फिल्मों में कमाई का जो रिकार्ड एसएस राजमौली की प्रभाष स्टारर फिल्म बाहुबली ने बनाया। सदस्य संख्या के लिहाज से कुछ उसी तरह का कीर्तिमान देश और झारखंड में सत्तारूढ़ भाजपा ने बनाया है। झारखंड में उसके सदस्यों की संख्या 41 लाख पहुंच गयी है। इनमें 23 लाख पहले से सदस्य हैं और 18 लाख लोगों को पार्टी ने सदस्यता अभियान चला कर जोड़ा है। देश के स्तर पर बात करें, तो 18 करोड़ से अधिक सदस्यों वाली भाजपा देश की इकलौती सबसे बड़ी पार्टी है। सदस्यों के लिहाज से झारखंड में भी भाजपा नंबर वन पार्टी हो गयी है, क्योंकि पार्टी के लाखों सदस्यों के बाहु का बल तो पार्टी में समाहित हो ही गया है। देश के साथ झारखंड में भी भाजपा बाहुबली हो गयी है। खास तो यह है कि पार्टी ने यह सफलता बहुत कम दिनों मेंं हासिल की है और भाजपा से जुड़ने का उत्साह आम लोगों में भी लगातार बढ़ रहा है। एक ओर विभिन्न दलों के नेता दूसरी पार्टी से भाजपा में आ रहे हैं, वहीं भाजपा के सदस्य बनने वाले लोग इसकी मेंबरशिप को फेसबुक पर शेयर भी कर रहे हैं। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मण गिलुआ ने कहा कि हमने 25 लाख नये सदस्य बनाने का लक्ष्य रखा था और अब तक लगभग 18 लाख नये सदस्य बन चुके हैं। भाजपा आॅफलाइन और आॅनलाइन मोड में सदस्य बना रही है और इसके सत्यापन का काम भी चल रहा है। इतने सदस्य बनाने के पीछे भाजपा की क्या है रणनीति और उसका कितना असर पड़ेगा चुनावों पर, प्रकाश डाल रहे हैं वरीय संवाददाता दयानंद राय।
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10 दिन में विधानसभा की आधी सीटों को कर लिया कवर
झारखंड में विधानसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच विपक्षी खेमे का माहौल बेहद तनावपूर्ण है। यहां एक मठ में इतने अधिक जोगी हो गये हैं कि हर कोई दूसरे पर आंखें तरेर रहा है। गठबंधन की कमान चूंकि झामुमो के पास है, इसलिए सबसे अधिक परेशानी उसको ही है। लोकसभा चुनाव में शिबू सोरेन की अप्रत्याशित हार के बाद से झामुमो में नये युग का आगाज हुआ है और हेमंत सोरेन के नेतृत्व को लगातार अपने ही सहयोगी दलों से चुनौती मिल रही है। पहले बाबूलाल मरांडी और फिर कांग्रेस के बाद अब राजद की ओर से तेजस्वी यादव ने भी गठबंधन को चुनौती दे दी है। अपने सहयोगी दलों के इस रवैये से हेमंत सोरेन कहीं न कहीं परेशान जरूर हो रहे हैं, क्योंकि यह चुनाव उनके लिए करो या मरो जैसा है। एक तरफ भाजपा बूथों की मैपिंग के स्तर तक पहुंच गयी है, तो दूसरी तरफ हेमंत सोरेन अपने सहयोगी नेताओं की धमकियों से जूझ रहे हैं। उनके सामने यह खतरा है कि अधिक संख्या में जोगी होने से कहीं मठ ही न उजड़ जाये। विपक्षी खेमे में इस असहज परिस्थिति के संभावित परिणाम पर दयानंद राय की खास रिपोर्ट।
