विशेष
दिल्ली चुनाव से पहले पंक्चर हो गयी विपक्षी गठबंधन की गाड़ी
आप, टीएमसी, सपा और राजद के बाद अबदुल्ला ने भी झाड़ा पल्ला
महज 17 माह ही चल सका ताम-झाम से बना विपक्षी गठबंधन
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
17 जुलाई, 2023 को बेंगलुरू में पूरे ताम-झाम के साथ बना विपक्षी दलों का गठबंधन, यानी इंडी अलायंस अब खत्म हो गया है। यदि खत्म नहीं हुआ है, तो जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला ने इसे खत्म करने की जरूरत बता दी है। दिल्ली में होनेवाले विधानसभा चुनाव से पहले विपक्षी गठबंधन की यह गाड़ी केवल कांग्रेस के कारण पंचर हो गयी है। पहले आम आदमी पार्टी फिर तृणमूल कांग्रेस उसके बाद समाजवादी पार्टी ने कांग्रेस को बाय बोल दिया, जिससे इंडी अलायंस का अस्तित्व डोलता हुआ नजर आने लगा था, लेकिन फिर राजद के तेजस्वी यादव ने इस गठबंधन के अस्तित्व के खत्म होने का एलान यह कहते हुए कर दिया कि यह गठबंधन केवल लोकसभा चुनाव के लिए बना था। दिल्ली में आप और कांग्रेस के अलग-अलग चुनाव मैदान में उतरने के बाद से ही यह कयास लगाये जाने लगे थे कि इंडी अलायंस अब केवल दिखावे के लिए रह गया है। लेकिन बाद में सपा और टीएमसी द्वारा आप को समर्थन दिये जाने के बाद यह पूरी तरह साफ हो गया। इंडी अलायंस का अस्तित्व खत्म होने के पीछे केवल कांग्रेस को जिम्मेदार ठहाराय जा रहा है, जो क्षेत्रीय दलों की ताकत को स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। आप से उसका मतभेद पहले हरियाणा में हुआ और अब दिल्ली में इसकी कीमत पूरे गठबंधन को चुकानी पड़ी है। इंडी गठबंधन का अस्तित्व खत्म होने का दूरगामी असर पड़ना निश्चित है, क्योंकि इसी साल बिहार विधानसभा का चुनाव भी होना है। इंडी गठबंधन के खत्म होने का क्या हो सकता है राजनीतिक असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को लगातार तीसरी बार सत्ता में आने से रोकने के लिए 17 जुलाई, 2023 को बना इंडी अलायंस, यानी इंडियन नेशनल डेमोक्रेटिक इनक्लूसिव अलायंस महज 17 महीने बाद ही इतिहास के पन्नों में समा गया है। दूसरे शब्दों में कहा जाये, तो इंडी ब्लॉक एक ही झटके में बिखर गया है। इस साल हुए लोकसभा चुनाव में बहुमत से दूर रहने और हरियाणा-महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में एनडीए से मात खाने के बाद इस गठबंधन की गाड़ी दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले पंचर हो गयी है। अब इसके सहयोगी इसका पुर्जा-पुर्जा अलग कर रहे हैं।
ऐसे शुरू हुई इंडी अलायंस के बिखरने की कहानी
इंडी अलायंस के बिखरने की कहानी दिसंबर महीने में उस समय शुरू हुई, जब बंगाल की सीएम और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने राहुल गांधी के नेतृत्व को चुनौती दी। फिर एक-एक कर राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव, समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव, एनसीपी नेता शरद पवार और शिवसेना के उद्धव ठाकरे ने ममता बनर्जी के नेतृत्व करने के प्रस्ताव पर सहमति जता दी। इसके बाद रही-सही कसर आम आदमी पार्टी (आप) ने उस समय पूरी कर दी, जब उसने दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग से मना कर दिया। कांग्रेस ने भी अकेले चुनाव मैदान में उतरने की घोषणा कर दी। आप सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल को उस समय बड़ी सफलता हासिल हुई, जब सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव और तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी ने उन्हें समर्थन देने का एलान कर दिया। इसके बाद इंडी अलायंस के अस्तित्व पर सवालिया निशान लगने लगा, लेकिन राजद नेता तेजस्वी यादव ने यह कह कर कि इंडी अलायंस केवल लोकसभा चुनाव के लिए बना था, इस गठबंधन को पूरी तरह खत्म कर दिया।
2019 से बनता-बिखरता रहा है विपक्षी गठबंधन
देश में 2019 से ही भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने का प्रयास होता रहा है। पहली बार 2019 में आंध्र प्रदेश के सीएम और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) नेता चंद्रबाबू नायडू ने भाजपा विरोधी मोर्चा बनाने की पहल की थी। तब वे एनडीए से बाहर थे। दूसरी बार 2021 में बंगाल फतह करने के बाद ममता बनर्जी ने प्रयास किया। निराशा हाथ लगने पर दोनों ने मौन धारण कर लिया था। तीसरा प्रयास महागठबंधन में रहते बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने किया। उन्हें सफलता जरूर मिली, लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव के पहले ही उन्होंने अपनी राह अलग कर ली। उन्होंने फिर से भाजपा के साथ जाना पसंद किया। बची कसर जनता ने पूरी कर दी, जब विपक्षी गठबंधन बहुमत से दूर रह गया।
