महाकुंभ और नयी दिल्ली स्टेशन पर हुए हादसे के बाद उठ रहे हैं सवाल
140 करोड़ लोगों के देश में अब क्राउड मैनेजमेंट पर ध्यान देना जरूरी
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
15 फरवरी को नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक हादसा हुआ और 18 बेशकीमती जानें चली गयीं। भीड़ के कारण हुई भगदड़ का यह हादसा दुनिया के सबसे बड़े धार्मिक आयोजन महाकुंभ में जानेवाले तीर्थयात्रियों के साथ हुआ, जो ट्रेन पकड़ने आये थे। इससे पहले 29 जनवरी को महाकुंभ में भी इसी तरह का एक हादसा हुआ था, जिसमें कई लोगों की जान चली गयी थी। इन हादसों के बाद अब चारों तरफ से यह सवाल उठ रहा है कि आखिर कब और कैसे इस तरह की भगदड़ पर नियंत्रण पाया जा सकेगा। यह सही है कि हादसे को पूरी तरह रोकना संभव नहीं है, लेकिन उसकी आशंकाओं को कम तो किया ही जा सकता है। भगदड़ के इन हादसों ने साबित कर दिया है कि किसी भी सीमित स्थान पर असीमित संख्या में लोगों को जमा होने से रोकने के लिए अब तक कोई चाक-चौबंद व्यवस्था या मशीनरी का विकास नहीं हो पाया है। इसलिए भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश में अब क्राउड मैनेजमेंट, यानी भीड़ प्रबंधन का तंत्र विकसित किया जाना जरूरी हो गया है। प्रति वर्ग मीटर चार लोगों से कम की भीड़ घनत्व को आम तौर पर सुरक्षित सीमा माना जाता है। जैसे-जैसे यह प्रति वर्ग मीटर छह लोगों के करीब पहुंचता है, जोखिम काफी बढ़ जाता है। भारत के कई आयोजनों में इस सीमा को पार करने वाली भीड़ का होना आम बात है, खास तौर से धार्मिक आयोजनों में। भीड़ के घनत्व के अलावा परिधीय कारक भी तंग स्थिति को खतरनाक बनाने में भूमिका निभाते हैं। हाल के दिनों में भगदड़ जैसे जितने भी हादसे हुए हैं, उनमें एक बात कॉमन रही कि वहां की व्यवस्था पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो गयी थी और अफवाहों को रोकने के लिए कुछ नहीं किया गया। नयी दिल्ली स्टेशन पर हुए हादसे के बाद जरूरी हो गया है कि भीड़ प्रबंधन के इन पहलुओं पर ध्यान दिया जाये और व्यवस्थापकों को इसका समुचित प्रशिक्षण दिया जाये। नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन और महाकुंभ में हुए हादसे की पृष्ठभूमि में भगदड़ को रोकने के उपायों को रेखांकित कर रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
नयी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर 15 फरवरी की रात प्रयागराज में चल रहे महाकुंभ जाने को उतावली भीड़ ने ऐसी भगदड़ मचायी कि लगभग डेढ़ दर्जन लोगों की जान चली गयी, जबकि दर्जन भर से अधिक घायल भी हुए। इस बार भी मृतकों में महिलाओं और बच्चों की संख्या ज्यादा रही, जबकि पुरुषों की संख्या उनसे कम रही। वहीं, घायलों में भी लगभग 14 महिलाएं समेत कुल 25 लोग शामिल हैं। ये महज आंकड़े नहीं हैं, बल्कि हमारी संवेदनाशून्य व्यवस्था की विफलता के नमूने मात्र हैं। ऐसी घटनाओं पर आखिर कौन, कैसे और कब तक काबू पायेगा, यह यक्ष प्रश्न देश के सामने उपस्थित है।
कैसे हो गये इस तरह के हादसे
ऐसा इसलिए, क्योंकि भारत में पिछले कुछ वर्षों में भगदड़ के कई मामले सामने आये हैं। इस बार तो महज एक महीने के अंदर ही भगदड़ के दो-दो मामले सामने आ चुके हैं, जो कि प्रशासन के लिए चिंता का विषय है। सवाल है कि जब महाकुंभ की तैयारियों को लेकर उत्तरप्रदेश प्रशासन लगातार दावे कर रहा था और केंद्र सरकार भी पूरी तैयारी का दावा कर रही थी, तब ऐसी हृदयविदारक घटनाओं का घटित होना तमाम व्यवस्थाओं पर सवालिया निशान लगा जाता है। सवाल यह भी है कि तमाम सकारात्मक राजनीतिक इच्छाशक्ति के बावजूद इतनी बड़ी प्रशासनिक चूक कैसे हो गयी। ऐसे में सवाल है कि देश की राजधानी जैसे प्रमुख रेलवे स्टेशन पर रेल प्रशासन ने समुचित व्यवस्था क्यों नहीं की थी।
