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    Home»Top Story»…और 11 फरवरी को इतिहास बन जायेगा झाविमो !
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    …और 11 फरवरी को इतिहास बन जायेगा झाविमो !

    azad sipahi deskBy azad sipahi deskFebruary 9, 2020No Comments6 Mins Read
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    बाबूलाल मरांडी भाजपा की पौधशाला से उपजे हुए नेता हैं और एक इंटरवल के बाद वह उसी गुलशन में लौट रहे हैं। झारखंड का पहला मुख्यमंत्री बनने का अवसर दिया, उसके प्रति जो खटास बाबूलाल मरांडी के मन में थी वह समय के साथ खत्म हो चुकी है। झाविमो से प्रदीप यादव और बंधु तिर्की के निष्कासन के बाद यह साफ हो चुका है कि बाबूलाल मरांडी अपनी पार्टी का भाजपा में विलय करने को प्रतिबद्ध हो चुके हैं। बाबूलाल की भाजपा में संभावित घर वापसी के साथ झारखंड की राजनीति में बाबूलाल मरांडी की अहमियत और झाविमो के योगदान को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।

    24 सितंबर 2006 को जिस पार्टी के अस्तित्व में आने की घोषणा बाबूलाल मरांडी ने हजारीबाग में की थी वह भाजपा में अपने विलय की ओर कदम बढ़ा चुकी है। झाविमो के टिकट से जीतकर आये दो विधायकों प्रदीप यादव और बंधु तिर्की का निष्कासन भी इसी दिशा में बढ़ा पार्टी का कदम है, जिसके सूत्रधार पार्टी सुप्रीमो बाबूलाल मरांडी हैं। दरअसल, बाबूलाल मरांडी भाजपा के सच्चे सिपाही तो थे ही पार्टी के भाजपा में विलय का मन बनाने के बाद वे पूरे भाजपाई भी हो चुके हैं। भाजपा के झारखंड प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं को भाजपा में बाबूलाल के आगमन की सूचना दी जा चुकी है और पार्टी उस दिन के इंतजार में है, जब बाबूलाल फिर से भाजपाई अवतार में दिखेंगे। बाबूलाल जिस वजह से भाजपा से अलग हुए थे, वे वजहें 13 वर्षों में दूर हो चुकी हैं और यही कारण है कि वे भाजपा में आ रहे हैं। वे झारखंड का विकास चाहते हैं और भाजपा उन्हें पार्टी में शामिल करके पार्टी का भला करना चाहती है और इन दोनों की ही जरूरतों का समीकरण वर्ष 2020 में मैच कर गया है। हालांकि झाविमो के भाजपा में विलय के खिलाफ पार्टी विधायक प्रदीप यादव और पार्टी नेता सबा अहमद ने मोर्चा खोल रखा है, लेकिन उससे बाबूलाल मरांडी की सेहत पर कोई फर्क पड़नेवाला नहीं है।

    झाविमो ने बहुत कुछ दिया झारखंड की राजनीति को

    झारखंड विकास मोर्चा जब वर्ष 2006 में अस्तित्व में आया, तो उसने अपने 13 वर्षों के कालखंड में झारखंड की राजनीति को बहुत कुछ दिया। झाविमो के अस्तित्व में आने के बाद पार्टी में सबा अहमद, थियोडोर किड़ो, केपी शर्मा, सोम मरांडी और सूर्य सिंह बेसरा को उपाध्यक्ष का पद दिया गया था, जबकि उद्योगपति बीके जयसवाल को कोषाध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गयी थी। प्रभाकर तिर्की, बन्ना गुप्ता और अशोक वर्मा को पार्टी में सचिव की जिम्मेदारी मिली थी। झाविमो में सचिव रहे बन्ना गुप्ता आज झारखंड की हेमंत के नेतृत्व वाली महागठबंधन की सरकार में कांग्रेस के कोटे से स्वास्थ्य मंत्री हैं। इस पार्टी ने सबसे पहला काम तो यह किया कि भाजपा को बाबूलाल मरांडी की अहमियत बता दी।

    दूसरा काम यह किया कि इसने यह साबित कर दिया कि बाबूलाल मरांडी में एक संगठनकर्ता की काबिलियत लाजवाब है। इस पार्टी ने लंबे समय तक प्रदीप यादव को राजनीति का प्लेटफार्म दिया। पार्टी ने जाति-धर्म या फिर बिना किसी भेदभाव के प्रजातांत्रिक तरीके से जनमुद्दों को उठाया और झारखंड की राजनीति में एक बड़ी ताकत बनकर उभरी। झाविमो का गठन उन्होंने क्यों किया इस बाबत तीन अक्टूबर 2019 को दिये गये एक इंटरव्यू में बाबूलाल मरांडी ने कहा था कि मैं झारखंड की माटी का बेटा हूं। राज्य के गरीब-गुरबों और झारखंड के भाई-बहनों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए मैं राजनीति में आया हूं। जब मुझे यह एहसास हो गया कि भाजपा में रहकर ऐसा नहीं कर सकता तो वर्ष 2006 में अपनी अलग पार्टी झाविमो बनायी।

