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चुनाव आयोग की घोषणा के बाद झारखंड में रामगढ़ सीट के उपचुनाव की सुगबुगाहट भी शुरू हो गयी है। 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद से झारखंड में अब तक चार सीटों पर उपचुनाव हुए हैं और इन सभी में सत्ता पक्ष, यानी झामुमो और कांग्रेस को जीत हासिल हुई। इसलिए इस बार भी रामगढ़ सीट पर कब्जा बरकार रखने के लिए कांग्रेस और उसका सहयोगी झामुमो अपना सब कुछ दांव पर लगाने के लिए तैयार है, वहीं आजसू यहां से 2019 में मिली करारी पराजय का बदला लेने के लिए भाजपा के साथ मिल कर पूरी ताकत लगायेगी। इस राजनीतिक झकझूमर के अलावा रामगढ़ का उपचुनाव हेमंत सोरेन सरकार के कामकाज का छोटा टेस्ट भी होगा। इसलिए दोनों पक्ष इसमें पूरी ताकत झोंकेंगे। रामगढ़ आजसू का गढ़ रहा है, लेकिन 2019 में कांग्रेस ने इस गढ़ को भेदने में सफलता हासिल की थी। पिछले चुनाव में कांग्रेस की ममता देवी ने आजसू के सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता चौधरी को पटखनी दी थी, लेकिन अदालती फैसले के कारण उनकी विधायकी चली गयी है। इस बात इतना तय है कि रामगढ़ में मुकाबला कांग्रेस-झामुमो बनाम आजसू-भाजपा के बीच होगा, यानी एक तरह से यह मुकाबला मोदी मैजिक बनाम हेमंत की हिम्मत का लिटमस टेस्ट होगा। 27 फरवरी को होनेवाले मतदान के लिए शुरू हुई राजनीतिक सुगबुगाहट के बीच रामगढ़ का चुनावी परिदृश्य क्या है और राजनीतिक दलों ने क्या तैयारियां की हैं, यह जानना बेहद दिलचस्प हो सकता है। रामगढ़ विधानसभा उपचुनाव के लिए बननेवाले सियासी समीकरणों पर नजर डाल रहे हैं आजाद सिपाही के रामगढ़ ब्यूरो प्रभारी वीरू कुमार।
रामगढ़ विधानसभा क्षेत्र में उपचुनाव की घोषणा हो चुकी है। वोटिंग 27 फरवरी और वोटों की गिनती दो मार्च को होगी। अभी जो राजनीतिक परिदृश्य उभर रहा है, उसमें साफ दिख रहा है कि चार पार्टियों से दो उम्मीदवार मैदान में होंगे और मुकाबला इन्हीं दोनों के बीच होगा। एक तरफ कांग्रेस-झामुमो का प्रत्याशी होगा, तो दूसरी तरफ आजसू-भाजपा का। उम्मीदवार कौन होगा, इसकी घोषणा नहीं हुई है, लेकिन अब तक के संकेतों के अनुसार, रामगढ़ की निवर्तमान कांग्रेस विधायक ममता देवी के पति बजरंग महतो के सामने गिरिडीह के आजसू सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता चौधरी होंगी।
क्या है झारखंड में उपचुनाव का इतिहास
झारखंड की सियासी संवेदनशीलता से पूरा देश परिचित है। खनिज संपदा से भरपूर इस राज्य में होनेवाला हर चुनाव बेहद रोमांचक और कांटे की टक्कर वाला होता है। अपने 22 साल के इतिहास में झारखंड ने जितने भी चुनाव देखे हैं, वे सभी रोमांचक रहे। मुकाबला कभी भी एकतरफा नहीं रहा। 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में राज्य में पहली बार किसी एक गठबंधन को स्पष्ट बहुमत हासिल हुआ। फिर 2019 में भी जनता से स्पष्ट जनादेश सुनाया। जहां तक उप चुनावों का सवाल है, तो ये और भी रोमांचक हुए हैं। विधायकों के निधन के कारण जिन सीटों पर उपचुनाव हुए, वहां तो जनता की सहानुभूति उनके उत्तराधिकारियों को मिली, लेकिन दूसरे कारणों से खाली होनेवाली सीटों पर अधिकतर बार प्रतिद्वंद्वी को जनता को सिर-आंखों पर बैठाया। गोमिया, सिल्ली और मांडर इसका अपवाद रहा है, क्योंकि यहां अदालती आदेश के कारण जिन विधायकों की सदस्यता गयी, उनकी पत्नियों या पुत्री ने उपचुनाव में जीत हासिल की। यह भी संयोग है कि ये तीनों सीटें पहले भी यूपीए ने जीती थी और उपचुनाव में भी यूपीए की ही जीत हुई। इस रोचक रिकॉर्ड की पृष्ठभूमि में रामगढ़ में होनेवाला उपचुनाव बेहद दिलचस्प होने की पूरी संभावना है।
झारखंड में उप चुनाव का रिकॉर्ड बेहद रोचक रहा है। यहां उपचुनाव में मुख्यमंत्री की हार भी हुई है और प्रतिद्वंद्वियों की जीत भी। तमाड़ उपचुनाव में जहां तत्कालीन मुख्यमंत्री उपचुनाव हार गये थे, वहीं लोहरदगा और कोलेबिरा में प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों ने जीत हासिल की थी। बरकट्ठा और गोड्डा में दिवंगत विधायकों के राजनीतिक उत्तराधिकारियों ने जीत हासिल की।
