सवाल: झारखंड मुक्ति मोर्चा के बारे में अमूमन आम लोगों में यही धारणा रही है कि वह आदिवासियों की पार्टी है। लेकिन इस बार के विधानसभा चुनाव में झामुमो ने शहरी क्षेत्रों और खासकर राजधानी जैसी सीटों पर भाजपा के पसीने छुड़ा दिये, जन-जन के दिल में प्रवेश कर गया। यह कैसे संभव हुआ?
जवाब: झामुमो स्थापना काल से इस राज्य में रहनेवाले सभी जाति, धर्म और समुदाय के लोगों के लिए हमेशा संघर्ष करता रहा है। झामुमो की स्थापना भी हुई, तो जल-जंगल-जमीन की रक्षा, विस्थापन और पलायन के मुद्दे को लेकर। झारखंड में रहनेवाले हर व्यक्ति के स्वाभिमान की रक्षा करने के लिए झामुमो की स्थापना हुई। हम यह कह सकते हैं कि गुरुजी की सोच, पार्टी के पदाधिकारियों की सोच और पार्टी के कार्यकर्ताओं की सोच बिल्कुल स्पष्ट है। पार्टी की यह सोच रही है कि अगर सब लोग मिल कर झारखंड को विकास के रास्ते पर ले जायेंगे, तो निश्चित तौर पर झारखंड सबसे विकसित राज्य बनेगा। इसी सोच के साथ हम आगे बढ़े और चुनाव के जो परिणाम आये हैं, उससे यह साफ है कि सभी जाति, धर्म और समुदाय के लोगों ने झामुमो पर विश्वास किया और हमारा साथ दिया। यह सिर्फ जनादेश नहीं, यह गुरुजी जी की सोच, उस सोच को आगे बढ़ाने का हेमंत सोरेन का मजबूत इरादा और पार्टी के सभी कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत और लगन का प्रतिफल है।
सवाल: लोकसभा चुनाव के दरम्यान आप गुरुजी के साथ दुमका में रहे। विधानसभा चुनाव में हेमंत सोरेन के साथ वहां खूब पसीना बहाया। चुनाव परिणामों पर नजर डालें, तो बहुत अंतर रहा है। तब और अब की परिस्थितियों में क्या अंतर पाया आपने?
जवाब: देखिये, बिल्कुल स्पष्ट है। लोकसभा का चुनाव राष्टÑीय परिप्रेक्ष्य और मुद्दों पर लड़ा गया था। दूसरी ओर विधानसभा चुनाव में क्षेत्रीय और स्थानीय समस्या पर फोकस रहता है। सच कहा जाये, तो पिछली सरकार के पांच साल के शासन में जनता ने यह महसूस किया कि उसे ठगा गया है। उसके साथ विकास के नाम पर छलावा हुआ है। विकास बिजली के खंभे और होर्डिंग पर तो नजर आया, लेकिन धरातल पर नहीं दिखा। दरअसल, जिस सोच के साथ झारखंड का गठन हुआ था, उस सोच से सरकार भटक गयी थी। लोगों में आक्रोश था। यही कारण है कि झामुमो और महागठबंधन के नेतृत्व की ओर लोगों ने देखना शुरू किया और हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड की जनता ने आस्था व्यक्त की।
सवाल: कौन सा मुद्दा रहा, जो आपके हिसाब से प्रभावी रहा?
जवाब: पिछले पांच साल में जनविरोधी निर्णय के कारण लोगों को एहसास हो गया था कि उनका अस्तित्व खतरे में है। स्थानीय नीति, नियोजन नीति, सीएनटी-एसपीटी एक्ट में संशोधन, भूमि अधिग्रहण कानून सहित कई फैसले से लोगों का विश्वास डिग गया है। उन्हें लगा ही नहीं कि यह हमारी सरकार है। हमारी रक्षा के लिए बनी है। लोगों के जेहन में यह बात घर कर गयी थी कि यह सरकार सिर्फ और सिर्फ उद्योगपतियों के लिए बनी है। इसी भावना को झामुमो ने समझा और उसे घोषणा पत्र में भी रखा। अब सरकार बन गयी है। घोषणा पत्र के तमाम संकल्प को प्राथमिकता के आधार पर यह सरकार लागू करेगी।
सवाल: इस बार विधानसभा चुनाव में झामुमो ने भाजपा के पसीने छुड़ा दिये। इस चुनाव में यह बात साबित हो गयी कि ग्रामीण इलाकों में ही नहीं, शहरी क्षेत्र में भी झामुमो का दबदबा हो गया है। यह कैसे हुआ?
