• कोरोना संकट ने बदल दी है खाकी वर्दी की छवि
  • हर दिन 25 हजार लोगों का पेट भर रहे हैं वर्दी वाले

कोरोना संकट ने झारखंड में कई संस्थाओं-संगठनों की छवि को बदल कर रख दिया है। अपनी कार्यशैली और शुष्क व्यवहार से अक्सर आम लोगों के बीच नकारात्मक छवि बनानेवाली झारखंड पुलिस ऐसे ही संगठनों में से एक है, जिसने संकट के इस दौर में सोशल पुलिसिंग का शानदार उदाहरण पेश किया है। कोरोना महामारी के संक्रमण को रोकने के लिए पिछले दस दिन से लॉकडाउन झेल रहे झारखंड के लोग अब थाना जाने से कतराते नहीं हैं और न ही पुलिस को देखते ही उसके प्रति घृणा का भाव प्रदर्शित करते हैं। राज्य के पुलिस प्रमुख एमवी राव से लेकर निचले तबके के पुलिसकर्मियों ने संकट के इस दौर में खुद को आम लोगों की सेवा में झोंक दिया है। झारखंड के लोगों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि लोगों को लाठी-गोली की खुराक देनेवाली पुलिस उनका पेट भरने के लिए भी तत्परता से जुटेगी। इस बार झारखंड के पुलिसकर्मियों ने साबित कर दिया है कि उनके भीतर भी इंसानियत है और वे भी जरूरत पड़ने पर आम लोगों की सेवा उसी समर्पण और सेवा भाव से कर सकते हैं, जैसे एक समाजसेवी करता है। झारखंड पुलिस की इस नयी छवि और कार्यशैली पर आजाद सिपाही के राज्य समन्वय संपादक अजय शर्मा की खास रिपोर्ट।

