झारखंड की पांचवीं विधानसभा का दूसरा सत्र 28 फरवरी से शुरू हो रहा है। वैसे तो यह बजट सत्र होगा, लेकिन राजनीतिक मुद्दे भी इसमें जोर-शोर से उठाये जायेंगे। सत्र के दौरान सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच टकराव की जमीन अभी से तैयार हो गयी है। सदन में बाबूलाल मरांडी की ‘कुर्सी’ को लेकर बवाल होना तय माना जा रहा है। सत्ता पक्ष की कोशिश होगी कि बाबूलाल मरांडी को सदन में झाविमो का विधायक माना जाये, वहीं भाजपा इस बात पर अड़ेगी कि उन्हें भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में मान्यता मिल जाये। हालांकि इस मामले पर अंतिम फैसला स्पीकर को लेना है, लेकिन इतना तय है कि बजट सत्र के दौरान सदन में बाबूलाल मरांडी के ‘स्टेटस’ का सवाल उठेगा ही और इसपर सत्ता पक्ष एवं विपक्ष की मतभिन्नता के चलते टकराव की नौबत बनेगी। इस मसले के विभिन्न पहलुओं पर रोशनी डालती आजाद सिपाही पॉलिटिकल ब्यूरो की विशेष रिपोर्ट।

झारखंड विधानसभा का बजट सत्र दो दिन बाद 28 फरवरी को शुरू हो रहा है। वैसे तो झारखंड की पांचवीं विधानसभा का पहला सत्र छह से आठ जनवरी तक हो चुका है। झारखंड गठन के बाद पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ बनी गैर-भाजपा सरकार के मुखिया हेमंत सोरेन की असली परीक्षा इसी सत्र में होगी। बजट सत्र में सदन का ‘बिजनेस’(वैधानिक कार्यकलाप) मुख्य तौर पर बजट प्रस्तावों पर केंद्रित होगा, लेकिन इससे इतर इस सत्र में राजनीतिक मुद्दे भी छाये रहेंगे और इसमें सबसे प्रमुख मुद्दा बनेगी बाबूलाल मरांडी की ‘कुर्सी’। उन्हें सदन में भाजपा विधायक दल के नेता का स्टेटस हासिल होगा या फिर वह झाविमो के विधायक माने जायेंगे? इसपर स्पीकर का निर्णय चाहे जो भी हो, सत्ता पक्ष और विपक्ष में रस्साकशी का मैच होना तय है।
झाविमो के टिकट पर धनवार सीट से चुने गये बाबूलाल मरांडी के भाजपा में शामिल होने के बाद पार्टी के 25 विधायकों ने सर्वसम्मति से उन्हें विधायक दल का नेता चुना है। भाजपा विधायकों की बैठक 24 फरवरी को हुई और उन्हें नेता चुने जाने के बाद इसकी सूचना तत्काल स्पीकर को भेज दी गयी। इससे एक सप्ताह पहले 17 फरवरी को बाबूलाल मरांडी औपचारिक तौर पर भाजपा में शामिल हुए थे और अपनी पार्टी झाविमो का विलय भी करा दिया था। अब यह स्पीकर पर निर्भर है कि वह बाबूलाल मरांडी को भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में मान्यता देते हैं या नहीं।
बजट सत्र से पूर्व स्पीकर ने सर्वदलीय बैठक बुलायी। इसमें भाजपा विधायकों द्वारा नेता चुने गये बाबूलाल मरांडी को न्योता नहीं भेजा गया। स्पीकर ने उनके बदले भाजपा विधायकों के प्रतिनिधि के तौर पर सी.पी. सिंह को बैठक का आमंत्रण भेजा। जाहिर है, स्पीकर ने अभी तक न तो बाबूलाल मरांडी को भाजपा विधायक दल के नेता के रूप में मान्यता दी है और न ही झाविमो के भाजपा में विलय को ही स्वीकार किया है। इतना ही नहीं, स्पीकर ने इस बैठक के लिए झाविमो विधायक दल के नेता के तौर पर प्रदीप यादव न्योता भेजा है, जबकि वह कांग्रेस में शामिल हो चुके हैं। प्रदीप यादव के अलावा झाविमो के टिकट पर विधायक चुने गये बंधु तिर्की भी कांग्रेस में शामिल हुए हैं और उन दोनों ने स्पीकर को पत्र भेजकर अपने लिए सत्ता पक्ष की दीर्घा में सीट आवंटित करने का आग्रह किया है।
अब बड़ा सवाल यह है कि झाविमो के टिकट पर चुनाव जीतने वाले बाबूलाल मरांडी, प्रदीप यादव और बंधु तिर्की भले ही अलग-अलग पार्टियों में शामिल हो चुके हैं, लेकिन सदन में उनकी सीटें कहां होंगी? स्पीकर डॉ रवींद्र नाथ महतो ने अभी तक झाविमो के किसी पार्टी में विलय का स्टेटस स्वीकार नहीं किया है, लिहाजा स्वाभाविक तौर पर इन तीन विधायकों की सीटें एक साथ होंगी। चूंकि प्रदीप यादव को स्पीकर झाविमो विधायक दल के नेता के तौर पर मान्यता दे रहे हैं और चूंकि प्रदीप सत्ता पक्ष की ओर सीट आवंटित करने का अनुरोध कर चुके हैं, तो स्पीकर उनके अनुरोध को ही मानेंगे। ऐसी स्थिति में बाबूलाल मरांडी के समक्ष बड़ी विकट स्थिति होगी।

