विशेष
बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू से लेकर ऐतिहासिक तमाड़ तक दिखेगी झारखंडियत की ताकत
झारखंड का टूरिज्म बड़ा आर्थिक स्रोत बन सकता है राज्य के लिए, गंभीरता दिखाने की जरूरत
झारखंड को एक्स्प्लोर किया ही कहां गया, दिख जायेगी ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और प्रकृति की ताकत
सैकड़ों लोनावला-खंडाला समां जायेंगे झारखंड की खूबसूरती में, हिडन ट्रेजर को खंगालने की जरूरत
टूरिज्म के साथ-साथ सुरक्षा पर भी रहे हेमंत सरकार का विशेष फोकस

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
किसी भी समाज के लिए उसकी सांस्कृतिक विविधताएं और धरोहर अमूल्य होते हैं। जो समाज इन विविधताओं और धरोहरों को संजोने के काम में दिलचस्पी नहीं दिखाता है, वह धीरे-धीरे लुप्त होता जाता है। दुनिया के कई देशों के कई समाज इसी कारण के इतिहास की गर्त में समा गये। झारखंड भी उसी रास्ते पर आगे बढ़ रहा था, क्योंकि ढाई दशक में इसकी संस्कृति को, धरोहरों को और परंपराओं को सहेजने के लिए जिस गंभीरता की जरूरत थी, वह दिख नहीं रही थी। लेकिन अब पहली बार हेमंत सोरेन सरकार ने इस दिशा में गंभीरता से कदम आगे बढ़ाया है, ताकि झारखंडियत की ताकत को दुनिया को दिखाया जा सके। हेमंत सरकार ने धरती आबा भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली उलिहातू से ऐतिहासिक स्थल तमाड़ तक एक जनजातीय पर्यटन गलियारा विकसित करने का फैसला किया है, जिससे दुनिया इस जनजातीय समाज की गौरवशाली परंपरा और इतिहास से परिचित हो सके। इस गलियारे के विकास से झारखंड में पर्यटन को नया आयाम तो मिलेगा ही, साथ ही इसके विकास के नये आयाम भी जुड़ेंगे। दुनिया जब झारखंड को देखेगी, तब उसे पता चलेगा कि इस ऐतिहासिक प्रदेश की समृद्ध विरासत पूरी मानव सभ्यता के लिए कितना अपरिहार्य है। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि झारखंड में पर्यटन की असीम संभावनाएं हैं और यदि इसे सही ढंग से विकसित किया जाये, तो फिर धरती का असली स्वर्ग भी यही बन जायेगा। इसलिए हेमंत सोरेन सरकार की यह नयी पहल न केवल प्रशंसनीय है, बल्कि झारखंड के भविष्य के लिए सुखद भी है। अपने भ्रमण कार्यक्रम के दौरान जब आजाद सिपाही की टीम खरसावां से तमाड़ की और बढ़ रही थी तब रड़गांव होते हुए रांची-टाटा रोड निकली। इस बीच रैजमा घाटी का जो दृश्य था वह इतना अलौकिक था कि शब्दों में बयान करना मुश्किल है। पहाड़ के ऊपर से दृश्य कुछ ऐसा प्रतीत हो रहा था मानों कैलाश पर्वत के बीच में मानसरोवर। जंगल जितना खूबसूरत था उतना ही भयावह भी। पहले की नक्सली घटना दिलों दिमाग में छाने लगी। लेकिन यहीं तो सुरक्षा देनी है सरकार को। अगर टूरिस्ट स्पॉट्स पर सुरक्षा का भी विशेष फोकस हो तब झारखंड को टूरिस्ट हब बनने से कौन रोक सकता है। क्या है ट्राइबल टूरिज्म कॉरिडोर और क्या होगा इसका असर, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