बढ़ गयी है चिंता
जाहिर है कि भीड़ और भगदड़ में अन्योन्याश्रय संबंध है। लेकिन इनके नियंत्रण के समुचित उपाय कब तक दिखेंगे, किनके नेतृत्व में सब होगा, कुछ पता नहीं। तब तक ऐसे हादसों पर सवाल उठते रहेंगे, राजनीतिक बयानबाजी चलती रहेगी। हादसे की जिम्मेदारी किसी की नहीं होगी। भगदड़ की दो ताबड़तोड़ घटनाओं ने भीड़ नियंत्रण संबंधी विफलताओं पर जनसामान्य की चिंता ज्यादा बढ़ा दी है।
धार्मिक आयोजनों में ही भगदड़
यदि पिछले कुछ वर्षों में भारत में हुई भगदड़ की प्रमुख घटनाओं की सूची खंगाली जाये, तो पता चलता है कि साल-दो साल बाद ऐसी घटनाओं की एक लंबी फेहरिस्त है। इस फेहरिस्त में एक बात कॉमन है कि इनमें से अधिकांश हादसे किसी न किसी धार्मिक आयोजन में हुए या फिर किसी लोकप्रिय पर्यटन स्थल पर।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर में भगदड़ क्या है? तो जवाब होगा कि कहीं पर भी अचानक भीड़ के बढ़ने के बाद किसी वजह से मची अफरा-तफरी से भगदड़ होती है। इस दौरान लोगों का एक बड़ा ताकतवर समूह अनियंत्रित रूप से आगे बढ़ता है, जिसके परिणामस्वरूप अक्सर कमजोर लोग कुचल जाते हैं, कुछ का दम घुट जाता है और मौत हो जाती है। यह घबराहट या उत्तेजना से प्रेरित होती है। यह अफवाहों, भय, सीमित स्थान या अचानक आंदोलनों के कारण उत्पन्न हो सकता है, जिससे भीड़ का व्यवहार अव्यवस्थित हो सकता है।
क्या हैं जिम्मेदार कारक
सवाल है कि किसी भी भगदड़ के लिए जिम्मेदार कारक क्या-क्या होते हैं? तो जवाब होगा कि संरचनात्मक विफलताएं, यानी कमजोर अस्थायी संरचनाएं, खराब बैरिकेडिंग और संकीर्ण प्रवेश/निकास द्वार अमूमन खतरे पैदा करते हैं। वहीं, भीड़ पर अपर्याप्त नियंत्रण भी प्रमुख कारक हैं, क्योंकि भीड़ के आकार का कम आकलन, स्टाफ की कमी, अपर्याप्त निकास और अनियंत्रित प्रवेश के कारण भीड़भाड़ हो जाती है। वहीं, घबराहट और अफवाहें की इसकी प्रमुख कारक हैं, क्योंकि झूठे अलार्म या सामूहिक उन्माद के कारण अचानक हलचल हो सकती है, जिससे लोग भाग कर गिर जाते हैं और दबे-कुचले जाते हैं। वहीं आग और बिजली संबंधी समस्याएं भी कभी-कभी इसका कारक बन जाती हैं, क्योंकि शॉर्ट सर्किट, अग्निशामक यंत्रों की कमी या खराब प्रकाश व्यवस्था से भी घबराहट की स्थिति पैदा हो जाती है, जिससे भगदड़ मच जाती है। समन्वय का अभाव भी इसका एक प्रमुख कारक है, क्योंकि एजेंसियों के बीच खराब योजना, विलंबित प्रतिक्रिया और वास्तविक समय की निगरानी का अभाव ऐसे अप्रत्याशित संकट को और बदतर बना देता है।
क्या है हादसों को रोकने का उपाय
यही वजह है कि किसी भी संभावित जगह पर भगदड़ रोकने के लिए प्रशासन ने कतिपय दिशा निर्देश जारी किये होते हैं, फिर भी आधिकारिक लापरवाही या पेशेवर अनुभवहीनता के चलते ऐसी घटनाओं पर अब तक लगाम नहीं लगाया जा सका है। इसके लिए भीड़ का आकलन और प्रबंधन महत्वपूर्ण है। इसलिए अधिकारियों को अपेक्षित भीड़ का आकलन करना होता है, प्रवेश बिंदुओं को नियंत्रित करना होता है और लोगों की संख्या को विनियमित करना होता है। वहीं, बुनियादी ढांचा और सुरक्षा उपाय के संबंध में