विशेष
इस दरवाजे की चाबी लालू और शाह के पास है, लेकिन ताला नीतीश के पास
इस ताले का इस्तेमाल अपनी सुविधा के अनुसार करते रहते हैं नीतीश कुमार
लेकिन बिना पलटी मारे यह दरवाजा खुलता नहीं, यही इसका रिवाज है
इस दरवाजे के दीवाने कई हैं, क्योंकि इसके पीछे सत्ता की कुर्सी जो छिपी है
फिर हिलने लगा है यह दरवाजा, डोल रहा है नीतीश का मन, लालू-शाह अलर्ट
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
बिहार में एक तिलिस्मी दरवाजा है, जो बहुत ही चर्चित है। यह एक ऐसा दरवाजा है, जो आज तक कभी बंद नहीं हुआ। यह हमेशा खुला ही रहता है। इस दरवाजे के दीवाने कई हैं, क्योंकि इस दरवाजे के पीछे सत्ता की कुर्सी जो छिपी रहती है। लेकिन इस दरवाजे की एक खासियत है। यह दरवाजा सिर्फ और सिर्फ नीतीश कुमार की ही बाट जोहता रहता है। इस दरवाजे की दो चाबियां बतायी जाती हैं। इनमें से एक चाबी लालू प्रसाद के पास है और दूसरी भाजपा आलाकमान के पास। लेकिन इस दरवाजे का ताला समय-समय पर नीतीश कुमार अपने हिसाब से खोलने की इजाजत देते रहते हैं। वह अपनी सुविधा के अनुसार अपना ताला खोलने की इजाजत कभी लालू को देते हैं, तो कभी अमित शाह को। वैसे इस दरवाजे का तिलिस्म आज तक कोई समझ नहीं पाया है, सिवाय नीतीश कुमार के। नीतीश कुमार और बिहार का यह दरवाजा किसी पहेली से कम नहीं हैं। लेकिन इस दरवाजे में प्रवेश करने का एक रिवाज है। बिना पलटी मारे इस दरवाजे के अंदर प्रवेश नहीं किया जा सकता और इस कला के माहिर खिलाड़ी हैं नीतीश कुमार। जब-जब बिहार के इस दरवाजे के खड़कने की आवाज आती है, नीतीश कुमार का शरीर खुद-ब-खुद पलटी मारने के लिए तैयारी करने लगता है। फिलहाल बिहार का यह तिलस्मी दरवाजा फिर से आवाज देने लगा है, हिलने लगा है। इसके मद्देनजर लालू प्रसाद यादव और अमित शाह ने अपनी-अपनी कमर कसनी शुरू कर दी है। दोनों अलर्ट मोड में आ चुके हैं। कोई कह रहा है कि खरमास के बाद इस दरवाजे का ताला खुलेगा, तो कोई इसे कोरी कल्पना ही बता रहा है। नीतीश कुमार बस मुस्कुरा रहे हैं। उनके मन में क्या चल रहा है, किसी को नहीं पता, बस उन्हें ही पता है । क्या है बिहार के इस तिलिस्मी दरवाजे की पूरी कहानी, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
देश भर में इन दिनों दुनिया को लोकतंत्र का पाठ पढ़ानेवाले बिहार के उस ह्यदरवाजेह्ण की खूब चर्चा हो रही है, जिसका ताला पिछले दो दशक से नीतीश कुमार के पास है, लेकिन खास बात यह है कि इस ताले की दो चाबियां थोड़े-थोड़े अंतराल में इस्तेमाल में आती रहती हैं। इन दोनों चाबियों में से एक राजद सुप्रीमो लालू यादव के पास है, तो दूसरी भाजपा आलाकमान के पास। दो चाबियों वाले इस मजबूत ताला लगे दरवाजे की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह कभी बंद नहीं होता, बल्कि हमेशा खुला ही रहता है। इसलिए इसे तिलिस्मी दरवाजा कहा जाता है।
बिहार के इस तिलिस्मी दरवाजेह्ण के नायक हैं नीतीश कुमार, जो एक बार फिर अपनी रहस्यमयी मुस्कान के साथ चचार्ओं के केंद्र में हैं। 2005 से लगातार बिहार की कमान संभाल रहे नीतीश कुमार को लेकर इन दिनों कई तरह की अटकलें लगायी जा रही हैं। इस कारण कयासों का बाजार गर्म है। चर्चा इस बात की है कि इस बार दरवाजे की चाबी का इस्तेमाल लालू यादव करनेवाले हैं, जिन्हें नीतीश कुमार ह्यबड़ा भाई भी मानते हैं और ह्यराजनीतिक सहयात्रीह्ण भी। लालू यादव ने नीतीश को एक बार फिर साथ आने का आॅफर दिया है। लालू कह रहे हैं कि दरवाजा तो उनका भी खुला है। इसके बाद से इन चचार्ओं को पंख लग गये हैं। हालांकि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने लालू के इस आॅफर को बहुत तवज्जो नहीं दी। उन्होंने कहा कि नीतीश जी के लिए उनके दरवाजे अभी भी बंद हैं। वहीं इनसे जुड़े सवालों पर नीतीश कुमार ने मुस्कुरा कर हाथ जोड़ लिये। नीतीश की इस अदा से चचार्ओं को और बल मिला, क्योंकि इससे पहले वह इस तरह के सवालों का खुलकर जवाब देते रहे हैं। वहीं उनकी पार्टी जदयू ने लालू यादव के बयानों को बहुत अधिक तवज्जो नहीं दी है। उसका कहना है कि वह पहले भी एनडीए के साथ थी और आगे भी रहेगी।
