चौदह साल बाद भाजपा में बाबूलाल मरांडी की वापसी और पार्टी के विधायक दल के नेता के रूप में उनकी संभावित भूमिका झारखंड की राजनीति में एक नयी लकीर खींचने को तैयार है। जब नवगठित झारखंड के पहले मुख्यमंत्री बाबूलाल बने थे, तो सत्ता की कमान उनके हाथ में थी। अपने 28 महीने के कार्यकाल में उन्होंने अपनी नेतृत्व क्षमता का लोहा मनवा लिया था। इस बार नियति ने फिर उन्हें नेतृत्वकर्ता की भूमिका दी है, पर उन्हें मोर्चा विपक्ष के नेता के रूप में संभालना है। राजनीति की नदी के एक किनारे पर इस बार जहां सत्ता संभाले हेमंत सोरेन खड़े हैं, वहीं दूसरी ओर ताकतवर विपक्ष के नेता के रूप में बाबूलाल मरांडी हैं। पक्ष और विपक्ष में होने के कारण इन दोनों नेताओं में द्वंद्व स्वाभाविक है। पर ये दोनों नेता स्वस्थ राजनीति करने के पैरोकार रहे हैं। ऐसे में इनकी भूमिका से झारखंड बेहतरी की ओर बढ़ सकता है। इन दोनों नेताओं की नयी पारी से झारखंड की राजनीति में आनेवाले संभावित बदलाव को टटोलती दयानंद राय की खास रिपोर्ट।
झारखंड की राजनीति के पिच पर रोमांचक मैच खेलने के लिए हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी तैयार हो चुके हैं। इस मैच में बैटिंग की कमान जहां हेमंत सोरेन के हाथ में है, वहीं बॉलिंग के साथ फील्डिंग का सशक्त मोर्चा बाबूलाल मरांडी के हाथ में है। झारखंड की राजनीति के इन दोनों दिग्गजों की पहली परीक्षा तो 28 फरवरी से शुरू हो रहे झारखंड विधानसभा के बजट सत्र में हो जायेगी। करीब एक महीने तक चलनेवाले इस बजट सत्र में दोनों नेताओं के जिम्मे अपनी-अपनी पार्टियों की कमान रहेगी। जाहिर है कि जवाबदेही के साथ बेहतरीन परफॉरमेंस देने का दबाव भी दोनों नेताओं के कंधों पर रहेगा। बाबूलाल मरांडी ने चौदह साल बाद भाजपा ज्वाइन करते ही बता दिया है कि सरकार की आलोचना करने का कोई मौका वह नहीं छोड़ेंगे, तो हेमंत सोरेन भी हवाओं का रुख भांपते हुए बाबूलाल की यॉर्कर और गुगली का जवाब देने के लिए तैयार रहेंगे। कुल मिलाकर यह मैच रोमांचक होगा, क्योंकि दोनों ही ओर की टीम मजबूत है। एक ओर जहां बाबूलाल मरांडी हेमंत सोरेन की कमियों और खूबियों से वाकिफ हैं, तो दूसरी ओर हेमंत भी बाबूलाल को समग्रता में जानते हैं।
मजबूत विपक्ष से होगा महागठबंधन का सामना
झारखंड विधानसभा में इस बार महागठबंधन की सरकार का सामना मजबूत विपक्ष से होगा। भाजपा 26 विधायकों के साथ झारखंड में मजबूत स्थिति में है, तो महागठबंधन के पास भी पर्याप्त संख्या बल है। हालांकि आजसू ने एकला चलो की राह अपनाने का फैसला लिया है, पर नीतिगत मामलों में वह भाजपा के साथ रहेगी, इसकी संभावना अधिक है। इस बार पक्ष और विपक्ष ने यदि सकरात्मक राजनीति की ओर रुख किया, तो इसकी संभावना अधिक है कि झारखंड विकास के रास्ते पर बढ़ चलेगा। चाहे वह हेमंत हों या बाबूलाल, दोनों आदिवासी सोच के नेता हैं और दोनों को एक-दूसरे से एलर्जी भी नहीं है। इसके अलावा झाविमो में रहने के दौरान बाबूलाल मरांडी ने महागठबंधन की सरकार को बिना शर्त समर्थन भी दिया था। वहीं जब बाबूलाल मरांडी भाजपा में आये, तो हेमंत सोरेन ने भी उन्हें शुभकामनाएं दी थीं। ऐसे में राजनीतिक आरोपों-प्रत्यारोपों को दरकिनार कर दें, तो दोनों आपस में टकरायेंगे, इसकी संभावना कम है। ऐसा इसलिए भी है, क्योंकि बाबूलाल मरांडी रघुवर दास नहीं हैं, जिनसे हेमंत को खुन्नस हो। हेमंत सोरेन ने सरकार में आने के साथ ही रघुवर दास पर किया गया केस वापस लेकर यह दर्शा दिया है कि वे यथासंभव सकारात्मक राजनीति करने का सपना संजोये बैठे हैं।
