Close Menu
Azad SipahiAzad Sipahi
    Facebook X (Twitter) YouTube WhatsApp
    Friday, May 16
    • Jharkhand Top News
    • Azad Sipahi Digital
    • रांची
    • हाई-टेक्नो
      • विज्ञान
      • गैजेट्स
      • मोबाइल
      • ऑटोमुविट
    • राज्य
      • झारखंड
      • बिहार
      • उत्तर प्रदेश
    • रोचक पोस्ट
    • स्पेशल रिपोर्ट
    • e-Paper
    • Top Story
    • DMCA
    Facebook X (Twitter) Instagram
    Azad SipahiAzad Sipahi
    • होम
    • झारखंड
      • कोडरमा
      • खलारी
      • खूंटी
      • गढ़वा
      • गिरिडीह
      • गुमला
      • गोड्डा
      • चतरा
      • चाईबासा
      • जमशेदपुर
      • जामताड़ा
      • दुमका
      • देवघर
      • धनबाद
      • पलामू
      • पाकुर
      • बोकारो
      • रांची
      • रामगढ़
      • लातेहार
      • लोहरदगा
      • सरायकेला-खरसावाँ
      • साहिबगंज
      • सिमडेगा
      • हजारीबाग
    • विशेष
    • बिहार
    • उत्तर प्रदेश
    • देश
    • दुनिया
    • राजनीति
    • राज्य
      • मध्य प्रदेश
    • स्पोर्ट्स
      • हॉकी
      • क्रिकेट
      • टेनिस
      • फुटबॉल
      • अन्य खेल
    • YouTube
    • ई-पेपर
    Azad SipahiAzad Sipahi
    Home»Breaking News»लॉकडाउन के बाद के लिए कितना तैयार है झारखंड?
    Breaking News

    लॉकडाउन के बाद के लिए कितना तैयार है झारखंड?

    azad sipahiBy azad sipahiApril 26, 2020Updated:April 26, 2020No Comments8 Mins Read
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Share
    Facebook Twitter WhatsApp Telegram LinkedIn Pinterest Email

    प्रवासी मजदूरों-छात्रों के लौटने के बाद काफी दबाव आयेगा झारखंड पर
    हर दिन जांच उपकरण के लिए केंद्र से गुहार लगा रहा झारखंड
    कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए 25 मार्च से लागू देशव्यापी लॉकडाउन का संभवत: आखिरी सप्ताह शुरू हो गया है। अगले रविवार, यानी तीन मई तक के लिए लागू इस लॉकडाउन में ढील देने का सिलसिला भी शुरू हो गया है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि लॉकडाउन के बाद की स्थिति को झारखंड कैसे संभाल सकेगा। प्रवासी मजदूरों और छात्रों के लौटने के बाद जो आर्थिक और सामाजिक समस्याएं पैदा होंगी, उनसे मुकाबले के लिए हम कितने तैयार हैं। ऐसा तो कतई नहीं है कि तीन मई के बाद कोरोना वायरस भारत से विदा ले लेगा या इसकी भयावहता कम हो जायेगी। तब स्वास्थ्य सेवाओं की वर्तमान हालत के भरोसे झारखंड इस महामारी से कितना बचा रह सकेगा। अभी तो सब कुछ बंद है, तो कोरोना का संक्रमण उतना नहीं फैल रहा है। लेकिन जब बाजार खुलेंगे और सड़कों पर वाहनों की आवाजाही बढ़ेगी और लोग घरों से निकलना शुरू करेंगे, तब की स्थिति बेहद भयावह हो सकती है, क्योंकि झारखंड के पास न बचाव के रास्ते हैं और न संक्रमण जांच की मजबूत सुविधा। यहां तक की इलाज की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। ऐसे में लॉकडाउन के बाद के दबाव को झेलने के बारे में सवाल उठना स्वाभाविक है। कहा तो यहां तक जा रहा है कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद झारखंड की प्रशासनिक और स्वास्थ्य व्यवस्था की असली परीक्षा होनेवाली है। अभी तक झारखंड के पास जो जांच व्यवस्था है, वह नाकाफी है और आनेवाले दो-चार दिनों में केंद्र स्वास्थ्य व्यवस्था को कितना मजबूत करेगा, यह भी स्पष्ट नहीं है। लॉकडाउन के बाद की संभावित स्थिति का आकलन करती आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।