कैसे शुरू हुई चर्चा
दरअसल, नीतीश कुमार के पाला बदलने की चर्चा दो दिन पहले उस समय शुरू हुई, जब नवनियुक्त राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के शपथ ग्रहण समारोह में उनका नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव से आमना-सामना हुआ। दुआ-सलाम के साथ बात आगे बढ़ी और कुछ फुसफुसाहट तक पहुंच गयी। इधर आरिफ मोहम्मद खान को बिहार भेजे जाने के पीछे का कारण भी नीतीश कुमार के भाजपा नेताओं के साथ बिगड़ते रिश्ते को ही बताया गया। तेजस्वी से मुलाकात के बाद नीतीश कुमार दिल्ली गये, जहां उन्होंने भाजपा नेताओं से भेंट नहीं की, बल्कि सीधे पूर्व पीएम डॉ मनमोहन सिंह के आवास पर चले गये और वहां कुछ कांग्रेस नेताओं से उनकी मुलाकात हुई। नीतीश के भाजपा नेताओं से नहीं मिलने के बाद यह कयास लगाये जाने लगे कि भाजपा के साथ उनके रिश्ते कुछ ठीक नहीं चल रहे हैं। दिल्ली से लौटने के बाद जब उनसे इस बाबत पूछा गया, तो उन्होंने सिर्फ हाथ जोड़ दिये और मुस्कुरा कर इतना भर कहा, क्या बोल रहे हैं।
नीतीश कुमार का इतिहास
पिछले करीब दो दशक से बिहार में नीतीश कुमार और सीएम की कुर्सी एक-दूसरे का पर्याय बन गये हैं। यहां तक कि नीतीश कुमार ने जब-जब पाला बदला, वह मुख्यमंत्री की कुर्सी को अपने साथ ही ले गये हैं। एक तरह से सीएम की कुर्सी पर नितीश कुमार का कॉपीराइट हो चूका है। हर बार उन्होंने विभागों या उप मुख्यमंत्री पद को लेकर ही समझौता किया है। उनके साथ समझौता करने वाली बीजेपी हो या आरजेडी, दोनों इस बात पर सहमत रही है। नीतीश कुमार को जब भी अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी खतरे में नजर आती है, वह अपना पाला बदल लेते हैं। नीतीश कुमार 2005 से लगातार बिहार के सीएम हैं। बीच में 2014-15 में 10 महीने के लिए उन्होंने जीतन राम मांझी को सत्ता सौंपी थी। नीतीश कुमार के साथ एक खास बात यह है कि उन्होंने कभी बहुमत हासिल नहीं किया, लेकिन हमेशा मुख्यमंत्री रहे। 1996 में भाजपा के साथ आने के बाद वह 2015 तक इसके साथ रहे। वह 2005 में पहली बार भाजपा की मदद से सीएम बने। 2014 में उन्होंने भाजपा का साथ छोड़ दिया और 2015 में महागठबंधन में शामिल हो गये। 2017 में नीतीश ने एक बार फिर भाजपा से दोस्ती कर ली। लेकिन 2022 में वह एक बार फिर पलट गये और महागठबंधन में आ गये। 2024 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले उन्होंने एक बार फिर पलटी मारी और भाजपा के साथ हो लिये।
तिलिस्मी दरवाजेह की कहानी
नीतीश कुमार के एक बार फिर पाला बदलने की चचार्ओं ने ही तिलिस्मी दरवाजेह्ण की कहानी को जन्म दिया है। जब-जब नीतीश कुमार ने पाला बदला है, बीजेपी और आरजेडी ने हर बार कहा है कि नीतीश के लिए उसके दरवाजे बंद हैं। चाहे लालू यादव हों या तेजस्वी यादव, अमित शाह हों या जेपी नड्डा, हर नेता नीतीश कुमार के लिए अपना दरवाजा बंद होने की बात तो कहता है, लेकिन हर बार सत्ता की रौशनी से वह ताला खुल जाता है। यही है तिलिस्मी ताले की पूरी कहानी।
इस बार क्या हो सकता है
नीतीश कुमार बार-बार सफाई दे रहे हैं। कह रहे- अब पिछली गलती नहीं करेंगे। एनडीए में ही रहेंगे। उनकी इस सफाई के बावजूद न भाजपा उनके साथ बने रहने को लेकर आश्वस्त है और विपक्षी गठबंधन इंडी ही हतोत्साहित है। इंडी ब्लाक को अब भी उम्मीद है कि नीतीश फिर पाला जरूर बदलेंगे। इंडी ब्लाक का आॅफर शायद अब भी बरकरार है। लालू तो अपना दरवाजा पहले ही खोले बैठे हैं। वैसे बिहार की राजनीति पर नजर रखनेवाले नीतीश कुमार के एक बार फिर पाला बदलने की चचार्ओं पर कहते हैं कि बिहार में जो राजनीति हो रही है, वह राजनीति का सबसे निचला स्तर है। अगर नीतीश कुमार फिर पाला बदलते हैं, तो वह दगाबाजी का रिकॉर्ड बनायेंगे। अब देखना दिलचस्प होगा कि नितीश कुमार का ताला बंद रहेगा या फिर उसे खोलने की फिर से इजाजत दी जायेगी।