विशेष
आय के मुकाबले खर्च में 12 गुणा से अधिक की वृद्धि हो गयी
शुरू के तीन साल सरप्लस बजट रहा, बाद में घाटा बढ़ता गया
नमस्कार। आजाद सिपाही विशेष में आपका स्वागत है। मैं हूं राकेश सिंह।
प्रकृति की गोद में बसा झारखंड देश का 28वां राज्य है। इसकी स्थापना बिहार से अलग होकर 15 नवंबर 2000 को हुई थी। प्राकृतिक संसाधनों से भरा यह राज्य जब बिहार से अलग हुआ, तो इसके कई सपने थे। सपना था एक विकसित और समृद्ध राज्य बनने का। आदिवासी बहुल इस राज्य ने सबके विकास का सपना देखा था। समय के साथ वह सपना टूटता चला गया। हालांकि शुरूआती दौर में झारखंड ने लगातार तीन वर्षों तक सरप्लस बजट देकर सबको चौंका दिया था, लेकिन बाद के सालों में स्थिति खराब होती चली गयी। झारखंड जब बिहार से अलग हुआ, तो चारों तरफ जश्न का माहौल था। लोग मांदर की थाप पर नाच रहे थे, गा रहे थे। इस छोटे से राज्य का बड़ा सपना ‘अबुआ दिशुम, अबुआ राज’ साकार हो गया था। अब बिरसा मुंडा, सिदो-कान्हू, तिलका मांझी, शेख भिखारी और नीलांबर-पीतांबर का सपना सच करने की बारी थी। इस राज्य को विकसित राज्य बनाना था। इसके लिए जरूरत थी भारी भरकम बजट की। राजनीतिक अस्थिरता और बेलगाम भ्रष्टाचार ने झारखंड को सबसे निचले पायदान पर लाकर खड़ा कर दिया था, क्योंकि यहां न वित्तीय प्रबंधन की तरफ किसी का ध्यान था और न किसी को अर्थव्यवस्था की चिंता। झारखंड की पहचान एक खनिज संपन्न प्रदेश के रूप में बन गयी थी, जहां केवल दोहन होता था। यही कारण था कि शुरूआती दौर के बाद झारखंड की अर्थव्यवस्था की गाड़ी बेपटरी होती चली गयी। इसलिए अब, जबकि राज्य का बजट पेश किया जानेवाला है, यह जानना दिलचस्प है कि साल 2000 में जब झारखंड राज्य बना, तब किस तरह का और कितने का बजट था। उसके बाद के सालों में सरकार ने कैसा बजट पेश किया और झारखंड का कितना विकास हो पाया। झारखंड की अर्थव्यवस्था की यह रोमांचक कहानी बता रहे हैं आजाद सिपाही के विशेष संवाददाता राकेश सिंह।
साल 2000 में जब झारखंड अलग राज्य बना, तो इसके कई सपने थे। प्रचुर मात्रा में खनिज और औद्योगिक क्षेत्र होने के कारण इसके विकास की पूरी संभावना थी। लेकिन यह इस राज्य की विडंबना ही रही कि इसके विकास को लेकर कोई रोड मैप तैयार नहीं हो सका। इसी वजह से धनी होने के बावजूद यह पिछड़े राज्यों की श्रेणी में आकर खड़ा हो गया। शुरूआती दौर में राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद इस राज्य ने लगातार तीन वर्षों तक सरप्लस बजट रखा। लेकिन कालांतर में विकास के नाम पर भारी-भरकम बजट का दौर शुरू हुआ, जो आज तक जारी है।
शुरूआती बजट से 16 गुणा बड़ा हुआ बजट
अर्थव्यवस्था के जानकारों के अनुसार बजट आकार में वृद्धि विकास कार्यों के लिए आवश्यक है। लेकिन इसके आउटपुट पर किसी सरकार ने ध्यान नहीं दिया और साल दर साल बजट राशि बढ़ती चली गयी। आंकड़े बताते हैं कि 2001-02 में लाये गये पहले बजट की तुलना में 25 वर्षों में बजट का आकार 16 गुणा से अधिक बड़ा हुआ है, जबकि खर्च के मुकाबले आय में करीब 12 गुणा ही वृद्धि हुई है। पहले बजट में व्यय 7743.38 करोड़ का था, जबकि दूसरे साल 2002-03 में 23.92% वृद्धि के साथ 9595.85 करोड़ का व्यय निर्धारित किया गया था।
झारखंड का कर्ज जीएसडीपी का करीब 30 प्रतिशत