ऐतिहासिक होगा झारखंड का पहला ट्राइबल टूरिज्म कॉरिडोर
झारखंड में पहला ट्राइबल टूरिज्म कॉरिडोर बनने जा रहा है। यह कॉरिडोर तमाड़ के अड़की से उलिहातु के बीच विकसित होगा। झारखंड का पहला ट्राइबल टूरिज्म कॉरिडोर झारखंड के विरासत को सहेजने का काम करेगा। इसके विकसित होने से पर्यटक भगवान बिरसा मुंडा की जन्मस्थली को भी देख सकेंगे। उनकी जिंदगी में झांक भी सकेंगे। उसका हिस्सा बन सकेंगे। पर्यटक यह भी समझ पायेंगे कि भगवान बिरसा मुंडा का त्याग, समर्पण किस स्तर का रहा। छोटी सी उम्र में अपनी माटी के लिए इतना प्रेम और समर्पण कि उस वक्त की सबसे ताकतवर शक्ति से टकरा जाना कोई सामान्य घटना नहीं। पर्यटन एवं कला संस्कृति मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू का कहना है कि राज्य में शीघ्र ही ट्राइबल टूरिज्म और माइ़निंग टूरिज्म शुरू किया होगा। उन्होंने विभाग के पदाधिकारियों को शीघ्र कार्ययोजना बनाने के निर्देश भी दिये हैं। यह झारखंड के विकास में बड़ी भूमिका निभायेगा। पर्यटन से स्थानीय लोगों को रोजगार के भी अवसर मिलेंगे, साथ ही राज्य सरकार को आर्थिक लाभ भी मिलेगा। ट्राइबल टूरिज्म के माध्यम से आदिवासी संस्कृति, रहन-सहन और खानपान से पर्यटकों रूबरू भी होंगे। वहीं झारखंड में माइंस टूरिज्म को भी विकसित करने की योजना है। इसके पीछे सरकार का उद्देश्य लोगों को खनन में हो रहे विकास से अवगत कराना है। यह भी जानना कि कैसे झारखंड अपना सीना चीर कर देश को रोशन कर रहा है। पर्यटन विभाग स्थानीय ग्राम समितियों की मदद से राज्य के प्रमुख पर्यटन स्थलों पर सुविधाओं का विकास करेगा। राज्य में सीसीएल, बीसीसीएल की कई कोयला खदानें हैं। पर्यटन के विकास से स्थानीय झारखंडियों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे। सरकार खनन साइटों पर पर्यटक सुविधाओं का विकास करेगी।

हिडन ब्यूटी को उजागर करना होगा
झारखंड, भारत का 28वां राज्य है, जिसकी स्थापना 15 नवंबर 2000 को हुई थी। लैंड आॅफ फॉरेस्ट के नाम से मशहूर झारखंड जितना खूबसूरत है, उतना ही इसे एक्स्प्लोर करना अभी बाकी है। झारखंड की अलग संस्कृति और जीवनशैली की वजह यहां बड़ी संख्या में निवास करने वाले आदिवासी हैं। झारखंड की खूबसूरती और संस्कृति की चर्चा यहां के लोग तो किया करते ही हैं, या जिसने भी यहां की धरती पर कदम रखा, वह मंत्रमुग्ध होकर ही गया। लेकिन सही मायने में झारखंड को अभी पूरी तरह से एक्स्प्लोर नहीं किया गया है। झारखंड में कई ऐसे छिपे हुए खूबसूरत स्थान हैं, जो झारखंड की टूरिज्म में चार-चांद लगा सकते हैं। वैसे तो झारखंड की सड़कें बेहतरीन हैं। जंगलों के बीचों-बीच बढ़िया सड़कों का निर्माण हुआ है। इन्ही सड़कों पर चलते-चलते कई ऐसे स्थान मिल जायंगे कि आप हैरान हो जायेंगे कि झारखंड में ऐसी भी कोई जगह है। तब लगता है कि झारखंड को कितना कम आंका गया है। झारखंड की खूबसूरती को देखकर फिल्म सिटी निर्माण की बातें भी उठीं, लेकिन कभी काम आगे नहीं बढ़ पाया। यह झारखंड के लिए क्षति से कम नहीं, क्योंकि झारखंड में सिनेमाटोग्राफर जहां भी कैमरा आॅन करेगा, वहीं शॉट बन जायेगा। लेकिन किसी भी सरकार ने फिल्म सिटी को लेकर आवशयक कदम नहीं उठाया। आज लोग जब मुंबई जाते हैं, तो वे सबसे पहले लोनावला या खंडाला का जिक्र करते हैं, लेकिन झारखंड ऐसा राज्य है, जहां सैकड़ों लोनावला या खंडाला जैसी जगहें दिख जायेंगी। बस डेवलप नहीं होने के कारण या सही तरीके से एक्स्प्लोर नहीं होने के कारण झारखंड पिछड़ जाता है।

