केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय की रिपोर्ट में झारखंड ने बिहार और यूपी को पछाड़ा
आर्थिक और सामाजिक मोर्चे पर भी हो रही तारीफ
सरकार के साथ आम लोगों को भी इस सिलसिले को जारी रखने की है चुनौती
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
यह झारखंड के लिए सुखद सूचना है कि वह अब देश का सबसे गरीब राज्य नहीं है। केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा जारी आर्थिक विकास के विभिन्न सूचकांकों से पता चलता है कि झारखंड की आर्थिक स्थिति पहले से बेहतर हुई है। इतना ही नहीं, यहां की प्रति व्यक्ति आय भी बढ़ी है और गरीबी भी कम हुई है। झारखंड के लिए यह कम बड़ी उपलब्धि नहीं है, लेकिन इस पर अधिक इतराना खतरनाक हो सकता है। पिछले कुछ सालों में झारखंड में जितना काम हुआ है, उसका नतीजा ही आर्थिक मोर्चे पर हासिल की गयी ये उपलब्धियां हैं, लेकिन अब न केवल सरकार, बल्कि झारखंड के हर व्यक्ति के सामने इन उपलब्धियों को बरकरार रखने की चुनौती है। झारखंड की विकास यात्रा अभी खत्म नहीं हुई है, यह हर किसी को समझना होगा। राज्य की आर्थिक स्थिति में सुधार इसका लक्ष्य नहीं है और होना भी नहीं चाहिए। इसका वास्तविक लक्ष्य तो राज्यों का सिरमौर बनना होना चाहिए। इसके लिए अभी बहुत काम करने की जरूरत है। झारखंड सरकार को, यहां के प्रत्येक व्यक्ति को और यहां की संस्थाओं को मिल-जुल कर आर्थिक विकास का ऐसा मॉडल तैयार करना होगा, जिसमें यहां के सबसे गरीब व्यक्ति की भी उतनी ही भागीदारी हो, जितनी कि किसी अमीर की। जब तक अमीरी और गरीबी के बीच की यह खाई पूरी तरह खत्म नहीं होगी, झारखंड की विकास यात्रा को इसी रफ्तार से जारी रखना होगा। यदि ऐसा नहीं किया गया, तो आर्थिक सूचकांक की ये उपलब्धियां महज आंकड़ा बन कर रह जायेंगी, जिसका कोई मोल नहीं होता। क्या है झारखंड की आर्थिक स्थिति और क्या हैं उपलब्धियां, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
15 नवंबर 2000 को देश के राजनीतिक नक्शे पर 28वें राज्य के रूप में उभरा झारखंड आज बहुत खुश नजर आ रहा है। 24 साल के नौजवान प्रदेश के खुश होने का कारण भी है। अपने स्थापना काल से ही राजनीतिक और सामाजिक झंझावात झेल रहे झारखंड में हाल के दिनों में आर्थिक मोर्चे पर जितना काम हुआ है, उसकी एक झलक पिछले महीने केंद्रीय सांख्यिकी मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट में मिलती है। यह रिपोर्ट झारखंड के सामाजिक और आर्थिक क्षेत्र के लिए अच्छी खबर लेकर आयी है। रिपोर्ट का कहना है कि झारखंड में प्रति व्यक्ति आय बढ़ कर सालाना 1,05,274 रुपये हो गयी है। इस मामले में झारखंड ने बिहार और उत्तर प्रदेश को पीछे छोड़ दिया है। बिहार में प्रति व्यक्ति आय 60,337 रुपये है, तो उत्तर प्रदेश में यह 93,514 रुपये है। यानी झारखंड की प्रति व्यक्ति आय बिहार से 44,937 रुपये अधिक है।
झारखंड की यह उपलब्धि इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिछले 20 साल में इसने अपनी प्रति व्यक्ति आय को बहुत तेजी से आगे बढ़ाया है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2004-05 में झारखंड में प्रति व्यक्ति आय महज 18,510 रुपये थी। 19 साल में इसमें करीब 87 हजार रुपये का इजाफा हुआ है। इतना ही नहीं, चार साल पहले 2020-21 में झारखंड की प्रति व्यक्ति आय 69,963 रुपये थी। हालांकि यह भी सच है कि झारखंड की प्रति व्यक्ति आय अब भी राष्ट्रीय औसत से करीब 79 हजार रुपये कम है। अभी प्रति व्यक्ति आय का राष्ट्रीय औसत 1,84,205 रुपये है।
क्या कहती है रिपोर्ट
