62 साल के हो चुके बाबूलाल मरांडी उम्र की जिस वय संधि पर खड़े हैं, वहां नयी जिम्मेदारी के साथ उनका वह समय चल रहा है, जिसे संक्रांति काल कहा जाता है। इसका पूर्वार्द्ध यदि झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के रूप में उनकी अविस्मरणीय पारी और झाविमो के अध्यक्ष के रूप में गुजरा है, तो उत्तरार्द्ध झारखंड के नेता प्रतिपक्ष के रूप में गुजरनेवाला है। इस दौरान वे कई चुनौतियों और उनका सामना करते हुए हासिल खट्टे-मीठे अनुभवों से गुजरे हैं, तो अब नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनका सामना फिर से नयी चुनौतियों से होनेवाला है। झारखंड के कद्दावर आदिवासी नेताओं में से एक बाबूलाल मरांडी के समक्ष आनेवाली चुनौतियों और उन चुनौतियों का सामना करते हुए उनकी भविष्य की पारी को रेखांकित करती दयानंद राय की रिपोर्ट।
हर भूत का एक भविष्य होता है और यदि झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी का भूत झाविमो के केंद्रीय अध्यक्ष के पद की जिम्मेवारी और उस पद को संभालते हुए पार्टी को बेहतर नेतृत्व देना था, तो उनका भविष्य भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में अंगड़ाईयां लेकर उठ खड़ा होने को बेताब दिख रहा है। भाजपा के अंदरखाने में जैसी चर्चाएं हैं, उनके अनुसार 21 या 22 फरवरी को बाबूलाल मरांडी भाजपा विधायक दल के नेता चुन लिये जायेंगे। इस नयी जिम्मेदारी के साथ उनका सामना उन चुनौतियों से होगा, जो इनके साथ-साथ गले से गला मिलाये हुए चली आने को बेकरार हैं। इनमें से सबसे प्रमुख जिम्मेदारी तो हार के बाद भाजपा के नेताओं और कार्यकर्ताओं को नयी पारी के लिए रिचार्ज करने की होगी। वहीं, दूसरी बड़ी जिम्मेदारी बजट सत्र, जो 28 फरवरी से शुरू होनेवाला है, में हेमंत सरकार के समक्ष कड़ी चुनौती पेश करने की होगी और तीसरी मार्च-अप्रैल में संभावित राज्यसभा चुनाव तथा 2024 में होनेवाले विधानसभा चुनाव में पार्टी को अधिक से अधिक सीटों पर जीत हासिल करने के लिए तैयार करने की होगी। नेता प्रतिपक्ष बनते ही बाबूलाल मरांडी झारखंड में विधायकों की संख्या के लिहाज से दूसरे नंबर के दल के मुखिया होंगे। राज्य का पहला मुख्यमंत्री होने, सांसद होने, झाविमो अध्यक्ष बनने और लंबे समय तक इस दायित्व का निर्वहन करने के साथ उनके समक्ष राजधनवार की जनता की उम्मीदों पर भी खरा उतरने की चुनौती होगी, जिसने उन्हें चुनाव जिताकर झारखंड विधानसभा में भेजा है।
बाबूलाल ने झारखंड के पहले सीएम के रूप में जो 28 महीनों की पारी खेली है और झाविमो के अध्यक्ष के रूप में 14 साल तक अनुभव अर्जित किये हैं, उससे यह साफ है कि भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में नयी जिम्मेवारी के लिए वे बखूबी तैयार हैं। प्रभात तारा मैदान में आयोजित भाजपा के मिलन समारोह में उनकी भूमिका को रेखांकित करते हुए अमित शाह कह ही चुके हैं कि पार्टी उनकी शक्तियों का महत्तम उपयोग करेगी। जाहिर है कि अब प्रदेश भाजपा के नेतृत्वकर्ता के रूप में बाबूलाल मरांडी की क्षमताओं का उपयोग भाजपा आलाकमान करेगा।
चुनौतियों को अवसर में बदलने की कला जानते हैं बाबूलाल
