जब आग लगती है, तभी धुआं उठता है और धुआं उठ रहा है, इसका अर्थ है कि कहीं न कहीं आग लगी हुई है। झारखंड आंदोलन के पुरोधाओं में एक स्वर्गीय बिनोद बिहारी महतो के बेटे और आजसू के वरिष्ठ नेता राजकिशोर महतो के बयान और उनकी नाराजगी ने यह जाहिर कर दिया है कि आजसू पार्टी में असंतोष की आग लगी हुई है। उन्होंने अपनी व्यथा सार्वजनिक तौर पर जाहिर करते हुए पार्टी से इस्तीफा दे दिया है। उनका आरोप है कि उन्हें पार्टी के कुछ नेताओं के कारण अपमानित होना पड़ा। राजकिशोर महतो ऐसे नेता हैं, जिनकी बातों को यूं ही खारिज नहीं किया जा सकता। दरअसल, पार्टी में अगर किसी स्तर पर असंतोष है, तो पार्टी के हित में यही है कि उसे समझने और दूर करने की दिशा में संजीदा कोशिश हो। राजकिशोर महतो के इस्तीफे, उसके पीछे की वजहों और उनके बयानों का निहितार्थ तलाशती दयानंद राय की रिपोर्ट।

झारखंड आंदोलनकारी बिनोद बिहारी महतो के बेटे राजकिशोर महतो ने आजसू की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। अपने इस्तीफे के बाद उन्होंने पार्टी और पार्टी नेताओं की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि इस दफा टुंडी से उन्हें हराने के लिए पार्टी के नेताओं ने ही पूरी ताकत लगायी। भितरघात किया। वे सीटिंग विधायक थे, पर टिकट के लिए उन्हें दस दिनों तक इंतजार कराया गया। आजसू के एक वरिष्ठ नेता ने उनके खिलाफ लॉबिंग करायी। उन्होंने भले नाम नहीं लिया, लेकिन उनका इशारा गिरिडीह से पार्टी सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी की तरफ था। बकौल राजकिशोर: मेरा टिकट कटवाने के लिए रांची में प्रदर्शन कराया गया। आजसू के सीनियर लीडरों ने चुनाव में मेरी मदद करने की बजाय मेरे राजनीतिक विरोधियों की मदद की। ऐसे नेता गिरिडीह से एक दबंग जन प्रतिनिधि के रिश्तेदार को टिकट देना चाहते थे और इसके लिए ही सारा नाटक हुआ। उन्होंने आजसू के अकेले 53 सीटों पर चुनाव लड़ने को भी औचित्यहीन बताया और कहा कि इसका कोई मतलब
नहीं था। उन्होंने कहा कि अगर आजसू को भाजपा से लड़ना ही था, तो जमशेदपुर पूर्वी और बाघमारा जैसी सीटों पर पार्टी ने कोई प्रत्याशी क्यों नहीं दिया। चुनाव प्रचार के दौरान भाजपा के खिलाफ पार्टी ने एक बार भी आक्रामक बयान क्यों नहीं दिया।
राजकिशोर महतो को गुस्सा क्यों आया
राजकिशोर महतो एक कद्दावर नेता हैं। वे एक बार सांसद और दो बार टुंडी से विधायक भी रह चुके हैं। वे बेलाग बोलने के लिए जाने जाते हैं और हल्की बयानबाजी की उम्मीद उनसे नहीं की जा सकती। जाहिर है कि उनकी बातों के पीछे कोई ना कोई आधार है। उनकी पीड़ा गहरी न होती तो पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफे की कोई वजह नहीं बन रही थी। उन्होंने यह भी घोषणा की कि वे भविष्य में कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे। पार्टी के सूत्रों ने बताया कि राजकिशोर महतो ने जो कहा है, उसमें सच्चाई है और पार्टी नेताओं के इस व्यवहार से खफा होकर ही उन्होंने इस्तीफा दिया है। हालांकि आजसू पार्टी के केंद्रीय प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत ने कहा कि अगर उन्हें कोई समस्या थी, तो पार्टी ने सात जनवरी को जो केंद्रीय सभा की बैठक की थी, उसमें उन्हें अपनी बातें रखनी चाहिए थी। इस तरह से सार्वजनिक तौर पर बयान देना अच्छा नहीं है। हो सकता है