाया। हमने वैश्विक समिट किया और उससे राज्य में विकास का माहौल बना। बीते साढ़े चार वर्षों में झारखंड में 67 हजार करोड़ का निवेश हुआ है। खास तो यह है कि राज्य का मुखिया होने के बाद भी रघुवर खुद को कार्यकर्ता ही समझते हैं और इसे कहने से कभी गुरेज नहीं करते। गुमला के मुंडल साय बख्तर इनडोर आॅडिटोरियम में उन्होंने कहा भी कि वह पार्टी के साधारण कार्यकर्ता हैं और इसी रूप में काम कर रहे हैं।
    इमरजेंसी में जेल भी जा चुके हैं रघुवर
    राजनीति में जयप्रकाश नारायण और साहित्य में दिनकर को अपना आदर्श मानने वाले रघुवर दास इमरजेंसी के दौरान जेल भी जा चुके हैं। लोकनायक जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति आंदोलन का जमशेदपुर में रघुवर दास ने नेतृत्व किया था। इस दौरान पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार करके गया जेल भेजा, जहां कई वरीय नेताओं से उनकी मुलाकात हुई। रघुवर दास ने 1977 में जनता पार्टी ज्वाइन की और 1980 में भाजपा के संस्थापक सदस्यों में से एक बने। उसी साल मुंबई में आयोजित भाजपा की वन नेशन कमिटी की बैठक में भी उन्होंने हिस्सा लिया। इसके बाद वह सीतारामडेरा के मंडल प्रमुख बने। राजनीति में उन्होंने धीरे-धीरे किंतु स्थायी तरक्की की और पहले जमशेदपुर भाजपा के सचिव और बाद में उपाध्यक्ष बन गये। इसके बाद विधायक, नगर विकास मंत्री और उप मुख्यमंत्री के बाद झारखंड का मुख्यमंत्री बनने का सफर सब उनकी मेहनत और साफगोई का नतीजा है।

    Raghuvar has become the pivot of Jharkhand politics
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