पांच साल मंत्री से ज्यादा ‘व्हिसल ब्लोअर’ के रोल में रहे
अब झारखंड में भाजपा की सरकार नहीं है, लेकिन उस सरकार में मंत्री रहते हुए सरयू राय ने भ्रष्टाचार और गड़बड़ियों से जुड़े जो मुद्दे उठाये थे, उनमें से कई मुद्दे आज भी जिंदा है। राय पूरे पांच साल तक मंत्री रहते हुए भी गड़बड़ियों को उजागर करने वाले व्हिसल ब्लोअर की भूमिका में रहे। उन्होंने कई मसलों पर राज्य के मुख्य सचिव और अन्य आला अफसरों पर भी निशाना साधा। सरकार ने सरयू राय के उठाये गये मुद्दों पर तवज्जो दी हो या नहीं, लेकिन उनके सवाल सत्ता के गलियारों में हमेशा गूंजते रहे।

शाह ब्रदर्स, एडवोकेट जनरल और वो
सरयू राय ने अपनी ही सरकार को जिन मुद्दों को लेकर कठघरे में खड़ा किया, उनमें मेसर्स शाह ब्रदर्स के आयरन ओर माइनिंग लीज का मुद्दा बेहद चर्चा में रहा है। शाह ब्रदर्स को पश्चिम सिंहभूम के करमपदा मौजा में 233.89 हेक्टेयर भूमि पर आयरन ओर की माइनिंग के लिए लीज दिया गया था। आरोप है कि इस कंपनी ने लीज डीड की शर्तों का उल्लंघन किया। इसे लेकर वर्ष 2014 में खान व भू-विज्ञान विभाग ने शाह ब्रदर्स को नोटिस जारी करते हुए 110 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था। 2015 में जुर्माने की राशि को संशोधित करते हुए 1365 करोड़ रुपये तय की गयी थी। एक अप्रैल 2016 को सरकार ने शाह ब्रदर्स समेत 22 कंपनियों की माइनिंग लीज को फॉरेस्ट, रायल्टी, इंवायरमेंटल सर्टिफिकेट नहीं रहने के कारण् रद्द कर दिया। इसके खिलाफ शाह ब्रदर्स ने हाइकोर्ट में याचिका दायर की। 11 अगस्त 2016 को हाइकोर्ट ने खनन पट्टा विस्तारीकरण का कारण नहीं बताये जाने के कारण सरकार के आदेश को रद्द कर दिया। अजीत कुमार उस समय अपर महाधिवक्ता थे और उन्होंने इस मामले में सरकार का पक्ष रखा था। बकौल राय, अजीत कुमार ने अदालत के सामने तथ्यों को छिपाया। खान विभाग के तत्कालीन सचिव उदय प्रताप सिंह ने भी सरकार को पत्र लिख कर जानकारी दी थी कि अजीत कुमार ने मामले में विभाग से कोई बात नहीं की और राज्य हित के खिलाफ काम किया।
वर्ष 2018 में शाह ब्रदर्स की माइनिंग लीज का मामला फिर अदालत पहुंचा, जब सरकार ने उस पर लीज की शर्तों के उल्लंघन पर 250 करोड़ रुपये का जुर्माना किया था। कंपनी ने हाइकोर्ट में याचिका दायर कर न्यायिक हस्तक्षेप का आग्रह किया, ताकि जुर्माने की रकम किस्तों में भुगतान की जा सके। कोर्ट ने कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया। सरयू राय ने आरोप लगाया था कि महाधिवक्ता के रूप में अजीत कुमार ने हाइकोर्ट के सामने यह तथ्य छिपाया कि सुप्रीम कोर्ट का आदेश जुर्माने की रकम एकमुश्त जमा करने का है।
मंत्री सरयू राय ने इस मामले में सरकार से एडवोकेट जनरल के खिलाफकार्रवाई की मांग की। इसपर एडवोकेट जनरल अजीत कुमार ने सरयू राय के स्टैंड को गलत ठहराते हुए 23 नवंबर 2018 को झारखंड राज्य बार काउंसिल की आपातकालीन बैठक में उनके खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित लाया। सरयू राय इसपर बिफर पड़े। सरयू राय ने इसपर ट्विट कर अपनी पीड़ा का इजहार यों किया था- भ्रष्टाचार और मनमानी के खिलाफ आवाज उठाने पर निन्दा का प्रस्ताव, वह भी कानूनविदों की संस्था द्वारा। घोर आश्चर्य, दुखद, अकल्पनीय।
सरयू राय ने मुख्यमंत्री रघुवर दास से भी इसकी शिकायत की। उनका कहना था कि जिस कैबिनेट की अनुशंसा पर महाधिवक्ता की नियुक्ति होती है, वही कैबिनेट के मंत्री के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पारित कराये तो सरकार को तत्काल उनके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने इस मामले में मुख्यमंत्री रघुवर दास से भी सीधे शिकायत की, लेकिन महाधिवक्ता पद पर बनाये रखे गये। इससे सरयू राय की सरकार से नाराजगी बढ़ी और उन्होंने फरवरी 2019 से कैबिनेट की बैठकों में जाना बंद कर दिया। अब जबकि वह पुरानी सरकार सत्ता से बाहर हो चुकी है और महाधिवक्ता अजीत कुमार ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, तब भी सरयू राय की पुरानी टीस जिंदा है। उन्होंने ट्विट किया है कि वे तत्कालीन महाधिवक्ता के खिलाफ मुकदमा करेंगे। उन्होंने इस मसले पर सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और राजनेता सुब्रमण्यम स्वामी से सलाह भी ली है।