चालू वित्तीय वर्ष 2024-25 में सरकार ने एक लाख 28 हजार 900 करोड़ का बजट पेश किया। यह 2023-24 की तुलना में 10.7% अधिक है। ऐसे में झारखंड सरकार अपनी जरूरत को कर्ज लेकर पूरा कर रही है। हालांकि आर्थिक सर्वे रिपोर्ट के अनुसार वित्तीय वर्ष 2023-24 में राज्य का सकल राज्य घरेलू उत्पाद यानी जीएसडीपी 2.7% है, जो अन्य राज्यों की तुलना में अच्छा है। इसके बावजूद 2016-17 से 2022-23 के दौरान क्रमश: 9%,13% और 10% की औसत वार्षिक दर से राज्य का कर्ज बढ़ा है। वित्तीय वर्ष 2022-23 के आंकड़ों के अनुसार यह जीएसडीपी का 30% (1,18,448 करोड़) के करीब है।
स्वास्थ्य पर सरकार ने कितना दिया ध्यान
झारखंड के पहले बजट (वित्त वर्ष 2001-02) में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए 169.09 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। यह बजट तत्कालीन वित्त मंत्री मृगेंद्र प्रसाद सिंह द्वारा पेश किया गया था। इस बजट में स्वास्थ्य सेवाओं को बेहतर बनाने, अस्पतालों के विकास और ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा सुविधाएं बढ़ाने पर जोर दिया गया था। हालांकि बाद के वर्षों में भी सरकार ने स्वास्थ्य क्षेत्र में बजट को बढ़ाया। पिछले तीन बजट में हेमंत सोरेन सरकार ने स्वास्थ्य पर सात हजार करोड़ से अधिक का प्रवधान रखा है। हेमंत सोरेन सरकार ने 2021-22 में 7800 करोड़ रुपये का स्वास्थ्य बजट रखा। वहीं 2023-24 में 7040 करोड़ का बजट का प्रावधान किया गया। वहीं, 2024-2025 में यह 7223 करोड़ रुपये रहा। साल 2025-26 के बजट के लिए उम्मीद की जा रही है कि स्वास्थ्य बजट को बढ़ाया जायेगा।
शिक्षा पर कितना किया गया खर्च
झारखंड के गठन के बाद से शिक्षा क्षेत्र के बजट आवंटन में समय-समय पर वृद्धि हुई है। झारखंड के पहले बजट (2001-02) में शिक्षा क्षेत्र के लिए 915.36 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। उस बजट में प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा के साथ-साथ तकनीकी शिक्षा के विकास पर भी जोर दिया गया था। बाद के वर्षों में इस बजट को और बढ़ाया गया। 2020-21 के बजट में शिक्षा व्यवस्था पर लगभग 11 हजार करोड़ रुपये खर्च किये गये। वहीं, वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए शिक्षा क्षेत्र में 11,660.68 करोड़ रुपये आवंटित किये गये।
उच्च और तकनीकी शिक्षा पर खर्च
झारखंड सरकार ने 2023-24 के बजट में उच्च एवं तकनीकी शिक्षा विभाग में 2,026.13 करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। इस प्रकार कुल मिलाकर शिक्षा क्षेत्र के लिए 13,686.81 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया गया। इस बजट में गुरुजी क्रेडिट कार्ड योजना जैसी नयी पहलों का समावेश किया गया, जिसका उद्देश्य छात्रों को उच्च शिक्षा में वित्तीय सहायता प्रदान करना है। 2024-25 के बजट में शिक्षा क्षेत्र के लिए कुल 14,725 करोड़ रुपये का बजट प्रस्तावित किया है। यह आवंटन राज्य के कुल व्यय का 13.1% है, जो कि राष्ट्रीय औसत 14.7% से थोड़ा कम है।
कैसा था 2024-25 का शिक्षा बजट
2024-25 के बजट में शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण पहलों का प्रस्ताव था, जैसे कि 80 उत्कृष्ट विद्यालयों का संचालन, 325 प्रखंड स्तरीय मिडिल स्कूलों का संचालन और 4036 पंचायत स्तरीय विद्यालयों को आदर्श विद्यालय के रूप में विकसित करना। इसके अतिरिक्त उच्च शिक्षा में सुधार के लिए 19 नये कॉलेजों की स्थापना, जिसमें 15 डिग्री कॉलेज और चार महिला कॉलेज शामिल हैं, का लक्ष्य रखा गया था। इस प्रकार झारखंड सरकार शिक्षा के क्षेत्र में सुधार और विकास के लिए महत्वपूर्ण निवेश कर रही है।
शिक्षा और स्वास्थ पर सरकार बढ़ सकती है आगे