मजबूत बैरिकेड, आपातकालीन निकास और पर्याप्त वेंटिलेशन सुनिश्चित किया जाता है। सुरक्षा और निगरानी उपायों के तहत भीड़ की आवाजाही पर नजर रखने के लिए सीसीटीवी कैमरे, सार्वजनिक संबोधन प्रणाली और प्रशिक्षित सुरक्षा कर्मियों की तैनाती सुनिचित की जाती है। आपातकालीन तैयारी के तहत त्वरित प्रतिक्रिया के लिए चिकित्सा दल, एंबुलेंस और अग्निशमन इकाइयों को रणनीतिक रूप से तैनात किया जाता है। जन जागरूकता और सूचना प्रसार को त्वरित गति से फैलाया जाता है, ताकि घबराहट की स्थिति से बचने के लिए लोग साइनबोर्ड, हेल्पलाइन नंबर और डिजिटल अपडेट के माध्यम से सजग हो जायें। इसलिए वहां उपस्थित लोगों को शिक्षित करना प्रमुख प्रशासनिक कार्य होता है।
चुनौतियां भी कम नहीं
कहना न होगा कि किसी भी भगदड़ को रोकने में कई चुनौतियां सामने आती हैं, जिसमें अनियंत्रित भीड़, अपर्याप्त कानून प्रवर्तन, खराब बुनियादी ढांचे का रखरखाव, प्रौद्योगिकी एकीकरण का अभाव, पूर्व-पंजीकरण प्रणाली का विरोध आदि प्रमुख हैं। जहां तक अनियंत्रित भीड़ का सवाल है, तो धार्मिक भावनाएं, अनुशासन की कमी और अचानक भीड़ के बढ़ने से भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल हो जाता है। वहीं, अपर्याप्त कानून प्रवर्तन अंतर्गत प्रशिक्षित कार्मिकों की कमी, समन्वय का अभाव तथा क्षेत्रवार खराब तैनाती प्रतिक्रिया आदि नेक प्रयासों में बाधा डालती है। खराब बुनियादी ढांचे का रखरखाव भी एक महत्वपूर्ण कारण है, क्योंकि संकीर्ण मार्ग, कमजोर पुल और अवैध अतिक्रमण बाधाएं पैदा करते हैं। जहां तक प्रौद्योगिकी एकीकरण के अभाव की बात है, तो वास्तविक समय भीड़ विश्लेषण, जीपीएस ट्रैकिंग और एआइ-आधारित भीड़ नियंत्रण प्रणालियों की अनुपस्थिति से संकट प्रतिक्रिया में देरी होती है। वहीं, पूर्व-पंजीकरण प्रणाली का विरोध वाकई एक जन संकट है, क्योंकि कई तीर्थयात्री अनिवार्य आॅनलाइन पंजीकरण का विरोध करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप अनियंत्रित भीड़ और अत्यधिक क्षमता की समस्या उत्पन्न होती है।
सवाल है कि जब सख्त पूर्व-पंजीकरण और टिकटिंग से इसे रोका जा सकता है, तो प्रशासन सक्रिय क्यों नहीं है? प्रवेश सीमाओं को नियंत्रित करने के लिए अनिवार्य आॅनलाइन पंजीकरण लागू करके इस खतरे को कम किया जा सकता है। वहीं, यदि उन्नत एआइ-आधारित निगरानी प्रणाली का अविलंब उपयोग शुरू हो जाये, तो वास्तविक समय भीड़ विश्लेषण, वृद्धि की भविष्यवाणी और भीड़भाड़ को रोकने के लिए एआइ और ड्रोन का उपयोग किया जा सकता है। सुरक्षा और स्वयंसेवकों के प्रशिक्षण पर ध्यान देकर भी ऐसी घटनाओं को रोका जा सकता है। इसलिए भीड़ मनोविज्ञान और आपातकालीन प्रतिक्रियाओं में विशेषज्ञता वाले अच्छी तरह प्रशिक्षित कर्मियों को तैनात किया जाना चाहिए। कुशल यातायात और आवागमन योजना लागू करना भी जरूरी है, क्योंकि क्षेत्र-आधारित भीड़ प्रबंधन, एकतरफा आवागमन मार्ग और अलग आपातकालीन लेन लागू करके इसके जोखिम को कम किया जा सकता है।
अनुभव बताता है कि इस बाबत जनजागृति बहुत जरूरी है, क्योंकि एक दूसरे को कुचलने वाले क्रूर मनुष्य ही होते हैं। यूपी की योगी सरकार ने महाकुंभ 2025 के दौरान भीड़ नियंत्रण के लिए तमाम तकनीकी उपाय सुनिश्चित किये थे। बावजूद इसके संगम नोज पर हृदयविदारक घटना घट गयी। इसलिए प्रशासनिक अधिकारियों-कर्मचारियों पर कार्य दबाव कम किया जाये, ताकि वे बेहतर परफॉर्मेंस देकर जनहितकारी कार्रवाई कर सकें।