    इसलिए भाजपा में घर वापसी कर रहे हैं बाबूलाल

    बाबूलाल मरांडी जिस कद के नेता हैं और झारखंड के विकास का जो विजन वह समेटे हुए हैं, उसमें नेतृत्व प्रदान करने के लिए उन्हें एक बड़ा प्लेटफार्म चाहिए जो भाजपा उन्हें दे सकती है। वहीं, भाजपा झारखंड विधानसभा चुनाव में पराजय के बाद जिस स्थिति में है, उसे उबारने में भाजपा आलाकमान को बाबूलाल से बड़ा चेहरा कोई दूसरा दिखता नहीं है। इसलिए भाजपा चाहती है कि बाबूलाल मरांडी पार्टी में शामिल हो जायें। विधानसभा चुनाव में बाबूलाल मरांडी की पार्टी झाविमो 81 सीटों पर लड़ी थी पर केवल तीन सीटों पर ही पार्टी जीत सकी ऐसे में झारखंड की राजनीति में लीड रोल में आने के लिए बाबूलाल मरांडी के पास विकल्प भी सीमित हैं। ऐसे में भाजपा में बाबूलाल मरांडी की घर वापसी तय मानी जा रही है। ऐसी चर्चाएं हैं कि 14 फरवरी को जेपी नड्डा की उपस्थिति में वे अपनी पार्टी का भाजपा में विलय करेंगे। मौके पर हजारों की संख्या में पार्टी कार्यकर्ता उपस्थित रहेंगे।

    बाबूलाल मरांडी के भाजपा छोड़ने के बाद ऐसे कई मौके आये, जब भाजपा ने बाबूलाल को पार्टी में वापस लाना चाहा पर बाबूलाल नहीं गये। बाबूलाल मरांडी का झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के रूप मेें 28 महीने का जो उल्लेखनीय कार्यकाल है, वह जितना जनता के जेहन में जितनी ताजा है उतना ही पार्टी की नजरों में भी। बाबूलाल की यह भी खासियत रही कि उन्होंने कद्दावर नेता होने के बाद भी वंशवाद की राजनीति को कभी बढ़ावा नहीं दिया। यशवंत सिन्हा जहां अपने बेटे जयंत सिन्हा के राजनीतिक उत्थान के लिए प्रयत्नशील रहे वहीं बीडी राम ने अपने साले राधाकृष्ण किशोर को भाजपा में स्थापित करने की कोशिश की। रवींद्र पांडेय ने अपने बेटे को टुंडी से टिकट दिलाया। रघुवर दास ने भी अपने बेटे का कद बड़ा करने के लिए परोक्ष रूप से काम किया और अर्जुन मुंडा भी अपनी पत्नी मीरा मुंडा की राजनीतिक तरक्की के लिए परेशान रहे पर ऐसा कोई काम बाबूलाल मरांडी ने कभी नहीं किया। वे राजनीति में शुचिता के पैरोकार रहे और बड़ा राजनेता होने के बाद भी विनम्रता उनके स्वभाव और राजनीति का हिस्सा रही। बाबूलाल मरांडी में नायक होने के यही गुण भाजपा आलाकमान को विवश करते रहे कि वह पार्टी में बाबूलाल की वापसी कराये और अंतत: भाजपा ऐसा करने में सफल भी होती दिख रही है।

    बाबूलाल भाजपा में शामिल हुए तो ट्रांसफार्म हो जायेगी पार्टी

    झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि भाजपा आलाकमान झारखंड में पार्टी को लीड रोल में लाना चाहता है और इस काम में बाबूलाल मरांडी भाजपा के काम के साबित होंगे। बाबूलाल मरांडी झारखंड में भाजपा को ट्रांसफार्म करने में अहम भूमिका निभायेंगे। यहां यूं कहे कि वे झारखंड भाजपा के कर्णधार की भूमिका निभाने पार्टी में शामिल होंगे। बाबूलाल मरांडी झारखंडी अस्मिता की तो समझ रखते ही हैं, उनका विकास का विजन भी बेहद क्लीयर है। उनके पार्टी में लौटने से संघ परिवार को भी कोई आपत्ति नहीं होगी, क्योंकि संघ की परंपरा और नीतियों से वे भली-भांति परिचित है। 11 फरवरी झारखंड की राजनीति में क्या गुल खिलायेगी यह तो भविष्य के गर्भ में है पर इतना तो साफ दिख रहा है कि हर दिन झाविमो के भाजपा में विलय की पृष्ठभूमि झारखंड में बनती जा रही है।

    ... and history will be made on 11 February Jhavimo!
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