वोट के लिए नोट मामले में सुप्रीम कोर्ट का हम फैसला या है. सुप्रीम कोर्ट ने झामुमो रिश्वत मामले में पिछले फैसले को पलट दिया है. 1993 में नरसिंह राव की सरकार को बचाने के लिए झामुमो के सांसदों (शिबू सोरेन, सूरज मंडल, साइमन मरांडी और शैलेंद्र महतो )पर यह आरोप लगा था. कोर्ट ने कहा कि सांसदों को राहत देने पर असहमत हैं. चीफ जस्टिस डीवाइ चंद्रचूड़, जस्टिस एमएम सुंदरेश, जस्टिस जेबी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस पीवी संजय कुमार की पीठ ने फैसला सुनाया. कोर्ट ने कहा घूसखोरी की छूट नहीं दी जा सकती है.
कोर्ट की ओर से इस दौरान कहा गया कि इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि घूस लेनेवाले ने घूस देनेवाले के मुताबिक वोट दिया या नहीं. विषेधाधिकार सदन के साझा कामकाज से जुड़े विषय के लिए है. वोट के लिए रिश्वत लेना विधायी काम का हिस्सा नहीं है.
सीता सोरेन पर पड़ेगा असर
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने 1998 का नरसिंह राव मामले का फैसला पलट दिया. मामले में चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली 7 जजों की बेंच का यह साझा फैसला है जिसका सीधा असर झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की सीता सोरेन पर पड़ेगा. उन्होंने विधायक रहते रिश्वत लेकर 2012 के राज्यसभा चुनाव में वोट डालने के मामले में राहत मांगी थी.
सांसदों को अनुच्छेद 105(2) और विधायकों को 194(2) के तहत सदन के अंदर की गतिविधि के लिए मुकदमे से छूट हासिल है. कोर्ट ने साफ किया कि रिश्वत लेने के मामले में यह छूट नहीं मिल सकती है.
क्या है मामला
जुलाई 1993 में राव सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव 14 मतों से खारिज हो गया था। आरोप लगा था कि केंद्र सरकार ने अपने पक्ष में वोट देने के लिए झामुमो के तत्कालीन चार सांसदों समेत कई सांसदों को रिश्वत दी थी। राव के सत्ता से बाहर होने के बाद सीबीआई ने राव समेत कई आरोपियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की थी। आठ महीने में जांच पूरी कर सीबीआई ने सांसदों की खरीद-फरोख्त के लिए नरसिंह राव, बूटा सिंह, सतीश शर्मा और शिबू सोरेन समेत कुल 20 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की, लेकिन 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसले में रिश्वत लेने वाले सभी नौ सांसदों के खिलाफ कार्रवाई पर रोक लगा दी। 2000 में कोर्ट ने सिर्फ राव व बूटा सिंह को दोषी करार दिया, लेकिन 2002 में इन्हें भी बरी कर दिया गया।
शैलेंद्र महतो ने किया था खुलासा
तत्कालीन झामुमो सांसद शैलेंद्र महतो ने खुलासा किया था कि उन्हें और उनके तीन सांसद साथियों को 30-30 लाख रुपए दिए गए थे, ताकि नरसिंह राव सरकार को समर्थन देकर उसे बचाया जा सके। बाद में अन्य सांसदों ने भी भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत मुकदमे की सुनवाई के दौरान स्वीकार किया था कि 1993 में उन्हें विश्वासमत के पक्ष में मत देने के लिए कांग्रेस पार्टी ने धन दिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए इनको रिश्वत के आरोप से बरी कर दिया था कि संविधान के अनुच्छेद-105 के तहत सांसदों को विशेष छूट प्राप्त है। संसद में दिए गए भाषण या वोट पर किसी भी सांसद के खिलाफ किसी भी अदालत में कोई कार्यवाही नहीं हो सकती।