कांग्रेस से साहू ब्रदर्स लगा रहे हैं जुगाड़
रांची। लोकसभा चुनाव की घोषणा हो चुकी है। चुनावी मैदान सज गया है। झारखंड की सभी 14 लोकसभा सीटों पर मुकाबला रोमांचकारी होगा। हर सीट पर आर-पार की लड़ाई है। चुनाव में दो कोण हैं, तीसरे के लिए कोई जगह नहीं है। हर सीट पर यूपीए-एनडीए आमने-सामने होगा। वर्ष 2014 की मोदी लहर में यूपीए की नैया डूब गयी थी। झामुमो ने दुमका और राजमहल सीट जीत कर संताल का खूंटा उखड़ने नहीं दिया। इस बार भाजपा को 12 सीटों पर अपनी साख बचाने की चुनौती होगी। उधर, यूपीए ने वोट के बिखराव को रोकने के लिए रणनीति बनायी है। कांग्रेस, झामुमो, झाविमो और राजद के बीच सीट बंटवारे की औपचारिक घोषणा होनी बाकी है। यूपीए खेमा में सब कुछ ठीक रहा, तो भाजपा हर सीट पर जूझेगी। उधर, राज्य में भाजपा ने आजसू के साथ चुनावी गठबंधन किया है। इस गठबंधन से मैसेज साफ दिया है कि एनडीए भी इंटैक्ट है।
हजारीबाग लोकसभा सीट भाजपा की पिछले कई टर्म से परंपरागत सीट रही है। वर्ष 1989 में भाजपा ने पहली बार हजारीबाग से खाता खोला था। लेकिन अगले ही चुनाव में भाजपा को भाकपा ने यहां से शिकस्त दी थी। उस समय भाजपा के प्रखर हिंदूवादी नेता यदुनाथ पांडेय ने चुनाव जीता था। उस समय कहा यह जा रहा था कि वह भावनाओं के आधार पर चुनाव जीते थे। अगले ही चुनाव में जब यह सीट भाजपा से भाकपा ने छीन ली, तो लोग यह मानने लगे कि एक लहर थी, जिसमें भाजपा आयी थी। मगर लोगों के इस कयास पर 1996 के चुनाव में विराम लग गया और भाजपा ने पुन: इस सीट पर बड़े अंतर से कब्जा कर लिया। भाजपा के महावीर विश्वकर्मा यहां से चुनाव जीते।
इसके बाद इस सीट पर भाजपा के विजय का सिलसिला ही चल पड़ा। महावीर लाल विश्वकर्मा के बाद 1998 से लेकर 2004 तक इस सीट पर भाजपा के कद्दावर नेता यशवंत सिन्हा लगातार सांसद रहे। एक तरह से देखा जाये तो यशवंत सिन्हा की यह परंपरागत सीट बन गयी थी। लेकिन वर्ष 2004 के चुनाव में भाकपा के भुवनेश्वर प्रसाद मेहता ने इन्हें पटकनी दे दी। इस चुनाव में विपक्ष ने गठबंधन की छतरी तले चुनाव लड़ा था और भाजपा को झारखंड की 14 में से महज एक सीट पर ही जीत मिली थी। लेकिन पांच साल के बाद ही भाजपा ने पुन: यहां से वापसी की। यशवंत सिन्हा चुनाव जीते।
2014 के चुनाव में यशवंत सिन्हा के पुत्र और केंद्र सरकार में राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ने राजनीति में पहली बार कदम रखा और डेढ़ लाख से ज्यादा वोट से चुनाव जीते। वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा विपक्ष के कांग्रेस और झामुमो के अलावा आजसू से भी इस दो-दो हाथ कर रही थी। लेकिन भाजपा प्रत्याशी को चार लाख छह हजार 931 वोट मिला और कांग्रेस के सौरभ नारायण सिंह को दो लाख 47 हजार 803 वोट से ही संतोष करना पड़ा। भाजपा के खिलाफ इस चुनाव में उतरे आजसू पार्टी को एक लाख 56 हजार वोट मिले थे। कह सकते हैं कि आजसू अगर मैदान में नहीं होता तो भाजपा और भी ज्यादा वोटों के अंतर से चुनाव जीतती।
