17 फरवरी को झाविमो के इतिहास बनने के पहले प्रदीप यादव और बंधु तिर्की के कांग्रेस ज्वाइन करने खबरों के बीच विरोध के दो स्वर अलग-अलग पार्टियों से फूटे। उनमें से प्रदीप यादव के विरोध का एक स्वर कांग्रेस में जामताड़ा विधायक सह प्रदेश कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ इरफान अंसारी का था। वहीं बंधु तिर्की का विरोध मुखर तो नहीं हुआ, पर मांडर इलाके के कांग्रेसियों का एक बड़ा तबका कांग्र्रेस में उनकी इंट्री से संतुष्ट नहीं था। पर इस विरोध को दरकिनार करते हुए जिस दिन बाबूलाल भाजपा के हुए, उसी दिन प्रदीप और बंधु ने दिल्ली में कांग्रेस का दामन थाम लिया। अब दोनों कांग्रेसी बन चुके हैं और झारखंड में कांग्रेस को मजबूत करने की कांग्रेस आलाकमान की रणनीति के हिस्सेदार भी। कांग्रेस में प्रदीप और बंधु की इंट्री के विरोध और इससे बनते-बिगड़ते राजनीतिक समीकरणों पर निगाह डालती दयानंद राय की रिपोर्ट।
बात 16 फरवरी की है। बंधु तिर्की के बनहोरा स्थित आवास पर जिस दिन पोड़ैयाहाट विधायक प्रदीप यादव और मांडर विधायक कांग्रेस में अपनी इंट्री की घोषणा कर रहे थे, उसी दिन प्रदेश कांग्रेस कार्यालय में इरफान अंसारी उनकी इंट्री का विरोध कर रहे थे। हालांकि उनका विरोध सिर्फ प्रदीप यादव को लेकर था, बंधु तिर्की की इंट्री को लेकर वह सहज थे, क्योंकि उनके अनुसार बंधु तिर्की सेक्यूलर हैं।
हालांकि इस विरोध के बाद भी प्रदीप यादव और बंधु तिर्की ने 17 फरवरी को दिल्ली में आरपीएन सिंह के समक्ष कांग्रेस की सदस्यता ले ली। इससे पहले 16 फरवरी को अपने बयान में जामताड़ा विधायक डॉ इरफान अंसारी ने कहा था कि यदि प्रदीप यादव कांग्रेस में शामिल होते हैं, तो वह पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे देंगे। बकौल इरफान, प्रदीप अल्पसंख्यक विरोधी हैं और साथ ही यौन उत्पीड़न मामले के आरोपी भी। हालांकि उनके विरोध के बाद भी प्रदीप की कांग्रेस में इंट्री हो गयी, तो माना यह जाना चाहिए कि प्रदीप और बंधु की कांग्रेस में इंट्री को कांग्रेस आलाकमान की सहमति मिली हुई है। हालांकि ऐसा नहीं है कि प्रदीप यादव की कांग्रेस में इंट्री का विरोध सिर्फ अंसारी ही कर रहे हैं। उनका विरोध भाजपा सांसद निशिकांत दुबे भी कर रहे हैं। निशिकांत ने अपने एक बयान में कहा कि प्रदीप दो फरवरी को दुमका में झामुमो में शामिल होने वाले थे, लेकिन अंतिम समय में मामला बिगड़ गया।
कांग्रेस को सोचना चाहिए कि जिस संघ परिवार ने उन्हें विधायक बनाया, मंत्री और महामंत्री बनाया, उस संघ परिवार और भाजपा के वे नहीं हुए तो और किसके होंगे। वहीं बंधु तिर्की की बात करें, तो उनकी कांग्रेस में इंट्री से मांडर के कांग्रेसी खुश नहीं हैं। बीते विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के उम्मीदवार सन्नी टोप्पो थे और उन्हें 8840 मत मिले थे। इन कांग्रेसियों का कहना है कि बंधु की कांग्रेस में इंट्री से उनके लिए मांडर में राजनीति का स्पेस और सिकुड़ जायेगा। इसलिए वे मुखर तो नहीं हैं, पर अंदर ही अंदर उनके आने से खुश नहीं हैं। उनके साथ आदिवासियों की एक बड़ी आबादी भी बंधु के आने से खुश नहीं है, पर यह विरोध मुखर नहीं, मौन और असंतोष के रूप में है।
कांग्रेस ने इसलिए शामिल कराया प्रदीप और बंधु को