    एक महीने से चल रहे देशव्यापी लॉकडाउन का संभवत: आखिरी चरण शुरू हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के खिलाफ जंग का एलान करते हुए पहली बार 25 मार्च से तीन सप्ताह के लिए लॉकडाउन की घोषणा की थी और दूसरी बार 15 अप्रैल को इसे तीन मई तक के लिए बढ़ाया था। दूसरे दौर के लॉकडाउन के दौरान कई तरह की छूट भी दी गयी और अब कुछ और छूट की घोषणा की गयी है। लेकिन इन सबके बीच उन राज्यों में पैदा होनेवाली स्थिति का आकलन नहीं किया जा रहा है, जहां जांच की कमी के कारण कोरोना का प्रकोप पूरी तरह सामने नहीं आया है। झारखंड ऐसे ही राज्यों में एक है।
    राज्य की सवा तीन करोड़ की आबादी में कोरोना संक्रमितों की संख्या जांचने के लिए राज्य के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। अभी तक एक माह में लगभग साढ़े पांच हजार लोगों की ही जांच हो पायी है, जिनमें महज 67 केस अभी तक सामने आये हैं। इसमें से भी आधे से अधिक मरीज राजधानी रांची के हिंदपीढ़ी इलाके के हैं।
    अब बात लॉकडाउन के बाद की संभावित स्थिति की करें। राज्य सरकार के आंकड़ों के अनुसार लॉकडाउन के कारण करीब 10 लाख प्रवासी मजदूर देश के दूसरे हिस्सों में फंसे हुए हैं। इनमें से दो लाख से कुछ अधिक ने राज्य सरकार के पास निबंधन कराया है। बाकी आठ लाख प्रवासी मजदूर लॉकडाउन खत्म होने के बाद घर लौटेंगे। अभी तक उनका पूरा डाटा सरकार के पास नहीं है। राज्य के करीब आठ हजार छात्र भी कोटा और दूसरे शहरों में फंसे हुए हैं। ये भी घर लौटने के लिए छटपटा रहे हैं। इतनी बड़ी संख्या में बाहर से आनेवाले लोग अपने साथ संक्रमण नहीं लायेंगे, इस बात की कोई गारंटी नहीं है। इनके लौटने पर झारखंड की स्वास्थ्य मशीनरी पर कितना दबाव पड़ेगा, यह सोच कर ही चिंता होती है। जिस राज्य में कोरोना जांच के लिए महज चार केंद्र हों और उनकी क्षमता ही प्रति दिन महज चार सौ केस जांचने की हो, वहां बाहर से आनेवाले लोगों की कितनी रफ्तार से जांच होगी, यह आसानी से समझा जा सकता है। झारखंड के पास कोरोना संक्रमण से बचाव का भी पर्याप्त उपाय नहीं है। महज चार लाख 85 हजार ट्रिपल लेयर मास्क और 45 हजार पीपीइ किट से कितने स्वास्थ्य कर्मियों का संक्रमण से बचाव हो सकता है, यह आसानी से समझा जा सकता है। मास्क और सेनिटाइजर जैसी मूलभूत चीजें भी झारखंड में आसानी से नहीं मिल रही हैं। कोरोना संक्रमण की जांच के लिए केंद्र की तरफ से पर्याप्त मात्रा में संसाधन नहीं दिये गये हैं। फिलहाल झारखंड के पास अभी महज 504 इंफ्रा रेड थर्मल गन और 2517 वीटीएम किट ही उपलब्ध हैं । यदि सभी पांच जांच केंद्र पूरी क्षमता से काम करें, तो इतने वीटीएम किट से महज पांच दिन ही जांच हो सकती है। जहां तक इलाज की व्यवस्था का सवाल है, तो झारखंड इसमें भी बहुत अच्छी स्थिति में नहीं है। राज्य में कोरोना संक्रमित मरीजों को रखने के लिए 206 अस्पतालों में साढ़े सात हजार सामान्य बेड और आठ हजार के करीब आइसीयू बेड का इंतजाम किया गया है। इसके अलावा करीब 29 सौ आइसोलेशन बेड भी हैं। राज्य में आज की तारीख में मात्र 206 वेंटीलेटर हैं, जबकि 340 के आर्डर दिये जा चुके हैं। यानी राज्य की 1.62 लाख की आबादी के लिए एक वेंटीलेटर उपलब्ध है। इसका मतलब यह है कि एक साथ अधिकतम साढ़े सात सौ गंभीर मरीजों को वेंटीलेटर की सुविधा दी जा सकती है।
    इसके अलावा राज्य के अस्पतालों की स्थिति भी ठीक नहीं है। राजधानी का सदर अस्पताल बंद पड़ा है। रिम्स में भी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। निजी क्षेत्र के बड़े अस्पतालों में संक्रमण के खतरे को देखते हुए अतिरिक्त सतर्कता बरती जा रही है और बाहर के मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है।
