नयी दिल्ली। मैगी का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकल आया है। साल 2015 में मैगी को लेकर हुआ विवाद गुरूवार को एक बार फिर तब गरमा गया जब सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मैगी बनाने वाली नेस्ले कंपनी के वकीलों ने ये बात मान ली कि 2015 में मैगी में लेड यानि सीसा की मात्रा तय सीमा से ज्यादा थी। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तीन साल बाद इस मामले में फिर से कार्रवाई की इजाजत भी सरकार को दी है। जिससे नेस्ले को बड़ा झटका लगा है। अब एक बात साफ है कि 2015 में इस पूरे विवाद को उठाने और नेस्ले पर हजार्ना मांगने वाली सरकार एक बार फिर नेस्ले से दो-दो हाथ के पूरे मूड में है। एक बार फिर सरकार और नेस्ले आमने-सामने होगी। गुरुवार को जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये सुनवाई की थी। जिसमें कहा गया मैगी के नमूनों के बारे में मैसूर स्थित केंद्रीय खाद्य प्रौद्योगिकी संस्थान की रिपोर्ट कार्रवाई का आधार मानी जायेगी।
क्या था पूरा मामला ?
ये पूरा मामला 2015 में सामने आया था जब उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय ने नेस्ले इंडिया के खिलाफ एनसीडीआरसी में शिकायत की थी और 640 करोड़ रुपए का हजार्ना भी मांगा था। लेकिन सरकार के इस शिकायत पर नेस्ले इंडिया ने आपत्ति जताई और उसके वकीलों का कहना था कि मैगी में तय मानक से ज्यादा लेड(सीसा) मौजूद नहीं है। तब सुप्रीम कोर्ट ने एनएसडीआरसी की ओर से की जा रही सुनवाई पर रोक लगाई थी। हलांकि इस दौरान मैगी का पूरे देश में भारी विरोध हुआ था। धीरे धीरे नेस्ले ने दोबारा उपभोक्ताओं को विश्वास में लिया था लेकिन अब वकीलों ने साफ मान लिया है कि उस वक्त मैगी में जरूरत से ज्यादा लेड मौजूद था।
मैगी में सीसा से क्या है नुकसान?
सीसा सेहत के लिए काफी हानिकारक माना जाता है। इससे खून की कमी हो सकती है, जोड़ो में समस्या, सीखने की क्षमता परअसर, किडनी को नुकसान, लीवर पर खतरा, न्यूरोलॉजिकल डिसआॅर्डर का खतरा हो सकता है।