31 मार्च को ही सतर्क होते अफसर, तो आज यह हालत नहीं होती
राज्य के तीन चौथाई कोरोना मरीजों का संपर्क हिंदपीढ़ी से
वैश्विक महामारी कोरोना अब झारखंड में भयावह रूप लेने लगा है। महज 26 दिन में संक्रमितों की संख्या शून्य से 104 तक पहुंच जाना इस बात का साफ संकेत है कि झारखंड में संक्रमण कितनी तेजी से फैला है। संक्रमण फैलने से एक और बात साफ हो गयी है कि शुरूआती चूक और जरा सी लापरवाही ने पूरे झारखंड को तबाही के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है। 31 मार्च को जब रांची के हिंदपीढ़ी में संक्रमण का पहला मामला सामने आया था, तभी यदि सतर्कता बरती गयी होती, तो पलामू से लेकर जामताड़ा तक इस खतरनाक बीमारी का संक्रमण नहीं फैलता। झारखंड में अब तक जो 104 मामले सामने आये हैं, उनमें से तीन चौथाई से अधिक मरीजों का संपर्क रांची के हिंदपीढ़ी से है। यह बेहद चिंताजनक है, क्योंकि रांची जिला प्रशासन पहला मामला सामने आने के बाद से लगातार यह दावा करता रहा कि वह हिंदपीढ़ी को पूरी तरह सील कर चुका है। इसके बावजूद यहां से लोग निकलते रहे, रांची समेत राज्य के दूसरे इलाकों में घूमते रहे। लोग उनके संपर्क में आते रहे और कोरोना से संक्रमित होते रहे। आज न केवल हिंदपीढ़ी, बल्कि रांची के ही 18 इलाकों में संक्रमण फैल चुका है और मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। हालत यहां तक हो गयी है कि रांची के उपायुक्त और सीनियर एसपी तक को होम क्वारेंटाइन में जाने की अनुमति मांगनी पड़ गयी है। आखिर इस बड़ी चूक के लिए जिम्मेदार कौन है और उसे क्या सजा मिलेगी, इस पर आजाद सिपाही ब्यूरो की खास रिपोर्ट।
रविवार 26 अप्रैल की शाम को जब साफ हो गया कि झारखंड में कोरोना का संक्रमण बड़ी तेजी से फैल रहा है और एक दिन में 16 मरीज सामने आये हैं, पूरे राज्य में खलबली मच गयी। अब तक रांची का हिंदपीढ़ी इलाका ही संक्रमित माना जा रहा था, लेकिन अब तक रांची के ग्यारह इलाके संक्रमित हो चुके हैं। इसके अलावा राज्य के 24 में से 10 जिलों में कोरोना का संक्रमण फैल चुका है। राज्य में कोरोना संक्रमितों की संख्या 104 तक पहुंच गयी है, जिसमें सर्वाधिक 76 रांची के हैं।
झारखंड के लिए यह बेहद खतरनाक स्थिति है और इस स्थिति के लिए यदि कोई जिम्मेवार है, तो वह है रांची जिला प्रशासन की चूक और स्थिति की गंभीरता को समझने में भूल। 31 मार्च को जब हिंदपीढ़ी के घर में छिप कर रह रही मलेशियाई महिला के रूप में झारखंड में पहला कोरोना संक्रमित मरीज सामने आया था, प्रशासन ने हिंदपीढ़ी को सील करने और कर्फ्यू लगाने का एलान तो कर दिया, लेकिन यह सारा कुछ कागजों पर ही हुआ। तीन से चार दिन तक लगातार वहां के लोग विभिन्न अवसरों पर सड़कों पर उतरते रहे। कभी रास्ता बंद करने के नाम पर, तो कभी मरीज को अस्पताल में नहीं जाने देने के नाम पर। यही नहीं, हिंदपीढ़ी का इलाका सील होने के बावजूद लोग यहां से बाहर जाते रहे। उनके साथ-साथ राज्य के दूसरे क्षेत्रों में कोरोना भी पहुंचा। रांची के बाहरी इलाके बेड़ो, बुंडू से लेकर पलामू-गढ़वा और जामताड़ा तक यहां के लोग पहुंच गये और इसका परिणाम अब सामने आ रहा है। सोमवार को जब राज्य के सबसे बड़े अस्पताल रिम्स के एक डॉक्टर ने कहा कि अगले 10 दिन में संक्रमितों की रिकार्ड तोड़ दे, तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए, क्योंकि इस संक्रमण को रोकने के लिए जितनी प्रशासनिक चुस्ती