सियासत में नेताओं की तरह-तरह की जो प्रजातियां होती हैं, उसमें एक प्रजाति वह है जो खुद को बड़बोले बयानों से चर्चा के केंद्र में बनाये रखने की कोशिश करता है। जामताड़ा के कांग्रेस विधायक डॉ इरफान अंसारी भी इसी ब्रांड वाले नेता हैं। झारखंड की पांचवीं विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान खुद के मंत्री न बन पाने का मलाल व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था कि चचा लोग आगे-आगे मंत्री बन गये, जबकि काम करनेवाले हमलोग हैं। हालांकि बाद में वे संभले और कहा कि मैं सेवा करने के लिए ही कांग्रेस में हूं और मुझे किसी पद का लोभ नहीं है। जब मैं पैदा हुआ तो पिताजी मंत्री थे। इसी तरह प्रदीप यादव के कांग्रेस में शामिल होने से पहले उन्होंने बयान दिया कि यदि उन्हें पार्टी में शामिल किया गया, तो वे पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष के पद से इस्तीफा दे देंगे। हालांकि बाद में वे अपने बयान से पलट गये। अभी बीते 13 मार्च को राज्यसभा चुनाव के लिए जब महागठबंधन के दूसरे उम्मीदवार के रूप में शहजादा अनवर ने नामांकन दाखिल किया, तो इरफान की जुबान फिर कैंची की तरह चली। उन्होंने झारखंड के कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह के खिलाफ जमकर बयानबाजी की। इरफान तो इरफान, उनके पिता फुरकान अंसारी भी आरपीएन के खिलाफ मोर्चा खोलकर खड़े हो गये और 12 मार्च को उन्होंने कहा कि आरपीएन दो नंबर का आदमी है और वह पार्टी को बेच रहा है। झारखंड को उन्होंने पैसा कमाने का अड्डा बना लिया है। आखिर डॉ इरफान अंसारी और उनके पिता फुरकान अंसारी राजनीति की किस डगर पर निकल पड़े हैं, इसकी तहकीकात करती दयानंद राय की रिपोर्ट।
जरूरत होने पर बोलना अच्छी बात है, पर बड़बोलापन कई बार भारी पड़ जाता है। बात हो रही है झारखंड कांग्रेस के पांच कार्यकारी अध्यक्षों में से एक डॉ इरफान अंसारी की। राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस ने शहजादा अनवर को प्रत्याशी बनाया। शहजादा रामगढ़ जिले के चितरपुर निवासी हैं। पिछले पचीस सालों से कांग्रेस में हैं। दो बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं। राज्यसभा के लिए पार्टी ने उनकी उम्मीदवारी घोषित की तो डॉ इरफान अंसारी आगबबूला हो उठे। उन्होंने अपनी पार्टी के निर्णय पर सवाल उठा दिया। कहा कि कांग्रेस ने जो उम्मीदवार उतारा है, उससे साफ है कि पार्टी ने भाजपा को वाकओवर दे दिया है। अल्पसंख्यकों को सिर्फ बहलाने-फुसलाने के लिए कांग्रेस ने राज्यसभा में प्रत्याशी दिया है। यदि झारखंड कांग्रेस के प्रभारी आरपीएन सिंह ने उन्हें टिकट दिया है तो वे यहां आकर कैंप करें और पार्टी उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करें। अल्पसंख्यक को उम्मीदवार बनाने के पीछे एक बड़ी राजनीति है। जब गोड्डा लोकसभा सीट के लिए फुरकान अंसारी दावेदार थे तब कहा गया था कि उन्हें राज्यसभा का टिकट दिया जायेगा पर पार्टी ने उनके साथ वादाखिलाफी की है। आरपीएन सिंह को निशाने पर लेते हुए उन्होंने कहा कि शहजादा अनवर को राहुल या सोनिया गांधी ने नहीं बल्कि आरपीएन सिंह ने टिकट दिया है। उन्होंने कहा कि बहुमत नहीं फिर भी टिकट दे दिया। क्या पार्टी उम्मीदवार जीतेगा? कहीं ऐसा तो नहीं कि एक समाज को आप बुड़बक बना रहे हैं, मूर्ख बना रहे हैं। गोड्डा लोकसभा सीट पर बात हुई थी और गोड्डा से रामगढ़ की दूरी साढ़े तीन सौ किलोमीटर है। पार्टी में खुद की और पिता फुरकान अंसारी की अनदेखी का आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि