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    Home»Breaking News»झारखंड में हर हाल में बढ़ानी होगी टीकाकरण की रफ्तार
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    झारखंड में हर हाल में बढ़ानी होगी टीकाकरण की रफ्तार

    azad sipahiBy azad sipahiMay 22, 2021No Comments6 Mins Read
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    कोरोना से जंग : सरकार तो प्रयास कर ही रही है, लोगों को भी दिखाना होगा उत्साह

    झारखंड में कोरोना की दूसरी लहर के धीरे-धीरे कमजोर पड़ने के बाद राज्य सरकार जहां तीसरी लहर से मुकाबले के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं को सुदृढ़ बनाने पर फोकस कर रही है, वहीं इसका ध्यान टीकाकरण की ओर भी है। लेकिन एक बात रेखांकित करने लायक है कि एक सप्ताह में महज डेढ़ प्रतिशत युवाओं ने ही टीका लगवाया है। दूसरी तरफ डेढ़ महीने से चल रहे 45 से अधिक उम्र के लोगों के टीकाकरण की रफ्तार भी बहुत संतोषजनक नहीं है। इस अवधि में लक्ष्य का महज 28 फीसदी ही पूरा किया जा सका है, जबकि सरकार और विशेषज्ञों का मानना है कि तीसरी लहर आने से पहले, यानी अगस्त तक राज्य के सवा तीन करोड़ लोगों के टीकाकरण का काम पूरा हो जाना चाहिए। राज्य में टीकाकरण की रफ्तार को प्रचुर बल नहीं मिलने का सबसे बड़ा कारण है मांग के अनुरूप कंपनियों की ओर से झारखंड को टीका की सप्लाई नहीं करना। दूसरा कारण है टीकाकरण के प्रति लोगों की उदासीनता , जिसे हर हाल में दूर करना ही होगा। हमें अगस्त आते-आते झारखंड की एक बड़ी आबादी को टीका से सुरक्षित करना होगा, ताकि झारखंड के प्रत्येक व्यक्ति के पास कोरोना से लड़ने का सबसे कारगर हथियार मौजूद रहे। टीकाकारण की उपलब्धता और टीका के प्रति युवाओं में उत्साह का नहीं होना झारखंड के लिए खतरनाक है। अगर कंपनियों ने आपूर्ति नहीं बढ़ायी और टीकाकरण की वर्तमान रफ्तार से ही अगर टीकाकरण होता रहा, तो युवाओं के टीकाकरण में ही डेढ़ साल से अधिक का समय लगेगा। ऐसे में कोरोना की तीसरी लहर से हम कैसे लड़ पायेंगे, यह विचारणीय है। झारखंड में टीकाकरण की कम रफ्तार का विश्लेषण करती आजाद सिपाही के राजनीतिक संपादक प्रशांत झा की विशेष रिपोर्ट।

    झारखंड में कोरोना टीकाकरण अभियान से जुड़े एक अधिकारी ने बातचीत के क्रम में रूआंसे भाव से कहा कि कोरोना के खिलाफ जारी लड़ाई में राज्य के लोगों का सक्रिय सहयोग नहीं मिल रहा है। वे खुद को ही खतरे में डालने के लिए तैयार हैं, जबकि उन्हें इस महामारी से लड़ने का सबसे कारगर हथियार मुफ्त में दिया जा रहा है। यह पूछे जाने पर कि वह इतने निराश और हताश क्यों हैं, उस अधिकारी ने कहा: हम कई रातों से सोये नहीं हैं। हर जिले में टीका समय से पहुंच जाये और लोग टीकाकरण केंद्र पर आकर टीका लगवा लें, इसके लिए दिन-रात काम कर रहे हैं। हमारी सारी मेहनत और सारी रणनीति पर लोगों की उदासीनता भारी पड़ रही है। उसने यह भी कहा कि हमें जितनी मात्रा में टीका चाहिए, टीका बनानेवाली कंपनियां उतनी नहीं दे पा रही हैं, जिस कारण लोग अपनी पसंद के हिसाब से टीका नहीं लगवा पा रहे हैं। अधिकारी ने यह स्वीकार किया कि राज्य में अभी को-वैक्सीन की सप्लाई कम हो रही है, इसलिए भी रफ्तार कम है।

