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देश के कोयले की जरूरत का करीब 70 प्रतिशत हिस्सा पूरा करनेवाला झारखंड इस काले हीरे के अवैध कारोबार के कारण देश भर में चर्चित है। अब यह साफ हो गया है कि कोयले के अवैध कारोबार ने राजनेताओं से लेकर प्रशासनिक और पुलिस अधिकारियों के साथ नक्सली संगठनों को खूब पाला-पोसा है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि झारखंड में को

झारखंड सरकार ने कोयले की कॉमर्शियल माइनिंग की नीलामी के केंद्र सरकार के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा कर एकबारगी सबको चौंका दिया है। करीब छह महीने पहले सत्ता में आयी हेमंत सोरेन सरकार के इस कदम को राजनीतिक और प्रशासनिक हलकों में आश्चर्य के साथ देखा जा रहा है। आज से पहले न तो बिहार में ऐसा हुआ था और

आजाद सिपाही संवाददाता रांची। केंद्र सरकार ने कोयला क्षेत्र में कामर्शियल माइनिंग के लिए कोल ब्लॉकों की नीलामी की प्रक्रिया…

क्या आपने किसी ऐसे राज्य के बारे में सुना है, जहां की सरकारी मशीनरी केवल सलाहकारों और बाहरी एजेंसियों की नियुक्ति करती हो और उस राज्य की सफाई व्यवस्था से लेकर उद्योग और व्यापार तक की नीतियां कंसल्टेंट तय करते हों। यकीनन आपने ऐसा नहीं सुना होगा, लेकिन झारखंड में पिछले 20 साल में यही होता रहा। तमाम संसाधन और अधिकारियों-कर्मचारियों की फौज उपलब्ध रहने के बावजूद पिछले 20 साल में झारखंड सरकार ने अपना सारा काम बाहरी एजेंसियों और कंसल्टेंट कंपनियों को दे दिया। झारखंड पर यह शिकंजा इतना

अगले कुछ घंटे बाद राज्यसभा की दो सीटों के लिए मतदान शुरू हो जायेगा और तीन में से दो प्रत्याशी शाम होते-होते संसद की ऊपरी सदन के सदस्य चुन लिये जायेंगे। लेकिन इस चुनाव ने झारखंड में एक नया कल्चर, नयी परंपरा स्थापित की है। अब से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि किसी राजनीतिक दल या गठबंधन को अपने विधायकों

1962 के बाद चीन ने एक बार फिर अपनी धोखेबाज फितरत को दोहराया है। इस बार उसने लद्दाख की गलवान घाटी में हमारी पीठ में छुरा भोंका है। सेना की वापसी और सीमा पर तनाव कम करने के बारे में उसके दरवाजे पर गये भारतीय सैनिकों पर उसने घात लगा कर हमला किया और हमारे 20 जांबाज शहीद हो गये। चीन को इस हिमाकत और अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक परंपराओं के उल्लंघन की बड़ी कीमत चुकानी पड़ी है और उसके भी 43 सैनिकों को ह

पांच महीने पहले सत्ता संभालने के बाद से ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कह रहे हैं कि झारखंड की अर्थव्यवस्था बेहद खराब है। सरकार का खजाना खाली है। वैश्विक महामारी कोरोना ने इस संकट को और गहरा कर दिया है। तमाम आर्थिक गतिविधियों के ठप होने के कारण राज्य को अपने स्रोतों से होनेवाली आमदनी लगभग शून्य हो गयी है। इस खस्ताहाल अर्थव्यवस्था पर बड़ी संख्या में घर लौटे प्रवासी कामगारों ने बड़ा बोझ डाल दिया है और झारखंड

दिसंबर में विधानसभा चुनाव के बाद झारखंड में जब सत्ता परिवर्तन हुआ और पहली बार गैर-भाजपा गठबंधन को स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ, राजनीतिक पंडितों ने भविष्यवाणी की थी कि बदलाव का यह दौर कारगर नहीं होगा। लेकिन करीब छह महीने बाद ऐसा लगने लगा है कि हेमंत सोरेन की सरकार व्यवस्थागत खामियों को उजागर करने और उन्हें दूर करने में लग गयी है। इन खामियों ने पिछले 20 साल में झारखंड की कई संस्थाओं को दागदार बना दिया था। राजनीतिक स्थिरता के नाम पर पिछले पांच साल के कालखंड में मुट्ठी भर नौकरशा