आरपीएन सिंह को आज लग रहा है कि पार्टी में हमारी जरूरत नहीं है, पर लोकसभा चुनाव में फुरकान अंसारी को मनाने के लिए उन्होंने क्या कहा था, यह सभी जानते हैं। इरफान ने इतना कुछ बोला तो इसका असर होना था और असर हुआ भी। कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह ने डॉ इरफान अंसारी को नसीहत दी और कहा कि कांग्रेस में ठेकेदारी बंद हो चुकी है और यदि वे मीडिया में बयान देते रहे तो उनपर कार्रवाई होगी। उन्होंने साफ किया कि लोकसभा चुनाव के समय किये गये अपने वादे के अनुसार पार्टी ने अल्पसंख्यक उम्मीदवार को प्रत्याशी बनाया है।
आरपीएन सिंह से खफा हैं डॉ इरफान
डॉ इरफान अंसारी के बयानों के निहितार्थ खंगालें तो उसमें पार्टी के प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह के खिलाफ गुस्सा और व्यंग्य दोनों दिखता है। उन्होंने साफ कहा कि हम तो झूठ बोलनेवाले हैं, वे सत्यवादी हैं। जाहिर है कि उनकी खुन्नस आरपीएन सिंह से है। आरपीएन सिंह से इरफान इसलिए नाराज हैं क्योंकि उन्हें यह लगता रहा है कि गोड्डा लोकसभा सीट पर बीते लोकसभा चुनाव में उनके पिता फुरकान अंसारी को टिकट नहीं मिला तो इसकी वजह आरपीएन सिंह थे और अब राज्यसभा चुनाव में भी उनके पिता की जगह रामगढ़ के कांग्रेस नेता शहजादा अनवर को टिकट मिला तो इसकी भी वजह आरपीएन सिंह हैं। इसलिए उन्होंने कहा कि सोनिया-राहुल ने नहीं बल्कि आरपीएन सिंह ने शहजादा अनवर को टिकट दिया है। राजनीति के गलियारों में चर्चा है कि इरफान के बड़बोलेपन की वजह से उनके पिता का टिकट कटा। यदि वे अपनी आदत से बाज नहीं आये तो उन्हें इसका अंजाम भुगतना पड़ सकता है और आरपीएन सिंह ने इसके संकेत दे दिये हैं। अब प्रदीप यादव से उनकी खुन्नस की वजह भी समझ लीजिए। प्रदीप यादव के कांग्रेस में आने से इरफान इसलिए खफा थे कि महागठबंधन की ओर से लोकसभा चुनाव में गोड्डा सीट पर उनके पिता फुरकान अंसारी की जगह प्रदीप यादव को प्रत्याशी बनाया गया था। इरफान कहीं न कहीं खुद को अपने पिता की राजनीतिक विरासत का स्वाभाविक दावेदार मानते हैं और भविष्य में उनकी नजर गोड्डा लोकसभा सीट पर है।
परिवार से ऊपर नहीं उठ पा रहे इरफान
झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि इरफान अंसारी पितृ मोह और परिवार हित से उबर नहीं पा रहे हैं। वे यह भूल रहे हैं कि पार्टी ने उनके पिता और उन्हें बहुत सम्मान दिया। पार्टी ने उन्हें जामताड़ा से विधानसभा चुनाव का टिकट दिया और प्रदेश में पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बनाया। जहां तक उनके पिता फुरकान अंसारी का सवाल है तो कांग्रेस पार्टी के टिकट पर वे चौदहवीं लोकसभा के लिए सांसद चुने गये। फुरकान अंसारी अब 72 साल के हो चुके हैं। कांग्रेस पार्टी ने उन्हें भरपूर सम्मान दिया है पर वे अब भी अपनी दावेदारी छोड़ना नहीं चाहते। बीते लोकसभा चुनाव में फुरकान अंसारी ने गोड्डा लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने के लिए नामांकन पत्र भी खरीद लिया था पर जब अहमद पटेल ने उन्हें दिल्ली में चुनाव न लड़ने की नसीहत दी तो उन्होंने निर्णय वापस लिया। तब उन्होंने कहा था कि अहमद पटेल ने मना कर दिया है इसलिए वे चुनाव नहीं लड़ेंगे। लोकसभा का चुनाव न लड़ पाने की कसक लिए फुरकान राज्यसभा के टिकट के लिए आतुर थे, पर जब यहां भी उन्हें टिकट से बेदखल होना पड़ो तो उन्होंने भी आरपीएन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।
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