-नौ दिन के अनुष्ठान में बनाए गए 100 सन्यासी और 500 नैष्टिक ब्रह्मचारी
हरिद्वार। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डा.मोहन भागवत ने कहा कि सबसे बड़ा त्याग नव सन्यासियों के माता-पिता का है, जिन्होंने अपने बच्चे को पाल-पोसकर देश, धर्म, संस्कृति और मानवता के लिए समर्पित कर दिया है। संघचालक डा.भागवत यह विचार गुरुवार को योगऋषि स्वामी रामदेव के 29वें सन्यास दिवस पर हर की पैड़ी वीआईपी घाट पर शताधिक विद्वान और विदुषी सन्यासियों को राष्ट्र को समर्पित करने के अवसर पर व्यक्त किया।
सरसंघचालक डा. मोहन भागवत ने कहा कि आज से लगभग 10 वर्ष पहले का वातावरण ऐसा नहीं था। मन में चिंता होती थी किन्तु अब स्थितियां बदल चुकी हैं। यहां युवा सन्यासियों को देखकर सारी चिंताओं को विराम मिल गया है। एक साथ इतनी बड़ी संख्या में सन्यासियों को देश सेवा में समर्पित करना रामराज्य की स्थापना, ऋषि परम्परा और भावी आध्यात्मिक भारत के स्वप्न को साकार करने जैसा है।
योगऋषि स्वामी रामदेव ने आज अपने 29वें सन्यास दिवस पर एक नया इतिहास रचते हुए अष्टाध्यायी, महाभाष्य व्याकरण, वेद, वेदांग, उपनिषद में दीक्षित शताधिक विद्वान और विदुषी सन्यासियों को राष्ट्र को समर्पित किया। इनमें 60 विद्वान ब्रह्मचारी और 40 विदुषी शामिल हैं। साथ ही आचार्य बालकृष्ण ने लगभग 500 नैष्टिक ब्रह्मचारियों को भी दीक्षा दी।
स्वामी रामदेव ने कहा कि सन्यास मर्यादा, वेद, गुरु और शास्त्र की मर्यादा में रहते हुए नव सन्यासी एक बहुत बड़े संकल्प के लिए प्रतिबद्ध हो रहे हैं। ब्रह्मचर्य से सीधे सन्यास में प्रवेश करना सबसे बड़ा वीरता का कार्य है। इन सन्यासियों के रूप में हम अपने ऋषियों के उत्तराधिकारियों को भारतीय संस्कृति और परम्परा के प्रचार-प्रसार को समर्पित कर रहे हैं। स्वामी रामदेव ने कहा कि आज हमने नव सन्यासियों की नारायणी सेना तैयार की है, जो पूरे विश्व में सन्यास धर्म, सनातन धर्म और युगधर्म की ध्वजवाहक होगी।
इससे पहले वेद मंत्रों के बीच देवताओं, ऋषिगणों, सूर्य, अग्नि आदि को साक्षी मानकर सभी सन्यास दीक्षुओं का मुख्य विरजा होम और मुण्डन संस्कार किया गया। सन्यास दीक्षुओं को शोभा यात्रा के साथ वीआईपी घाट हरिद्वार के लाया गया, जहां स्वामी रामदेव और आचार्य बालकृष्ण ने पुष्पवर्षा कर उनका स्वागत किया। स्वामी रामदेव और अन्य संतों ने 100 सन्यास दीक्षुओं को सिर पर पुरुषसूक्त के मंत्रों, गंगा जल से अभिषेक कर पवित्र सन्यास संकल्प दिलाया।
कार्यक्रम में आचार्य बालकृष्ण ने सन्यास धर्म की मर्यादा का उल्लेख करते हुए बताया कि सन्यास संकल्प को सदा स्मरण रखते हुए सभी एषणाओं, अविवेकपूर्ण कामनाओं और विषय वासनाओं, भोगों से मुक्त रहकर सन्यासी होना सबसे बड़ा उत्तरदायित्व और गौरव है। एक सन्यासी के लिए गुरुनिष्ठा, कर्तव्यनिष्ठा और ध्येयनिष्ठा में निरन्तरता बनाये रखना ही जीवन का प्रयोजन होना चाहिए।
इस अवसर पर अनुपम मिशन, गुजरात के साहब दादा, काशी विश्वनाथ ट्रस्ट के ट्रस्टी प्रो. बृजभूषण ओझा, भारतीय शिक्षा बोर्ड के कार्यकारी अध्यक्ष एनपी सिंह, पतंजलि योग समिति की महिला मुख्य केन्द्रीय प्रभारी साध्वी आचार्या देवप्रिया, पतंजलि विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो. महावीर, आचार्यकुलम् की निदेशिका ऋतम्भरा शास्त्री, पतंजलि योग समिति के मुख्य केन्द्रीय प्रभारी भाई राकेश कुमार व स्वामी परमार्थदेव, डॉ. जयदीप आर्य, स्वामी विदेह देव, स्वामी आर्षदेव, स्वामी मित्रदेव, स्वामी ईशदेव, स्वामी सोमदेव, स्वामी हरिदेव, स्वामी जगतदेव जी, साध्वी देवश्रुति, साध्वी देववरण्या, साध्वी देवादिति, साध्वी देववाणी, साध्वी देवार्चना आदि गण्यमान्य उपस्थित रहे।