    इस अधिकारी की बातों में हकीकत है। झारखंड सरकार और यहां के अफसर हर हाल में राज्य को कोरोना के खिलाफ लड़ाई में जीतता हुआ देखना चाहते हैं, इसलिए टीकाकरण अभियान में अपना सब कुछ झोंक रहे हैं। लेकिन कंपनियों का पूरा सहयोग नहीं मिलना और सभी लोगों में टीका के प्रति गंभीरता नहीं होना सचमुच दुखद स्थिति है। वैज्ञानिकों ने बार-बार कहा है कि टीका ही कोरोना से बचाव का सबसे कारगर हथियार है। वैज्ञानिकों का कहना है कि टीका किसी को कोरोना से बचाता नहीं है, लेकिन यह शरीर को इस वायरस से लड़ने की ताकत देता है और संक्रमण होने पर इससे जान जाने की संभावना नहीं के बराबर है। इसी शोध के आधार पर दुनिया के कई देश टीकाकरण अभियान पूरा कर निश्चिंत हो चुके हैं। अमेरिका और इस्राइल जैसे देशों में तो मास्क की अनिवार्यता भी खत्म कर दी गयी है।भारत में कई राज्य जैसे केरल, महाराष्ट्र और असम में टीकाकरण अभियान की रफ्तार बहुत तेज है। इस पैमाने पर जब हम झारखंड के लोगों को देखते हैं, तो निराशा होती है। कारण चाहे जो हो, लेकिन कोरोना का संक्रमण तो कारण देख कर नहीं आयेगा-जायेगा।

    आंकड़ों के आइने में देखें, तो झारखंड के लोगों में टीका के प्रति उत्साह कम नजर आता है। राज्य में 45 से अधिक उम्र के लोगों के लिए टीकाकरण अभियान एक अप्रैल से शुरू किया गया, जबकि करीब एक सप्ताह पहले, यानी 14 मई से 18 से 44 वर्ष के लोगों को टीका लगाने का काम शुरू किया गया है। झारखंड की स्थिति यह है कि 45 प्लस के बुजुर्गों में केवल दो फीसदी ऐसे हैं, जिन्होंने टीके की दोनों खुराक ले ली है। पहली खुराक लेनेवालों की संख्या भी महज 27 फीसदी तक ही पहुंच सकी है। इस रफ्तार से राज्य के करीब एक करोड़ 20 लाख बुजुर्गों को टीका लगाने में अभी और चार महीने का समय लगेगा। राज्य में अभी तक 45 प्लस के करीब 29 लाख लोगों को टीके की पहली खुराक दी गयी है। करीब साढ़े चार लाख लोगों ने दूसरी खुराक भी ली है। ऐसे करीब सात लाख लोग हैं, जिन्हें दूसरी खुराक लेने का समय आ गया था, लेकिन वैज्ञानिकों द्वारा समय के अंतर को बढ़ाने के कारण वे दूसरी खुराक नहीं ले सके। सबसे खराब हालत युवाओं के टीकाकरण की है। राज्य में करीब एक करोड़ 37 लाख युवाओं को टीका लगाना है। पिछले एक सप्ताह में महज डेढ़ फीसदी युवाओं को ही टीका लगाया जा सका है।

    कोरोना की दूसरी लहर भले ही कमजोर पड़ रही है, लेकिन अब सभी का ध्यान तीसरी लहर पर है। सरकार भी इसकी तैयारी में जुटी है, ताकि दूसरी लहर के दौरान सामने आयी गफलत की स्थिति नहीं बने। इसके लिए स्वास्थ्य सुविधाओं पर सरकार का फोकस है। लेकिन इसके समानांतर टीकाकरण अभियान पर भी अधिक ध्यान देने की जरूरत है। यदि समय रहते इस मोर्चे पर काम नहीं किया गया, तो फिर हम लगातार खतरे की ओर बढ़ते रहेंगे। दरअसल, टीकाकरण अभियान का पूरा नियंत्रण राज्य सरकार के हाथ में नहीं है। रजिस्ट्रेशन से लेकर टीके की उपलब्धता तक कई बाधाएं इसकी रफ्तार को रोक रही हैं। इसलिए जरूरत एक ठोस रणनीति बना कर आगे बढ़ने की है। लोगों को टीका लगवाने के लिए प्रोत्साहित करने से लेकर टीकाकरण केंद्रों की संख्या बढ़ाने तक के उपाय किये तो जा रहे हैं, लेकिन उस हिसाब से लोगों का उत्साह सामने नहीं आ रहा है। इसलिए इस पर अधिक तेजी से काम करने की जरूरत है। सरकार के साथ लोगों को भी समझना होगा कि कोरोना के खिलाफ मिल रहे इस हथियार को तत्काल हासिल कर लेना है।

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