भारतीय शासन प्रणाली में लोकतंत्र के तीन स्तंभ बताये गये हैं, विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका। चौथा स्तंभ मीडिया को कहा गया है। ये चारों स्तंभ पूरी तरह स्वतंत्र माने गये हैं और इन चारों के बिना लोकतंत्र की कल्पना भी बेमानी कही गयी है। यह तो किताबों और सिद्धांतों की बात है। हकीकत यह है कि इनमें से न्यायपालिका को छोड़ कोई भी स्तंभ पूरी तरह न तो आजाद है और न ही न्यायिक समीक्षा से ऊपर। यहां तक कि न्यायपालिका के कई फैसले भी समीक्षा की कसौटी पर कसे जाते हैं, उनकी परीक्षा ली जाती है। झारखंड में बीते दो साल में ऐसे पांच मामले हुए हैं, जिन्होंने कार्यपालिका को तो सवालों के घेरे में खड़ा किया ही, न्यायपालिका के फैसलों को भी कसौटी पर कसा।
पहला मामला: झामुमो विधायक योगेंद्र महतो को सजा
करीब दो साल पहले एक फरवरी, 2018 को रामगढ़ के व्यवहार न्यायालय परिसर में गहमा-गहमी थी। विदा होती सर्दी में वहां जमा लोग अनुमंडलीय न्यायिक दंडाधिकारी आरती माला द्वारा सुनाये जानेवाले फैसले की प्रतीक्षा में गर्मा-गर्म चर्चा कर रहे थे। वह फैसला गोमिया के तत्कालीन झामुमो विधायक योगेंद्र महतो के मामले में आना था।
अंतत: फैसला आया और कोयला चोरी के आठ साल पुराने मामले में विधायक को भारतीय दंड विधान की धारा 441 और 120 में तीन साल सश्रम कैद और जुर्माने की सजा सुनायी गयी। यह मामला 2010 में रजरप्पा थाना में दर्ज किया गया था। योगेंद्र महतो 2014 के विधानसभा चुनाव में पहली बार जीते थे। उनकी विधायकी चली गयी। बाद में वहां उप चुनाव हुआ और उनकी पत्नी बबिता देवी विधायक बनीं। अब ढाई साल बाद ऊपरी अदालत ने योगेंद्र महतो को इस मामले से बाइज्जत बरी कर दिया है और उनके खिलाफ लगाये गये तमाम आरोपों को गलत करार दिया है।
दूसरा मामला: झामुमो विधायक अमित महतो को सजा
योगेंद्र महतो को सजा सुनाये जाने के करीब दो महीने बाद 23 मार्च को रांची के अपर न्यायायुक्त दिवाकर पांडेय ने सिल्ली के तत्कालीन झामुमो विधायक अमित महतो को सोनाहातू के सीओ से मारपीट के मामले में दो साल की सजा सुनायी। अमित महतो भी 2014 में पहली बार विधायक चुने गये थे। उनकी भी विधायकी चली गयी। यह मामला 28 जून 2006 को दर्ज कराया गया था। अमित महतो के खिलाफ भारतीय दंड विधान की धारा 147, 323, 341, 353, 427 और 506 के तहत आरोप गठित हुआ था। सिल्ली में भी उप चुनाव हुआ और अमित महतो की पत्नी सीमा महतो विधायक चुनी गयीं।
तीसरा मामला: भाजपा विधायक ढुल्लू महतो को सजा
तीसरा मामला बाघमारा से भाजपा विधायक ढुल्लू महतो से जुड़ा है। धनबाद के बरोरा थाना में 12 मार्च 2013 को भारतीय दंड विधान की धारा 323, 332 और 353 के तहत एक मामला दर्ज कराया गया था। इसमें ढुल्लू महतो भी एक आरोपी थे। मामला पुलिस की वर्दी फाड़ने और एक आरोपी को पुलिस की हिरासत से छुड़ाने का था। राज्य सरकार के अधिवक्ता ने सात जनवरी 2016 को इस मामले को वापस लेने का आवेदन दिया, जिसे अदालत ने नामंजूर कर दिया। ढुल्लू इसके खिलाफ हाइकोर्ट में गये, लेकिन वहां भी उन्हें हार ही मिली। तब हाइकोर्ट के आदेश पर मामले की सुनवाई निचली अदालत में हुई और ढुल्लू महतो को 10 अक्टूबर 2019 को मात्र 18 महीने की कैद की सजा सुनायी गयी। उनकी विधायकी बच गयी।
