रांची। झारखंड के दिवंगत नेता कमल किशोर भगत की पत्नी और आजसू पार्टी की पूर्व प्रत्याशी नीरु शांति भगत ने आदिवासी समाज की बहुप्रतीक्षित मांग सरना धर्म कोड लागू करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अपील की है। नीरु शांति भगत ने इस मुद्दे को सिर्फ धार्मिक नहीं, बल्कि अस्तित्व, संस्कृति और पहचान से जुड़ा हुआ बताया।
सरना धर्म कोड: पहचान और संरक्षण का मुद्दा
नीरु शांति भगत ने अपने पत्र में कहा कि सरना धर्म कोड आदिवासी समाज की धार्मिक परंपराओं, प्रकृति-पूजा और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण कदम होगा। उन्होंने बताया कि आदिवासी समाज जल, जंगल और जमीन के साथ अपने पूर्वजों की पूजा करते हुए प्रकृति के उपासक हैं। यह कोड उनकी विशिष्ट पहचान को दर्ज कराएगा, जो अभी अन्य धर्मों के अंतर्गत खो जाती है।
2011 की जनगणना का हवाला देते हुए नीरु भगत ने बताया कि झारखंड में लगभग 86.45 लाख जनजातीय थी, जो कुल आबादी का 26.2% हैं। इनमें से लगभग 50 लाख लोगों ने अपने धर्म को “सरना” के रूप में दर्ज कराया, हालांकि सरकार द्वारा इसे मान्यता नहीं मिली।
झारखंड सरकार का समर्थन
झारखंड विधानसभा ने नवंबर 2020 में सर्वसम्मति से सरना धर्म कोड पर प्रस्ताव पारित किया और इसे केंद्र सरकार को भेजा। यह प्रस्ताव 2021 की जनगणना में सरना धर्म को अलग कॉलम में दर्ज करने की मांग करता है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भी केंद्र सरकार को पत्र लिखकर आदिवासियों की इस मांग पर जोर दिया।
नीरु शांति भगत ने बताया कि उनके दिवंगत पति, झारखंड आंदोलन के प्रमुख नेता कमल किशोर भगत, ने भी विधानसभा में इस मुद्दे को बार-बार उठाया था। उनका मानना था कि यह केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि पारंपरिक रीति-रिवाज और आदिवासियों की पहचान से जुड़ा हुआ विषय है।
सरना धर्म कोड की आवश्यकता
अलग धार्मिक पहचान: आदिवासी समुदाय को हिंदू, ईसाई या अन्य धर्मों के बजाय उनकी अपनी धार्मिक पहचान मिलेगी।
संस्कृति और परंपरा का संरक्षण: सरना कोड आदिवासी रीति-रिवाजों और जीवनशैली को संरक्षित करने का माध्यम बनेगा।
सरकारी योजनाओं में प्रतिनिधित्व: अलग कोड से सरकार द्वारा आदिवासियों के लिए विशेष नीतियां और योजनाएं बनाना आसान होगा।
आदिवासी समाज की बढ़ती आवाज
सरना धर्म कोड के समर्थन में झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में आंदोलन और प्रदर्शन हो रहे हैं। आदिवासी संगठन दिल्ली तक इस मांग को लेकर प्रदर्शन कर चुके हैं। आदिवासी समुदाय का कहना है कि 1871 से 1951 तक की जनगणना में उनका धर्म एक अलग श्रेणी में दर्ज होता था।
नीरु शांति भगत ने प्रधानमंत्री मोदी से अपील करते हुए कहा, “आपने हमेशा आदिवासी समाज के मान-सम्मान और विकास के लिए कदम उठाए हैं। सरना धर्म कोड लागू करके आप हमारे अस्तित्व, संस्कृति और धार्मिक स्वतंत्रता को संरक्षित करने का एक ऐतिहासिक निर्णय ले सकते हैं।”
केंद्र सरकार से उम्मीदें
नीरु शांति भगत की इस अपील ने आदिवासी समाज की भावनाओं को नई ऊर्जा दी है। अब यह देखना होगा कि केंद्र सरकार इस महत्वपूर्ण मांग पर कब और क्या निर्णय लेती है।