विशेष
दिल्ली का मुख्यमंत्री चुनने में हुई देरी का कारण अब आया सामने
संघ और भाजपा की बेहतरीन केमिस्ट्री ने तैयार किया लंबा प्लान

नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
हरियाणा के जींद की रहने वाली रेखा गुप्ता दिल्ली की नयी मुख्यमंत्री बन गयी हैं। दिल्ली में भाजपा विधायक दल की बैठक में उन्हें नेता चुना गया। रेखा छात्र जीवन से राजनीति में सक्रिय थीं। रेखा कॉलेज टाइम से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ी रही हैं। आरएसएस ने रेखा गुप्ता के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसे भाजपा ने मान लिया। आरएसएस की सहमति के बाद ही भाजपा हाइकमान ने रेखा गुप्ता के नाम को मंजूरी दी। इसके बाद विधायक दल की बैठक में रेखा गुप्ता को दिल्ली का सीएम चुना गया। पीएम मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी और हरियाणा सीएम नायब सैनी जैसे भाजपा दिग्गजों ने उनके लिए प्रचार किया था। रेखा गुप्ता को सीएम चुनने के पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सोची-समझी रणनीति है। कहा जा रहा है कि इस कारण ही दिल्ली का नया सीएम चुनने में 11 दिन की देरी हुई। अभी भाजपा की 21 राज्यों में सरकार है, लेकिन किसी भी राज्य में महिला मुख्यमंत्री नहीं हैं। रेखा गुप्ता को सीएम बनाने के पीछे पहली वजह उनका वैश्य समुदाय का होना है। इसके अलावा वह महिला हैं, तो स्वाभाविक तौर पर भाजपा को इसका लाभ मिलेगा। भाजपा को दिल्ली में एक ऐसा चेहरा चाहिए था, जो न केवल जातीय और सामाजिक संतुलन की कसौटी पर खरा उतरे, बल्कि आक्रामक हिंदुत्व की विचारधारा को भी आगे बढ़ा सके। इसके अलावा भाजपा को संघ के साथ अपने संबंधों को भी मजबूत दिखाना जरूरी थी। इसलिए उसने रेखा गुप्ता के नाम पर सहमति दे दी। क्या है रेखा गुप्ता को सीएम बनाने के पीछे की रणनीति और क्या है इसकी अंदरूनी कहानी, बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।

दिल्ली विधानसभा चुनाव का परिणाम घोषित होने के 11 दिन बाद अंतत: भाजपा ने रेखा गुप्ता को राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की कमान सौंप दी है। रेखा गुप्ता पहली बार विधायक बनी हैं, लेकिन विद्यार्थी परिषद, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के साथ उनका पुराना संबंध है। दिल्ली में रेखा गुप्ता को भाजपा का आक्रामक चेहरा माना जाता है और वह पार्टी के कार्यक्रमों में काफी मुखर भी रही हैं। राजनीतिक हलकों में रेखा गुप्ता को सीएम चुने जाने पर आश्चर्य जताया जा रहा है, लेकिन यदि संक्षेप में कहा जाये, तो उनका चयन पीएम मोदी और संघ के मास्टर स्ट्रोक का नतीजा है। इसके पीछे की कहानी बेहद दिलचस्प है।

कौन हैं रेखा गुप्ता
रेखा गुप्ता के पिता जयभगवान बैंक आॅफ इंडिया में काम करते थे। साल 1972-73 में वह मैनेजर बने, तो उनकी बदली दिल्ली हो गयी। इसके बाद परिवार दिल्ली शिफ्ट हो गया। इस वजह से रेखा की स्कूल की पढ़ाई से लेकर स्नातक और एलएलबी की पढ़ाई दिल्ली में ही हुई। रेखा की साल 1998 में कारोबारी मनीष गुप्ता से शादी हुई। हालांकि अब भी उनका परिवार जुलाना में कारोबार करता है। दिल्ली से सटे हरियाणा से ताल्लुक रखने की वजह से रेखा गुप्ता का अपने गृह राज्य में आना-जाना होता रहता है। रेखा गुप्ता ने दिल्ली विश्वविद्यालय से पढ़ाई की है और कॉलेज टाइम से ही वह अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़ी रहीं। रेखा गुप्ता दिल्ली यूनिवर्सिटी छात्रसंघ में अध्यक्ष और सचिव पद का चुनाव भी जीता था। इसके अलावा वह तीन बार दिल्ली नगर निगम में पार्षद रही हैं। रेखा ने इससे पहले भी दो बार विधानसभा चुनाव लड़ा। पहली बार वह 11 हजार वोटों से हार गयी थीं, तो पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी की वंदना से साढ़े चार हजार वोटों से हार गयी थीं। इस बार वह शालीमार बाग सीट से पहली बार जीती हैं।

क्यों चुना गया रेखा गुप्ता को
रेखा गुप्ता को सीएम चुने जाने के पीछे बताया जाता है कि पिछले साल के लोकसभा चुनावों में तालमेल की दिक्कतों के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ एक बार फिर अपने सबसे अहम काम, यानी भाजपा पर अपनी पकड़ मजबूत करने में जुट गया है। चुनावी माहौल बनाने से लेकर संगठन में एकता बनाये रखने तक संघ ने एक बार फिर अपने संगठनों और अपनी राजनीतिक शाखा-भाजपा पर अपना दबदबा साबित किया है। पहले हरियाणा, फिर महाराष्ट्र और अब दिल्ली में संघ की विचारधारा की मजबूती, सुव्यवस्थित अभियान चलाने और कार्यकर्ताओं में एकता सुनिश्चित करने की क्षमता ने भाजपा और उसके राजनीतिक भविष्य के लिए उसे एक मजबूत आधार बना दिया है। रेखा गुप्ता संघ की पसंद हैं और उनकी नियुक्ति से साबित हो गया है कि संघ और भाजपा के बीच तालमेल में अब कोई दिक्कत नहीं है। दिल्ली में सीएम चुनने के लिए संघ शुरू से ही सक्रिय था। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने संघ प्रमुख मोहन भागवत और संगठन महासचिव दत्तात्रेय होसबोले के साथ बैठक की, जिसमें रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा भी मौजूद थे। यह बैठक दिल्ली में संघ के नये कार्यालय ‘केशव कुंज पथ’ में हुई। इसी बैठक के बाद पार्टी ने शाम को रेखा गुप्ता को दिल्ली का नाम घोषित किया।