झारखंड विधानसभा चुनाव में 16 सीटें जीतनेवाली कांग्रेस झारखंड में खुद को मजबूत करना चाहती है। इसलिए प्रदीप और बंधु की इंट्री से उसे बैठे-बिठाये दो विधायक मिल गये हैं। बंधु तिर्की और प्रदीप यादव शिक्षा मंत्री भी रह चुके हैं और दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में लोकप्रिय हैं। इसलिए कांग्रेस इन दोनों को पार्टी में लाकर अपने कुनबे को मजबूत करेगी। समझा जा रहा है कि इनमें से एक को महागठबंधन सरकार में मंत्री पद भी दिया जा सकता है। वहीं प्रदीप और बंधु तिर्की कांग्रेस में इसलिए शामिल हुए, क्योंकि जिस सेक्यूलर राजनीति के वाहक वे हैं, उसमें कांग्रेस का प्लेटफॉर्म उनके लिए मुफीद है। बंधु तिर्की मांडर से विधायक हैं और उन्होंने भाजपा उम्मीदवार देवकुमार धान को पराजित कर यह सीट हासिल की है। मांडर अल्पसंख्यक और इसाई बहुल क्षेत्र है। इसलिए बंधु कांग्रेस में आये हैं। वहीं प्रदीप भले ही भाजपा और बाद में झाविमो में रहे हैं, पर उनकी राजनीति सेक्यूलर होने के इर्दगिर्द घूमती है। झामुमो की तुलना में कांग्रेस एक राष्टÑीय पार्टी है और यही कारण है कि इन दोनों ने बाबूलाल के भाजपा में जाने की स्थिति में कांग्रेस में इंट्री ली। इनकी इंट्री से कांग्रेस का तो भला हुआ ही, इनका भी भला हुआ। इसलिए फायदा दोनों का है।
इसलिए विरोध कर रहे हैं इरफान अंसारी
झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि डॉ इरफान अंसारी का प्रदीप यादव के विरोध के पीछे कारण उनका अल्पसंख्यक विरोधी और यौन उत्पीड़न का अरोपी होने से अधिक राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता है। दरअसल बीते लोकसभा चुनाव में महागठबंधन के उम्मीदवार के रूप में प्रदीप यादव को गोड्डा से टिकट दिया गया था। डॉ इरफान अंसारी यह बात भूले नहीं हैं। इसके अलावा दोनों का संसदीय क्षेत्र एक ही है, विधानसभा क्षेत्र अलग-अलग भले ही हो। प्रदीप यादव पांच बार से पोड़ैयाहाट से विधायक रह चुके हैं और क्षेत्र में उनकी पकड़ गहरी है। कांग्रेस में शामिल होने के बाद अब वह डॉ इरफान अंसारी के समक्ष कड़ी चुनौती पेश करेंगे। प्रदीप यादव कुशल वक्ता भी हैं और उनके सामने कहीं न कहीं डॉ इरफान अंसारी कमजोर पड़ेंगे। यही कारण है कि वह प्रदीप यादव का विरोध कर रहे हैं। पर जब से दिल्ली से उन्हें बुलावा आया है, तब से वह शांत हैं और बयानबाजी भी नहीं कर रहे हैं।
विरोध की सियासत काम नहीं आयेगी
कांग्रेस आलाकमान के बुलावे के बाद जिस तरह की चुप्पी डॉ इरफान अंसारी ने ओढ़ी है और किसी तरह की बयानबाजी से बच रहे हैं, उससे यह साफ है कि उनके विरोध की सियासत काम नहीं आयेगी। प्रदीप की कांग्रेस में इंट्री से उनके क्षेत्र में उन्हें एक कद्दावर और मजबूत प्रतिद्वंद्वी मिल जायेगा। चूंकि दोनों नेताओं ने डायरेक्ट दिल्ली दरबार में जाकर कांग्रेस में इंट्री ली है, इसलिए दोनों की पहुंच का अंदाजा स्वाभाविक है। डॉ इरफान अंसारी कांग्रेस के टिकट पर गोड्डा से सांसद बनने का सपना संजोये हुए हैं। इस राह में अब प्रदीप यादव उनके समक्ष कड़ी चुनौती पेश करेंगे। पर चूंकि इरफान के पास अधिक विकल्प नहीं हैं, इसलिए उनका इस मामले में चुप रहना ही श्रेयस्कर होगा। बंधु तिर्की के आने से कांग्रेस को मांडर में और प्रदीप के आने से पोड़ैयाहाट में एक जिताऊ उम्मीदवार मिल गया है।
प्रदीप यादव का प्लस प्वाइंट यह है कि वे लोकसभा चुनाव लड़ चुके हैं, इसलिए कांग्रेस उनकी क्षमता का इस्तेमाल लोकसभा चुनाव के साथ संगठन को मजबूत करने के लिए करना चाहे, तो उसके लिए भी कर सकती है। प्रदीप और बंधु तिर्की की कांग्रेस में इंट्री क्या गुल खिलायेगी, यह तो भविष्य के गर्भ में है, पर इतना तो अभी दिख रहा है कि प्रदीप की इंट्री का विरोध अब शांत होता दिख रहा है।