छोड़ दिया था संसदीय कार्य मंत्री का पद
सरयू राय को रघुवर सरकार में संसदीय कार्य मंत्री भी की जिम्मेदारी भी मिली थी। लेकिन 2018 के विधानसभा सत्र में विपक्षी सदस्यों के हंगामे की वजह से सत्र नहीं चला उन्होंने सत्र के दौरान ही यह जिम्मेदारी छोड़ दी थी। तब उन्होंने कहा था कि अगर सदन नहीं चल रहा है, तो सरकार को भी इसकी जिम्मेदारी लेनी चाहिए। इसकी ठीक पहले मंत्री सरयू राय ने मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा था। इस पत्र के जरिए उन्होंने सरयू राय ने मुख्यमंत्री को बताया था कि राज्य में अवैध खनन के मामले में सबूतों पर नीचे से ऊपर तक के अधिकारी परदे डाल रहे हैं।

मैनहर्ट घोटाले पर घेरते रहे सरकार को
रांची में सिवरेज-ड्रेनेज योजना के लिए मैनहर्ट नामक कंपनी को कंसल्टेंट नियुक्त किये जाने को लेकर सरयू राय 2006 से ही सवाल उठाते रहे हैं। 2014 में भाजपा की सरकार बनी, तब भी उन्होंने इस मुद्दे को जब-तब अलग-अलग प्लेटफॉर्म पर उठाया। मैनहर्ट को कंसल्टेंट नियुक्त किये जाने के निर्णय में राज्य के तत्कालीन नगर विकास मंत्री रघुवर दास की बड़ी भूमिका मानी जाती है। रघुवर दास के मंत्रिमंडल में रहते हुए भी सरयू राय ने कभी ट्विट के जरिए तो कभी बयान जारी कर मैनहर्ट का मुद्दा जिंदा रखा। उन्होंने 19 जुलाई 2019 को इस मसले पर अपने ट्विट में लिखा था: ह्यरांची के सिवरेज-ड्रेनेज के दुर्दशा की पटकथा तो 2006 में लिख दी गई थी जब अयोग्य होने के बावजूद मेनहर्ट को परामर्शी नियुक्त किया गया। उच्च न्यायालय के आदेश पर निगरानी जांच में अयोग्य पाये जाने के बाद भी उसे काम से जोड़ा गया। लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई का ज्वलंत उदाहरण।ह्ण यह तय माना जा रहा है कि मैनहर्ट का प्रेत आने वाले वक्त में फिर जिंदा होगा और यह कई मंत्रियों व अफसरों के लिए यह परेशानी का सबब बनेगा।