    सरकारी लोक उपक्रमों के अस्पताल पहले ही अपनी सीमित क्षमता के साथ काम कर रहे हैं और उनमें अतिरिक्त बोझ वहन करने की ताकत ही नहीं है। जिलों में बनाये गये सरकारी अस्पतालों, स्वास्थ्य केंद्रों और अन्य स्वास्थ्य संस्थाओं की हालत किसी से छिपी नहीं है। ऐसे में संक्रमण फैलने पर स्थिति बेकाबू हो जायेगी।
    झारखंड की इस हकीकत के बाद अब यदि लॉकडाउन के बाद पैदा होनेवाली स्थिति पर नजर डाली जाये, तो स्थिति बेहद विकट नजर आती है। बाहर से आनेवाले लोगों की जांच नहीं होगी, तो संक्रमण का पता कैसे चलेगा और तब उसे रोकने की सारी कवायद एक झटके में भरभरा कर गिर जायेगी। दूसरी चुनौती बाहर से आनेवालों को राज्य में व्यवस्थित करना होगा। इसके लिए एक ही उपाय नजर आता है और वह है खेती। सरकार को खेती पर पूरा ध्यान केंद्रित करना होगा, ताकि बाहर से आनेवाले मजदूरों को काम दिया जा सके। किसानों को प्रोत्साहित कर उन्हें हर किस्म की खेती के लिए तैयार करना होगा। खेत की जुताई से लेकर खाद-बीज और कृषि उपकरणों से उनकी मदद करनी होगी, ताकि घर लौटनेवाले प्रवासी मजदूरों को गांवों में ही रोका जा सके। इसके लिए सरकार को पहले से ही योजना बनानी होगी। सरकार के लिए यह बड़ी चुनौती होगी।
    एक अन्य चुनौती लौटनेवाले छात्रों को संभालने की होगी। उनकी पढ़ाई में व्यवधान नहीं हो, इसके लिए राज्य में ही कोटा जैसी व्यवस्था विकसित करनी होगी, शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ बनाना होगा। इस काम में निजी क्षेत्र की मदद लेनी होगी। इसके बाद छोटे और मध्यम दर्जे के उद्योगों और दूसरे क्षेत्रों पर ध्यान देने की जरूरत होगी, क्योंकि लॉकडाउन के दौरान इन क्षेत्रों की गतिविधियां पूरी तरह ठप हो गयी हैं। इसका असर अगले कुछ महीनों तक रहेगा। इसलिए इस क्षेत्र को भी समुचित प्रोत्साहन की जरूरत होगी, ताकि अर्थव्यवस्था को चलाये रखने का भार केवल ग्रामीण क्षेत्र पर नहीं पड़े और सामाजिक असंतुलन पैदा न हो।
    एक और बड़ी समस्या सटीक आंकड़ों की है। झारखंड के पास न अपने प्रवासी मजदूरों का सटीक आंकड़ा है और न किसानों का। सच कहा जाये, तो बीते बीस साल में इस पर कभी काम ही नहीं हुआ। जब प्यास लगी, तो कुआं खोदा गया और फिर कुआं भर दिया गया गया। हेमंत सरकार तो अभी नयी है। इसे आंकड़ा बनाने का मौका ही नहीं मिला। सरकार बनी नहीं कि कोरोना का संक्रमण सामने आ गया। बताया जा रहा है कि राज्य के 10 लाख प्रवासी मजदूर बाहर फंसे हैं। इनमें से महज दो लाख ने निबंधन कराया है। राज्य के 15 लाख किसानों में से सात लाख को अब तक कोई राहत नहीं मिल सकी है, क्योंकि उनके विवरण और बैंक खाते में पिछली सरकार के समय से ही विसंगतियां हैं। राज्य के कितने छात्र बाहर हैं, इसकी कोई सटीक जानकारी किसी के पास नहीं है। ऐसे में योजनाएं बनाना बेहद दुश्कर कार्य होगा।
    यह देखना दिलचस्प होगा कि झारखंड इन सभी विपरीत परिस्थितियों का सामना कैसे और कितना कर पाता है। राज्य को लोगों को हेमंत सोरेन सरकार पर पूरा यकीन है और लोग किसी भी कुर्बानी के लिए तैयार हैं। राज्य सरकार भी पूरी ताकत से चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार है। अब इंतजार लॉकडाउन खत्म होने का है, जब स्थिति सामान्य होगी और तब झारखंड की असली परीक्षा शुरू होगी। हां, उस चुनौती से बाहर निकलने में हम और आप भी सहायक हो सकते हैं। वह सहायता हम अपने कर्तव्य का निर्वहन कर कर सकते हैं। यानी सब कुछ सरकार करेगी, हम आलोचना करेंगे, यह नहीं चलेगा। सबको कुछ न कुछ सकारात्मक करना होगा।

