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    संथाल में तूफान के पहले की खामोशी

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskDecember 18, 2019No Comments5 Mins Read
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    दुमका से लौटकर राजीव

    रांची। उलगुलान की धरती पर भोंपू का शोर, नेताओं का जोर तो है, लेकिन जनता खामोश है। खामोशी इस कदर कि मानो यह किसी आने वाले तूफान का संकेत हो। हो भी क्यों नहीं, हर दल को पता है कि सत्ता की चाबी संथाल ही देता है। इस क्षेत्र में अगर बेहतर प्रदर्शन हो गया, तो सरकार बननी तय मानी जाती है। शायद इसी को ध्यान में रखकर सभी दलों ने अंतिम आक्रमण के लिए पूरी शक्ति झोंक दी है। यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को दो दिन के अंदर संथाल में दूसरी सभा करनी पड़ी। 15 को दुमका के बाद 17 को बरहेट में भी प्रधानमंत्री ने सभा की। इधर, हेमंत सोरेन, शिबू सोरेन, सुदेश महतो अपने उम्मीदवारों के लिए लगातार तूफानी दौरा कर रहे हैं। अब तो इस अंतिम आक्रमण को लेकर सियासी मैदान में प्रियंका गांधी भी कूदने वाली हैं। वह 18 को पाकुड़ में जनसभा करेंगी। वह आलमगीर आलम के पक्ष में सभा करने आ रही हैं। बता दें कि संथाल में कई दिग्गज अपने राजनीतिक भाग्य को लेकर संजीदा हैं। यह इसलिए हो रहा है कि संथाल की धरती लोकतंत्र के सबसे बड़े महापर्व में खामोश है। कहीं कुछ सामने नहीं आ रहा है। कौन किस पर भारी है, कहना मुश्किल सा लग रहा है। यहां तो ऐसा भी लग रहा है कि कहीं संथाल की ऐतिहासिक धरती पर नयी इबारत न लिखी जाये। जो अपने को सबसे सेफ मान रहे हैं, उनके माथे पर बल है और जो नये खिलाड़ी हैं, उन्हें जीत की आस है। इन सबके बीच सबसे अहम किरदार निभानेवाली जनता चुप्पी तोड़ने का नाम ही नहीं ले रही है। पूरे संथाल में महापर्व के उत्सव का रंग चटक हो चला है। 20 दिसंबर को जनता इवीएम पर फैसले की इबारत का कौन सा रंग लिखेगी, यह तो भविष्य के गर्त में है, लेकिन इतना तय है कि इस बार की फाइट बहुत ही टाइट है।
    सिदो-कान्हू, चांद भैरव और तिलका मांझी की धरती में एक बार फिर इतिहास लिखने की अकुलाहट दिख रही है। उलगुलान की धरती पर रण में उतरे तमाम योद्धा अपने तरकश के हर तीर को छोड़ रहे हैं। बावजूद इसके जनता की चुप्पी इन्हें हलकान किये हुए है। यह खामोशी नयी इबारत लिखने की कहानी भी कह रही है।
    प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यक्रम हो या झारखंड के नेता रघुवर दास, बाबूलाल मरांडी, शिबू सोरेन, हेमंत सोरेन, सुदेश महतो का, जय-जयकार तो सबकी हो रही है, लेकिन स्पष्ट रूझान सामने नहीं आ रहा है।
    संथाल की धरती झामुमो के लिए सबसे उर्वरा धरती रही है। जाहिर है कि यहां की जीत-हार से झामुमो का भविष्य तय होगा। खुद हेमंत सोरेन पिछली बार की तरह इस बार भी दुमका के अलावा बरहेट से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं भाजपा इस जमीन पर कमल खिलाने को बेताब है। पिछले पांच वर्षों में देखा जाये, तो झामुमो की जड़ कुरेदने के लिए भाजपा ने अपनी पूरी ताकत लगा दी है। भाजपा के सबसे बड़े नेताओं ने इस क्षेत्र में सबसे ज्यादा कार्यक्रम किये हैं। मुख्यमंत्री रघुवर दास ने पिछले पांच साल में संथाल के 125 से ज्यादा दौरे किये हैं। केंद्र की भाजपा सरकार हो या राज्य की, यहां सौगातों की भरमार कर दी है। सरकार की सौगात का एहसास भी संथाल की धरती पर होता है। दूसरा पक्ष यह है कि भीषण गरीबी और अशिक्षा का दंश झेल रही जनता को आज भी रोटी-कपड़ा और मकान के जद्दोजहद में सांसें फूल रही हैं। इसका फायदा लगातार राजनीतिक दलों के द्वारा उठाया जा रहा है। इस क्षेत्र में आज भी गुरुजी के प्रभाव से इनकार नहीं किया जा सकता है।
    दुमका, जामा, लिट्टीपाड़ा, शिकारीपाड़ा, बोरियो, बरहेट, अमरापाड़ा, नाला का पूरा क्षेत्र अगर किसी की बात सुनता है, तो वह शिबू सोरेन ही हैं। लेकिन इस बार विकास की ललक इन क्षेत्रों की जनता में दिख रही है। जामताड़ा, दुमका और नाला में यह बात चर्चा में है। शहरी इलाके में भी लोगों के बीच भाजपा की बातों की सुगबुगाहट है।
    यहां की तमाम विधानसभा सीटों पर जनता की खामोशी देखी जा रही है। कहीं कमल खिला-खिला दिख रहा है, तो कहीं तीर-धनुष ने कमल का दम फूला रखा है। वहीं केला और कंघी भी पूरा दम दिखा रहा है। इस इलाके के कई क्षेत्रों में एंटी इन्कम्वैंसी भी हावी दिख रही है। लोकतंत्र के इस महापर्व में लोग मुखर होकर सामने नहीं आ रहे हैं। यही वजह है कि हर पार्टी आकलन करने में असमर्थ दिख रही है। जनता नेताओं के बुलावे पर चुनावी सभा में जुटती तो जरूर है, पर खुलकर कुछ कहती नहीं।
    प्रधानमंत्री के कार्यक्रम के बाद दुमका और बरहेट में भाजपा कार्यकर्ताओं में उत्साह तो बढ़ा है, लेकिन यह कोई कहने की स्थिति में नहीं है कि किसके सिर पर सेहरा बंधेगा। ऐसे में अब देखना दिलचस्प होगा कि जनता की खामोशी इवीएम के बटन पर जाकर ही खुलेगी या फिर मतदान के कुछ घंटे पहले। बहरहाल, संथाल में किसके सिर सजता है ताज और किस पर गिरती है गाज, यह तो 23 दिसंबर को पता चलेगा, लेकिन अब तक स्थिति यही है कि सभी की सांसें फूली हुई हैं। हालांकि हर दल के नेता अपने-अपने दावे कर रहे हैं। नेता भले ही दावा कर लें, फैसला तो जनता को करना है।

    The silence before the storm in Santhal
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