…जब उन्होंने उछाला कंबल घोटाला
खाद्य आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने झारक्राफ्ट में भ्रष्टाचार और कंबल घोटाला का मामला भी बेहद प्रमुखता से उठाया था। उन्होंने मुख्यमंत्री रघुवर दास को पत्र लिख कर संलिप्त अधिकारियों पर कानूनी कार्रवाई करने की मांग की थी। इस पत्र में सरयू राय ने लिखा था कि कंबल घोटाले में आरोपियों ने वही तरीका अपनाया है, जो तरीका बिहार में हुए पशुपालन घोटाला में अपनाया गया था। उन्होंने जांच भी सीबीआइ जैसी किसी केंद्रीय एजेंसी से कराने की मांग की थी। सरयू राय ने राज्य के विकास आयुक्त द्वारा झारक्राफ्ट द्वारा कंबलों के निर्माण एवं खरीद में हुई गड़बड़ी की निगरानी जांच के आदेश पर कार्रवाई न होने पर भी अचरज जताया था।
बताया जाता है क इस घोटाले की कायदे से जांच हुई तो, इसकी आंच तत्कालीन मुख्यमंत्री के करीबी माने जाने वाले अफसरों तक भी पहुंचेगी। सरयू राय ने तब इस घोटाले पर चुटकी लेते कहा था कि नेता, अधिकारी, अभियंता, ठेकेदार सभी का गठजोड़ विकास का कंबल ओढ़कर भ्रष्टाचार का घी पीने में लगा है। इसे ध्वस्त करने की जरूरत है, न कि इससे आंख मुंदने की।

निशाने पर रहीं चीफ सेक्रेट्री राजबाला वर्मा
रघुवर सरकार में मुख्य सचिव रहीं राजबाला वर्मा भी सरयू राय के निशाने पर रहीं। मार्च 2018 में उनकी सेवानिवृत्ति के पहले सरकार ने चर्चा के लिए एक बैठक बुलायी थी। इसमें मुख्यमंत्री ने राजबाला वर्मा की सेवा को विस्तार देने की इच्छा जाहिर की थी। इसपर सरयू राय ने विरोध जताया था। सरयू राय का कहना था कि 1991-92 में पश्चिमी सिंहभूम की उपायुक्त रहते हुए राजबाला वर्मा ने पशुपालन घोटाले के आरोपी तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को बचाने की कोशिश की थी। उनपर भ्रष्टाचार और गड़बड़ी के कई अन्य आरोप हैं। इसलिए उन्हें किसी हाल में सीएस के रूप में अवधि विस्तार नहीं मिलना चाहिए।
सरयू के विरोध के बाद विपक्ष ने भी इस मुद्दे को हाथों-हाथ लिया और अंतत: राजबाला वर्मा को सेवा विस्तार नहीं मिल पाया। राजबाला वर्मा जब सेवानिवृत्त हुईं तो 6 मार्च 2018 को कैबिनेट की बैठक में निवर्तमान मुख्य सचिव राजबाला वर्मा के कार्यकाल को उत्कृष्ट बताते हुए उनके प्रति आभार व्यक्त करने का प्रस्ताव लाया गया। जब मंत्री सरयू राय को इसकी जानकारी मिली तो उन्होंने जबर्दस्त तरीके से विरोध दर्ज कराया। अंतत: कैबिनेट को सरयू राय की असहमति का सम्मान करना पड़ा और इस प्रस्ताव को विलोपित करना पड़ा। सरकार राजबाला वर्मा को बाद में सलाहकार बनाना चाहती थी, लेकिन सरयू राय के मुखर विरोध की वजह से ऐसा निर्णय नहीं लिया जा सका।