रेखा गुप्ता क्यों हैं आरएसएस की पसंद
रेखा गुप्ता का आरएसएस से गहरा नाता रहा है। उनकी राजनीति की शुरूआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से हुई थी। यह उनकी विचारधारा और पार्टी के मूल मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। कई वरिष्ठ भाजपा नेता, जिनमें कुछ बड़े नाम भी शामिल थे, मुख्यमंत्री पद के दावेदार माने जा रहे थे, लेकिन संघ ने साफ कर दिया कि वह नहीं चाहता कि भाजपा को ‘वंशवाद’ को बढ़ावा देने वाली पार्टी के तौर पर देखा जाये। इसी वजह से चर्चित नेता प्रवेश साहिब सिंह वर्मा का नाम रद्द कर दिया गया। संघ ने यह भी दोहराया कि वह एक नया चेहरा चाहता है, जो मातृशक्ति (जैसा कि वह महिला नेताओं को कहता है) हो और जो सबको साथ लेकर चल सके। संघ ने विजेंदर गुप्ता का भी समर्थन किया, जिन्हें अब दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष बनाया गया है, क्योंकि उन्होंने वर्षों तक जमीनी स्तर पर काम किया है और संगठन को एकजुट रखा है।

हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली पर आरएसएस ने मजबूत की पकड़
हालिया विधानसभा चुनावों और राजनीतिक उथल-पुथल के बीच आरएसएस ने अपनी भूमिका बढ़ा दी है, चाहे वह हरियाणा में व्यापक जमीनी काम के जरिये हो, महाराष्ट्र में नेतृत्व संतुलन बनाकर हो या फिर दिल्ली में अपनी विचारधारा की पकड़ मजबूत करके। भाजपा के चुनावी अभियान और सरकार चलाने की रणनीति के पीछे आरएसएस का मार्गदर्शन अब साफ दिखाई देता है।

हरियाणा लंबे समय से ऐसा राज्य रहा है, जहां आएसएस-भाजपा का नेटवर्क साथ मिलकर काम करता रहा है, खासकर गैर-जाट वोटों को संगठित करने और हिंदुत्व की भावना को मजबूत करने में। भाजपा के अंदरूनी संघर्षों के बावजूद आरएसएस ने स्थिरता बनाये रखने में अहम भूमिका निभायी, जिससे पार्टी अपनी विचारधारा से जुड़ी रही। हाल ही के चुनावों में संघ से जुड़े संगठन और उसके सहयोगी बूथ स्तर पर काम करने से लेकर हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने वाले कार्यक्रमों में सक्रिय रूप से शामिल थे। महाराष्ट्र में संघ की भूमिका सिर्फ कार्यकर्ता जुटाने तक सीमित नहीं थी, बल्कि उसने गठबंधन बनाने और राजनीतिक समीकरण तय करने में भी अहम भूमिका निभायी। शिवसेना के विभाजन के बाद आरएसएस ने यह सुनिश्चित किया कि भाजपा महाराष्ट्र की राजनीति में केंद्र में बनी रहे। संघ का प्रभाव इस बात से साफ झलकता है कि इसने कैसे गुटबाजी को नियंत्रित किया और यह सुनिश्चित किया कि हिंदुत्व जातिगत राजनीति से ऊपर उठकर मुख्य चुनावी मुद्दा बना रहे। लेकिन दिल्ली दूसरे राज्यों के मुकाबले भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती और हमेशा से एक प्रतीकात्मक और रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य रही है। यहां आरएसएस की उपस्थिति अब पहले से कहीं ज्यादा साफ दिखाई दे रही है। चाहे वह संगठनात्मक शिविर हों, विचारधारा से जुड़े प्रशिक्षण सत्र हों या फिर भाजपा की दिल्ली की रणनीति में सीधे तौर पर शामिल होना हो, आरएसएस यह सुनिश्चित कर रहा है कि उसके संगठन और कार्यकर्ता उसकी मूल विचारधारा से न भटकें। झंडेवालान में आरएसएस के दिल्ली मुख्यालय ‘केशव कुंज पथ’ का पुनर्निर्माण भी राजधानी और देश की राजनीति पर उसके बढ़ते नियंत्रण का संकेत माना जा रहा है। इसके अलावा बड़े भाजपा नेताओं को आरएसएस के साथ अपने सीधे संबंधों को फिर से मजबूत करते हुए देखा जा रहा है, जिससे पार्टी आरएसएस के दीर्घकालिक विजन के साथ बनी रहे।

रेखा गुप्ता को सीएम बनाने के पीछे पीएम मोदी और संघ की रणनीति यही है कि इससे संघ-भाजपा की महिला विरोधी छवि खत्म हो और इसका लाभ इस साल के अंत में होनेवाले बिहार विधानसभा चुनाव में भी उठाया जा सके। यह दांव वाकई एक मास्टर स्ट्रोक है।

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