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झारखंड की सबसे पुरानी और मजबूत पार्टी होने का दावा करनेवाले झारखंड मुक्ति मोर्चा की शिथिलता राज्य के लोगों के लिए कौतूहल का विषय है। आंदोलन की आंच में तप कर जो पार्टी अलग राज्य के आंदोलन में अगली कतार में थी, महज दो दशक के बाद ही इतनी कमजोर और लुंज-पुंज कैसे हो गयी, यह सवाल लोगों के मन में कौंध रहा है। लोकसभा चुनाव में अपने सबसे बड़े नेता की हार से झामुमो सकते में है। यही कारण है कि 23 मई के बाद से ही पार्टी चुप हो गयी है। यह स्थिति तब है, जब राज्य में अगले चार-पांच महीने में विधानसभा चुनाव होना है और उसमें विपक्षी गठबंधन की कमान झामुमो के हाथों में होगी। झामुमो अब तक यही तय नहीं कर पाया है कि वह किन मुद्दों के साथ विधानसभा चुनाव में मतदाताओं के सामने जायेगा। पार्टी नेतृत्व के पास ऐसा कोई मुद्दा नहीं है और न ही सत्तारूढ़ भाजपा ने उसे ऐसा कोई मौका ही मुहैया कराया है। लोकसभा चुनाव में अपने दरकते जनाधार को बचाने के साथ विधानसभा चुनाव की चुनौतियों के लिए झामुमो कितना तैयार है, इसका आकलन करती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की रिपोर्ट।

रांची। झारखंड में महागठबंधन के बन रहे ताने-बाने के बीच सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। या यूं कहा जाये कि महागठबंधन में आल इज नॉट वेल, तो गलत नहीं होगा। कारण महागठबंधन की पहली बैठक में जो सीट जिसकी, वह दल उस पर लड़ेगा के चुनावी फार्मूले के दूसरे ही दिन झामुमो विधायक दल की बैठक के बाद हेमंत सोरेन ने 41 सीटों पर दावा कर दिया है। इसके बाद से लगे हाथ कांग्रेस ने भी 30 सीटों पर दावेदारी कर दी है। इस कारण सीटों पर सियासत उलझती नजर आ रही है। अब सवाल है कि महागठबंधन में बाकी बचे दलों का क्या होगा। आखिर इसमें बड़ा दिल कौन दिखायेगा। कारण होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले विपक्षी महागठबंधन की परीक्षा की घड़ी है। झामुमो ने जैसे ही 41 सीटों पर अपना दावा जताया, तो महागठबंधन के साथी बिफर पड़े। गठबंधन के साथी जेएमएम और हेमंत सोरेन को ही नसीहत देने लगे। ऐसे में एक बार फिर सवाल उठने लगा है कि क्या झारखंड में महागठबंधन में सीटों का पेंच सुलझ पायेगा। इन तमाम पहलुओं पर विवेचना कर रहे हैं राजीव।

आज खबर विशेष में हम बताने जा रहे हैं झारखंड के सबसे बाहुबली और चर्चित परिवार में दो भाइयों के बीच छिड़ी जंग की। आज सिंह मेंशन में मौजूद दो भाई और सूर्यदेव सिंह के वंशज झरिया विधायक संजीव सिंह और उनके छोटे भाई सिद्धार्थ गौतम उर्फ मनीष सिंह आमने-सामने हो गये हैं। दोनों के बीच तनाव इतना बढ़ चुका है कि कभी भी खूनखराबा हो सकता है। दोनों भाइयों के तनाव पर सिर्फ परिवार ही नहीं, राजनीतिक दलों और पूरे कोयलांचल की नजरें भी गड़ी हैं। कहा जा रहा है कि एक ग्रुप की नजरें खास तौर पर सिंह मेंशन पर गड़ी हैं, जो इस परिवार को मटियामेट कराने पर तुला है। दोनों भाइयों के बीच अब विवाद इतना बढ़ चुका है कि किसी भी दिन उनके समर्थकों के बीच गोली बारी की खबरें आ सकती हैं। पेश है आजाद सिपाही की एक रिपोर्ट।