जब पार्टी को वापस लेना पड़ा नारा
सरकार ही नहीं, भारतीय जनता पार्टी में भी सरयू राय ने एक व्यक्ति को केंद्र में रखकर लिये जाने वाले फैसलों पर विरोध जताया। उन्होंने विरोध के अपने मुद्दों को लेकर पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह को भी पत्र लिखा। दिल्ली जाकर उन्हें अपनी भावना से अवगत कराया। 2019 चुनाव के लिए भारतीय जनता पार्टी ने जब घर-घर रघुवर का नारा सामने लाकर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया तो सरयू राय इसके विरोध में खड़े हो गये।
उन्होंने घर-घर रघुवर की जगह घर-घर कमल का नारा तय करने का सुझाव दिया। इस मसले पर 4 सितंबर 2019 का उनका ट्विट उल्लेखनीय है, जिसमें उन्होंने लिखा- ह्यझारखंड प्रदेश अध्यक्ष श्री लक्ष्मण गिलुआ से दूरभाष पर बात हुई। उन्हें सलाह दिया कि चुनावी दृष्टि से जनसम्पर्क अभियान का नारा – ह्लघर घर कमलह्व – तय करें। यह वाक्य केवल नारा नही होगा बल्कि निष्ठा का प्रतीक भी होगा। मेरा यह सुझाव उन्हें अच्छा लगा।
सरयू राय के विरोध के कारण पार्टी ने यह नारा वापस लिया। माना जाता है कि सरयू राय की ओर से सरकार को लगातार कठघरे में खड़े जाने की वजह से ही मुख्यमंत्री रघुवर दास के दबाव में पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं देने का फैसला किया। वैसे, पार्टी के इस फैसले के बाद सरयू राय ने बगावत का जो झंडा बुलंद किया, उसके नतीजे सबके पता हैं। सभी मानते हैं कि सरयू राय की बगावत भाजपा को भारी पड़ी और उसके सत्ता से बाहर होने की एक प्रमुख वजह बनी।

बकोरिया कांड पर सरयू राय का स्टैंड
पलामू के बकोरिया में नक्सली बताकर ग्रामीणों की हत्या की घटना पर भी सरयू राय ने सरकार से हटकर अपना अलग स्टैंड तय किया। झारखंड हाई कोर्ट ने इस मामले की सीबीआई से जांच कराने का फैसला दिया तो सरकार इस फैसले के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट में अपील की दिशा में आगे बढ़ी। इसपर सरयू राय ने मुख्यमंत्री रघुवर दास से आग्रह किया कि वह बकोरिया कांड की सीबीआई जांच कराने के झारखंड उच्च न्यायालय के फैसला के विरूद्ध सरकार सुप्रीम कोर्ट में अपील नही करे। सरयू राय ने कहा: मैंने माननीय उच्च न्यायालय का फैसला पढ़ा है। सीबीआई ने जांच आरम्भ कर दी है। इसे होने देना श्रेयस्कर होगा।

लगातार उजागर करते रहे सरकारी भ्रष्टाचार
बिजली वितरण में भ्रष्टाचार के सवाल पर भी सरयू राय लगातार मुखर रहे। उन्होंने मोमेंटम झारखंड में फिजूलखर्ची और एक दिन में 25 हजार लोगों को रोजगार जैसे मुद्दों की सच्चाई भी उजागर करने से गुरेज नहीं की। उन्होंने झारखंड सरकार द्वारा रोजगार देने से जुड़ा रिकॉर्ड लिम्का बुक आॅफ रिकॉर्ड में दर्ज किए गए नाम पर भी टिप्पणी करते हुए कहा कि इतनी बड़ी संस्था बिना जांच के ही कैसे इतनी बड़ी गलती कर सकती है।
बिजली वितरण के भ्रष्टाचार पर उन्होंने अपनी तीखी टिप्पणी में कहा था कि बिजली वितरण मुख्यालय का भ्रष्टाचार और बिजली आधारित उद्योगों की बिजली चोरी राज्य में निर्बाध बिजली आपूर्ति के मार्ग की सबसे बड़ी बाधा और बिजली संकट का सबसे बड़ा कारण है।
इनपर अंकुश लगे और घरेलू लाइनों से उद्योगों का कनेक्शन अलग कर दिया जाय तो बिजली की घरेलू आपूर्ति तुरत सुधर जायेगी।

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