विशेष
आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में मजबूती से आगे बढ़ रहीं
बैंकों से लोन के मामले से लेकर अन्य क्षेत्रों में फहरा रहीं परचम, बन रहीं आत्मनिर्भर
राज्य के विकास में इनके सकारात्मक योगदान की तस्वीर बड़ी ही चमकीली है

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
अमेरिका के प्रसिद्ध समाज वैज्ञानिक डैनियल लर्नर ने अपने चर्चित सिद्धांत थ्योरी आॅफ मूवमेंट में कहा है कि किसी भी समाज में बदलाव तभी ठोस और स्थायी के साथ समावेशी हो सकता है, जब उसके केंद्र में महिलाएं हों। दूसरे शब्दों में कहा जाये, तो महिलाओं का सशक्तिकरण ही किसी भी समाज के विकास की असली पहचान है। लर्नर का यह सिद्धांत झारखंड में हकीकत की जमीन पर उतरता दिखाई दे रहा है, क्योंकि यहां की महिलाएं राज्य के साथ-साथ अपने विकास की नयी कहानियां लिख रही हैं। झारखंड की महिलाएं किस तरह झारखंड के विकास की अगुवा बन रही हैं, यह इसी बात से पता चलता है कि बैंकों से लोन लेनेवाली महिलाओं की संख्या पिछले कुछ साल में तेजी से बढ़ी है। आम तौर पर घर-परिवार के मामलों में व्यस्त रहनेवाली झारखंड की महिलाओं ने आर्थिक स्वावलंबन की दिशा में बड़ा कदम उठाया है और आंकड़े बताते हैं कि उद्यमशीलता में झारखंड की महिलाएं बहुत आगे बढ़ रही हैं। रिपोर्ट कहती है कि घर की देहरी से बाहर निकल कर दुनिया की रोशनी को अनुभव करने का हुनर झारखंडी महिलाओं में कहीं अधिक है और यही कारण है कि राजनीतिक रूप से भी महिलाओं की पूछ लगातार बढ़ रही है। झारखंड की राज्यस्तरीय बैंकर्स समिति की रिपोर्ट में राज्य की महिलाओं में बढ़ रही आत्मनिर्भरता के सकारात्मक पहलुओं को उजागर किया गया है और स्वाभाविक है कि इस आत्मनिर्भरता का सीधा और सकारात्मक असर राज्य की विकास यात्रा पर पड़ेगा। क्या है झारखंड की महिलाओं की आर्थिक स्थिति और कैसे इसे तेजी से बदल रही हैं हमारी महिलाएं, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

झारखंड का नाम सुनते ही एक ऐसे पारंपरिक और रूढ़िवादी समाज की छवि उभरती है, जिसमें बदलाव किसी अजनबी की तरह प्रतीत होता है। लेकिन किताबों में झारखंड की यह छवि हकीकत से कोसों दूर है और यह सब संभव हुआ है झारखंड की महिलाओं से। राज्य की महिलाओं, जिनके लिए मंईयां सम्मान योजना लागू कर खासा राजनीतिक विमर्श चला, ने साबित कर दिया है कि वे बदलाव के लिए किसी सरकारी अनुदान या अनुकंपा पर निर्भर नहीं हैं। यह सही है कि मंईयां सम्मान योजना के तहत महिलाओं की दी जा रही ढाई हजार रुपये प्रति माह की राशि ने उनकी बहुत सी मुश्किलों को कम किया है, लेकिन झारखंडी महिलाओं ने पिछले तीन-चार वर्षों में बदलाव की जो कहानी लिखी है, वह अकल्पनीय है। झारखंड की राज्यस्तरीय बैंकर्स समिति (एसएलबीसी) की हाल में जारी रिपोर्ट में राज्य की महिलाओं में उद्यमशीलता और आर्थिक आत्मनिर्भरता की अवधारणा की शानदार तस्वीर प्रस्तुत की गयी है।

क्या है एसएलबीसी की रिपोर्ट में
एसएलबीसी की रिपोर्ट बताती है कि झारखंड में बैंकों से लोन लेनेवालों में महिलाएं आगे रही हैं। रिपोर्ट बताती है कि झारखंड में महिलाएं तेजी से आत्मनिर्भर हो रही हैं। महिलाओं ने अपने पैरों पर खड़े होने के लिए बैंकों से लोन लेने में भी रुचि दिखायी है। रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में सितंबर 2021 तक महिलाओं ने कुल 11 हजार 740 करोड़ रुपये का लोन लिया था, जबकि सितंबर 2024 में यह आंकड़ा 20 हजार 548 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। इस आंकड़े से साफ होता है कि झारखंड में महिलाओं द्वारा लोन लेनेवाली राशि 75 फीसदी तक बढ़ गयी। यदि इस वृद्धि को वर्षवार देखा जाये, तो 2021 में यह 11 हजार 740 करोड़ था, जो सितंबर 2022 में 15 हजार 276 करोड़ हो गया। सितंबर 2023 में झारखंड की महिलाओं द्वारा लिये गये लोन की रकम 17 हजार 806 करोड़ थी, जो सितंबर 2024 में 20 हजार 548 करोड़, यानी करीब 15.40 फीसदी अधिक थी।