झारखंड में विधानसभा चुनाव की तैयारियां जोरों पर है। सत्ता में वापसी के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करने में जुटी भाजपा इस बार हर हाल में जीतना चाहती है। इसके लिए वह अपना घर तो मजबूत कर ही रही है, विरोधियों को कमजोर करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है। भाजपा के लिए झारखंड कितना महत्वपूर्ण है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि लोकसभा चुनाव के बाद से पार्टी के कम से कम आधा दर्जन नेता राज्य में प्रवास कर चुके हैं। झारखंड में विरोधियों को ‘चेक मेट’ करने के अभियान में पार्टी के केंद्रीय नेता जुटे हुए हैं। जातीय समीकरणों को खासा तवज्जो दिया जा रहा है और अलग-अलग नेताओं को अलग-अलग जातियों के नेताओं से बात करने की जिम्मेवारी सौंपी गयी है। इतना ही नहीं, भाजपा ने उन बूथों की पहचान की है, जहां से उसे बढ़त हासिल नहीं होती है। उन बूथों के लिए अलग-अलग लोगों को तैनात किया जा रहा है। दूसरे शब्दों में कहें, तो भाजपा इस बार साम-दाम-दंड-भेद, सभी हथियारों का इस्तेमाल करने के लिए पूरी तरह तैयार दिखती है। भाजपा की चुनावी तैयारियों और झारखंड की राजनीति में होनेवाली उथल-पुथल पर आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
झारखंड विधानसभा में 65 प्लस का लक्ष्य लेकर उतरने की तैयारी कर रही सत्तारूढ़ भाजपा इस बार कोई रिस्क लेने के मूड में नहीं है। पार्टी ने लोकसभा चुनाव में बंपर जीत हासिल करने के बाद विधानसभा चुनाव में इस रिकॉर्ड को तोड़ने की तैयारी में है। ऐसे में स्वाभाविक तौर पर पार्टी नेतृत्व एक-एक सीट और एक-एक बूथ पर ध्यान केंद्रित कर रहा है। पार्टी की चुनाव तैयारियों का अंदाजा इसी बात से मिल जाता है कि इसने एक-एक बूथ की मैपिंग कर ली है और एक-एक विधायकों के कामकाज के बारे में एक सर्वे रिपोर्ट तैयार कर ली है। इस सर्वे रिपोर्ट पर केंद्रीय चुनाव समिति मंथन कर रही है। पार्टी ने ऐसा ही सर्वे लोकसभा चुनाव से पहले भी किया था। चूंकि विधानसभा में सीटें अधिक हैं और चुनाव राज्य के मुद्दों पर होना है, इसलिए भाजपा इस सर्वे को तवज्जो दे रही है। इस सर्वे में भाजपा के कई विधायकों के कामकाज को असंतोषजनक पाया गया है। इसलिए पार्टी के विधायकों की नींद उड़ गयी है। भाजपा की सर्वे रिपोर्ट और इसके संभावित परिणाम पर नजर डालती दयानंद राय की खास पेशकश।
मनोज यादव, बादल पत्रलेख और बिट्टू सिंह को भी अपने पाले में लाना चाहती है भाजपा
विनोबा भावे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो रमेश शरण और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के बीच गहराता जा रहा है। सोमवार को रांची विश्वविद्यालय परिसर में जो भी हुआ, उससे शिक्षा और उससे जुड़ी मर्यादाएं ही तार-तार नहीं हुईं, बल्कि गुरु-शिष्य का रिश्ता कलंकित हुआ तथा गुरुकुल की परंपरा की हंसी भी उड़ी। कौन गलत है, कौन सही, यह तो सक्षम लोग ही तय कर सकते हैं, पर जो बीज बोये जा रहे हैं, वे छात्र और देश के भविष्य के लिए कहीं से भी उचित नहीं है। मामला अब सिर्फ विवाद भर नहीं रह गया है। पानी सिर से ऊपर जा चुका है। ऐसे में अब सक्षम पदाधिकारियों को यह देखने की जरूरत है कि आखिर चूक कहां है। यदि कुलपति कहीं से भी गलत हैं, तो राज्यपाल