आज के खबर विशेष में हम चर्चा कर रहे हैं झारखंड मुक्ति मोरचा और विपक्षी दलों के बीच पनप रहे रिश्तों के नये रंग की। बुधवार को राजधानी में झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन के आवास पर विपक्षी दलों की एक महत्वपूर्ण बैठक हुई। इसे महत्वपूर्ण कहना इसलिए उचित होगा कि विधानसभा चुनाव की तैयारियों को लेकर विपक्षी दलों की यह पहली संयुक्त बैठक है, जो लोकसभा चुनाव के बाद हुई। इस बैठक के बाद जो नयी बात देखने को मिली वह यह कि झामुमो कहीं न कहीं 50 फीसदी सीटों के दावे से पीछे हटता दिख रहा है। यह बड़ी बात है। बैठक के बाद पत्रकारों से बात करते हुए भी हेमंत सोरेन के सुर नरम दिखे। हालांकि इसके कई कारण हो सकते हैं। पर गौरतलब बात है कि उनका अंदाज बदला हुआ था। बैठक की जानकारी देते हुए उन्होंने बताया कि 32 सीटें जो फिलहाल विपक्ष के पास हैं, वे यथावत रहेंगी। यानी जिन दलों के उम्मीदवार वहां से जीते हैं, उन पर उनका ही अधिकार रहेगा। अब संबंधित दल उम्मीदवार बदले ना बदलें, उन पर निर्भर है। इसके अलावा छह सीटें, जो झाविमो के खाते में गयी थीं, पर जीते हुए विधायक पाला बदल कर बीजेपी में चले गये, वे भी यथावत रहेंगी। यह बड़ा निर्णय है और बताता है कि विपक्षी दलों में कहीं न कहीं झामुमो का दबदबा कम हुआ है। इसके कई कारण हो सकते हैं। पर इसका सीधा प्रभाव आगामी विधानसभा चुनाव पर पड़ने जा रहा रहा है, यह स्पष्ट है। पेश है हमारे समन्वय संपादक दीपेश कुमार की रिपोर्ट।

रांची/खूंटी। खूंटी के कोचांग में देशतोड़क पत्थलगड़ी के अगुआ रहे ग्राम प्रधान सुखराम की शनिवार देर रात गोली मार कर…

एकरा मसजिद के पास दो युवकों पर जानलेवा हमला
मेडिका में हो रहा इलाज, पहुंचे सांसद-मंत्री, परिजनों को बढ़ाया ढांढस
दुकान बंद कर घर जा रहे थे विवेक-दीपक, भीड़ ने नाम पूछा और फुटबॉल की तरह उछाल-उछाल कर पीटा
हेथू की घटना अगर मॉब लिंचिंग है, तो फिर एकरा मसजिद की घटना को क्या कहेंगे

देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस के सिर से एक बार फिर गांधी-नेहरू परिवार का साया उठ गया है। लोकसभा चुनाव में करारी हार के फौरन बाद राहुल गांधी ने पार्टी कार्यसमिति के सामने पार्टी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का प्रस्ताव दिया था और तीन जुलाई को उन्होंने औपचारिक रूप से पद छोड़ दिया। इसके साथ ही कांग्रेस आज की तारीख में न केवल अध्यक्ष विहीन हो गयी है, बल्कि इसकी कमान भी अब गांधी-नेहरू परिवार के हाथों में नहीं रही। आजादी के बाद यह चौदहवां मौका है, जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर इस परिवार का कोई सदस्य नहीं है। अंतिम बार 1996 में इस परिवार के बाहर के सीताराम केसरी को अध्यक्ष बनाया गया था। 1998 में उन्हें हटा कर सोनिया गांधी ने यह पद संभाला और पिछले डेढ़ साल से राहुल गांधी इस पद पर थे। अब जबकि राहुल गांधी ने पद छोड़ दिया है, कांग्रेस के भविष्य पर सवालिया निशान लग गया है। चर्चा इस बात की हो रही है कि अब इस पार्टी का क्या होगा। आखिर राहुल गांधी को पद क्यों छोड़ना पड़ा और उनके बाद कांग्रेस का भविष्य क्या है, इन सवालों का जवाब तलाशती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की रिपोर्ट।