जवाब: नहीं देखिये। पिछले कुछ चुनावों पर गौर करें, तो ग्रामीण के अलावा शहरी मतदाता भी झामुमो के साथ खड़े रहे हैं। इस चुनाव में एक तरफ हेमंत सोरेन-शिबू सोरेन का चेहरा था, तो दूसरी तरफ रघुवर दास का। राज्य की जनता ने दोनों चेहरे को कंपेयर किया। हेमंत सोरेन और शिबू सोरेन के चेहरे में लोगों को ज्यादा अपनापन लगा। इन दोनों को जनता ने अपने करीब पाया। और यही कारण रहा कि हेमंत सोरेन पर राज्य की जनता ने विश्वास जताया।
सवाल: क्या आप मानते हैं कि सीएए और एनआरसी भाजपा के लिए बैकफायर तो नहीं कर गया?
जवाब: प्रधानमंत्री, गृह मंत्री, मुख्यमंत्री रघुवर दास समेत केंद्रीय नेता चुनाव के दौरान आये तो जरूर, लेकिन लोगों की भावना और जरूरतों को नहीं समझ पाये। रोजगार, स्वास्थ्य का मुद्दा, भूख से मौत, किसान हित की बात भाजपा ने किसी भी सभा में दो मिनट भी नहीं की। स्थानीय मुद्दों को तरजीह नहीं दी गयी। सिर्फ राष्टÑीय और भावनात्मक मुद्दों को ही उछाला गया। इसे लोगों ने नकार दिया। आपको एक बात जानकर आश्चर्य होगा कि प्रधानमंत्री ने संथाल मेें जहां सभा की, वहां की पंचायत और बूथ में भी भाजपा की हार हुई। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि भाजपा के खिलाफ किस तरह का गुस्सा लोगों के दिल में था।
सवाल: कोल्हान से भाजपा का सूपड़ा ही साफ हो गया, जबकि कोल्हान से रघुवर दास, लक्ष्मण गिलुआ, जेबी तुबिद जैसे कद्दावर नेता मैदान में थे। इसका क्या कारण मानते हैं आप?
जवाब: जी, बिल्कुल। मेरा मानना है कि अगर किसी व्यक्ति में अहंकार आ जाये, तो उसका पतन निश्चित है। रघुवर दास के नेतृत्व में जिस दिन सरकार बनी, उसी दिन से उनमें अहंकार आ गया। आज उसी का नतीजा है कि भाजपा का यह हाल हुआ। झामुमो जल-जंगल और जमीन की बात करता है। खुद सीएम रघुवर दास कहते थे कि झामुमो सिर्फ जल-जंगल-जमीन, विस्थापन और पलायन की बात करता है। शायद वह झारखंड की जनता की भावनाओं से अवगत नहीं हैं। उनको झामुमो का इतिहास ठीक से पता नहीं है। जनविरोधी फैसले के कारण लोगों को लगा कि रघुवर सरकार दोबारा आयी, तो उनका अस्तित्व खतरे में आ जायेगा। इसी का परिणाम है कि जनता ने भाजपा को उचित जगह दिखाने का काम किया।
सवाल: रघुवर दास के खिलाफ सरयू राय ने जब पूर्वी सिंहभूम सीट से ताल ठोंका, तब झामुमो ने खुलकर सरयू राय का समर्थन किया। सरयू राय भी दुमका में हेमंत सोरेन के लिए प्रचार मेें गये। आज झामुमो की सरकार बन चुकी है। ऐसे में सरयू राय की भूमिका क्या होगी?
जवाब: सरयू राय सुलझे हुए व्यक्ति हैं। वह विधायी कार्यों के जानकार भी हैं। समय-समय पर उनकी राय ली भी जा रही है। वह खुद सीएम हेमंत सोरेन से मिलते भी रहते हैं। उनके राजनीतिक जीवन का लाभ सरकार को काम करने में मिलेगा।
सवाल: हेमंत सोरेन पहले भी मुख्यमंत्री थे। दोबारा मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुके हैं। पहले के हेमंत सोरेन और आज के हेमंत सोरेन में क्या फर्क आप मानते हैं?