यह रिपोर्ट पिछले वर्षों में राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में हुए विकास को प्रतिबिंबित करती है। पिछले कुछ वर्षों में झारखंड की विकास दर अधिकांशत: देश के विकास दर से अधिक रही है। गरीबी और बेरोजगारी उन्मूलन की दिशा में भी इसने सफलता प्राप्त की है। रिपोर्ट के अनुसार झारखंड की अर्थव्यवस्था वर्ष 2019-20 की आर्थिक मंदी एवं 2020-21 के कोविड-19 और देशव्यापी लॉकडाउन के प्रभाव से पूरी तरह से उबर चुकी है। राज्य की विकास दर 8.8 प्रतिशत की औसत वार्षिक दर से बढ़ी है। रिपोर्ट के अनुसार 2019-20 में देशव्यापी आर्थिक मंदी और 2020-21 में कोविड-19 और लॉकडाउन का कुप्रभाव देश के साथ-साथ झारखंड पर भी पड़ा। इन दो वर्षों में देश और राज्य, दोनों की विकास दर में गिरावट आयी, लेकिन इस दौरान देश की तुलना में राज्य की विकास दर में कम गिरावट आयी।
आर्थिक मोर्चे पर बहुत काम हुआ
रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में आर्थिक मोर्चे पर पिछले दो दशकों में बहुत काम हुआ है। यही कारण है कि पिछले 20 साल के दौरान हर साल राज्य की प्रति व्यक्ति आय बढ़ी। इसमें केवल दो साल अपवाद हैं। 2015-16 में सुखाड़ और 2020-21 में कोविड के कारण इसमें गिरावट दर्ज की गयी थी। इसके अलावा अन्य क्षेत्रों में भी स्थिति में काफी सुधार हुआ है।
झारखंड के हर व्यक्ति पर 2675 रुपये का कर्ज
रिपोर्ट कहती है कि झारखंड के हर व्यक्ति पर अब केवल 2675 रुपये का कर्ज है। यह पूरे देश में सबसे कम है। यह सब सरकार की आर्थिक नीतियों और वित्तीय प्रबंधन के कारण संभव हुआ है। कर्ज लेकर घी पीने की पुरानी परंपरा को इस सरकार ने छोड़ दिया है और आमदनी के अनुरूप खर्च करने की इसकी नीतियों ने राज्य पर कर्ज के बोझ को कम कर दिया है।
10 साल में गरीब आबादी 14 फीसदी घटी
अपनी स्थापना के समय झारखंड गरीबी के पैमाने पर सबसे निचले पायदान पर था, लेकिन अब यह संख्या तेजी से कम हो रही है। रिपोर्ट कहती है कि पिछले 10 साल में झारखंड में गरीब आबादी 42 फीसदी से कम होकर 28 फीसदी पर पहुंच गयी है। वर्ष 2005-06 में राज्य की कुल आबादी का 74 फीसदी हिस्सा गरीब था। वर्ष 2015-16 में यह घट कर 42 फीसदी पर पहुंचा। अब यह 28 फीसदी पर आ गया है।
सामाजिक मोर्चे पर भी हुई प्रगति
ऐसा नहीं है कि झारखंड ने केवल आर्थिक मोर्चे पर ही विकास किया है। सामाजिक क्षेत्र में भी राज्य की प्रगति कम उल्लेखनीय नहीं है। रिपोर्ट में कहा गया है कि झारखंड में कुपोषण और शिशु मृत्यु दर भी कम हुई है। तीन साल पहले मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने कहा था कि झारखंड का हर तीसरा बच्चा कुपोषित है, लेकिन अब यह आंकड़ा कम हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2015-16 में झारखंड में कुपोषण की दर 34.39 फीसदी थी, जो 2020-21 में घट कर 23.22 फीसदी रह गयी। इसी तरह झारखंड की शिशु मृत्यु दर भी 2.74 प्रतिशत से घटकर 1.75 प्रतिशत हो गयी। झारखंड में मातृत्व स्वास्थ्य की स्थिति में भी सुधार हुआ है।
इस रिपोर्ट के बाद बढ़ गयीं चुनौतियां
झारखंड की चुनौतियां इन आंकड़ों के सामने आने के बाद बढ़ गयी हैं। अब इन उपलब्धियों को बरकरार रखने की जिम्मेदारी सरकार के साथ-साथ आम लोगों और संस्थाओं की भी है। लोगों को यह समझना होगा कि मंजिल अभी तक नहीं मिली है और वहां तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की जरूरत है। सब कुछ सरकार के भरोसे छोड़ने से काम नहीं बन सकता है। झारखंड के विकास की गाड़ी को मिल-जुल कर आगे बढ़ाना होगा, सरकार केवल बड़ी भूमिका निभा सकती है। जब तक लोग यह नहीं समझेंगे, ये उपलब्धियां अधूरी ही रहेंगी।