रांची की महिलाएं सबसे आगे
रिपोर्ट बताती है कि बैंकों से लोन लेनेवाली महिलाओं में रांची सबसे आगे है। इस साल रांची की महिलाओं ने कुल 1148.23 करोड़ का लोन लिया, जबकि 711.29 करोड़ के साथ पूर्वी जमशेदपुर की महिलाएं दूसरे स्थान पर रहीं। तीसरे स्थान पर धनबाद की महिलाएं हैं, जिन्होंने 479.18 करोड़ का लोन लिया, जबकि 310.75 करोड़ के लोन के साथ बोकारो की महिलाएं चौथे और 263.59 करोड़ के लोन के साथ हजारीबाग की महिलाएं पांचवें स्थान पर हैं। यह आंकड़ा साबित करता है कि झारखंड की महिलाओं में आत्मनिर्भर बनने की ललक बढ़ गयी है और वे झारखंड की विकास यात्रा में सहभागी बनने के लिए पूरी तरह तैयार हैं।

पहले भी महिलाओं के लिए हुई है पहल
ऐसा नहीं है कि झारखंड की महिलाओं में आत्मनिर्भर बनने की ललक अचानक पैदा हुई है। पिछले कुछ सालों से झारखंड में महिलाओं को आर्थिक रूप से संबल बनाने की कोशिशें लगातार चल रही हैं। इसमें पलाश की पहल सबसे सफल रही। पलाश ब्रांड से ग्रामीण महिलाओं को जहां एक ओर आजीविका का आधार मिला, वहीं दूसरी ओर ग्रामीण महिलाओं की ओर से निर्मित और संग्रहित उत्पाद काफी पसंद किये जा रहे हैं। महिलाएं सरसों का तेल, चावल, आटा, दाल, मडुआ का आटा, लेमन ग्रास जैसे उत्पादों से आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बन रही हैं। सखी मंडल के उत्पादों को राज्य समेत राष्ट्रीय स्तर पर पहचान स्थापित कर महिलाओं को अच्छी आमदनी सुनिश्चित की जा रही है। पलाश ब्रांड की सफलता को देखते हुए लगातार सखी मंडल से जुड़ी दीदियों के सशक्तीकरण की दिशा में कार्य हो रहा है। राज्य के 24 जिलों के 264 प्रखंड के 29 हजार 953 गांवों में करीब 2.78 लाख सखी मंडलों का गठन किया जा चुका है। इससे करीब 32.51 लाख परिवार जुड़े हैं।

बैंकों से क्रेडिट लिंकेज के जरिये मिल रही मदद
आंकड़े बताते हैं कि झारखंड के 2.69 लाख सखी मंडलों को 418.31 करोड़ रुपये चक्रिय निधि के रूप में उपलब्ध कराये गये, जबकि 2.44 लाख सखी मंडलों को 1296.42 करोड़ रुपये सामुदायिक निवेश निधि के रूप में उपलब्ध कराये गये हैं। करीब 2.26 लाख सखी मंडलों को 6511 करोड़ रुपये बैंकों से क्रेडिट लिंकेज के रूप में मिला है।

आजीविका से जोड़ने का क्रम जारी
इसके अलावा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने के लिए आजीविका सशक्तीकरण हुनर अभियान के जरिये राज्य के 29 लाख परिवारों को आजीविका के सशक्त माध्यमों से जोड़ा गया है। कृषि, पशुपालन, वनोपज, अंडा उत्पादन, जैविक खेती आधारित आजीविका से ग्रामीण परिवारों को आच्छादित किया जा रहा है। इनमें महिलाएं बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं। राज्य संपोषित जोहार परियोजना के तहत 17 जिलों के 68 प्रखंडों के 3816 गांवों में 3922 उत्पादक समूह और 20 उत्पादक कंपनियों का गठन और संचालन हो रहा है। इसके तहत राज्य के करीब 2.24 लाख परिवारों की आय बढ़ गयी है। महिलाएं इस बदलाव की संवाहक हैं। इतना ही नहीं, राज्य में बैंकिग कॉरेस्पांडेंट, पशु सखी, कृषक मित्र, वनोपज मित्र, आजीविका रेशम मित्र, सीआरपी समेत परियोजना क्रियान्वयन किया जा रहा है। इसके लिए करीब 52 हजार सामुदायिक कैडरों को प्रशिक्षित कर परियोजना के क्रियान्वयन में लगाया है। आधुनिक संचार तकनीक से इन महिलाओं को लैस किया गया है।
महिलाओं के बीच आत्मनिर्भर बनने की यह आकांक्षा झारखंड की विकास यात्रा को नया आयाम दे रही है। इस बात में कोई संदेह नहीं कि हेमंत सोरेन सरकार द्वारा महिलाओं को दी जा रही ढाई हजार रुपये प्रति माह की रकम उनकी कई छोटी-छोटी समस्याओं को हल कर रही है, लेकिन झारखंड की महिलाओं का आर्थिक क्षेत्र में योगदान को कमतर करके नहीं आंका जा सकता।

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