झारखंड में जमीन की राजनीति खूब होती है। यहां उस ‘जमीन’ की बात नहीं होती, जिसे जनता से जुड़ाव के अर्थ में लिया जाता है, बल्कि उस ‘जमीन’ की बात हो रही है, जिस पर अट्टालिकाएं खड़ी होती हैं और उद्योग-धंधे लगते हैं, यानी रीयल इस्टेट की। आज से करीब 20 साल पहले जब झारखंड बना, तो यहां दो चीजें बहुत तेजी से उभरीं और फैलती चली गयीं।
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आज भारत के लिए और इसके 130 करोड़ लोगों के लिए गौरव का दिन है। पिछले 18 दिन से अपने 20 जांबाजों की शहादत से गुस्से में उबल रहे देश की छाती को आज तीन जुलाई को उस समय बड़ा सरप्राइज मिला, जब प्रधानमंत्री खुद सीमा की रक्षा में जुटे मां भारती के सपूतों से मिलने लेह पहुंच गये। प्रधानमंत्री ने देश को जहां बड़ा सरप्राइज दिया है, वहीं दुश्मनों को साफ चेतावनी दे दी है कि यह नया भारत है, जो किसी की हेकड़ी को बर्दाश्त नहीं करेगा।
कोयले की कमर्शियल माइनिंग के खिलाफ कोयला उद्योग में तीन दिवसीय हड़ताल शुरू हो गयी है। बहुत दिनों के बाद यह पहला मौका है, जब मजदूर संगठन किसी मुद्दे पर एकजुट हुए हैं और हड़ताल के कारण गुरुवार को कोयले का उत्पादन और डिस्पैच पूरी तरह बंद रहा। कोयला उद्योग में इस हड़ताल का झारखंड में खासा महत्व है, क्योंकि देश को ऊर्जा के इस प्रमुख स्रोत की सबसे बड़ी आपूर्ति यहीं से होती है। स्वाभाविक तौर पर कोयले का झारखंड की राजनीति पर भी गहरा असर रहता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में बड़ा एलान किया। उन्होंने कोरोना संकट के कारण देश में चल रही प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को नवंबर तक जारी रखने की घोषणा की, जिसके तहत देश भर के 80 करोड़ जरूरतमंद लोगों को अगले पांच महीने तक मुफ्त राशन मिलता रहेगा। प्रधानमंत्री की इस घोषणा का चारों तरफ स्वागत हुआ है, लेकिन क्या किसी ने इस बात पर ध्यान दिया कि यह मांग सबसे पहले झारखंड से
झारखंड पुलिस के माथे पर कई कलंक लगे हुए हैं और समय-समय पर इन्हें धोने का ईमानदार प्रयास भी होता है। एक संगठन के रूप में झारखंड पुलिस का काम देश के अन्य राज्यों की पुलिस से अच्छा नहीं तो खराब भी नहीं रहा है। लेकिन अपने एक पूर्व डीजीपी के कारण इसके दामन पर जो दाग लगा है, उसने इसे बेहद शर्मनाक स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है।
राजनीति के बारे में बहुत पुरानी कहावत है कि इसमें न कोई स्थायी दोस्त होता है और न कोई स्थायी दुश्मन। परिस्थितियों के हिसाब से नफा-नुकसान तौल कर राजनीतिक रिश्ता बनता-बिगड़ता है। झारखंड में तो यह हिसाब-किताब और भी तेजी से बदलता रहा है। यही कारण है कि एक साल पहले लोकसभा चुनाव में जिस भाजपा ने आजसू के लिए अपनी सीटिंग सीट गिरिडीह छोड़ दी थी, उसी के साथ छह माह बाद विधानसभा चुनाव में रिश्ते तार-तार हो गये और दोनों अलग
15-16 जून की रात गलवान घाटी में 20 भारतीय जांवाजों की शहादत ने चीन के साथ भारत के संबंधों को बेहद तनावपूर्ण बना दिया है। देश भर में चीन के बहिष्कार का आह्वान भी जोर पकड़ रहा है। कोरोना संकट के बीच पैदा हुए इस तनाव ने झारखंड पर भी गहरा असर डाला है। लेह-लद्दाख में जहां झारखंड के श्रमिक सीमा पर सड़क बनाने के काम में जुटे हुए हैं, वहीं झारखंड की राजनीति में भी अब चीन की इंट्री हो गयी है। भाजपा जहां चीन के बहिष्कार की बात कह रही है, वहीं सत्तारूढ़ झामुमो और उसकी सहयोगी कांग्रेस ने इस मुद्दे पर भाजपा को घेरने की कोशिश शुरू की है। दोनों तरफ से बयानों के तीर भी चलने लगे हैं, लेकिन इसी बीच कांग्रेस पर राजीव
कहा जाता है कि यदि इंसान का पेट भरा हो, तो वह बड़ी से बड़ी चुनौतियों का भी सामना कर लेता है और उससे पार पा लेता है। लेकिन पेट की आग अच्छे-अच्छों को बेबस कर देती है। झारखंड सरकार ने अपने यहां के जरूरतमंदों का पेट भरने के लिए एक बड़ी तैयारी की है और इसके लिए उसने केंद्र सरकार से मदद मांगी है। झारखंड पहला ऐसा राज्य है, जिसने अपने यहां
वैश्विक महामारी कोरोना के कारण देश भर के धर्म स्थल 25 मार्च से ही बंद हैं। इतना ही नहीं, तमाम धार्मिक आयोजनों पर केंद्र सरकार ने रोक लगा रखी है। झारखंड सरकार ने केंद्र द्वारा जारी दिशा-निर्देशों के अनुरूप राज्य के धार्मिक स्थलों को बंद कर रखा है। पिछले तीन महीने से राज्य में कोई बड़ा धार्मिक आयोजन भी नहीं हुआ है। सरहुल, चैत्र नवरात्र, रामनवमी, ईद और रथयात्रा जैसे बड़े धार्मिक आयोजन इस साल नहीं हुए और लाखों लोगों की आमदनी का बड़ा स्रोत सूख गया। इसके बावजूद लोगों ने कहीं कोई विरोध नहीं किया। लेकिन गोड्डा के सांसद को सबसे बड़ी तकलीफ देवघर के बाबा मंदिर के बंद रहने के कारण है। उन्होंने इस विश्वप्रसिद्ध
आज से करीब नौ साल पहले अप्रैल, 2011 में जब देश की राजनीतिक राजधानी दिल्ली में महाराष्ट्र के रालेगांव सिद्धी निवासी पूर्व फौजी अन्ना हजारे ने ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन’ नामक आंदोलन शुरू किया था, सवा सौ करोड़ की आबादी वाले इस देश ने एक नया सपना देखा था। लेकिन तब झारखंड 11 साल का किशोर था और उसे अपने भविष्य की चिंता सता र
देश के राजनीतिक मानचित्र पर 28वें राज्य के रूप में 15 नवंबर, 2000 को उभरे झारखंड के लिए 2020 का साल नये सपने और नये लक्ष्य के साथ सामने आया। कोरोना संकट के कारण करीब तीन महीने से ठप पड़े राज्य का जनजीवन पुराने ढर्रे पर लौटने लगा है, तो सरकार का ध्यान भी दूसरे मोर्चों की तरफ गया है। पिछले 20 साल में झारखंड में क्या हुआ, कैसे हुआ और कितना हुआ, यह अब किसी से छिपा नहीं है। खनिज संपदा से भरपूर इ