जो चुनौतियां बाबूलाल मरांडी के सामने आनेवाली हैं, उन चुनौतियों का बाबूलाल मरांडी को आभास है। बाबूलाल अपने लंबे राजनीतिक अनुभवों से गुजर कर चुनौतियों को अवसर में बदलने की कला सीख चुके हैं। इसलिए माना यह जाना चाहिए कि वे सभी चुनौतियों का मुकाबला करते हुए भाजपा को एक प्रखर नेतृत्व देंगे। भाजपा को फिर से झारखंड की राजनीति के शिखर पर पहुंचाने के लिए बाबूलाल को पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और खूंटी से सांसद अर्जुन मुंडा का भी सहयोग मिलेगा। जाहिर है कि झारखंड भाजपा में केंद्रीय भूमिका में बाबूलाल मरांडी, अर्जुन मुंडा और रघुवर दास होंगे। झारखंड विधानसभा चुनाव में भाजपा को महागठबंधन के हाथों जो करारी शिकस्त मिली है, उसके बाद पार्टी को रिचार्ज करने के लिए बाबूलाल ने एक्शन प्लान बना लिया है। वे गांव-गांव और गली-गली तक पार्टी को ले जायेंगे। भाजपा में शामिल होने के बाद प्रदेश भाजपा कार्यालय में पत्रकारों के समक्ष बाबूलाल ने साफ कर दिया है कि वे पार्टी को मजबूत करने में पूरी ताकत लगा देंगे। बाबूलाल अब जब भी रांची में रहेंगे, तो प्रदेश भाजपा कार्यालय में बैठेंगे और इस दौरान वे न सिर्फ पार्टी कार्यकर्ताओं की समस्याएं सुनेंगे, बल्कि पार्टी को सांगठनिक रूप से मजबूत करने की रणनीति भी बनायेंगे। बाबूलाल मरांडी जिस लंबे राजनीतिक अनुभव से लैस हैं, वैसे में झारखंड विधानसभा के बजट सत्र में वे बड़े आराम से पार्टी के विधायक दल के नेता के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभा ले जायेंगे। राज्यसभा चुनाव में भी पार्टी उम्मीदवार को जीत दिलाने का काम वे बखूबी करेंगे। उनके सामने असली चुनौती फिर से पार्टी को झारखंड की सत्ता पर काबिज कराना होगा। झारखंड में अपनी मानवीय कार्यप्रणाली से हेमंत सोरेन जिस तेजी से लोकप्रिय होते जा रहे हैं, वैसे में बाबूलाल मरांडी के सामने यह बड़ी चुनौती होगी कि वे हेमंत सोरेन की काट खोज सकें। बीते विधानसभा चुनाव में झारखंड की 28 में से 26 एसटी सीटों पर भाजपा उम्मीदवारों को हार का मुंह देखना पड़ा था।
ऐसी परिस्थिति में बाबूलाल को जनजातीय आबादी के बीच पार्टी को लोकप्रिय बनाने की होगी, क्योंकि 2024 में होनेवाले विधानसभा चुनावों में भाजपा की सत्ता में वापसी तय करने में इन सीटों की अहम भूमिका होगी। भाजपा में शामिल होने के बाद बाबूलाल के समक्ष भाजपा के एक असंतुष्ट गुट को भी शांत कराने की होगी। यह गुट भाजपा में बाबूलाल की वापसी के बाद से अपने भविष्य को लेकर सशंकित है। बाबूलाल भाजपा में अपने साथ झाविमो नेताओं और कार्यकर्ताओं की फौज लेकर आये हैं। ऐसे में उन्हें पार्टी में पद देते समय भाजपा के कार्यकर्ताओं के साथ कोई अन्याय न हो, इस ओर भी संतुलन साधने की चुनौती होगी।
यादगार पारी खेलेंगे बाबूलाल
झारखंड की राजनीति के जानकारों का कहना है कि बाबूलाल मरांडी भाजपा विधायक दल के नेता की यादगार पारी खेलने को तैयार हैं। उनका पूर्व का कार्यकाल, जिसमें झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के रूप में 28 महीनों का उल्लेखनीय कार्यकाल तथा झाविमो के केंद्रीय अध्यक्ष के रूप में चौदह साल का कार्यकाल शामिल है, उसे देखा जाये, तो बाबूलाल मरांडी हर पल जिम्मेवारियों के निर्वहन में खरे उतरे हैं। एक नयी पार्टी को जन्म देने के साथ उसे लंबी कालावधि तक चलाने का काम उनके लिए सर्वाधिक चुनौतीपूर्ण था और इस काम को उन्हें बखूबी संभाला। वे झारखंड में छह से सात लाख किलोमीटर की यात्रा कर चुके हैं और उन्हें झारखंड के चप्पे-चप्पे की जानकारी है।
उनके पास विकास का विजन है, तो आदिवासी और गैर आदिवासी वोटरों को साधने की कूबत भी है। अपने लंबे राजनीतिक अनुभव से वे भाजपा को फिर से झारखंड में नंबर वन पार्टी बना पाने में सफल होंगे। यह राह बहुत आसान होगी, ऐसा नहीं है, पर बाबूलाल नरेंद्र मोदी और अमित शाह की अपेक्षाओं पर खरे उतरे हैं, ऐसे में इसकी आशा ज्यादा है कि वे नयी जिम्मेवारी का सम्यक निर्वहन करेंगे।