को कार्रवाई करनी चाहिए। यदि छात्र गलत हैं, तो भाजपा को उन्हें रोकने की पहल करनी चाहिए। इतना ही नहीं, यदि कुलपति प्रो रमेश शरण को लगता है कि उन्हें विवादों में धसीटा जा रहा है और उनमें स्वाभिमान है, तो आगे बढ़ कर पद छोड़ क्यों नहीं देते। एक महीने से चल रहे इस विवाद पर राजभवन की चुप्पी भी समझ से परे है। कुल मिला कर इस मामले से पूरे देश में झारखंड की ही छवि धूमिल हो रही है। पेश है आजाद सिपाही की विशेष रिपोर्ट।
झारखंड की सत्ता पर काबिज होने के लिए छटपटा रहे झारखंड के सबसे बड़े क्षेत्रीय दल झामुमो अपने पहाड़ जैसे प्रतिद्वंद्वी के मुकाबले के लिए हर दांव अपना रहा है। लोकसभा चुनाव में अपने गढ़ संथाल की राजधानी दुमका से पार्टी सुप्रीमो शिबू सोरेन की हार के बाद यह साफ हो गया कि झामुमो में दिशोम गुरु का युग अब अंतिम सांस ले रहा है। शिबू सोरेन के राजनीतिक उत्तराधिकारी और झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन ने पार्टी को नये सिरे से खड़ा करने की कवायद तेज भी कर दी है। इस क्रम में उन्होंने झारखंड के सबसे ताकतवर गैर-आदिवासी जातीय समूह कुर्मियों की पार्टी के प्रति नाराजगी दूर करने की कोशिश शुरू की है। इसके तहत उन्होंने जमशेदपुर के आस्तिक महतो को पार्टी का सचिव बना कर कुर्मी समाज को एक संदेश देने की कोशिश की है। आस्तिक की प्रोन्नति से इस धारणा को भी बल मिला है कि झामुमो में अभी गुरुजी का दौर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। हेमंत सोरेन के इस कदम राजनीतिक असर का आकलन करती दयानंद राय की खास रिपोर्ट।
रांची। भाजपा झारखंड की 65 से अधिक विधानसभा सीटों पर कमल खिलाने की तैयारियों में जुटी हुई है। कमजोर विपक्ष और बीते लोकसभा चुनावों में 12 सीटों पर जीत हासिल करनेवाली भाजपा इस लक्ष्य के लिए आत्मविश्वास से लबरेज है। पार्टी के झारखंड चुनाव प्रभारी ओमप्रकाश माथुर और सह प्रभारी भाजपा की 65 प्लस की लक्ष्य की घोषणा भी कर चुके हैं। पार्टी यह लक्ष्य आसानी से हासिल कर पायेगी या यह सिर्फ दावा साबित होगा, यह तो विधानसभा चुनाव 2019 के नतीजे बतायेंगे लेकिन जिस तरह से झारखंड में विपक्ष बिखरा हुआ है, उसमें भाजपा के लिए यह लक्ष्य मुश्किल भी नहीं लगता। इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए क्या होगी भाजपा की रणनीति, इस पर दयानंद राय की विशेष रिपोर्ट।
रांची। भाजपा इस बार विधानसभा में 65 पार की जिद के साथ चुनावी समर में कूद चुकी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की भी सीधी नजर अभी झारखंड फतह पर है। 65 पार के लिए मोदी और शाह का तगड़ा पंच अगले 30 दिन में लगनेवाला है। इस दौरान झारखंड की धरती पर मोदी-अमित शाह समेत जेपी नड्डा, ओम माथुर, नंदकिशोर यादव इस लक्ष्य को भेदने के लिए व्यूह बनायेंगे। रघुवर दास के नेतृत्व में होनेवाले चुनाव में भाजपा के सपने को पंख भी लगनेवाला है। इस पर प्रस्तुत है राजीव की रिपोर्ट।
प्रदेश अध्यक्ष के लिए किसी एक नाम पर सहमति नहीं बना सके आरपीएन सिंह