    Share. Facebook Twitter WhatsApp Telegram Pinterest LinkedIn Tumblr Email
    Previous Articleरैपिड एंटीबॉडी टेस्ट किट के इस्तेमाल पर सरकार ने तत्काल लगाई रोक
    Next Article लॉकडाउन होगा ख़त्म या 16 मई तक जारी रहेगा लॉकडाउन ?
    azad sipahi

      Related Posts

      लोहरदगा मे निकाली गई तिरंगा यात्रा

      May 16, 2025

      आकाशीय बिजली की चपेट में आया जवान, अस्पताल में तोड़ा दम

      May 16, 2025

      झारखंड में तापमान हुआ 43 डिग्री के पार, 17 से राहत की उम्मीद

      May 16, 2025
      Add A Comment

      Comments are closed.

      Recent Posts
      • मणिपुर में आठ उग्रवादी गिरफ्तार, हथियार और विस्फोटक बरामद
      • अमेरिका में जन्मजात नागरिकता पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई शुरू, जून में फैसला संभव
      • मध्य पूर्व यात्रा ने ट्रंप को ‘बदलने’ पर मजबूर किया
      • काठमांडू में आज होगा तीन दिवसीय ‘सागरमाथा संवाद’ का आगाज
      • अमेरिकी प्रशासन को ट्रंप-पुतिन मुलाकात जल्द होने की उम्मीद
      Read ePaper

      City Edition

      Follow up on twitter
      Tweets by azad_sipahi
      Facebook X (Twitter) Instagram Pinterest
      © 2025 AzadSipahi. Designed by Microvalley Infotech Pvt Ltd.

      Type above and press Enter to search. Press Esc to cancel.

      Go to mobile version