रांची। झारखंड के विधायकों का विवादों से गहरा नाता रहा है। खासकर यौन शोषण के आरोप न पर खूब लगते रहे हैं। झाविमो विधायक दल के नेता प्रदीप यादव अभी यौन शोषण का आरोप झेल रहे हैं। देवघर की पुलिस उन्हें गोड्डा से रांची तक वारंट लेकर तलाश रही है। लेकिन वह अभी तक पुलिस के हाथ नहीं आये हैं। वैसे, झारखंड में अब तक आधा दर्जन माननीयों पर यौन उत्पीड़न का सीधा आरोप लग चुका है। इतना ही नहीं, एक दर्जन से अधिक नेताओं की चर्चा भी राजनीतिक गलियारे में खूब धूम मचायी, लेकिन यह पब्लिक डोमेन में नहीं आ पाया। झारखंड गठन के बाद से खादी पर दाग लगने की शुरुआत हुई। वैद्यनाथ राम, सत्यानंद झा बाटुल, शिवपूजन मेहता और ढुल्लू महतो भी इन आरोपों को झेल चुके हैं। यहां की राजनीति के लिए यह कोई नयी बात नहीं है। आरोप और राजनीति का झारखंड में चोली-दामन का साथ है। समय-समय पर सत्ता के गलियारे में ऊंची पहुंच रखनेवाले राजनेताओं की खादी पर गंदगी के धब्बे लगते रहे हैं। आज उन्हीं राजनेताओं पर प्रकाश डाल रहे हैं दीपेश कुमार।

राजनीतिक रूप से संवेदनशील बिहार में सत्तारूढ़ नीतीश कुमार अजीब धर्म संकट में फंसे हैं। मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल की शुरुआत में भाजपा से उनकी दूरी के बाद यह संकट और गहरा गया है। सुशासन बाबू के नाम से प्रसिद्ध नीतीश कुमार लोकसभा चुनाव के बाद यह सोच रहे हैं कि उनकी लोकप्रियता राज्य में बढ़ी है, लेकिन हकीकत इसके एकदम विपरीत है। नीतीश ने बेशक लोकसभा चुनाव में 16 सीटें जीतीं, लेकिन यह जीत उन्हें भाजपा के कंधे पर सवार होने के कारण मिली। अब राज्य में विधानसभा चुनाव होना है। इसमें ही नीतीश की असली परीक्षा होगी। राजनीतिक रूप से नीतीश एक ऐसे तिराहे पर खड़े हैं, जहां का हर रास्ता उनके राजनीतिक कैरियर की गिरावट की ओर ही जाता है। नीतीश कुमार की इस स्थिति पर आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

झारखंड के कोल्हान प्रमंडल की स्थिति बेहद खराब हो गयी है। लोकसभा चुनाव का परिणाम आने के बाद से इस इलाके में कानून-व्यवस्था की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। सरायकेला में मॉब लिंचिंग की घटना से पूरी दुनिया में चर्चा में आये कोल्हान में पिछले एक महीने के दौरान कई ऐसी वारदातें हुई हैं, जो पहले झारखंड में नहीं हुई थीं। दो साल पहले भी बच्चा चोर गिरोह की अफवाह इसी इलाके से शुरू हुई थी और कम से कम आठ लोगों की हत्या हुई थी। आखिर झारखंड के सबसे समृद्ध और विकसित इलाके को किसकी नजर लग गयी है, या यह सब किसी सोची-समझी साजिश का हिस्सा है। कोल्हान प्रमंडल की चिंताजनक स्थिति पर आजाद सिपाही एसआइटी की खास रिपोर्ट।