लोहरदगा और कोलेबिरा में एक बार उप चुनाव हुआ, क्योंकि वहां से निर्वाचित विधायकों को अदालत ने सजा सुना दी थी और उनकी सदस्यता रद्द हो गयी थी। लेकिन दोनों सीटों पर हुए उपचुनाव में प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवारों ने जीत हासिल कर ली।
क्या था रामगढ़ विधानसभा सीट का परिणाम
पिछले चुनाव में कांग्रेस की ममता देवी ने आजसू के दिग्गज नेता चंद्रप्रकाश चौधरी की पत्नी सुनीता चौधरी को 28 हजार 718 वोटों से हराया था। तीसरे नंबर पर भाजपा के उम्मीदवार रणंजय कुमार को 31 हजार 874 वोट मिले थे। उस चुनाव में आजसू और भाजपा के बीच तालमेल नहीं था। उस स्थिति में भाजपा और आजसू के वोटों को अगर जोड़ दिया जाये, तो आकंड़ा एक लाख तीन हजार एक सौ पहुंच जाता है, जो कि जीत के लिए काफी था। ममता देवी की जीत का एक कारण यह भी था कि आजसू-भाजपा ने अलग-अलग प्रत्याशियों पर दांव लगाया था।
इस बार भी पूरा मामला पिछली बार जैसा ही होगा। अंतर बस इतना होगा कि इस बार ममता देवी की जगह उनके पति बजरंग महतो चुनाव लड़ेंगे। वहीं पिछली बार जिस तरीके से आजसू को भाजपा के उम्मीदवार का भी सामना करना पड़ा था, इस बार ऐसा नहीं होगा।
2019 के बाद चार उपचुनाव हारी है बीजेपी
गौरतलब है कि झारखंड में 2019 के विधानसभा चुनाव के बाद से चार उपचुनाव हुए हैं। सभी सीटों पर महागठबंधन प्रत्याशी जीते। बेरमो और मांडर में कांग्रेस की जीत हुई, वहीं दुमका और मधुपुर में झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जीत हासिल की। इन सभी चुनावों में भाजपा ने पूरी ताकत झोंकी, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। बतौर प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश के लिए भी रामगढ़ उपचुनाव नाक की लड़ाई है। 2019 के चुनावों के बाद भाजपा में वापसी करने वाले बाबूलाल मरांडी को भी रामगढ़ उपचुनाव में खुद को साबित करना होगा, क्योंकि भाजपा के लिए भीड़ और वोट जुटाऊ नेता माने जाने वाले बाबूलाल मरांडी की वापसी के बाद से पार्टी तीन उपचुनाव हार चुकी है। पार्टी यह भी ध्यान में रखेगी।
रामगढ़ में क्या होंगे चुनावी मुद्दे
रामगढ़ उपचुनाव में भाजपा-आजसू या एनडीए के पास बेरोजगारी, बेरोजगारी भत्ता, कानून-व्यवस्था, महिला अपराध और शिक्षा जैसे मुद्दे हैं। अवैध खनन और मनी लांड्रिंग को लेकर मुख्यमंत्री से हुई इडी की पूछताछ और उनके विधायक प्रतिनिधि पर कसा शिकंजा भी एनडीए के लिए मुद्दा होगा। दूसरी ओर सरकार पारा शिक्षकों को लेकर बनी नियमावली, आंगनबाड़ी सेविका-सहायिका मानदेय वृद्धि, पुलिसकर्मी क्षतिपूर्ति अवकाश, 1932 की खतियान आधारित स्थानीय नीति और सरना धर्म कोड को लेकर जनता के बीच जायेगी।
दोनों पक्षों के अपने-अपने दावे
रामगढ़ में दोनों पक्षों ने अपनी-अपनी जीत का जावा किया है। भाजपा का कहना है कि 2005, 2009 और 2014 में रामगढ़ से चंद्रप्रकाश चौधरी जीते। तब आजसू और भाजपा साथ थी। 2019 में दोनों अलग हुए और हार का सामना करना पड़ा। अब एनडीए में आजसू की वापसी हो गयी है। एनडीए के पास रामगढ़ में सवा लाख वोट है, इसलिए उसकी जीत तय है। हालांकि पार्टी नेता उपचुनावों में मिली हार के बारे में कहते हैं कि पार्टी ने सभी उपचुनाव गंभीरता से साथ लड़े, लेकिन यह समझना होगा कि वे सभी सीटें महागठबंधन में शामिल दलों की परंपरागत सीटें थीं। लेकिन हर सीट पर भाजपा का वोट शेयर बढ़ा था।
उधर कांग्रेस ने कहा है कि रामगढ़ में तैयारी पूरी है। वह पूरी मजबूती से रामगढ़ में लड़ेगी और जीतेगी भी। यह कांग्रेस की सीट है। कांग्रेस नेताओं के अनुसार, रामगढ़ में जनता ने पांच साल का जनादेश दिया था, लेकिन आंदोलन करने वाली नेता को साजिशन जेल भेजा गया। रामगढ़ की जनता सारा सच जानती है।
इस तरह रामगढ़ सीट पर होनेवाले उपचुनाव का बेहद रोमांचक होना तय है। इस चुनावी झकझूमर का अंतिम परिणाम क्या होगा, यह तो अभी नहीं कहा जा सकता है, लेकिन इतना तय है कि रामगढ़ में इस सवाल का जवाब जरूर मिलेगा कि झारखंड में मोदी मैजिक चलेगा या हेमंत की हिम्मत।