जवाब: हेमंत सोरेन को काफी अरसे से जानता हूं। मैं झामुमो में 1984 में आया। वार्ड लेबल से सफर तय कर आज केंद्रीय महासचिव और प्रवक्ता हूं। हेमंत सोरेन का स्वभाव और आचरण, बॉडी लैंग्वेज बहुत कुछ बताता है। छोटे को प्यार और बड़ों का सम्मान करना उनकी आदत में है। यह कोई नयी बात नहीं है। हेमंत सोरेन के अलावा पूरे परिवार में ये बातें आपको देखने को मिल जायेंगी। दरअसल गुरुजी के परिवार में संस्कार कूट-कूट कर भरा है। पूरा परिवार सादगी पसंद है। इस परिवार को यहां की संस्कृति से लगाव है। इनसान की कद्र करना यह परिवार जानता है। कार्यकर्ताओं को यह परिवार अपना अंग मानता है। कार्यकर्ताओं के साथ सिर्फ दलीय या राजनीतिक रिश्ता नहीं है। गुरुजी का कार्यकर्ताओं को अभिभावक सा प्यार मिलता है।
सवाल: मुझे याद है, जब लोकसभा चुनाव में मैं दुमका गया था, तो गुरुजी की एक सभा होनी थी। गुरुजी नहीं पहुंचे थे, तब ग्रामीणों से पूछा कि लगता है गुरुजी नहीं आयेंगे, तभी एक ग्रामीण ने कहा कि नहीं ऐसा हो नहीं सकता है। गुरुजी चिड़िया बन कर भी आयेंगे, लेकिन आशीर्वाद देने जरूर आयेंगे। यह गुरुजी के प्रति अटूट विश्वास और उनकी लोकप्रियता का शिखर है। ऐसी लोकप्रियता पाना क्या हेमंत सोरेन के लिए चुनौती नहीं है?
जवाब: कोई भी व्यक्तित्व, जो आपको प्रभावित करता हो, वहां तक पहुंचना बड़ी चुनौती होती है। हेमंत सोरेन का भी लगातार प्रयास रहा है कि गुरुजी के प्रति राज्य की जनता की जो आस्था और विश्वास है, उस पर खरा उतरें।
सवाल: संथाल में गुरुजी को लोग बहुत सम्मान देते हैं। आपको कोई अनुभव है।
जवाब: बहुत पहले की बात है। मैं दुमका गया था। गुरुजी से बहुत से लोग मिलने आये थे। बूढ़ी महिलाएं भी थीं। वे सभी एक-एक कर अपनी मुट्ठी से कुछ गुरुजी की मुट्ठी में देती थीं और गुरुजी उसे अपनी जेब में रख लेते थे। मैंने गुरुजी से पूछा कि ये महिलाएं आपको क्या देती हैं। तब गुरुजी ने कहा था कि इन महिलाओं को आज भी लगता है कि गुरुजी इतनी दूर से आया है। पता नहीं उसके पास वापसी के लिए पैसा होगा या नहीं, खाने के लिए कुछ होगा या नहीं। इसलिए वे अपना सहयोग मुझे देती हैं। मैं यह सुनकर हैरत में पड़ गया। जिस इलाके में गुरुजी के इतनी श्रद्धा है, वहां से गुरुजी को कैसे हटाया जा सकता है। उसी संथाल में भाजपा के लोगों ने गुरुजी को घूम-घूम कर अपशब्द कहे, गाली तक दी। इसे लोग कैसे बर्दाश्त करते।
सवाल: सबको साथ लेकर चलने की बड़ी जिम्मेवारी अब झामुमो और हेमंत सोरेन के कंधे पर है। चुनाव पूर्व कई घोषणाएं की गयी थीं। वे कब और कैसे पूरी होंगी।
जवाब: देखिये, जो जनादेश झामुमो और महागठबंधन को मिला है, वह अपने आपमें चुनौती है। लोगों के विश्वास पर सरकार जरूर खरा उतरेगी, यह मैं आपको विश्वास दिलाता हूं। यह भी विश्वास दिलाता हूं कि लोगों का विश्वास हेमंत सोरेन डिगने नहीं देंगे। समय के साथ सारे वादे पूरे किये जायेंगे।
सवाल: चुनाव पूर्व यह प्रचार किया जा रहा था कि यह महागठबंधन नहीं चलेगा। सरकार बनी भी तो पांच साल तक नहीं चलेगी। कैसे समन्वय बनाकर साथ-साथ चलेंगे?
जवाब: समन्वय बना कर चलना ही होगा। इस जनादेश के कई मायने हैं। चुनाव ने दलों को भी एहसास करा दिया है कि उनकी भावना को ठेस पहुंचाया गया, तो जब उन्हें वोट देने का अधिकार मिलेगा, तो जवाब दे देंगे, चाहे कोई भी दल हो। झामुमो बड़ा दल है। कांग्रेस-राजद सहयोगी की भूमिका में हैं। इसके अलावा अन्य दल ने भी समर्थन किया है। इस सरकार में सभी की बातें सुनी जायेंगी। सबकी राय ली जायेगी। सभी वर्ग, जाति, धर्म के लिए काम होगा।
सवाल: पांच साल बाद झारखंड को कहां देखते हैं?
जवाब: जनता ने काम के लिए जनादेश दिया है। अभी काम का समय है। आनेवाले समय में बात नहीं, काम जवाब देगा। पांच साल बाद राज्य कहां खड़ा होगा, यह काम बतायेगा।