झारखंड में राजनीतिक पुरुषों का जेल से गहरा नाता रहा है। काली कोठरी ने जहां कई नेताओं के राजनीतिक करियर को चमक दी है, वहीं कई ऐसे नेता हैं, जिन्होंने जेल यात्रा के बाद सियासत के क्षितिज पर अवसान भी देखे हैं। इस विधानसभा चुनाव में भी कई क्षेत्रों के चुनावी खेल में जेल का फैक्टर बेहद अहम साबित होगा। जेल में बंद हार्डकोर नक्सली कमांडर कुंदन पाहन ने कोर्ट से चुनाव लड़ने की इजाजत मांगी है, जबकि तमाड़ के विधायक रहे रमेश सिंह मुंडा की हत्या के आरोप में जेल में बंद पूर्व मंत्री एवं पूर्व विधायक राजा पीटर को एनआइए कोर्ट ने चुनाव लड़ने की इजाजत दे दी है। अगर कुंदन पाहन को इजाजत मिल गयी, तो तमाड़ विधानसभा क्षेत्र एक साथ दो जेलबंदियों के सियासी टकराव का उदाहरण बनेगा। इधर राष्ट्रीय खेल घोटाले में जेल में बंद पूर्व मंत्री और विधायक बंधु तिर्की ने अदालत में बेल पिटीशन दायर की है। बेल मिले या ना मिले, उनका मांडर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ना तय माना जा रहा है। चारा घोटाला में झारखंड में जेल की सजा काट रहे राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद का भी झारखंड की चुनावी हलचल से पल-पल का नाता रहेगा। बड़कागांव के पूर्व कांग्रेस विधायक योगेंद्र साव और झरिया के भाजपा विधायक संजीव सिंह जेल में बंद रहने के बावजूद चुनावी समीकरणों की अहम धुरी रहेंगे। हाल में जेल से निकले झारखंड विकास मोर्चा के विधायक प्रदीप यादव और पूर्व भाजपा विधायक उमाशंकर यादव अकेला चुनावी अखाड़े में जोर-आजमाइश के लिए कमर कस चुके हैं, तो कालकोठरी की सजा काटकर रिहा हुए पूर्व विधायक आजसू नेता कमल किशोर भगत लोहरदगा के चुनावी मैदान में उतरने को तैयार अपनी पत्नी के लिए और जमानत पर छूटे झारखंड के पूर्व मंत्री और झारखंड पार्टी के नेता एनोस एक्का कोलेबिरा में अपनी बेटी के लिए जोर लगायेंगे। उधर झारखंड की राजनीति में सियासत और जेल के रिश्ते का ताना-बाना पर पैनी निगाह डालती राजनीतिक विश्लेषक शंभु नाथ चौधरी की रिपोर्ट।
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विधानसभा चुनाव से ठीक पहले टिकट की समस्या हर दल में विकट हो चुकी है। हाल यह है कि हर दल में, चाहे वह सत्तारूढ़ भाजपा हो या उसकी सहयोगी आजसू, प्रमुख विपक्षी झामुमो हो या कांग्रेस या फिर झाविमो, सभी में टिकट को लेकर एक अनार और सौ बीमार की स्थिति है। भाजपा में टिकट के बंटवारे की समस्या गंभीर इसलिए हो गयी है, क्योंकि इस पार्टी में एक-एक विधानसभा क्षेत्र के लिए कई कद्दावर दावेदार हैं। ऐसे में टिकट का बंटवारा भाजपा के प्रदेश नेतृत्व और आलाकमान दोनों के लिए आसान नहीं रह गया है। हालांकि पार्टी ने टिकट के बंटवारे की प्रक्रिया को आसान और कार्यकर्ताओं के मिजाज के अनुरूप बनाने के लिए उनके साथ रायशुमारी की है, पर यह लगभग तय है कि टिकट बंटवारे के बाद हर नेता और कार्यकर्ता को खुश करना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। झारखंड में टिकट बंटवारे से पूर्व भाजपा की चुनौतियों और उसके संभावित परिणामों को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।
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