2001 से 2024 तक झारखंड सरकार ने स्वास्थ्य और शिक्षा के बजट में काफी वृद्धि की है। जहां स्वास्थ्य बजट 169.09 करोड़ रुपये से बढ़कर 7223 करोड़ रुपये का हो गया, वहीं शिक्षा बजट 915.36 करोड़ रुपये से बढ़कर 14725 करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इन दोनों क्षेत्रों में लगातार सुधार से राज्य के नागरिकों को काफी हद तक मदद मिली है। हालांकि सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में आज भी काफी कुछ किया जाना बाकी है। उम्मीद की जा रही है कि 2025-26 के बजट में झारखंड को और मजबूत बनाने की कोशिश की जायेगी। इसके अलावा स्वास्थ्य और शिक्षा का लाभ राज्य के हर नागरिक तक पहुंचाने की कोशिश की जायेगी।
जनसंख्या दबाव और विकास की भावी योजना
समय के साथ राज्य के लिए बढ़ रही जनसंख्या दबाव सरकार के लिए बड़ी चुनौती है। आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के मुताबिक झारखंड में शहरीकरण दर 24.05 प्रतिशत था, जो राष्ट्रीय औसत 31.01% से कम था। 2001 से 2011 के बीच 10 सालों में यह वृद्धि दर 32.4% थी। 2011 की जनगणना के अनुसार जिलावार शहरीकरण में सर्वाधिक धनबाद में 58% रहा था, जबकि सबसे नीचे पांच प्रतिशत गोड्डा में रहा। इन अवधि में राज्य के पांच जिले धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, बोकारो, रामगढ़ और रांची देश के औसत से बेहतर प्रदर्शन कर रहे थे, जबकि गोड्डा, गढ़वा, चतरा, गुमला, दुमका, लातेहार, सिमडेगा और पाकुड़ जिले में शहरीकरण की दर 10% से भी कम थी।
ग्रामीण क्षेत्रों पर रहेगा सरकार का फोकस
वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी लोग मूलभूत सुविधाओं के अभाव में जीने को मजबूर हैं। सरकार के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में विकास की किरण पहुंचाने की बड़ी चुनौती है। यही वजह है कि राज्य सरकार ने अपने आगामी बजट 2025-26 में ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत करने पर फोकस किया है। बजट में यह कोशिश की जा रही है कि ग्रामीण क्षेत्रों को और मजबूत किया जा सके, ताकि वे झारखंड के विकास में योगदान दें। कृषि, पशुपालन, पेयजल, शिक्षा जैसी बुनियादी सुविधाओं को ध्यान में रखकर योजना बनाने का निर्णय लिया गया है।
बजट घाटा को पाटने के लिए करना होगा प्रयास
विशेषज्ञों का मानना है कि सरकार को बजट आकार बढ़ाने के साथ राजस्व संग्रह पर भी ध्यान देना होगा। आय के नये स्रोत तलाशने होंगे। ऐसे में केंद्रीय मदद के अलावा राज्य सरकार अपने बलबूते योजना को संचालित करने का मास्टर प्लान बना रही है। हालांकि पिछले बजट से ही इसकी झलक दिखने लगी थी। 2019-20 में राज्य के अपने स्रोतों से कुल आय 31 हजार 524 करोड़ 20 लाख रुपये हुए थे। चालू वित्तीय वर्ष में सरकार ने इसकी तुलना में 70% की वृद्धि करते हुए 53 हजार 500 करोड़ 43 लाख रुपये का राजस्व प्राप्त करने का लक्ष्य रखा है। सरकार का ध्यान पर्यटन और स्वास्थ्य क्षेत्र पर भी है। 2025 -26 के वार्षिक बजट में इसकी झलक देखने को मिल सकती है। सरकार उत्पाद नीति निजी हाथों में दे सकती है। इससे करीब 5000 करोड़ मिलने की उम्मीद है।
बजट में संतुलन पर ध्यान देना होगा
जानकार कहते हैं कि बजट बनाने वालों को निश्चित रूप से एक संतुलन कायम करना होगा। उनको आय के बारे में सोचना होगा और खर्च के बारे में भी। अगर सरकार आय के बारे में विचार नहीं करेगी और केवल व्यय करती जायेगी, तो इससे घाटा बढ़ता जायेगा। यह कहीं से भी राज्य के हित में नहीं होगा, क्योंकि उसमें ऋण का सूद भी बढ़ता जायेगा।