हेमंत हों या बाबूलाल दोनों के पास है जौहर दिखाने का मौका
युद्ध का मैदान हो या राजनीति का मंच, खिलाड़ियों को अपना जौहर दिखाने का मौका तब मिलता है, जब प्रतिस्पर्द्धी मजबूत हों। हेमंत सोरेन को इस दफा कोई चुनौती नहीं है, क्योंकि महागठबंधन की सरकार के पास इस दफा पर्याप्त संख्या बल है। वहीं बाबूलाल के पास भी अपनी नेतृत्व क्षमता दिखाने का अच्छा मौका है, क्योंकि झाविमो में वे दो विधायकों का नेतृत्व कर रहे थे, तो भाजपा में आने के बाद अब झारखंड भाजपा के 25 विधायकों की कमान एक तरह से उनके हाथों में होगी। यदि हेमंत सोरेन और बाबूलाल मरांडी ने अपनी-अपनी राजनीतिक दक्षता का सकारात्मक उपयोग किया, तो यह तो तय है कि झारखंड की राजनीति में एक नये युग का सूत्रपात होगा।
56 से अधिक दिन हो गये अब निर्णय लेना होगा हेमंत सरकार को
29 दिसंबर को हेमंत सोरेन ने झारखंड के 11वें मुख्यमंत्री के रूप में सत्ता की कमान अपने हाथों में ली थी। उनकी सरकार को बने 53 से अधिक दिन हो चुके हैं। अब सरकार को जनहित में कोई ठोस निर्णय लेना होगा, क्योंकि अब यह कहने से काम नहीं चलनेवाला कि राज्य का खजाना खाली है। झारखंड के युवा आशा भरी नजरों से हेमंत सरकार की ओर देख रहे हैं। ऐसे में सरकार को नौकरियां देने के अपने वादे के साथ स्वास्थ्य के क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधार लाने की दिशा में कदम बढ़ाना चाहिए। जेपीएससी और जेएसएससी, जो लगभग निष्क्रिय स्थिति में हैं, में खाली पड़े पदों पर योग्य लोगों को जगह देकर युवाओं को नौकरी देने के अपने वादे को पूरा करने की कोशिश करनी चाहिए। हेमंत सोरेन यह कर पायेंगे, तो बाबूलाल मरांडी को उन्हें घेरने का मौका कम मिलेगा। वहीं जनता की आकांक्षाओं पर खरा उतरने का आत्मसंतोष भी हेमंत के साथ रहेगा। राज्य के 11वें मुख्यमंत्री के रूप में हेमंत सोरेन के पास एक यादगार पारी खेलने का सुनहरा मौका है। इस पारी में अगर वे जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने में सफल रहे, तो यकीनन झारखंड के सर्वश्रेष्ठ मुख्यमंत्रियों में उनकी गिनती होगी। हेमंत सरकार के कार्यों की सराहना दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल भी कर चुके हैं। पर यह उनके परफॉरमेंस और वादों की जनता तक डिलीवरी से तय होगा। वहीं बाबूलाल के जिम्मे भाजपा को आगे ले जाने की जिम्मेवारी है। उन्हें अमित शाह योद्धा बता चुके हैं। अब तक बाबूलाल का जो कार्यकाल रहा है, चाहे वह झारखंड के पहले मुख्यमंत्री के रूप में रहा हो या फिर सांसद या झाविमो अध्यक्ष के रूप में, सबमें उन्होंने बेहतर प्रदर्शन किया है। पर अब उन्हें बेहतर नहीं, बेहतरीन प्रदर्शन करना होगा। दोनों नेता अब राजनीति की पिच पर कैसा प्रदर्शन करते हैं, यह तो भविष्य तय करेगा, पर इतना तो दिख ही रहा है कि दोनों अपनी-अपनी भूमिका का निर्वाह संजीदगी से करने को तैयार हैं।