चाहिए, वह कम से कम झारखंड में नहीं दिखती है। यहां न कांटैक्ट ट्रेसिंग हो रही है और न ही संदिग्धों की तेजी से जांच हो रही है। जिन लोगों के सैंपल लिये जा रहे हैं, उन्हें भी तब तक स्वतंत्र होकर घूमने के लिए छोड़ दिया जा रहा है, जब तक कि उनकी रिपोर्ट पॉजिटिव नहीं आ जाये। रिपोर्ट पॉजिटिव आने पर ही उन्हें आइसोलेशन में रखा जा रहा है, लेकिन तब तक वे कई लोगों में संक्रमण फैला चुके होते हैं। यह प्रबंधकीय चूक परेशानी का सबब बनती जा रही है।
दरअसल झारखंड में कोरोना का संक्रमण फैलने के लिए हर स्तर पर हुई प्रशासनिक चूक जिम्मेदार है। पहले दिन से ही कहा जा रहा था कि कोरोना संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए इसके चेन को तोड़ना जरूरी है, ताकि सामुदायिक संक्रमण न फैल सके। लेकिन हुआ इसका उल्टा। लॉकडाउन के बावजूद लोग बाहर निकल कर सड़कों पर घूमते रहे, आवागमन भी जारी रहा। प्रशासन दावे करता रहा और हकीकत में उसकी धज्जियां उड़ती रहीं। यहां तक कि हिंदपीढ़ी इलाके के लिए बनाये गये कंट्रोल रूम में काम करनेवाला मजदूर भी संक्रमित होने के बावजूद काम करता रहा। सदर अस्पताल तक में संक्रमित नर्सों और ओटी सहायकों को ड्यूटी पर लगाये रखा गया और परिणाम यह हुआ कि कोरोना का वायरस हिंदपीढ़ी से निकल कर रांची के दूसरे इलाकों पीपी कंपाउंड, पंजाब स्वीट हाउस के पीछे के फ्लैट, नेताजी नगर कांटाटोली, लोवाडीह, चुटिया, बरियातू, पिस्का मोड़ बांसटोली, इमली चौक हरमू, बेड़ो, कोतवाली, रांची रेलवे स्टेशन, कांके, कडरू और डोरंडा में फैलता गया। पहले बरियातू, फिर कांटाटोली और उसके बाद लोवाडीह से लेकर पिस्का मोड़ तक संक्रमित आते-जाते रहे। किसी ने इन सभी को क्वारेंटाइन करने की जहमत नहीं उठायी।
इस प्रशासनिक चूक का परिणाम यह हुआ कि रांची सदर अस्पताल के डॉक्टर और स्वास्थ्यकर्मी के साथ रांची के उपायुक्त और सीनियर एसपी तक को होम क्वारेंटाइन में जाने की तैयारी करनी पड़ रही है। ऐसा लग रहा है कि कोरोना के खिलाफ पिछले एक महीने से अधिक समय से जारी लड़ाई के लिए की गयी पूरी व्यवस्था ध्वस्त होने के कगार पर पहुंच गयी है। 31 मार्च तक जो प्रदेश कोरोना संक्रमण से मुक्त रहने के लिए अपनी व्यवस्था पर गर्व कर रहा था, आज तबाही के कगार पर पहुंच गया है।
अब भी देर नहीं हुई है। कोरोना के खतरनाक संक्रमण को रोकने के लिए अब प्रशासन को सख्त रवैया अपनाना चाहिए। राज्य सरकार अपनी पूरी ताकत लगा रही है। अब यह कार्यपालिका और नौकरशाही पर निर्भर है कि वह क्या रवैया अपनाता है। यदि राज्य में कोरोना का संक्रमण फैलने से रोकना है, तो सबसे पहले लॉकडाउन का सख्ती से पालन करना जरूरी है। आज भी जो लोग जरूरत का सामान खरीदने के नाम पर बाहर निकल रहे हैं, उन सभी को घरों में रहने के लिए मजबूर करना होगा। इसके अलावा संदिग्धों की जांच की रफ्तार तेज करनी होगी और जिनके सैंपल लिये जा रहे हैं, उन सभी को तब तक क्वारेंटाइन करना होगा, जब तक कि उनकी रिपोर्ट नेगेटिव न आ जाये। यानी अब झारखंड के प्रत्येक नागरिक को संदिग्ध मानना होगा, तभी कोरोना के खिलाफ लड़ाई को जीतने की स्थिति बन सकेगी। राजस्थान के भीलवाड़ा में यही हुआ। वहां के प्रशासन ने हर व्यक्ति को कोरोना से संक्रमित माना और उसी अनुरूप काम किया। झारखंड को इस महामारी से बचाने के लिए यही एकमात्र तरीका अपनाना होगा। अब समय कम है और बिना किसी विलंब के प्रशासन को इस काम में जुट जाना चाहिए।