ममता बनर्जी ने डाले बिखराव के बीज
इंडी अलायंस में बिखराव का बीजारोपण ममता बनर्जी ने किया था। देश भर में विपक्षी पार्टियों ने इंडी अलायंस के बैनर तले उम्मीदवार उतारे, लेकिन बंगाल में ममता बनर्जी ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने कांग्रेस और वाम दलों को भाजपा की तरह ही दुश्मन बता कर दूरी बना ली। टीएमसी, कांग्रेस और वाम दलों ने अलग-अलग उम्मीदवार उतारे। ममता ने यह साबित भी कर दिया कि बंगाल में भाजपा से टक्कर लेने के लिए वे अकेले ही काफी हैं। टीएमसी संसदीय चुनाव में 22 सीटें जीत कर लोकसभा में चौथी बड़ी पार्टी बन गयी। इंडी अलायंस में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के बाद टीएमसी तीसरी बड़ी पार्टी है।
तेजस्वी और लालू के बदले रुख की वजह
पहले लालू यादव का इंडी अलायंस के नेतृत्व पर ममता बनर्जी को समर्थन और अब उनके बेटे तेजस्वी यादव द्वारा इंडी अलायंस का गठन सिर्फ लोकसभा चुनाव तक के लिए बताना आश्चर्य पैदा करता है। इसलिए कि लालू परिवार और सोनिया गांधी के परिवार के बीच के रिश्ते जैसे रहे हैं, उसमें ऐसी बातें आश्चर्य तो पैदा करेंगी ही। पहले की नजदीकियों को छोड़ भी दें, तो बीते साल-डेढ़ साल में कई ऐसे मौके आये, जब दोनों परिवारों की नजदीकियां लोगों ने देखीं। मानहानि मामले में राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट से जब राहत मिली, तो सबसे पहले वे लालू यादव से ही मिलने दिल्ली में मीसा भारती के आवास पर गये। लालू ने उन्हें बिहारी मटन का भोज भी कराया। राहुल जब भारत जोड़ो न्याय यात्रा के क्रम में बिहार आये, तो तेजस्वी यादव उनके गाइड और सारथी बने। इतना ही नहीं, पटना में हुई विपक्षी दलों की पहली बैठक में लालू ने ही राहुल गांधी को विपक्षी दूल्हा बनने का प्रस्ताव दिया। फिर राहुल और इंडी अलायंस के बारे में लालू परिवार की इतनी बेरुखी आश्चर्य तो पैदा करेगी ही।
विधानसभा चुनाव में सीट शेयरिंग पर फंसा पेंच
दिल्ली में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को भाव नहीं दिया। हरियाणा में तालमेल को लेकर कांग्रेस के रुख से आहत आप ने बिना किसी से तालमेल किये सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार दिये। बिहार में भी राजद पिछली बार की तरह कांग्रेस को तवज्जो देने के मूड में नहीं है। 2020 में राजद से 70 सीटें कांग्रेस ने ले ली थीं, लेकिन जीतीं सिर्फ 19 सीटें। तेजस्वी यादव और लालू यादव को अब तक इस बात का मलाल है कि कांग्रेस को उतनी सीटें नहीं मिली होतीं, तो तेजस्वी ही शायद सीएम होते। दर्जन भर सीटों की कमी से तेजस्वी चूक गये थे। लोकसभा चुनाव में कांग्रेस द्वारा एक सौ सीटें जीतने के बाद से ही राजद को आशंका थी कि बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अब अधिक सीट के लिए दबाव डालेगी। इसलिए लालू ने नेतृत्व के लिए ममता का समर्थन कर दिया और अब तेजस्वी ने तो पूरे गठबंधन के अस्तित्व को ही नकार दिया है।
अब उमर अब्दुल्ला ने भी कह दी बड़ी बात
इंडी अलायंस में मचे घमासान पर जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कह दिया है कि दिल्ली में क्या चल रहा है, इस बारे में मुझे कुछ नहीं कहना है। हमारा दिल्ली चुनाव से कुछ लेना-देना नहीं है। जहां तक मुझे याद है कि इंडी अलायंस की कोई समय सीमा नहीं थी। अलायंस की कोई बैठक आयोजित नहीं की जा रही है। इसी वजह से नेतृत्व, एजेंडा या हमारे अस्तित्व के बारे में कोई स्पष्टता नहीं है। अगर ये गठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए था, तो इसे अब खत्म ही कर देना चाहिए।
इस तरह देखा जाये, तो इंडी गठबंधन का अस्तित्व अब खत्म हो गया है। अलग-अलग राज्यों में इसमें शामिल सहयोगी दलों के बीच अलग-अलग मुद्दों पर मतभेद पहले से नजर आ रहे थे, अब ये खुल कर सामने आ गये हैं। इसके पीछे कांग्रेस को कारण बताया जा रहा है, क्योंकि वह किसी भी क्षेत्रीय दल को तवज्जो नहीं दे रही है। अब इस गठबंधन के बिखरने का असर सियासी फलक पर नजर जरूर आयेगा और लोकसभा के बजट सत्र में भी यह देखने को मिलेगा।