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    Home»Top Story»10 सीटों पर जाने क्या होगा राम रे
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    10 सीटों पर जाने क्या होगा राम रे

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskDecember 14, 2019No Comments5 Mins Read
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    इनमें से पांच पर चुनाव हो चुका, पांच पर बाकी
    अरे भैया, खबर है कि जमशेदपुर पूर्वी में कमल खिल रहा है। आपको गलत सूचना मिली है। यहां से राय जी जीत रहे हैं। कौन बोला आपको। आपको गलतफहमी है। यहां से कमल ही जीत रहा है। मैं सच कह रहा हूं या आपका आकलन सही है, इसका पता 23 दिसंबर को चल जायेगा। जब चुनाव के नतीजे आयेंगे। रघुवर दास के एग्रिको स्थित आवास से पचास कदम की दूरी पर स्थित पान की दुकान में दो उम्रदराज लोगों के बीच हो रहे संवाद की बातचीत का यह हिस्सा है।
    ऐसी ही चर्चाएं झारखंड विधानसभा की दस सीटों पर चल रही हैं और उनमें से कुछ बातें तथ्य और अफवाहों की शक्ल में छनकर आ रही हैं।

    जमशेदपुर पूर्वी से लगातार पांच बार जीत चुके हैं रघुवर
    जमशेदपुर पूर्वी सीट वर्ष 1995 में तब चर्चा में आयी थी, जब सीटिंग विधायक दीनानाथ पांडेय का टिकट काटकर यहां से रघुवर दास को मौका दिया गया था और उसके बाद लगातार पांच बार यहां से रघुवर जीतते रहे। इस बार यह सीट इसलिए चर्चा में रही, क्योंकि यहां रघुवर के मुकाबले में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर सरयू राय खड़े थे। उनके आने से इस सीट पर जैसे मुकाबला अचानक ही रोमांचक हो उठा। इस सीट पर मतदान हो चुका है और अब सब दम थामे उस दिन का इंतजार कर रहे हैं कि कब नतीजों की घोषणा हो। दरअसल यहां हुए चुनाव के परिणाम न सिर्फ रघुवर, बल्कि सरयू राय का भी राजनीतिक भविष्य तय करेंगे, इसलिए यहां मतदान के बाद चर्चाओं का बाजार गर्म है। जमशेदपुर पूर्वी के बाद दूसरी चर्चित सीट सिल्ली है। यहां मुकाबला झामुमो की सीमा महतो और आजसू सुप्रीमो सुदेश के बीच है। तीसरे चरण के चुनाव में यहां गुरुवार को मतदान हो गया और यहां चुनाव लड़ रहे प्रत्याशियों की किस्मत इवीएम में लॉक हो गयी। पर मतदान खत्म होने के साथ जिज्ञासाओं की झड़ी सी लोगों में लग गयी है। हर दूसरा आदमी यह जानने को उत्सुक है कि सिल्ली में सुदेश जीत रहे हैं या नहीं। सीमा महतो को कहां वोट अधिक मिले और कहां सुदेश की चली, इस पर भी लोग चर्चा कर रहे हैं। सिल्ली के हरेक घर में यह चर्चा चल रही है कि इस सीट से किसकी जीत होगी। बीते विधानसभा चुनाव में यहां से झामुमो के टिकट पर अमित महतो जीती थी और फिर अदालत द्वारा सजा सुनाये जाने के कारण उनकी विधायकी चली गयी थी। तब उप चुनाव में उनकी पत्नी सीमा जीती थी और इस बार इस सीट पर सुदेश की प्रतिष्ठा दांव पर है। इसलिए सुदेश ने अपना पूरा दम इस सीट को जीतने पर लगाया है। अब नतीजा क्या आता है, यह जानने में सबकी दिलचस्पी है।
    इसी तरह तीसरी हॉट सीट दुमका की बात करें तो संथाल की यह सीट झामुमो की परंपरागत सीट रही है। बीते चुनाव में लुईस मरांडी ने यह सीट झामुमो से छीनकर भाजपा की झोली में डाला था और रघुवर दास के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार में भी वह मंत्री बनने में सफल रही थीं, लेकिन अपने पांच वर्षों के कार्यकाल में उन्होंने कोई खास काम नहीं किया। इन पांच सालों में उनके खिलाफ एंटी इन्कंबेंसी फैक्टर भी निर्मित हुआ है और झामुमो ने यहां बीते चुनाव में मिली हार से सबक लेकर मेहनत भी बहुत की है। इसलिए इस बार वह भी आत्मविश्वास से लबरेज है। पांकी सीट पर भी मुकाबला रोचक है। बीते तीन चुनावों में हार के बाद भी शशिभूषण मेहता ने क्षेत्र नहीं छोड़ा और इसके सुखद परिणाम आ सकते हैं। विश्रामपुर सीट पर ददई दुबे और रामचंद्र चंद्रवंशी के बीच जबर्दस्त टक्कर हुई और कौन जीतेगा, यह यकीन के साथ कोई नहीं कह सकता।
    वहीं बात झरिया, चंदनक्यारी और बाघमारा सीट की करें, तो झरिया में मुख्य मुकाबला जेठानी- देवरानी के बीच है। भाजपा ने विधायक संजीव सिंह की पत्नी रागिनी सिंह को टिकट दिया है, वहीं उनसे मुकाबला करने के लिए कांग्रेस ने पूर्णिमा नीरज सिंह को उम्मीदवार बनाया है। पूर्णिमा सिंह रागिनी सिंह की जेठानी हैं। बीते चुनाव में झरिया दो भाइयों के बीच संघर्ष का गवाह बना था और इस चुनाव में जेठानी और देवरानी के बीच कड़ी टक्कर है। बाघमारा सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार जलेश्वर महतो ढुल्लू को कड़ी टक्कर दे रहे हैं और उनसे मुकाबले के लिए ढुल्लू भी दिन-रात एक किये हुए हैं। यहां हवाओं का रुख वोटरों के मूड पर निर्भर करता है। इसी तरह चंदनकियारी सीट का रण आजसू के उमाकांत रजक और भाजपा के अमर बाउरी के बीच है। अमर बाउरी के खिलाफ यहां एंटी इन्कंबेंसी फैक्टर काम कर रहा है और उमाकांत रजक को क्षेत्र में दिन-रात एक करने और चुनाव से पहले गांव-गांव घूमकर पदयात्रा करने का फायदा मिल सकता है। पाकुड़ विधानसभा सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय है। कांग्रेस ने यहां अपने विधायक दल के नेता आलमगीर आलम को उम्मीदवार बनाया है, वहीं आजसू ने अकील अख्तर पर दांव खेला है। भाजपा ने यहां आलमगीर के मुकाबले में बेणी प्रसाद गुप्ता को खड़ा किया है। आलमगीर यहां से वर्ष 2005 और 2014 में जीते हैं और अकील अख्तर 2009 में झामुमो के टिकट पर जीते थे। अविभाजित बिहार में 1990 और 1995 में बेणी प्रसाद गुप्ता ने जीत हासिल की थी। राजनीति के जानकारों का कहना है कि यहां भी किसी उम्मीदवार की हार-जीत को लेकर कोई भी आकलन जल्दबाजी होगी। जनता का मूड कब बदल जाये, यह कहना मुश्किल है। इसलिए 81 सीटों पर हार-जीत का सूरते-हाल 23 दिसंबर को पता चलेगा, जब चुनाव के नतीजे घोषित होंगे।

    What will happen to 10 seats Ram Ram
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