अभी मात्र 10 प्रतिशत ही हुआ है एक्स्प्लोर
झारखंड में आज की तारीख में जितने भी टूरिज्म स्पॉट्स एक्स्प्लोर हुए हैं, वह सिर्फ 10 प्रतिशत मात्र हैं। जिस दिन यहां टूरिज्म के क्षेत्र में सही दिशा में काम होने लगेगा, तब पता लगेगा कि झारखंड टूरिज्म राज्य के लिए एक बहुत बड़ा आर्थिक स्रोत बनेगा। यहां के लोगों के रोजगार के लिए यह किसी वरदान से कम नहीं होगा। बेतला नेशनल पार्क, हजारीबाग नेशनल पार्क और दलमा वन्यप्राणी आश्रयणी से लेकर पंचघाघ वॉटर फॉल, दशम फॉल, हुंडरू फॉल या फिर जोन्हा फॉल जैसे अनगिनत वाटर फॉल झारखंड में हैं। गौतम धारा, पतरातू डैम, नेतरहाट से लेकर रजरप्पा का छिनमस्तिका मंदिर, 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक देवघर का बाबा बैद्यनाथ मंदिर, पारसनाथ की पहाड़ियां और उन पर बने जैन मंदिर। क्या नहीं है झारखंड में। यहां की खूबसूरत पहाड़ियां, आकर्षक झरने, भव्य मंदिर पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। लेकिन झारखंड में जो सबसे ज्यादा प्रभावित करती है, वह है यहां के आदिवासियों की संस्कृति। कला से लेकर खान पान, रहन-सहन अपने आप में बड़ा सिखाती हैं। उनका इतिहास, उनकी शौर्य गाथाएं एक अलग ऊर्जा का अहसास कराती हैं। झारखंड का पहला ट्राइबल टूरिज्म कॉरिडोर उन्हीं गाथाओं को सहेजने का पहला कदम है। पर्यटन मंत्री सुदिव्य कुमार सोनू हेमंत सोरेन के नेतृत्व में और उनके विजन को ध्यान में रखकर बढ़-चढ़कर इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं। झारखंड का पहला ट्राइबल टूरिज्म कॉरिडोर एक मील का पत्थर साबित होगा। यह भगवान बिरसा मुंडा की शौर्य गाथा को समझने का बहुत बड़ा कारक बनेगा। यह झारखंड के वीरों को एक श्रद्धांजलि का केंद्र बनेगा। झारखंड में ऐसी कई जगहें हैं, जहां ट्राइबल कॉरिडोर बनाना चाहिए। भविष्य में इसका विस्तार भी होगा।

ग्लास ब्रिज भी बनेगा
हेमंत सोरेन सरकार ने झारखंड में पर्यटन विकास का जो ब्लूप्रिंट तैयार किया है, वह बेहद महत्वाकांक्षी है। इसके तहत राज्य के ऐतिहासिक स्थलों के विकास की योजना है। राज्य के छह डैम मसानजोर, चांडिल, तेनुघाट, तिलैया, गेतलसूद और पतरातू डैम के आसपास पर्यटकों को हर तरह की जरूरी सुविधाएं दी जायेंगी। पर्यटन विभाग इसके लिए कार्ययोजना बना रहा है। ऐतिहासिक धरोहर पलामू किला की हालत बेहतर नहीं है। आर्कियोलॉजिकल सर्वे आॅफ इंडिया (एएसआइ) को राज्य सरकार पत्र भेजकर इस किले को संरक्षित करने का अनुरोध करेगी। पर्यटकों के अध्ययन के लिए हजारीबाग के मेगालिथ का विकास किया जायेगा। दशम, जोन्हा, नेतरहाट स्थित मैगनोलिया प्वाइंट, नेतरहाट के कोयल व्यू प्वाइंट, पतरातू वैली के सेल्फी प्वाइंट पर ग्लास ब्रिज बनाये जायेंगे। कोयल व्यू प्वाइंट में ग्लास टावर बनेगा। टूरिस्ट कॉरिडोर के साथ हर 25 किमी पर एक रेस्ट प्वाइंट बनाने पर भी विचार किया जा रहा है। यहां आराम और जलपान की व्यवस्था की जायेगी। पर्यटन स्थलों की इन विकास योजनाओं के साथ ट्राइबल टूरिज्म कॉरिडोर बनने के बाद झारखंड में पर्यटन की संभावनाओं को पंख लग जायेंगे। इससे न केवल आर्थिक मदद मिलेगी, बल्कि रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे और झारखंड की समृद्ध ऐतिहासिक परंपरा से दुनिया भी परिचित होगी।

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