बात 29 मार्च की है। शाम के करीब साढ़े सात बजे 10 लोग पीठ पर बैग टांगे रांची के बूटी मोड़ की ओर जा रहे थे। कोकर चौक पर तैनात पुलिस की टीम ने उन्हें रोका और उनके गंतव्य के बारे में पूछा। उन लोगों ने पुलिसकर्मियों को बताया कि वे समस्तीपुर जा रहे हैं, क्योंकि लॉकडाउन की वजह से उनकी रोजी-रोटी छिन गयी है और मकान मालिक ने घर से निकलने को कह दिया है। पुलिसवालों ने उनसे जब खाने के बारे में पूछा, तो उनमें से एक रोने लगा। उसने कहा कि वह दो दिन से भूखा है। तब पुलिसकर्मियों ने उन्हें वहीं रुकने को कहा। करीब आधे घंटे बाद पुलिस की एक जीप वहां पहुंची और उन लोगों को भरपेट भोजन कराया गया। इसके बाद उन्हें लौट जाने की सलाह दी गयी। जब उन्होंने मकान मालिक के आदेश का हवाला दिया, तो पुलिसवाले उन्हें लेकर कहीं चले गये। करीब एक घंटे बाद पुलिस टीम वहां लौटी और पूछने पर बताया कि सभी लोगों के रुकने का इंतजाम भी कर दिया गया है। आज पांचवें दिन जब उन 10 लोगों में से एक, जिसने अपना नाम महावीर बताया, ने कहा कि वह अपने साथियों के साथ आराम से है। सभी को सदर थाना से भर पेट खाना मिल रहा है और रहने के लिए जगह भी मिल गयी है।
दूसरी कहानी चार अप्रैल की है। रांची के अरगोड़ा थाना इलाके में एक आॅटो चालक ने आत्महत्या कर ली। उसके परिजन जब यहां आये और शव की अंत्येष्टि यहीं करने की इच्छा जतायी, तब अरगोड़ा पुलिस उनके साथ खड़ी हुई। थाना प्रभारी के नेतृत्व में पुलिसकर्मियों ने न केवल अंत्येष्टि का पूरा इंतजाम किया, बल्कि परिजनों के ठहरने और दूसरी सुविधाओं का भी इंतजाम किया।
ये दोनों कहानियां भले ही सामान्य और छोटी लगें, लेकिन इनके मायने बहुत बड़े हैं। जिस झारखंड पुलिस के माथे पर कई ज्यादतियों और दूसरे गलत कामों के धब्बे लगे हों और लोगों का उस पर से भरोसा लगातार कम हो रहा हो, उस पुलिस के रवैये में यह बदलाव सुखद एहसास कराता है। झारखंड पुलिस के मुखिया मांडव विष्णुवर्द्धन राव के अनुसार कोरोना संकट के इस दौर में पुलिस अपनी छवि में गुणात्मक सुधार ला रही है। राज्य भर के थानों और दूसरे स्थानों पर झारखंड पुलिस 386 सामुदायिक किचेन का संचालन कर रही है। इसमें सर्वाधिक 44 धनबाद में हैं। रांची में 38 और जमशेदपुर में 36 सामुदायिक किचेन संचालित हो रहे हैं। ये सामुदायिक किचेन दूसरे जिलों में भी चल रहे हैं और अब तक करीब ढाई लाख लोग इससे लाभान्वित हो चुके हैं। यह पुलिस के लिए बड़ी उपलब्धि है। सबसे खास बात यह है कि खाना खाने पहुंचनेवाले लोगों को पुलिसकर्मी पूरा सम्मान देते हैं और अतिथि देवो भव: की पुरानी भारतीय परंपरा का पालन करते हैं। रांची के चुटिया थाने में सामुदायिक किचेन में काम संभाल रहे एक पुलिसकर्मी ने कहा, जब कोई व्यक्ति भोजन करने के बाद हमें बधाई और शुभकामना देता है, तो ऐसा लगता है कि हमारा जीवन सफल हो गया। उस पुलिसकर्मी ने बताया कि अब तक वह सात सौ से अधिक लोगों को खाना खिला चुका है।
ऐसा नहीं है कि झारखंड पुलिस के लोग जरूरतमंदों को केवल खाना ही खिला रहे हैं। वे हर उस जरूरतमंद की हरसंभव मदद करते हैं, जो उनके पास फरियाद लेकर पहुंचता है। चाहे सड़क पर हो या फिर थाने में, आज कोई भी जरूरतमंद व्यक्ति पुलिस के पास जाने से डरता नहीं है, बल्कि उसका सम्मान करता है। लॉकडाउन का उल्लंघन कर घर से बाहर निकलनेवाले लोगों से भी पुलिस के लोग सलीके से पेश आ रहे हैं। यही कारण है कि लॉकडाउन शुरू होने के बाद से पुलिस ज्यादती की कोई बड़ी खबर राज्य भर से नहीं मिली है।
झारखंड पुलिस के इस बदले हुए रवैये की तारीफ की जाना चाहिए। इसके साथ ही यह भी जरूरी है कि आम लोग उसकी मदद करें। सुबह से देर रात तक सूनी सड़कों पर ड्यूटी कर रहे पुलिसकर्मियों को केवल आम लोगों से सहयोग की अपेक्षा है। अपने परिवार को छोड़ वे केवल इसलिए ड्यूटी कर रहे हैं कि हम कोरोना के संक्रमण से बचे रहें। कानून-व्यवस्था बनाये रखने की अपनी प्राथमिक ड्यूटी से आगे बढ़ कर झारखंड पुलिस संकट के इस दौर में जरूरतमंदों की सहायता कर रही है, उन्हें खाना खिला रही है और ठहरने से लेकर दूसरे इंतजाम कर रही है, तो अब समाज को और क्या चाहिए। झारखंड के लोगों को अपनी पुलिस पर गर्व करने का इससे अच्छा अवसर नहीं मिल सकता है और पुलिस के लिए भी खुद को एक बार फिर आम लोगों से जोड़ने का यह एक बेहतर मौका है। इसका लाभ सभी को उठाना ही चाहिए। इसका श्रेय मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और डीजीपी एमवी राव को जाता है।

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