दो-तिहाई विधायकों का फैसला ही मान्य : डॉ सुभाष कश्यप
झाविमो के भाजपा में विलय के सवाल पर संसदीय मामलों के जानकार और लोकसभा के पूर्व महासचिव डॉ सुभाष कश्यप का कहना है कि सदन के अंदर कौन सदस्य कहां बैठेगा, यह तय करना स्पीकर का अधिकार है। दल-बदल विरोधी कानून के प्रावधानों के अनुसार यदि किसी दल के दो तिहाई विधायक अपनी पार्टी का विलय दूसरी पार्टी में कराने का फैसला करते हैं, तो स्पीकर उसे स्वीकार कर मान्यता देंगे। हालांकि स्पीकर के फैसले को हाइकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है। वर्तमान स्थिति में प्रथम दृष्टया यही प्रतीत होता है कि झाविमो के दो-तिहाई विधायकों ने अपने लिए सत्ता पक्ष की तरफ सीट आवंटित करने की मांग की है, तो स्पीकर इसे मानने के लिए बाध्य होंगे। विलय के मुद्दे पर भी उन्हें दो तिहाई विधायकों की दलील माननी होगी। यह पूछे जाने पर कि बाबूलाल मरांडी के सामने क्या विकल्प हैं, डॉ कश्यप ने कहा कि उनके सामने अपने विधायक दल के नेता का ह्विप मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। हालांकि यदि वह स्पीकर के फैसले से असंतुष्ट होते हैं, तो उन्हें हाइकोर्ट में अपील करने का अधिकार होगा।

सदन के भीतर की व्यवस्था तो स्पीकर को ही करनी है : इंदर सिंह नामधारी
झारखंड विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष और पूर्व सांसद इंदर सिंह नामधारी ने इस बारे में कहा कि सदन के अंदर की सारी व्यवस्था की जिम्मेदारी स्पीकर की ही होती है। हालांकि स्पीकर के फैसले को हाइकोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, लेकिन तात्कालिक तौर पर स्पीकर का फैसला ही मान्य होगा। इसलिए बाबूलाल मरांडी को सदन में कहां बैठना है और वह भाजपा विधायक दल के नेता हैं या नहीं, यह फैसला स्पीकर ही करेंगे।

मैं स्पीकर की बैठक में जाने में असमर्थ : सीपी सिंह
रांची से भाजपा के विधायक सीपी सिंह ने बुधवार को कहा कि सत्र से पूर्व आयोजित होनेवाली सर्वदलीय बैठक में शामिल होने का आमंत्रण उन्हें मिला है, लेकिन वह इसमें शामिल होने में असमर्थ हैं। उन्होंने इस बारे में स्पीकर को पत्र लिख कर सूचित कर दिया है कि उन्हें इस जिम्मेदारी से मुक्त किया जाये, क्योंकि वह इसमें शामिल होने में असमर्थ हैं। यह पूछे जाने पर कि स्पीकर ने उन्हें किस हैसियत से बैठक में आमंत्रित किया है, सीपी सिंह ने कहा कि इसका जवाब तो स्पीकर ही दे सकते हैं।

कानून जो कहेगा, वही फैसला होगा : स्पीकर
विधानसभा स्पीकर डॉ रवींद्रनाथ महतो ने कहा कि इस मुद्दे पर कानूनी प्रावधानों का पालन किया जायेगा। यह पूछे जाने पर कि बाबूलाल मरांडी को सदन में कहां सीट आवंटित की गयी है, उन्होंने कहा कि यह सब पहले बताने का विषय नहीं है। कानून इस बारे में जो कहेगा, वह वही फैसला करेंगे।

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