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कांग्रेस नेता राहुल गांधी अपनी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के अंतिम दौर में ‘अपने घर’ जम्मू-कश्मीर पहुंच चुके हैं। साढ़े तीन हजार किलोमीटर की उनकी यह यात्रा 30 जनवरी को श्रीनगर में खत्म होगी, लेकिन कांग्रेसियों के साथ राहुल के समर्थक अभी से यही सोचने लगे हैं कि 30 जनवरी के बाद वे क्या करेंगे। यह सवाल कुछ दिन पहले राहुल गांधी से मीडियाकर्मियों ने पूछा भी था, तो उन्होंने जवाब दिया था कि करने के लिए बहुत सारे काम हैं। लेकिन यह बात हल्के-फुल्के अंदाज में कही गयी थी। अब गंभीरता से यह सवाल उठ रहा है। दरअसल 2014 के बाद से देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी ने जो रवैया अख्तियार कर रखा है, उससे कहीं से ऐसा नहीं लगता कि आक्रामक राजनीति के इस दौर में वह अपने प्रतिद्वंद्वियों के करीब आने की भी कोशिश कर रही है। ऐसे में 2024 का आम चुनाव सामने है, जिसे जीतना कांग्रेस के अस्तित्व के लिए बेहद जरूरी है। इतना ही नहीं, यूपी और गुजरात में हुए विधानसभा चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन ने इसी साल होनेवाले छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्यप्रदेश के अलावा छह अन्य राज्यों के चुनाव में उसकी संभावनाओं को बहुत कम कर दिया है। ऐसे में साफ है कि यात्रा के बाद कांग्रेस की असली चुनौती शुरू होगी और 2024 के लिए अभी उसे लंबा सफर तय करना होगा। इसलिए कहा जा सकता है कि 2024 के लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस के लिए परिस्थितियां काफी चुनौती भरी रहने वाली हैं। कुछ चुनौतियों को पार करने के बाद ही 2024 का रास्ता कुछ आसान बनेगा। ‘भारत जोड़ो यात्रा’ कितनी सफल होगी, यह 2024 का लोकसभा चुनाव परिणाम से ही तय हो सकेगा, लेकिन इतना जरूर कहा जा सकता है कि इससे कांग्रेस के वोटरों और कार्यकर्ताओं में एक उम्मीद जगी है। इसलिए यह यात्रा असफल नहीं होगी, बशर्ते यह जोश और उत्साह आगे भी बना रहे। कांग्रेस के सामने पैदा होनेवाली इसी चुनौती के बारे में बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ 30 जनवरी को श्रीनगर में ध्वजारोहण के साथ खत्म हो जायेगी। तब कश्मीर से वापस दिल्ली आने के बाद राहुल गांधी क्या करेंगे और कांग्रेस की रणनीति क्या रहेगी, यह सवाल इन दिनों राजनीतिक हलकों में खूब उछल रहा है। 2024 को लेकर कांग्रेस का सारा खेल इसी सवाल के जवाब पर निर्भर करता है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि 2024 लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस के लिए परिस्थितियां काफी चुनौती भरी रहने वाली हैं। इन चुनौतियों को पार करने के बाद ही 2024 का रास्ता कुछ आसान बनेगा। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी इन चुनौैतियों से कैसे पार पाती है।
क्या हैं चुनौतियां
कांगे्रस के सामने पहली चुनौती राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर बड़ा फेरबदल कर संगठन को मजबूत बनाने की है, क्योंकि सिर्फ मल्लिकार्जुन खड़गे को कांग्रेस अध्यक्ष बनाने से 2024 की राह आसान नहीं होने वाली। कांग्रेस को भाजपा की तरह बूथ स्तर पर अपने संगठन को मजबूत करना होगा। फिर यह तय करना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी कि 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुकाबले किसे आगे किया जाये। वैसे वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए कांग्रेस को किसी व्यक्ति के बदले भाजपा बनाम कांग्रेस पार्टी के बीच मुकाबला कराने वाली रणनीति पर काम करना चाहिए। यह एक हकीकत भी है कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ से राहुल गांधी की छवि काफी बेहतर हुई है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी से राहुल का सीधा मुकाबला कांग्रेस के लिए नुकसानदायक हो सकता है। दरअसल भाजपा अभी भी यही चाहती है कि कांग्रेस नरेंद्र मोदी के मुकाबले राहुल गांधी को ही आगे करे, ताकि वह परिवारवाद और ‘पप्पू’ के अपने पुराने नैरेटिव को केंद्र में रख कर चुनाव के दौरान कांग्रेस के खिलाफ इसका इस्तेमाल कर सके।
कांग्रेस में चाटुकारिता खत्म करनी होगी