कि डॉ देवशरण भगत अपनी जगह पर सही हों, लेकिन राजकिशोर महतो ने अगर पार्टी के मंच पर अपनी बात रखने के बजाय सार्वजनिक तौर पर बयान दिया है, तो इसके पीछे की वजह भी कुछ मामूली नहीं होगी। राजकिशोर महतो का कहना है कि टुंडी से उनकी हार तय कराने के लिए पार्टी के ही नेताओं ने उनके खिलाफ काम किया। बताया जा रहा है कि उनका इशारा सीधे तौर पर पार्टी में नंबर टू की हैसियत रखने वाले चंद्रप्रकाश चौधरी और उनके समर्थकों की तरफ है। राजकिशोर महतो के इस कदम पर पार्टी सुप्रीमो सुदेश महतो की क्या प्रतिक्रिया होती है और वे इस तरीके की क्राइसिस से उबारने के लिए क्या कदम उठाते हैं, यह देखा जाना अभी बाकी है। राजनीतिक जानकारों की मानें तो राजकिशोर महतो के उठाये सवालों को एकबारगी खारिज करने के बजाय बेहतर यह होगा कि पार्टी के भीतर इसकी समीक्षा की जाये और कोई ऐसा कदम उठाया जाये, जिससे असंतोष का यह धुआं किसी भी तरह आग की शक्ल नहीं सके।
निर्णयों की समीक्षा जरूरी
चाहे वह कोई भी पार्टी हो, यदि उसे चुनावों में हार मिलती है या अपेक्षित परिणाम चुनाव में नहीं मिलते हैं, तो आरोप-प्रत्यारोप की स्थिति पैदा होती है। आजसू में भी यही हुआ है। पार्टी ने जिस पैमाने पर चुनाव लड़ा था, नतीजे उस हिसाब से कतई अच्छे नहीं जा सकते। बेहतर यही होगा कि पार्टी को हार के कारणों की हर दृष्टि से समीक्षा करनी चाहिए।
अब जबकि पार्टी के वरिष्ठ नेता राजकिशोर महतो ने असंतोष जाहिर किया है, तो पार्टी का मुखिया होने के नाते सुदेश महतो को हालात की समीक्षा करनी चाहिए। संभव हो तो राजकिशोर महतो को मनाकर पार्टी में वापस लाने की कोशिश करनी चाहिए। राजकिशोर महतो स्वर्गीय बिनोद बिहारी महतो के बेटे हैं और बिनोद बिहारी महतो झारखंड आंदोलन के पुरोधा रहे हैं। स्वयं आजसू सुप्रीमो सुदेश महतो भी स्वर्गीय बिनोद बिहारी महतो के सपनों का झारखंड गढ़ने की वकालत करते रहे हैं। ऐसे में राजकिशोर महतो के बयान को गंभीरता से लिया जाना चाहिए। राजकिशोर महतो वरिष्ठ अधिवक्ता भी हैं। पीड़ा गंभीर न होती तो वे ऐसी बयानबाजी शायद ही करते। कोई भी पार्टी बड़ी और ताकतवर तभी बनती है, जब वह अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं की कद्र करती है, उनकी भावनाओं का सम्मान करती है। भाजपा को बाबूलाल मरांडी के पार्टी छोड़ने के बाद ही पता चला कि झारखंड की राजनीति में बाबूलाल की अहमियत क्या है और उसके बाद बड़ी मुश्किल से भाजपा बाबूलाल को मनाने में सफल होती दिख रही है। इसलिए आजसू को अपने एक वरिष्ठ नेता के जज्बातों की कद्र करते हुए उन्हें मनाने की कोशिश करनी चाहिए। आजसू को अपने समर्पित कार्यकर्ताओं के प्रति उदार होना होगा। पार्टी के लिए झंडा ढोनेवालों की भी चाहत होती है कि उन्हें सम्मान मिले। अगर किसी परिवार से चार-चार उम्मीदवार हो जायें, विधानसभा से लेकर लोकसभा तक में वे ही उम्Þमीदवार बनें, तो फिर आजसू कैसे यह डंके की चोट पर कह सकती है कि यह पार्टी सबके लिए है। कहीं न कहीं एक सीमा रेखा तो खींचनी ही पड़ेगी। अगर किसी परिवार के हाथ में पार्टी की पूरी बागडोर दे दी जाये, तो फिर वह सर्वजन की पार्टी नहीं कही जा सकती और कार्यकर्ता कहीं न कहीं उससे विमुख होने लगते हैं। जरूरी है कि आजसू नेतृत्व हालात को समझे और समय रहते जरूरी कदम उठाये।

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