2019 के चुनाव में भी एक तरफ भाजपा है, तो दूसरी तरफ विपक्ष के सभी दल। हालांकि अभी तक महागठबंधन का एलान नहीं हुआ है, लेकिन जो सीन बन रहा है उस हिसाब से हजारीबाग सीट महागठबंधन में कांग्रेस के ही खाते में रहेगी। इस बीच यह उल्लेख करना जरूरी है कि भाकपा भी पीछे नहीं हटने जा रही है। दूसरी तरफ कांग्रेस से अभी तक यह तय नहीं है कि कौन प्रत्याशी होगा। कांग्रेस सूत्रों की मानें तो यहां से गोपाल साहू एंड ब्रदर्स जोर लगाये हुए हैं। कहा यह जा रहा है कि कांग्रेस के प्रदेश कोषाध्यक्ष गोपाल साहू इस सीट को हथियाने के लिए पूरी ताकत लगाये हुए हैं।
उन्होंने कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष डॉ अजय कुमार के पास चुनाव लड़ने की अर्जी भी डाल रखी है। कहा यह जा रहा है कि प्रदेश नेतृत्व इस पर संजीदगी के साथ विचार भी कर रहा है। गोपाल साहू का कांग्रेस के कई केंद्रीय नेताओं से भी मधुर संबंध है। साथ ही इनके भाई और राज्यसभा सांसद धीरज साहू भी इन्हें टिकट दिलाने के लिए फील्डिंग कर रहे हैं। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष प्रदीप कुमार बलमुचू और सुखदेव भगत के साथ भी साहू ब्रदर्स का संबंध काफी अच्छा है। एक नाम पूर्व मंत्री योगेंद्र साव का भी सामने आ रहा है। हालांकि अभी इन पर एक मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है, जिस प् फैसला आना है।
कहा यह जा रहा है कि यदि योगेंद्र साव के पक्ष में फैसला आया, तो कांग्रेस हजारीबाग में इन पर भी दांव खेल सकती है। लेकिन योगेंद्र साव की परेशानी यह है कि बड़कागांव विधानसभा के बाहर इनकी पैठ नहीं है। विधायक मनोज यादव का भी नाम सामने आ रहा था, लेकिन सुना यह जा रहा है कि वह राजी नहीं हैं। यहां यह उल्लेख करना जरूरी है कि कांग्रेस पार्टी जिसपर भी हजारीबाग में दांव खेले, उसे यह देखना होगा कि उस प्रत्याशी का चाल, चरित्र और चेहरा कैसा है। क्योंकि भाजपा के पास यहां से स्थापित नेता हैं। जयंत सिन्हा पर किसी तरह का दाग नहीं है। भले ही उनके पिता पिछले दो वर्ष से भाजपा खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों का विरोध कर रहे हैं, लेकिन जयंत सिन्हा चट्टान की तरह अपने लोकसभा क्षेत्र में डटे हुए हैं। हजारीबाग ऐसी सीट है, जहां हर बार भाजपा में प्रत्याशी को लेकर विरोध देखा गया था। लेकिन इस बार कहीं से विरोध नहीं दिख रहा है।
जयंत सिन्हा की बात करें तो उन्होंने अपने पिता यशवंत सिन्हा द्वारा शुरू किये गये कार्य को आगे ही नहीं बढ़ाया है, बल्कि और भी नयी योजनाओं की सौगात हजारीबाग को दी है। एक तो शिक्षित हैं, साथ ही अपने क्षेत्र को लेकर जागरूक भी। उनके पिता यशवंत सिन्हा ने रांची-हजारीबाग- कोडरमा रेल लाइन की आधारशिला राखी थी और इस रूट पर जयंत सिन्हा ने रेल परिचालन का काम शुरू कराया। हजारीबाग में मेडिकल कॉलेज और एयरपोर्ट दिलाने का काम जयंत सिन्हा ने किया। इसके अलावा भी कई महत्वपूर्ण काम जयंत सिन्हा ने अपने संसदीय क्षेत्र में कराया है। इस स्थिति में जब भाजपा से एक मजबूत नाम प्रत्याशी के तौर पर है और कांग्रेस पार्टी अभी तक नाम भी तय नहीं कर सकी है तो कह सकते हैं कि चुनावी तराजू में फिलहाल जयंत सिन्हा भारी हैं। खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रम के बाद से हजारीबाग भाजपा में नयी ऊर्जा देखने को मिल रही है। ऐसे में कांग्रेस के सामने एक कद्दावर नेता उतारने की चुनौती होगी। वैसा नेता, जिसे कांग्रेस के साथ-साथ झामुमो कार्यकर्ता भी स्वीकार करें।