मुंबई को देश की वाणिज्यिक राजधानी के साथ-साथ सपनों का शहर भी कहा जाता है, क्योंकि यहां सपनों को पंख मिलते हैं और उन सपनों को कभी न सोनेवाला यह महानगर उड़ान का हौसला देता है। मुंबई की खासियत फिल्मी कहानियों, गीतों से लेकर उपन्यासों तक कई बार दुनिया के सामने रखी जाती रही है। यही कारण है कि 130 करोड़ लोगों का यह देश अपने इस महानगर पर गर्व करता है, उसके
Author: azad sipahi desk
कोरोना वायरस ने दुनिया भर को हिला कर रख दिया है। बड़ी-बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की जड़ें हिल चुकी हैं और आर्थिक गतिविधियां ठप होने के कारण हर तरफ हाहाकार मचा है। ऐसे में लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जानेवाला मीडिया उद्योग भी इससे अछूता नहीं है। दुनिया की कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाएं बंद हो चुकी हैं या उनमें छंटनी का दौर चल रहा है। भारतीय मीडिया का परिदृ्श्य भी कुछ इसी
महात्मा गांधी को भगवान माननेवाले झारखंड के टाना भगत पिछले तीन दिन से आंदोलन पर हैं। उन्होंने अपनी मांगों को पूरा करने के लिए लातेहार के चंदवा के पास रेलवे लाइन को जाम कर दिया है। अपने परिवारों के साथ सत्याग्रह कर रहे इन टाना भगतों ने प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा दिये गये आश्वासन को मानने से इनकार कर दिया है और सीधे मुख्यमंत्री-राज्यपाल से लिखित आश्वासन मां
रांची स्थित राज्य के सबसे बड़े अस्पताल, यानी रिम्स एक बार फिर सुर्खियों में है। इस संस्थान ने अच्छे काम के लिए जितनी सुर्खियां बटोरी हैं, उससे कई गुना अधिक इसकी चर्चा विवादों की वजह से होती रही है। इस बार भी विवादों के कारण राज्य के इस प्रतिष्ठित संस्थान की चर्चा हो रही है। वास्तव में इस संस्थान की सारी व्यवस्थाएं बेपटरी हो चुकी हैं और यहां मरीजों का इलाज कम
युवा और प्रतिभाशाली अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की संदिग्ध मौत का मामला बेहद रहस्यमय होता जा रहा है। हालांकि 12 दिन से गहन जांच और पूछताछ के बीच देश की सर्वश्रेष्ठ जांच एजेंसी सीबीआइ किसी ठोस नतीजे पर पहुंचने की दिशा में बढ़ रही है। लेकिन इस मामले में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के एक्शन में आने के बाद पूरी दुनिया की जुबान पर एक बार फिर झारखंड का नाम चढ़ गया है। ऐसा इसलिए हुआ है, क्योंकि एनसीबी की कमान एक झारखंडी अधिकारी के हाथों में है। इस अधिकारी का नाम है राकेश अस्थाना। राकेश अस्थाना झारखंड में ही जन्मे और यहीं उन्होंने अपनी शिक्षा ग्रहण की। राकेश
कोरोना महामारी के कारण पिछले साढ़े पांच महीने से जारी लॉकडाउन के बीच बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारियां सियासी महकमों में पूरे जोर-शोर से चल रही हैं। अक्टूबर-नवंबर में होनेवाले चुनाव में राज्य विधानसभा की 243 सीटों पर सत्ताधारी एनडीए का मुकाबला राजद के नेतृत्व में आकार ले रहे महागठबंधन से होना लगभग तय है। इस सीधे मुकाबले में किसका पलड़ा भारी रहेगा, इ
तमाम ऊहापोह, राजनीतिक दांव-पेंच, मान-मनुहार के बावजूद देश के आठ लाख से अधिक बच्चों को हमारे सिस्टम ने स्वास्थ्य संबंधी उस खतरे में झोंक दिया है, जिसे लेकर पिछले कुछ दिन से चिंता व्यक्त की जा रही थी। ये बच्चे एक सितंबर को इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश पाने के लिए संयुक्त प्रवेश परीक्षा में शामिल होंगे। अपने घर से, अभिभावकों से मीलों दूर अंजान शहर में कोरोना महामारी के खतरे के बीच इन बच्चों के जेहन में एक ही सवाल उठ रहा होगा कि आखिर हमारे भविष्य के साथ यह खि
साढ़े पांच महीने के लॉकडाउन के बाद अब देश चौथे चरण के अनलॉक के दरवाजे पर पहुंच गया है। सरकार की ओर से लगभग सभी गतिविधियों को शुरू करने की अनुमति दे दी गयी है। केवल शिक्षण संस्थान, स्वीमिंग पूल और इसी तरह की कुछ गतिविधियों पर पाबंदी जारी रहेगी। इस रियायत का यह मतलब कतई नहीं निकाला जाना चाहिए कि कोरोना संक्रमण का खतरा पूरी तरह खत्म हो गया है या कम हो गया है। आज भी यह खतरा हमारे सामने पहले से कहीं अधिक विकराल रूप
झारखंड में कोरोना संक्रमण का पहला मामला मिलने के पांच महीने बाद राज्य सरकार ने स्वास्थ्य के मोर्चे पर बड़ा कदम उठाया है और निजी अस्पतालों में कोरोना के इलाज की अधिकतम दर तय कर दी गयी है। सरकार ने सख्त ताकीद की है कि यदि निर्धारित दर से अधिक
कोरोना संकट के दौर में पूरे देश और राज्यों में सबसे अधिक दबाव स्वास्थ्य सेवाओं और सामाजिक मोर्चे पर है। हालांकि मार्च से लेकर अब तक की पांच महीने की अवधि में राज्यों की स्वास्थ्य सेवाओं ने उल्लेखनीय काम किया है। राष्ट्रीय स्तर पर भी हम पश्चिमी देशों से बहुत पीछे नहीं हैं। लेकिन इस उपलब्धि का एक और पहलू यह भी है कि हिंदी पट्टी के प्रदेशों में कोरोना संक्रमण तेजी से फैल रहा है। यह दीगर है कि संक्रमण से मुक्त होने की दर संतोषजनक है।
देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के भीतर का बवंडर शांत होने का नाम नहीं ले रहा है। कांग्रेस के 23 वरिष्ठ नेताओं ने जो ‘लेटर बम’ फोड़ा, उसकी आवाज तो कार्यसमिति की बैठक में किसी तरह दबा दी गयी, लेकिन उस बम से निकले बारूद की गंध आनेवाले कई दिनों तक इस ग्रैंड ओल्ड पार्टी को अपनी चपेट में लिये रहेगी। 135 साल पुरानी कांग्रेस आज एक बार फिर दोराहे पर आकर खड़ी हो गयी है।