चौथा मामला: ढुल्लू महतो के खिलाफ यौन शोषण का मामला
बाघमारा विधायक ढुल्लू महतो के खिलाफ भाजपा की एक स्थानीय नेत्री ने 28 नवंबर 2018 को थाने में आवेदन दिया। इसमें उन पर यौन शोषण और छेड़खानी का आरोप लगाया गया था।
महिला ने आॅनलाइन एफआइआर दर्ज करने के लिए आवेदन दिया था, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। तब महिला ने करीब एक साल बाद सात अक्टूबर, 2019 को हाइकोर्ट में आवेदन दिया। हाइकोर्ट के आदेश पर पुलिस ने मामला दर्ज किया। 22 अक्टूबर को हाइकोर्ट ने मामले की जांच की रिपोर्ट तीन सप्ताह में देने का आदेश पुलिस को दिया। पुलिस लगातार जांच करने की बात कहती रही। इसी बीच विधानसभा के चुनाव हुए और ढुल्लू महतो एक बार फिर बाघमारा से भाजपा के टिकट पर विधायक चुने गये। उन्होंने पद की शपथ भी ली। उनके खिलाफ यौन शोषण के आरोप की जांच अब भी जारी है। पीड़िता इस दरवाजे से उस दरवाजे दौड़ रही है।
पांचवां मामला: झाविमो विधायक प्रदीप यादव की गिरफ्तारी
देवघर के साइबर थाने में तीन मई 2019 को झारखंड विकास मोर्चा की नेत्री ने एक मामला दर्ज कराया। इसमें उन्होंने झाविमो के पोड़ैयाहाट विधायक प्रदीप यादव पर 13 दिन पहले, यानी 20 अप्रैल को छेड़खानी करने का आरोप लगाया। साइबर थाने में भारतीय दंड विधान की धारा, 354, 354-बी, 354-डी, 376 और 511 के तहत मामला दर्ज किया गया। प्रदीप यादव उस समय गोड्डा संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थे। साइबर थाना ने उन्हें बयान देने के लिए बुलाया। उन्होंने 14 जून को पुलिस के सामने अपना बयान दर्ज कराया। इसके बाद उनकी गिरफ्तारी के लिए पुलिस ने पोड़ैयाहाट से लेकर रांची तक ताबड़तोड़ छापामारी की। निचली अदालत से लेकर हाइकोर्ट से अग्रिम जमानत याचिका खारिज होने के बाद प्रदीप यादव ने 25 जुलाई को अदालत में सरेंडर कर दिया और उन्हें जेल भेज दिया गया। अंतत: 28 सितंबर को 118 दिन बाद उन्हें हाइकोर्ट से जमानत मिली और वह जेल से बाहर निकले। विधानसभा का चुनाव लड़ा और विधायक बन गये।
इन पांच मामलों से पुलिस की कार्यशैली स्पष्ट हो जाती है कि वह अपने पास आये मामलों को कैसे हैंडल करती है। इन मामलों में दिये गये अदालती फैसलों का जहां झारखंड की राजनीति पर दूरगामी प्रभाव पड़ा, वहीं इनकी परीक्षा भी हुई। लेकिन इन सभी मामलों में पुलिस की जांच और अदालत में इन्हें प्रस्तुत किये जाने के तरीके पर सवाल खड़े हुए, जिन पर अदालतों ने फैसले सुनाये। इसलिए हम कहते हैं, इत्मीनान रखिये, क्योंकि यह झारखंड पुलिस है।