कांग्रेस की अगली चुनौती उस संस्कृति को खत्म करना है, जो चाटुकारिता को प्रश्रय देती है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश का हालिया बयान इस संदर्भ में अच्छा है। उन्होंने कहा कि ‘भारत जोड़ो यात्रा’ राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के रूप में प्रोजेक्ट करने के लिए नहीं है। अब गांधी परिवार के कुछ चाटुकार नेताओं को यह बात समझानी होगी, जो चाटुकारिता के चक्कर में बार-बार राहुल गांधी को प्रधानमंत्री उम्मीदवार बताते रहते हैं। इसके बाद कांग्रेस के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण काम प्रादेशिक नेताओं के बीच चल रही वर्चस्व की लड़ाई को खत्म कर इकट्ठे होकर चुनाव लड़ना है। यह 2023 में नौ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के लिहाज से भी बेहद महत्वपूर्ण है। इनमें से छह राज्य छत्तीसगढ़, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान, मेघालय और मिजोरम में कांग्रेस मजबूत स्थिति में है। लेकिन यदि इस बार कांग्रेस चूकती है, तो फिर 2024 की संभावनाओं पर विराम लग सकता है।
कांग्रेस को यह भी याद रखना होगा कि उसे उस भाजपा से मुकाबला करना है, जो 2014 के बाद से हमेशा चुनावी मोड में ही रहती है। इसलिए साफ है कि वह लोकसभा का सेमीफाइनल कहे जाने वाले आगामी विधानसभा चुनावों में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए कहा कि हमें 2023 और 2024 का एक भी चुनाव नहीं हारना है। कांग्रेस को भाजपा के इस आत्मविश्वास और तैयारी से मुकाबला करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा।
जहां तक चुनावी राज्यों में कांग्रेस के प्रदर्शन का सवाल है, तो मिजोरम में पिछले चुनाव में कांग्रेस को करीब 30 प्रतिशत वोट मिले थे। वहीं मेघालय में 28.5 प्रतिशत वोट के साथ सबसे वह बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, लेकिन सरकार नहीं बना सकी थी। छत्तीसगढ़ और राजस्थान में तो कांग्रेस की सरकार है, लेकिन दोनों ही राज्यों में आपसी गुटबाजी चरम पर है। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच 2018 में सरकार बनने के बाद से ही विवाद चल रहा है। चुनाव के बाद तय हुआ कि दोनों ढाई-ढाई साल बाद सीएम रहेंगे, लेकिन ढाई साल बाद भी आलाकमान ने भूपेश बघेल को ही मौका दे दिया। अब चुनाव के समय अगर वह इधर-उधर होते हैं, तो कांग्रेस को नुकसान उठाना पड़ेगा। राजस्थान में तो पिछले दो साल से लगातार राजनितिक ड्रामा चल रहा है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच की तनातनी रोज चर्चा में रहती है। चुनाव तक अगर ऐसा ही चलता रहा, तो कांग्रेस की सत्ता हाथ से निकल सकती है।

कांग्रेस अपनी हालत सुधार सकती है
कर्नाटक में ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के दौरान तो प्रदेश के नेता एक साथ दिखे, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार के बीच आपसी खींचतान काफी लंबे समय से चल रही है। अगर कर्नाटक में कांग्रेस सही ढंग से चुनाव लड़े, तो जीत सकती है, क्योंकि यहां भाजपा में भी आपसी लड़ाई काफी ज्यादा है। बीएस येदुरप्पा मुख्यमंत्री पद से हटाये जाने के बाद से काफी नाराज चल रहे हैं। उनकी नाराजगी भाजपा को भारी पड़ सकती है। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे भी कर्नाटक से ही आते हैं। इसलिए कर्नाटक कांग्रेस के लिए प्रतिष्ठा का सवाल भी है। मध्यप्रदेश में भाजपा सरकार से लोग काफी नाराज हैं, लेकिन कांग्रेस को इसका फायदा उठाने के लिए ज्योतिरादित्य सिंधिया के समर्थक विधायकों वाली करीब 25 सीटों पर अपनी स्थिति मजबूत करनी होगी, जो 2020 में कांग्रेस छोड़कर सिंधिया के साथ भाजपा में चले गये थे। इसके अलावा छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश और कर्नाटक में लोकसभा की कुल 93 सीटें हैं। कर्नाटक में तीन-चार सीट जेडीएस वाली छोड़कर करीब 90 सीटों पर कांग्रेस का सीधा मुकाबला भाजपा से है। 2019 में भाजपा ने इनमें से 87 सीटों पर जीत हासिल की थी। अगर यहां पर कांग्रेस भाजपा को आधे पर भी रोक देती है, तो भाजपा सांसदों की संख्या 302 से घटकर 258 हो जायेगी, जो पूर्ण बहुमत से 14 कम है। इसके अलावा बिहार, उत्तरप्रदेश, पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में भी भाजपा की सीट कम हो सकती है।
इन तमाम परिस्थितियों में साफ है कि कांग्रेस के पास करने को बहुत कुछ है, लेकिन सवाल यही है कि वह करे, तब ना। यात्रा खत्म करने के बाद राहुल और कांग्रेस के दूसरे नेता इन तथ्यों को अवसरों में कितना बदल पाते हैं, इसका जवाब पाने के लिए अभी इंतजार करना होगा।

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